Sunday, July 27, 2014

'नमामि गंगे'


    नरेंद्र मोदी की सरकार ने भले ही अपने चुनावी वादों को पहले बजट में शामिल न किया हो, पर गंगा पर सौगातों की बारिश कर दी! कई ऐसी घोषणाएं हैं, जो सही मायनों में गंगा और उसके तट पर बसे शहरों के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होंगी। नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी की भी बहुत सी उम्मीदें साकार हुई है! ' नमामि गंगे परियोजना' को मोदी सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना के रूप में देखा जा रहा है। केंद्रीय बजट में 2037 करोड़ का प्रावधान इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए किया गया है। इससे समन्वित गंगा संरक्षण मिशन की शुरुआत होगी! इस परियोजना से गंगा समेत उसकी सहायक नदियों सहित कई क्षेत्रों का भी विकास होगा। इससे गंगा की साफ-सफाई में मदद मिलेगी और और गंगा में जहाज परिवहन भी विकसित होगा!
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- हेमंत पाल 

  नरेंद्र मोदी सरकार के पहले बजट में 'नमामि गंगे' के ऐलान में 'नमो' की छाप दिखती है। बजट में नदियों की सफाई से लेकर नदियों को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट पर भी फोकस किया गया है। 'नमामि गंगे' नाम से इंटीग्रेटेड गंगा कंजर्वेशन मिशन शुरू करने का ऐलान किया गया है। इसमें एनआरआई से भी मदद लेने का उल्लेख है। बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि 'नमामि गंगे' नाम से इंटीग्रेटेड गंगा कंजर्वेशन मिशन शुरू किया जाएगा। शुरुआती साल के लिए 2037 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। देश की विकास प्रक्रिया में एनआरआई का अहम योगदान रहा है। गंगा नदी के कंजर्वेशन के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने में भी एनआरआई कम्युनिटी अहम योगदान दे सकती है। इसलिए गंगा के लिए 'एनआरआई गंगा फंड' बनाया जाएगा, जिससे आर्थिक मदद मिल सके। 
  भाजपा के लिए गंगा का मसला चुनाव अभियान में भी एक बड़ा मुद्दा रहा। वाराणसी से नामांकन करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था 'न मैं यहां आया हूं और न ही किसी ने मुझे यहां भेजा है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है'। हिंदू नगरी कहे जाने वाले वाराणसी में बीजेपी ने गंगा के सफाई के मसले पर कैंपेन भी किया था। बजट में केदारनाथ, हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, पटना और दिल्ली में रिवर फ्रंट के सौंदर्य और घाटों के विकास के लिए 100 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया गया। जेटली ने कहा कि रिवरफ्रंट और घाट सिर्फ हिस्टोरिकल हैरिटेज ही नहीं हैं, बल्कि इनमें से कई नदियां और घाट पूज्य हैं। लोग इनकी पूजा करते हैं।
  अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नदियों को जोड़ने के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर बात शुरू हुई थी, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाई। अब मोदी सरकार ने इस पर फोकस किया है। जेटली ने बजट में नदियों को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट की डिटेल रिपोर्ट की तैयारी के लिए 100 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया।
   इसी साल 24 अप्रैल की दोपहर बाद अपना नामांकन दाखिल करने के लिए बनारस कचहरी के बरामदे में खड़े भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने कहा था कि न मैं यहां आया हूं और न ही किसी ने मुझे यहां भेजा है, यहां तो मुझे गंगा मां ने बुलाया है। यह दृश्य बदला और जनता की इच्छा से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। गंगा को लेकर उनकी वचनबद्धता पर सबको भरोसा था, जिसे अंतत: अमलीजामा भी पहनाया वित्तमंत्री अरुण जेटली के आम बजट में। अब 'नमामि गंगा' नाम से गंगा व उसके तटों के उद्धार को एक नया प्रोजेक्ट शुरू करने का प्रावधान किया गया है। वित्तमंत्री ने इसके लिए बजट में 2037 करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत अहमदाबाद में साबरमती रिवर फ्रन्ट की तर्ज पर उत्तर भारत में गंगा रिवर फ्रन्ट का श्री गणेश किया जाना है। इसमें गंगा जल संरक्षण के साथ ही तटों के संरक्षण व संवर्धन का प्रावधान संभावित है। नदी किनारे पॉथ-वे और पौधरोपण कर इसे समृद्ध क्षेत्र बनाने का भी प्लान इसमें निहित है।
  भारत में कृषि के माध्यम से दौलत का सर्वाधिक उत्पादन करने वाली गंगा बेल्ट को अब कारोबारी नजरिए से भी और समृद्ध किया जाएगा। पूर्व में औने-पौने शुरू की गई जल परिवहन की कवायद को अब व्यवस्थित रूप देते हुए इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा जल परिवहन हेतु बजट में प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त गंगा घाटों के लिए भी 10 करोड़ का बजट प्रावधानित किया गया है। यह संपूर्ण कवायद गंगा रिवर फ्रन्ट को अहमदाबाद के उस साबरमती रिवर फ्रन्ट की तर्ज पर पिरोकर पेश करना है जिसे गुजरात मॉडल के नवरत्‍‌नों में से एक बताकर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं।  
सबसे बड़ी चुनौती 
   गंगा सफाई अभियान की सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिरने वाले शहरी और औद्योगिक कचरे को रोकना। यह समस्या सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है। गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जलजनित बीमारियां हैं। 
  सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है, जिसका सीधा संबंध औद्योगिक इकाईयों और रसायनिक कंपनियों से हैं। गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रसायनिक कारखाने और शुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा को आंचल करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं शुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतरा बनता जा रहा है। गंगा में गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्योगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्योगिक ईकाइयां स्थापित हैं। 
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इंदौर में अपराध की लहलहाती फसल

हेमंत पाल 

   नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार अपराध में इंदौर का स्थान देश में दूसरा है। इंदौर में अपराध की दर (809.9) है। सबसे ज्यादा अपराध दर (834.3) कोयंबटूर की है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि यह दर देश के 53 प्रमुख शहरों में दर्ज हुए अपराधों की तुलना में सामने आई है। प्रदेश की राजधानी भोपाल में अपराध दर (598) है। 2011 और 2012 की रिपोर्ट में कोच्चि की अपराध दर देश में सबसे ज्यादा थी, जबकि इस बार कोच्चि प्रथम पांच की सूची से भी बाहर हो गया है। इंदौर की अपराध दर 2011 में देश में चौथे नंबर पर थी, जबकि पिछले दो साल से लगातार दूसरे नंबर पर है। प्रतिशत की बात करें तो 53 शहरों में दर्ज अपराधों में 3.2 प्रतिशत अपराध अकेले इंदौर में दर्ज हुए हैं। 
हर जुर्म में बाजी मार रहा है इंदौर
  मध्यप्रदेश जहां बलात्कार के मामले में देश में अव्वल है, वहीं प्रदेश में इंदौर अपराध के हर वर्ग में दूसरे प्रमुख शहरों से आगे है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसी आरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में बलात्कार के सर्वाधिक मामले में मध्यप्रदेश में दर्ज हुए हैं। कुल अपराध के मामले में महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर है। भोपाल में जहां 11274 अपराध दर्ज हुए वहीं इंदौैर में यह संख्या 17551 है। ग्वालियर (7886) व जबलपुर (6996) काफी पीछे है। 2012 में इंदौर में 16512 अपराध दर्ज हुए।
महिला-बच्चों के अपराध की स्थिति
  इंदौर में महिला व बच्चों से अपराध की स्थिति में भी इंदौर की भयावह स्थिति है। रिपोर्ट के मुताबिक महिला के खिलाफ अपराध के इंदौर में 940 मामले दर्ज किए गए। इस श्रेणी में भोपाल में 878, ग्वालियर में 848 व जबलपुर में 559 केस दर्ज हुए। बच्चों से संबंधित अपराध की इंदौर में संख्या 583 है। ग्वालियर में 275, भोपाल में 178 व जबलपुर में 237 केस दर्ज हुए है।
हत्या, बलात्कार, अपहरण में आगे
   एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों से लगभग हर तरह के अपराध में सबसे आगे है। आंकड़े के मुताबिक, हत्या, बलात्कार व अपहरण जैसे सभी गंभीर मामलों में इंदौर राजधानी भोपाल के साथ ही अन्य प्रमुख शहरों से काफी आगे है। 
खुदकुशी करते युवा 
  इंदौर में आत्महत्या व सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की स्थिति भयावह है। दोनों वर्गो में मौतों प्रदेश में सबसे ज्यादा इंदौर में ही रही है। आत्महत्या के आंकड़े बताते है कि इंदौर में मौत को गले लगाने वालों में सबसे ज्यादा 15 से 29 वर्ष उम्र आयु वर्ग के युवा है। आंकड़े बताते हैं, 2013 में इंदौर में आत्महत्या के 540 मामले हुए जो प्रदेश के सभी शहरों से अधिक है। 2012 में इंदौर में 434 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए हैं जबकि भोपाल में 384, ग्वालियर में 211 व जबलपुर में 304 आत्महत्याएं हुई है। इंदौर में आत्महत्या करने वाले 540 में से 284 मृतक 15-29 आयु वर्ग से है। इसमें पुरुष 156 व महिलाएं 128 है। 14 साल तक की उम्र वर्ग में 20 है जिसमें से 5 पुरुष व 15 महिलाएं है। 30 से 44 आयु वर्ग में 154 है जिसमें 111 पुरुष और 43 महिलाएं है।

अमित शाह : कद से बड़ा पद


*  हेमंत पाल 
  
  भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को बनाया जाना महत्वपूर्ण घटना है। इसके अलावा संघ के दो प्रमुख नेताओं को भाजपा में भेजे जाने का महत्व भी समझना आवश्यक है। नितिन गडकरी को छोड़ दें तो भाजपा के इतिहास में अभी तक जितने भी अध्यक्ष हुए उनकी देश में या फिर संगठन के अंदर व्यापक राष्ट्रीय छवि थी। लालकृष्ण आडवाणी जनता के बीच काफी लोकप्रिय रहे। मुरली मनोहर जोशी हमेशा पार्टी का एक चेहरा रहे। कुशाभाऊ ठाकरे का संगठन के अंदर बड़ा कद था। वेंकैया नायडू की भी राष्ट्रीय पहचान बन चुकी थी। थोड़े समय के लिए अध्यक्ष बने जना कृष्णमूर्ति, बंगारू लक्ष्मण भी इसी श्रेणी में आते हैं। गडकरी को भी अध्यक्ष तब बनाया गया, जब पार्टी भारी संकट में थी। अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपना इस्तीफा औपचारिक तौर पर पार्टी के सुपुर्द कर दिया था।
  अमित शाह का मामला इन सबसे अलग है। उनकी कोई राष्ट्रीय पहचान नहीं रही है। नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय क्षितिज पर आने के बाद उन्हें केंद्रीय पदाधिकारियों की श्रेणी में लाया गया। उसके कई कारण थे, लेकिन कारक केवल मोदी थे। जाहिर है, अगर वह केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के अध्यक्ष बने हैं तो इसके व्यापक आयाम हैं। सामान्य निष्कर्ष यह है कि इस नियुक्ति के जरिए सरकार से संगठन तक मोदीकरण की प्रक्रिया का एक अहम फेज पूरा हो गया।
 संघ को सरकार के साथ ही पार्टी की भी चिंता है और इसी का ध्यान रखने हुए उसने अपने दो नेताओं को भेजा है जिन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलनी है। यह संतुलन बनाने की कोशिश है। यह बात अलग है कि राम माधव मोदी के विश्वस्त रहे हैं। असली शक्ति भी अध्यक्ष के पास ही होती है। अमित शाह के अध्यक्ष होने का मतलब है मोदी की चाहत के अनुरूप बीजेपी की रीति-नीति निर्धारित होना।
 नरेंद्र मोदी कहते हैं कि अमित शाह की अपनी कार्यक्षमता है और उसकी बदौलत वह यहां तक आए हैं, पर यह सच उन्हें भी मालूम है कि राष्ट्रीय राजनीति में राजनाथ सिंह उनको अपने आप नहीं लाए! यह मोदी की अनुशंसा थी। अमित शाह गुजरात में उनके सर्वाधिक विश्वसनीय सहयोगियों में रहे हैं और उन पर चल रहे मामलों के मद्देनजर उन्हें प्रदेश मंत्रिमंडल में लेने पर विवाद खड़ा होता। साथ ही जब तक मोदी केंद्रीय नेतृत्व मंडली में नहीं आए थे, भविष्य की रणनीति के अनुसार एक विश्वसनीय व्यक्ति यहां चाहिए था।
 भाजपा आज अपने सहयोगियों के साथ भारी बहुमत से सत्ता में हैं। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। संसदीय लोकतंत्र में जहां पार्टी आधारित व्यवस्था है, वहां व्यवहार में पार्टियों का महत्व सरकार के समानांतर है। संसदीय लोकतंत्र की सफलता के लिए पार्टी और सरकार के बीच शक्ति संतुलन अपरिहार्य है।
 नीतियां पार्टी की होती हैं, घोषणा पत्र पार्टी जारी करती है, जबकि वोट पार्टी और उसके उम्मीदवार को मिलता है। लेकिन, निर्णय की सारी शक्तियां सरकार के हाथों केंद्रित हो जाने के कारण पार्टी प्रायः परमुखापेक्षी अवस्था में आ जाती है। अगर अध्यक्ष चिंतनशील हो, आत्मविश्वासी और शक्तिसंपन्न हो तो समय-समय पर सरकार का मार्गदर्शन कर सकता है। सरकार कहीं गलत कर रही है या पार्टी की सोच से परे जा रही है तो वह उसके सामने खड़ा हो सकता है। ऐसे अध्यक्ष के रहते सरकार के मुखिया पार्टी को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
  सरकार की सफलता के लिए, पार्टी की साख और विश्वसनीयता के लिए तथा कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि अध्यक्ष के जरिए सरकार पर पार्टी का नैतिक और व्यावहारिक अंकुश बना रहे। प्रश्न है कि क्या अमित शाह ऐसी भूमिका निभाने में सफल हो सकते हैं, यह उनकी असली परीक्षा है। पार्टी में इस समय ऐसा कोई नेता नहीं दिख रहा था, जो पार्टी की किसी नीति से मतभेद होने पर मोदी के सामने डटकर खड़ा हो सके।
  अमित शाह तो उनके पूरक ही माने जाते हैं। संघ से आए नेता किस तरह पार्टी को वैचारिक आधार पर खड़ा रखेंगे यह देखना होगा! अमित शाह को अपना महत्वपूर्ण दायित्व समझना होगा और नरेंद्र मोदी को भी। अमित शाह की वैचारिक, सांगठनिक और प्रबंधन क्षमता की परख अभी होनी है। पार्टी कहती है कि व्यक्ति से बड़ा दल है और दल से बड़ा देश! तो यहां व्यक्ति मोह से ऊपर उठकर अगर वह काम कर पाते हैं और दल तथा देश को प्रमुखता देते हैं तो यकीनन ऐतिहासिक समय में ऐतिहासिक भूमिका निभा पाएंगे। यह पार्टी आधारित हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए भी अच्छा होगा। नहीं कर पाते हैं तो उनका जो होगा सो तो होगा ही, पार्टी भी 2004 की दुर्दशा को प्राप्त हो सकती है। संघ से आए नेताओं के पास भी गहरी दृष्टि है या नहीं, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा।