Saturday, May 10, 2014

दिग्विजय ने अमृता से रिश्‍ते कबूले


   कांग्रेस में दिग्विजय सिंह की एक अलग पहचान है। मुँहफट और तार्किक तरीके से विपक्ष को निशब्द कर देने वाले 'दिग्गी राजा' कभी कोई ऐसा काम करेंगे, ऐसा किसी ने सोचा नहीं था! टीवी एंकर अमृता राय से अपने रिश्तोँ को स्वीकारने के बाद उसे सही करार देकर दिग्विजय सिंह ने चुनाव की गर्मी वाले मौसम में नई बहस को जन्म दे दिया! इस रिश्ते को लेकर राजनीति में ज्यादा विवाद नहीं हुआ! भाजपा के बड़े नेताओं ने इसे निजी मामला बताकर कन्नी काट ली, पर सोशल मीडिया पर ये प्रसंग चर्चित रहा! 
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  कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने टीवी एंकर अमृता राय से रिश्‍ते की बात कबूल की है। उन्होंने ये भी कहा कि दोनों जल्द ही शादी करने की तैयारी में हैं! ये मामला सामने आने के बाद दिग्विजय सिंह ने ट्वीट करके कहा कि 'मुझे यह स्‍वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि अमृता राय से मेरे रिश्‍ते हैं। अमृता ने अपने पति से तलाक के लिए केस फाइल कर दिया है। तलाक की प्रक्रिया पूरी हो जाए तो हम इस रिश्‍ते को औपचारिक रूप दे देंगे। लेकिन, अपनी निजी जिंदगी में किसी तरह की दखल की मैं निंदा करता हूं।' राज्‍यसभा टीवी में एंकर अमृता ने भी अपने पति से अलग होने की बात कबूल ली। उन्‍होंने ट्वीट किया कि 'मैं अपने पति से अलग हो गई हूं और हमने तलाक के लिए कागजात दाखिल कर दिए हैं। उसके बाद मैंने दिग्विजय सिंह से शादी करने का फैसला किया है।' इससे पहले दिग्विजय सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी द्वारा अपने वैवाहिक जीवन का शपथ पत्र में खुलासा होने के समय दस अप्रैल को ट्वीट किया था ‘मैं विधुर हूं और जब भी दोबारा शादी करुंगा तो आपके प्रिय फेंकू की तरह यह बात मैं छिपाऊंगा नहीं।’
  कांग्रेस के इस बड़े नेता का ट्वीट ऐसे समय आया, जब ट्विटर पर दिग्विजय सिंह और अमृता राय के रिश्‍ते को लेकर कई ट्वीट पोस्‍ट हो रहे हैं। ट्वीट के साथ दिग्विजय की अमृता के साथ कुछ निजी तस्‍वीरें भी शेयर की जा रही हैं। सोशल वेबसाइट फेसबुक पर भी इन दोनों की तस्‍वीरें मौजूद हैं। 
  अमृता ने आरोप लगाया है कि उनका ईमेल हैक कर लिया गया, जिसमेँ हमारी फोटों थी, जिन्हें सोशल मीड़िया पर पोस्ट कर दिया गय! उन्‍होंने ट्वीट किया कि 'मेरा ई-मेल हैक हो गया है और कंटेंट से छेड़छाड़ की गई! ऐसा करना गंभीर अपराध और यह मेरी प्राइवेसी में दखल देना है. मैं इसकी कड़े शब्‍दों में निंदा करती हूं।' 43 साल की अमृता राय के पति आनंद प्रधान आईआईएमसी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। जबकि,  67 साल के दिग्विजय सिंह की पत्‍नी आशा सिंह का पिछले साल कैंसर से निधन हो गया था। 
कांग्रेस ने झाड़ा पल्ला
  कांग्रेस महासचिव और एक टीवी पत्रकार अमृता राय के संबंध पर कांग्रेस ने कहा है कि ये उन दोनो का निजी मामला हो सकता है। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने एक प्रेस कांफ्रेस में कहा है कि ये हो सकता है कि उनकी वेबसाइट हैक की गई हो! गौरतलब है कि सोशल साइट ट्विटर पर दिग्विजय के साथ अमृता की कुछ फोटो अपलोड की गई थी जिसके बाद मीडिया और राजनीतिक दलों में दिग्विजय के रिश्ते को लेकर चर्चाएं तेज हो गई थी। 
किसने अपलोड की तस्वीरें
  दिग्विजय सिंह और टीवी पत्रकार अमृता राय की निजी तस्वीरें सोशल मीडिया के जरिए कैसे सार्वजनिक हो गईं? इसका जवाब तलाशने के लिए दिल्ली पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। पहले बताया गया था कि तस्वीरें भाजपा नेता नितिन गडकरी ने जारी कीं, लेकिन गडकरी ने दिग्विजय सिंह की टीवी एंकर के साथ तस्वीरें अपने ट्विटर अकाऊंट से जारी होने का खंडन किया है। गडकरी ने कहा कि वे तस्वीरें फर्जी अकाऊंट से जारी की गई थीं। गडकरी ने साइबर अपराध शाखा से शिकायत की है कि उनके नाम से 3 फर्जी अकाऊंट चल रहे हैं। दिग्विजय सिंह और अमृता राय के संबंधों को उजागर करने वाले फोटोग्राफ्स को डिलीट करने के लिए पुलिस ने ट्विटर व फेसबुक को कहने के साथ ही इस मामले की तह तक जाने की कोशिश शुरू कर दी है। वे फर्जी अकाऊंट डिलीट कर दिए गए, जिसे अमृता राय के नाम से बनाकर आपत्तिजनक ट्वीट किए जा रहे थे।
क्या बोले आनंद प्रधान 
  सोशल साइट्स पर इस रिश्ते के सामने आने के बाद कई तरह की टिप्पणियां आई। अमृता के पति आनंद प्रधान ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर अपनी बात रखीं। उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है -
 एक बड़ी मुश्किल और तकलीफ से गुजर रहा हूँ। यह मेरे लिए परीक्षा की घडी है। मैं और अमृता लम्बे समय से अलग रह रहे हैं और परस्पर सहमति से तलाक के लिए आवेदन किया हुआ है। एक कानूनी प्रक्रिया है, जो समय लेती है। लेकिन, हमारे बीच सम्बन्ध बहुत पहले से ही खत्म हो चुके हैं। अलग होने के बाद से अमृता अपने भविष्य के जीवन के बारे में कोई भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं और मैं उनका सम्मान करता हूँ, उन्हें भविष्य के जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं। 
  मैं जानता हूँ कि मेरे बहुतेरे मित्र, शुभचिंतक, विद्यार्थी और सहकर्मी मेरे लिए उदास और दुखी हैं। लेकिन, मुझे यह भी मालूम है कि वे मेरे साथ खड़े हैं। मुझे विश्वास है कि मैं इस मुश्किल से निकल आऊंगा। मुझे उम्मीद है कि आप सभी मेरी निजता का सम्मान करेंगे। शायद ऐसे ही मौकों पर दोस्त की पहचान होती है, उन्हें आभार कहना ज्यादती होगी!
  लेकिन, जो लोग स्त्री-पुरुष के संबंधों की बारीकियों और स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व और व्यक्तित्व को सामंती और पित्रसत्तात्मक सोच से बाहर देखने के लिए तैयार नहीं हैं, उसे संपत्ति और बच्चा पैदा करने की मशीन से ज्यादा नहीं मानते हैं और उसकी गरिमा का सम्मान नहीं करते, उनके लिए यह चटखारे लेने, मजाक उड़ाने, कीचड़ उछालने और निजी हमले करने का मौका है। लेकिन, वे यही जानते हैं! उनकी सोच और राजनीति की यही सीमा है. उनसे इससे ज्यादा की अपेक्षा भी नहीं!

दिग्विजय अकेले दिलफेंक नहीं! 
  दिग्विजय सिंह अकेले कांग्रेस नेता नहीं हैं, जिनके किसी महिला के साथ संबंध जगजाहिर हुए हैं। एनडी तिवारी से लेकर महिपाल सिंह मदेरणा तक के सेक्‍स स्‍कैंडल लोगों के सामने आ चुके हैं। हालांकि, पॉलिटिक्‍स और सेक्‍स का कॉकटेल हमेशा बेहद खतरनाक रहा है। कांग्रेस के कई नेता इससे मदहोश हो चुके हैं। 
  हाल ही में कांग्रेस के दिग्‍गज नेता एनडी तिवारी ने माना कि रोहित शेखर उनके बेटे हैं। रोहित ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया कि एनडी तिवारी उनके पिता हैं। तिवारी जी पहले तो नहीं माने, लेकिन डीएनए जांच के बाद उन्‍हें मानना पड़ा कि रोहित उनके ही बेटे हैं। इससे पहले एनडी तिवारी का एक सेक्‍स स्‍कैंडल भी सामने आ चुका है। इस सेक्‍स स्‍कैंडल में तिवारी एक बेड पर तीन जवान लड़कियों के साथ पकड़े गए थे। कांग्रेस के दबंग नेता गोपाल कांडा इन दिनों जमानत पर जेल से बाहर आए हुए हैं।
  हरियाणा के नेता गोपाल कांडा पर अपनी एयरलाइंस कंपनी में काम करने वाली एयरहोस्‍टेस गीतिका के साथ सेक्‍स संबंध बनाने का आरोप लगा है। डिस्ट्रिक्ट जज एस.के. सरवरिया की अदालत ने कांडा पर रेप, अप्राकृतिक यौनाचार और खुदकुशी के लिए मजबूर करने सहित अन्य धाराओं के तहत आरोप तय किए। 
  राजस्‍थान की सियासत में तब हड़कंप मच गया जब कांग्रेस के मंत्री महिपाल सिंह मदेरणा के साथ नर्स भंवरी देवी की सेक्‍स सीडी सामने आई। इस सेक्‍स सीडी में मदेरणा को भंवरी देवी के साथ बेहद आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए थे। हालांकि, भंवरी देवी के कत्‍ल के बाद मदेरणा का मामला थोड़ा ठंडा जरूर पड़ गया है, लेकिन सीबीआई इसकी जांच में जुटी हुई है।
आरटीआई एक्टिविस्ट शेहला मसूद हत्‍याकांड में मध्यप्रदेश के भाजपा के एक नेता ध्रुवनारायण सिंह का नाम आने से पार्टी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। जांच में सामने आया कि धु्वनारायण सिंह से शेहला मसूद की नजदीकी, हत्‍या की साज़िश रचने वाली ज़ाहिदा परवेज़ को नागवार गुजरी और इंतकाम के लिए उसने शेहला की सुपारी भाड़े के हत्‍यारों को दे दी। ज़ाहिदा की डायरी के पन्‍नों के राज सामने आने के बाद ध्रुवनारायण सिंह को पॉलीग्राफिक टेस्‍ट तक से गुजरना पड़ा था। 
  कांग्रेस के दिग्‍गज नेता मनु सिंघवी की सेक्‍स क्लिप भी सामने आ चुका है। सिंघवी पर आरोप लगे थे कि उन्‍होंने एक महिला वकील को प्रमोशन दिलाने के एवज में सेक्‍स संबंध बनाए। सिंघवी के महिला के साथ बिताए अंतरंग पलों को किसी ने कैमरे में कैद कर उसे इंटरनेट पर अपलोड कर दिया।

तीसरा मोर्चा भी 'उम्मीद' से!

इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के फ़िर सत्ता में आने की संभावनाएं बेहद क्षीण हैं। क्योंकि, अपने दस साल के कार्यकाल मे कांग्रेस की यूपीए सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया, जो वोटर उन्हें एक और मौक़ा दे! ऐसे में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के देश की सत्ता मे आने के आसार प्रकट किए जा रहे हैं। लेकिन, यदि एनडीए 272 का जादुई आंकड़ा जुटा पाने मे सफल नहीं हुई, तो दूसरा विकल्प तीसरे मोर्चे को माना जा सकता है! लेकिन, अभी इस मोर्चे का क़ोई आकार सामने नहीं आया है। यदि एनडीए पिछड़ा और तीसरे मोर्चे के भाग्य से छींका टूटा तो देश को अगले 5 साल से पहले एक और चुनाव का सामना पड़ सकता है। ये भी तय है कि कांग्रेस के बगैर तीसरे मोर्चे की सरकार बन पाना संभव नहीं है! लेकिन, राहुल गाँधी ने तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की संभावना और जोड़-तोड़ से सरकार बनाने से इंकार किया है।  
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 समाजवादी पार्टी मुखिया और तीसरे मोर्चे के पैरोकार मुलायम सिंह यादव ने हमेशा ही लोकसभा चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना को खारिज किया है। उनका तर्क था कि यदि अभी ऐसा हुआ होता तो विभिन्न दलों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर मतभेद उत्पन्न हो जाते। यादव ने हर बार दोहराया कि तीसरे मार्चे का गठन चुनाव के बाद होगा। उन्होंने साथ ही यह भी दावा किया कि देश का अगला प्रधानमंत्री गठबंधन के सहयोगी दलों से होगा। यादव ने कहा कि तीसरे मोर्चे का गठन चुनाव से पहले संभव नहीं था, क्योंकि टिकट बंटवारे और सीट साझा करने को लेकर पार्टियों के बीच मतभेद हो सकते थे। 
  उन्होंने कहा कि यही कारण है कि प्रस्तावित मोर्चे की सभी राजनीतिक पार्टियां अपने बल पर चुनाव लड़ा, और चुनाव के बाद एकसाथ आ जाएंगी। यादव ने कहा कि उनकी पार्टी सपा माकपा नेता प्रकाश करात और भाकपा नेता एबी बर्धन के सम्पर्क में है और इसको लेकर एक समझ है। उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि तीसरे मार्चे को केंद्र की सत्ता में आना चाहिए। देश का अगला प्रधानमंत्री तीसरे मोर्चे का उम्मीदवार होगा। उन्होंने दावा किया कि तीसरे मोर्चे का उम्मीदवार ही देश का अगला प्रधानमंत्री होगा।
समर्थन से इंकार 
  लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस द्वारा तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की सम्भावनाओं को लेकर अटकलें लगाए जाने के बीच पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी मोर्चे को समर्थन नहीं देगी। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल में कांग्रेस द्वारा तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की सम्भावना व्यक्त की थी। उसके बाद इसकी अटकलें तेज हो गयी थीं। हालांकि बाद में खुर्शीद अपने बयान से पलट गए थे। चुनाव के अंतिम दौर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तीसरे मोर्चे की सरकार को समर्थन देने की बात को नकार दिया। अलबत्ता कुछ दिन पूर्व कांग्रेस के कुछ नेताओं की ओर से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने संबंधी जो बयान आ रहे थे, उससे मुलायम सिंह यादव और जे. जयललिता को जरूर खुशी मिली होगी, क्योंकि ये दोनों अब भी खुलकर तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की उम्मीद जाहिर कर रहे हैं।
  अब तक इन दोनों नेताओं ने ही प्रधानमंत्री बनने की मंशाजाहिर की है। कुछ ऐसी ही उम्मीद ममता बनर्जी और मायावती ने भी लगा रखी है, लेकिन उन्होंने अपनी आकांक्षाओं को जाहिर नहीं किया है। जाहिर है, कांग्रेस की ओर से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात निकलते ही इन नेताओं को अपनी उम्मीद परवान चढ़ती नजर आने लगी होगी। यह बात और है कि नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल का गुब्बारा फोड़ने का दावा करते रहे राहुल ने जल्द ही तीसरे मोर्चे की सरकार को समर्थन का गुब्बारा भी फोड़ दिया।
 कांग्रेस ने सबसे पहले 1979 में जनता पार्टी को तोड़कर चौधरी चरणसिंह की सरकार बनवाई थी। तब कांग्रेस और उसकी नेता इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी से ज्यादा राजनीति में खुद की प्रासंगिकता को लेकर फिक्रमंद थीं। उन्हें उसी जनता पार्टी की आपसी कलह से मौका मिल गया, जिसने प्रचंड बहुमत से उन्हें हराकर पहली बार देश में गैरकांग्रेसी सरकार बनाई थी। इंदिरा के सहयोग से चरण सिंह प्रधानमंत्री तोबने, लेकिन वह सरकार उस संसद का भी मुंह नहीं देख पाई, जिसके प्रति वह जवाबदेह होती है। यह सरकार कुछ दिन ही चल पाई थी। तब चौधरी चरण सिंह की अगुआई वाले धड़े को तीसरा मोर्चा नहीं कहा गया था, लेकिन अपनी सियासी तासीर में वह तीसरे मोर्चे से ही जुड़ा था। उसका फायदा भी कांग्रेस को मिला और 1980 में इंदिरा गांधी की वापसी हो गई।
 दूसरा मौका कांग्रेस को 11 साल बाद दिसंबर 1990 में मिला। तब जनता दल में वीपी सिंह और चंद्रशेखर में मनमुटाव चल रहा था। इसका फायदा कांग्रेस ने उठाया। वीपी सिंह की सरकार राममंदिर आंदोलन के रथी आडवाणी की गिरफ्तारी और समर्थन वापसी के बाद अल्पमत में आ गई थी। तब कांग्रेस ने उकसाकर जनता दल को तुड़वाया था।
 कांग्रेस को एक बार फिर तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का मौका मिला 1996 में। तब लोकसभा में 162 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में सिर्फ 13 दिन सरकार चल पाई। तब कांग्रेस ने एचडी देवेगौड़ा की अगुआई वाली संयुक्त मोर्चे की सरकार को समर्थन दिया और 11 महीने में वापस भी ले लिया। आईके गुजराल की भी सरकार बनी। लेकिन कांग्रेस ने यह सरकार भी चंद माह ही चलने दी। यह बात और है कि जिस मकसद से उसने सरकार गिराई, वह पूरा नहीं हो पाया। उसे 1998 के चुनावों मेंबहुमत नहीं मिल पाया। अलबत्ता इसके पहले हर बार फायदा उसे ही हुआ था। कांग्रेस इस बार भी अपना फायदा देख रही है। लेकिन, वह भूल रही है कि आज का मतदाता 1980 या 1991 जैसा नहीं है। 
लेफ्ट की कोशिश 
  सीपीआई (एम) के महासचिव प्रकाश करात क कहना है कि चुनाव के बाद यदि गैर कांग्रेस-गैर भाजपा सरकार बनाने की संभावना बनती है तो 'आम आदमी पार्टी' को भी इसका हिस्सा बनाने की पेशकश की जाएगी। प्रकाश करात ने कहा कि इस बारे में फैसला 'आप' पर निर्भर रहेगा, लेकिन हम उन्हें गैर कांग्रेस-गैर बीजेपी दल के रूप में मानते हैं। करात ने कहा कि हम 11 पार्टियां मैदान में हैं जिन्होंने कांग्रेस या भाजपा के साथ कोई गठबंधन नहीं किया है। लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद हम इन दलों को एकजुट करने में सक्षम होंगे। 
  उन्होंने यह भी कहा कि तीसरे मोर्चे की सरकार के सत्ता में आने की पूरी संभावना दिखती है जिस पर हम चुनाव के बाद काम करेंगे। 25 फरवरी को सीपीआई (एम) ने 11 क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों की दिल्ली में बैठक की थी। इस बैठक में समाजवादी पार्टी, जनता दल (युनाइटेड) भी शामिल हुई थी। इस बात को स्वीकार करते हुए कि देश में कांग्रेस विरोधी भावना काम कर रही है, करात ने कहा कि इसे नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर कहकर गलत व्याख्या की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस कथित लहर का केवल उन्हीं जगहों पर भाजपा को लाभ मिलेगा जहां मुकाबला दोनों राष्ट्रीय दलों के ही बीच में हो रहा है। लेकिन इसका लाभ उन राज्यों में जहां क्षेत्रीय दलों की स्थिति मजबूत है, नहीं मिल पाएगा।

दंभ, दावे और चुनौतियाँ


  इस बार देश का आम चुनाव कई बातोँ को लेकर अनोखा है। संभवतः ये पहला चुनाव है, जिसमें पार्टियां नही व्यक्ति चुनाव लड रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से राहुल गाँधी को केन्द्र में रखकर चुनाव लड़ा जा रहा है, तो भाजपा ने अपने चुनाव का दारोमदार पूरी तरह नरेन्द्र मोदी को सौंप रखा है! चुनाव के व्यक्ति केन्द्रित होने के कारण दंभी बातें की जा रही है और मनमर्जी के दावे किए जा रहे हैं। ऐसे में किसी को इस बात का अहसास नहीं है कि उनके सामने भविष्य मे किस तरह की चुनौतियाँ खडी होँगी और उनका सामना किस तरह हो सकेगा!
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 * हेमंत पाल 
 भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का कहना है कि देश को संकट से उबारने के लिए जनता उनको केवल साठ महीने दें, तो वे चौकीदार बनकर देश की सेवा करेंगे! लेकिन, राहुल गांधी कहते हैं कि देश को एक चौकीदार नहीं चाहिए, वे तो सारे 125 करोड़ लोगों को ही चौकीदार की नौकरी देंगे! पर, इन 125 करोड़ लोगों को कोई वेतन भी मिलेगा या नहीँ इसका वे कोई जिक्र नहीं करते! फिर राहुल गांधी किस अधिकार से 125 करोड़ नियुक्ति पत्र जारी करेंगे और इन 125 करोड़ों में राहुल गांधी खुद शामिल क्यों न हों? इन नेताओं ने राजनीति को एक व्यापार बनाकर रख दिया है। कहीं बाप-बेटे तो कहीं माँ-बेटे तो कहीं पति-पत्नी एक साथ मिलकर सत्ता सुख भोगते हैं और हिन्दुओं को चौकीदार की भूमिका और मुसलमानों को अधिकारी की भूमिका में रखना चाहते हैं! ऐसे में पूछा जा सकता है कि आने वाले दिन किसके अच्छे और किसके बुरे साबित होंगे?
  लोकसभा चुनाव के धुँवाधार प्रचार अभियान मे उभरे दंभ और दावोँ को देखकर सवाल उठता 
है कि भाजपा ने जद(यू) की नाराज़गी की चिन्ता न करते हुए भी आख़िर नरेंद्र मोदी पर दाँव क्यों खेला? इस सवाल को इस तरह भी रेखांकित किया जा सकता है कि एनडीए के अस्तित्व को दाँव पर लगाकर भाजपा ने नरेंद्र मोदी को कमान क्यों सौंपी? इस सवाल का जवाब तलाशते समय एक बात सामने आती है कि एनडीए का असली अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि भाजपा लोकसभा चुनावों में अपने बलबूते पर 200 से ज्यादा सीटें जीतकर दिखाए! पूरे चुनाव अभियान को देखते हुए भाजपा इतना तो समझ ही चुकी है कि यदि ऐसा नहीं हो सका तो एनडीए भाजपा के लिए  बोझ बन जाएगा। आज भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती 200 सीटों का आंकड़ा पार  एनडीए के लिये 272 जुटाना है! 
  देश में कांग्रेस के खिलाफ आम जनता के मन में ग़ुस्सा है, इस बात  इंकार नहीं! इसमें लगातार बढ़ रही महँगाई सबसे बड़ा कारण है। सरकार ईमानदारी और महंगाई, दोनों मोर्चों पर बुरी तरह असफल हुई है। इसके बाद भी कांग्रेस ने प्रचार मे दावे करने में कोइ कसर नहि छोड़ीं! ऐसे समय में भाजपा के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस के प्रति जनता के ग़ुस्से को कैसे अपने पक्ष में भुनाया जाए? क्योंकि, एक बात निश्चित है यदि इस बार भी भाजपा पिछड़ जाती है और सत्ता पूरी तरह सोनिया गाँधी के हाथों में सिमट जाएगी, जिसके नतीजे भाजपा के लिए ख़तरनाक होंगे। 
  भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को इसलिए भी दांव पर लगाया है कि वे देश की आम युवा पीढ़ी में आशा का संचार करते हैं! जबकि, देश का वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व युवा पीढ़ी को निराशा की ओर ही नहीं धकेलता बल्कि उसे पूरी व्यवस्था के प्रति ही अनास्थावान बनाता है। गुजरात में मोदी ने अपने राजनैतिक और प्रशासकीय कौशल दिखाया है और विकास के प्रतिमान स्थापित किए! उससे मोदी के नेतृत्व के प्रति देश के आम मतदाता के मन में उनकी विश्वसनीयता बढ़ी है। मोदी की सबसे बड़ी पूँजी उनकी बेदाग़ छवि है। उन पर कोई भी आजतक भ्रष्टाचार का आरोप लगाने का साहस नहीं कर पाया! जबकि, वर्तमान राजनीति में किसी नेता को ईमानदार कहने के लिए काफ़ी हिम्मत जुटाना पड़ती है! लेकिन, सौ टके का एक ही सवाल है कि क्या मोदी भाजपा के लिए 200 से ज्यादा सीट और एनडीए के लिये 272 का जादुई आँकड़ा जुटा पाएंगे?
सीटों के समीकरण 

 देश के दक्षिणी राज्यों में पुदुच्चेरी समेत पांचों राज्यों में लोकसभा की 130 सीटें हैं! सीटों के हिसाब से भाजपा यहां कर्नाटक को छोडकर लगभग शून्य है। असम सहित उत्तर-पूर्व के सिक्किम समेत सभी आठों राज्यों में लोकसभा की 25 सीट हैं। लेकिन, भाजपा की उपस्थिति यहां सांकेतिक ही है। पश्चिम बंगाल और ओडीशा में फिर लोकसभा क़ी दृष्टि से भाजपा लगभग नदारद है। इन दोनों राज्यों में लोकसभा की 63 सीटें हैं। इन सारे इलाकों में भाजपा कभी सशक्त नहीं रही। भाजपा को असली लड़ाई उत्तरी भारत के मैदानों में लड़नी है, जिसमें पंजाब, हरियाणा,  हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत भाजपा की शक्ति के हिसाब से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड भी शामिल किया जा सकता है। भाजपा के लिए इस पूरे इलाके में लोकसभा की कुल 326 सीटें हैं। इन सभी में भाजपा का अपना मज़बूत संगठनात्मक ढाँचा है और भाजपा ने सबसे ज्यादा मेहनत भी यहीं की है। मोदी की असली परीक्षा इसी कुरुक्षेत्र में होने वाली है। 
उत्तर भारत की चुनौती 
  कल्याण सिंह के भाजपा से निकलने के बाद उत्तर प्रदेश मे भाजपा का जनाधार सिमट गया था! यहाँ की राजनीति धीरे-धीरे जातीय आधार पर सपा और बसपा के बीच सिमटकर रह गई! इस प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। भाजपा को इसी क्षेत्र से सबसे ज्यादा सीट जीतने की उम्मीद है। मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि गंगा यमुना के इन मैदानों में जब तक वे दलदल में फँसी भाजपा का रथ खींचकर यमुना एक्सप्रेस हाईवे पर खड़ा नहीं कर देते, तब तक वे अपनी जीत क आधार तय नहीं कर पाएंगे। बनारस से चुनाव लड़ना मोदी की इसी रणनीति क हिस्सा है। रणनीति बनाकर मोदी ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश भी इसीलिए भेजा है। 
  नए परिप्रेक्ष्य में भाजपा के लिए चुनौती जदयू का साथ न रहना भी है। क्योंकि, बिहार में जितनी ज़रुरत भाजपा को जदयू की है, उससे कहीं ज़्यादा ज़रुरत जदयू को भाजपा की! व्यावहारिक रुप से अब जदयू बिहार का क्षेत्रीय दल है, जिसे राज्य में सत्ता में आने के लिए भाजपा की ज़रुरत रहेगी! इसी बिहार और उत्तर प्रदेश में मोदी का जादू सबसे ज़्यादा चल सकता है। कहा जाता है कि बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति ही सबसे ज़्यादा जाति के आधार पर संचालित होती है। मोदी के पास इन दोनों प्रदेशों के लिए कारगार कार्ड है और यहाँ पार्टी ने सब्से ज्यादा मेहनत भी की है। 
  भाजपा के पास हिन्दुत्व का कार्ड तो है ही, उसने उत्तर भारत के प्रदेशों में ओबीसी होने का तुरुप का पत्ता भी चला है। भाजपा के पास नरेन्द्र मोदी के बहाने विकास का सबसे ज्यादा सशक्त सूत्र भी है। इन तीनों कार्डों के मिश्रण का जादू इन प्रदेशों में चल गया, जिसकी संभावना बहुत ज़्यादा है तो मोदी वहाँ अपने सभी विरोधियों पर क़हर ढा सकते हैं। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में मोदी के दूत अमित शाह के पहुंचने से सबसे ज्यादा घबराहट सपा और बसपा में ही देखी गई! भाजपा के लिए चुनौती किसी भी हालत में एनडीए को बचाए रखना नहीं, बल्कि अपनी सीटों की संख्या 200 से ऊपर निकालने की है। यदि भाजपा ने यह शर्त पूरी कर ली तो एनडीए भी करीब 100 सीटों का जोड़ लगा सकता है, जो भाजपा की चाहत भी है। लेकिन, यदि भाजपा 200 सीटों से ऊपर नहीं निकल सकी तो नरेन्द्र मोदी की सात महीने की मेहनत पर पानी फ़िर जायेगा! मोदी और भाजपा के लिए असली चुनौती इसी शर्त को पूरी करने की है। क्योंकि, सारे दावे और दंभ इसी चुनौती के इर्द-गिर्द हैं। 
कांग्रेस के दावे 
  एक चुनावी सभा में कांग्रेस की सबसे ताक़तवर नेता सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मोदी देश की जनता को स्वर्ग बनाने का झूठा सपना दिखा रहे हैं, जबकि भाजपा का खुद का रास्ता ही तबाही वाला है। सोनिया गांधी ने मोदी पर हमला करते हुए कहा कि भाजपा के मुख्य प्रचारक नरेंद्र मोदी की बातों से लगता है कि चुनाव का नतीजा आ चुका है और वे सिंहासन पर बैठ गए! सोनिया ने कहा कि मोदी एक अहम बात भूल गए हैं कि चुनाव का नतीजा वे नहीं, बल्कि जनता तय करेगी। मुझे विश्वास है कि जनता कांग्रेस का रास्ता चुनेगी।
  सोनिया गांधी ने सैनिकों की शहादत का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा कुर्सी के लिए शहीदों के नाम का इस्तेमाल करती है। हमारे जवान अपनी जिंदगी की परवाह न करके हमारी और देश की सुरक्षा करते हैं। उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुए ही 'वन रैंक वन पेँशन' लागू की गई। सोनिया ने अपने चुनावी भाषणों में अपने यूपीए शासन की उपलब्धियां भी गिनवाईं। कहा कि भाजपा सरकार गले तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। यूपीए ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गांव-शहरों के बुनियादी ढांचों को मजबूत करने के लिए योजनाएं लागू कीं। बच्चों को शिक्षा, स्कूल में भोजन, आरटीआई जैसा मजबूत अधिकार दिया। किसानों के कर्ज माफ किए। कांग्रेस के राज में गरीब, दलित, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं को ध्यान में रखकर तमाम योजनाएं बनाई गईं। 
'आप' बिगाड़ेगी समीकरण 
 आम आदमी पार्टी के संयोजक और उत्तर प्रदेश के बनारस से उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल ने अपने प्रचार का आधार नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी को बनाया। उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों बड़े उद्योगपतियों के हाथों बिके हुए हैं। केजरीवाल ने बनारस के रोहनिया विधानसभा क्षेत्र के टिकरी गांव मे कहा कि मोदी और राहुल अंबानी के हाथों बिके हुए हैं और जीतने के बाद ये उनका ही काम करेंगे। आम आदमी की समस्याओं से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। केजरीवाल कुछ मोदी समर्थकों से भी मिले और उनसे सवाल किया कि क्या आप मोदी से कभी मिले हैं? वे तो सिर्फ हेलीकॉप्टर में उड़ने वाले नेता हैं। जनता की समस्याओं को समझने लिए जनता के बीच रहना पड़ता है। जनता से रूबरू हुए बिना वह जनता की समस्याओं को क्या समझेंगे?
तीसरे मोर्चे के तर्क 
  संभावित तीसरे मोर्चे के प्रमुख नेता और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी को झूठा व्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि मोदी ने गुजरात को चौपट कर दिया है। गुजरात के विकास के बारे में उनके सारे दावे झूठे हैं। उनकी पोल खुल रही है। मुलायम सिंह ने कहा कि गुजरात में लाखों नौजवान बेरोजगार हैं। सरकार 10 लाख युवाओं का पंजीकरण ही नहीं होने दे रही है। 85 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं। वहां के 21 जिलो में पेयजल संकट है। वहां 8 घंटे भी बिजली नहीं आती है। गुजरात के विकास की बातें झूठी हैं। 
  यादव ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ने किसानों की समस्याओं की अनदेखी की, जिससे किसानों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सपा किसानों की समस्याओं को अच्छी तरह से समझती है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कई बड़े कदम उठाए हैं। उन्होंने दावा किया कि चुनाव के बाद अगली सरकार तीसरे मोर्चे की बनेगी और सपा तीसरे मोर्चे का सबसे बड़ा दल होगी।
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