-हेमंत पाल
लंबे असमंजस और उहा-पोह के बाद काँग्रेस हाईकमान ने मध्यप्रदेश में अपनी कमान थामने के लिए नए नेता का चुनाव कर लिया। आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के नाम पर पार्टी ने एक बड़ा दाँव खेला है। बड़ा दाँव इसलिए कि भूरिया को मंत्री पद से हटाकर ढेर सारी उम्मीदों के साथ मध्यप्रदेश में पार्टी में संजीवनी फूँकने के लिए भेजा गया है। यह दाँव किस हद तक सफल होगा, अभी इसके कयास ही लगाए जा सकते हैं। क्योंकि, फिलहाल न तो भूरिया के सामने चुनाव की कोई चुनौती है, न सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी से दो-दो हाथ करने के लिए मैदान में उतरने जैसा कोई हालात! भूरिया के सामने विपक्ष से बड़ी चुनौती तो खुद की पार्टी ही होगी जो बुरी तरह बिखरी हुई है। गुटों में बँटी पार्टी को समेटकर एक करना और उसमें नया जोश भरना राजनीतिक रूप से आसान नहीं होता! खासकर ऐसी स्थिति में जब उपचुनाव में हार के बाद पार्टी का आत्मविश्वास डोल गया हो और उस पर मातमी साया हो!
कांतिलाल भूरिया की राजनीति की शुरूआत तो प्रदेश की राजनीति से ही हुई थी, लेकिन लंबे समय से वे केंद्र की राजनीति में हैं। लाल बत्ती वाली राजनीति की आदत वाले भूरिया के लिए नई चुनौती की राह काफी मुश्किलों भरी है। उनके सामने प्रदेश में दूसरे कार्यकाल में सरपट दौड़ रही भाजपा सरकार है, तो दूसरी तरफ उन्हें ऐसी पार्टी की लगाम दी गई है जिसमें जुता हर घोड़ा अपनी दिशा में भाग रहा है। इन सभी घोड़ों को एक राह पर आने और साथ दौड़ने के लिए राजी करना और प्रतिद्वंद्वी को मात देना बेहद कठिन काम है। ऐसे में लगाम कसने के लिए चाबुक भी चलाना पड़ेंगे और घोड़ो की मालिश भी करना होगी। प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की जो स्थिति है उसे देखकर यह बात साफ है कि कांतिलाल भूरिया को स्वयं की कांति से कांग्रेस में ओज भरना होगी और इसके लिए उन्हें ऑपरेशन भी करना पड़ेगें और मवाद लगे घावों को भी साफ करना होगा! हो सकता है कि पार्टी की सेहत को जल्द सुधारने के लिए बूस्टर इंजेक्शन भी लगाना पड़ें!
इस आदिवासी नेता के लिए एक चुनौती यह भी होगी कि वे खुद पर लगी दिग्विजय-मुहर को धोकर साफ कर दें! उनके नाम की घोषणा के साथ ही जिस तरह दिग्विजय-युग की वापसी का डंका पीटा जा रहा है, वह पार्टी की भविष्य की रणनीति के लिए घातक साबित हो सकता है। कारण यह है कि एक बड़ा वर्ग अभी भी दिग्विजय सिंह से खफा है। यदि उन्हें लगता है कि कांतिलाल भूरिया के बहाने उसी युग की वापसी हो रही है, तो वह बिदक सकता है! भूरिया के लिए अपनी पहचान वाले उस खोल से बाहर निकलना आसान तो नहीं है, पर उन्हें यह करना होगा, क्योंकि मुकाबला जीतने और लक्ष्य पाने के लिए कई बार कुछ मोह त्यागने भी पड़ते हैं।
नए मुखिया को संगठन वाली सड़क की राजनीति की आदत नहीं है। उनकी छवि भी आक्रामक और मुखर नहीं है। जबकि, आज पार्टी को मध्यप्रदेश में बतौर मुखिया ऐसे ही नेता की ज्यादा जरूरत है। यदि कांतिलाल भूरिया को अपने चयन को सही साबित करके भाजपा को मात देना है, तो उन्हें अपनी छवि के विपरीत आक्रामकता दिखाना होगी और प्रतिद्वंद्वी को उनके घर में घेरना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है कि सुरेश पचौरी भी आक्रामकता और मुखरता दिखाने में चूक कर गए थे।
भूरिया को एक निर्धारित कार्य-योजना और रणनीतिक कुशलता के साथ काम की शुरूआत करना होगी! यह इसलिए भी जरूरी है कि दो साल बाद आने वाला समय चुनावी होंगा, जो भूरिया के चयन को सही या गलत साबित करेंगे! उन्हें सबसे बड़ा काम तो अपनी टीम को चुनने का करना होगा। इसलिए कि चुकी और थकी टीम के साथ वे ज्यादा लंबा रास्ता तय नहीं कर सकते! राजनीतिक रूप से बासी हो चुके चेहरे पार्टी में कोई जान फँूक सकेंगे, इस भरोसे को त्याग करके नई टीम चुनना होगी। ऐसे लोगों को चाँस देना होगा जिनकी छवि साफ हो और वे चुनौतियाँ झेलने के आदी हों! आज जमाना युवाओं का है और सबसे पहले कांतिलाल भूरिया को स्वयं की सोच और व्यक्तित्व में युवा जोश भरना होगा, उसके बाद ही वे विपक्ष को टक्कर देने के काबिल हो सकेंगें। इसके अलावा किसी भी राजनीतिक पार्टी का आधार संगठन होता है और भूरिया के सामने संगठन को फिर नए सिरे से खड़े करने की कवायद भी करना है। इसमें उन्हें मैेंद्र सिंह धोनी जैसा जोश और सचिन तेंडुलकर जैसा धैर्य बताना होगा।
अण्णा हजारे के आंदोलन के बाद देश की तासीर में जबरदस्त बदलाव के आसार देखे जा रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में चिंगारी सुलगने लगी है, ऐसे में कांतिलाल भूरिया के लिए राह और कांटो भरी है। उन्हें कांँग्रेस का ऐसा चेहरा समाज के सामने लाने की तैयारी करना होगी जो दागदार, चुका और थका हुआ न हो! अपने मुकाबले की पार्टी को वे तभी बचाव के लिए बाध्य कर सकते हैं, जब काँग्रेस के दाँव सही निशाने पर लगें! यदि ऐसा नहीं हुआ तो काँग्रेस को प्रदेश की राजनीति में फिर विपक्ष की कुर्सी खाली मिलेगी!