Tuesday, February 10, 2015

अराजनीतिकों की जीत के राजनीतिक मायने!

- हेमंत पाल 

   दिल्ली में जो हुआ, शायद अब उसके कसीदे पढ़ने की जरुरत नहीं बची! दंभ के दावों के सामने अराजनीतिक लोगों की 'आम आदमी पार्टी' ने जो प्रदर्शन किया है, उसकी मिसाल नहीं दी जा सकती! बरसों पहले (1989 में) इसी तरह का करिश्मा विश्वनाथ प्रताप सिंह उर्फ़ राजा मांडा ने राजीव गांधी की कांग्रेस को हराकर किया था। तब कांग्रेस को भी कुछ इसी तरह का जनसमर्थन मिला था, जिसे पांच साल बाद 'राजा मांडा' ने उखाड फैंका! अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को धूल चटाकर कुछ ऐसा ही कारनामा किया है!  
  सरकारी नौकरी से अन्ना हज़ारे के साथ समाजसेवा में आए अरविंद केजरीवाल का राजनीति में आना किसी हादसे से कम नहीं रहा! 'जनलोकपाल' की मांग के बहाने अन्ना और किरण बेदी के साथ परिदृश्य में आए केजरीवाल तब अकेले पड़ गए थे, जब असफल आंदोलन के बाद अन्ना रालेगण सिद्धी लौट गए थे! अन्ना आंदोलन के 'थिंक टैंक' माने जाने वाले केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया और अक्टूबर 2012 में 'आम आदमी पार्टी' बनाई! 'आप' ने जनता के सरोकारों को चुनाव के मु्द्दे की तरह उठाया और वोट की राजनीति में कदम रखा। अन्ना हजारे इस तरह की किसी पार्टी बनाने के खिलाफ थे! इसी विरोध को लेकर वे अरविंद केजरीवाल से नाराज होकर अलग भी हो गए थे। किन्तु, केजरीवाल के साथियों ने भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के संकल्प के साथ जनता के बीच जाने का फैसला किया, जिसका नतीजा आज सामने है। 
  अपने दूसरे बड़े चुनाव में 'आम आदमी पार्टी' ने दिल्ली की राजनीति में धमाका कर दिया! 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा के चुनाव में पिछली बार 28 सीटें जीतने वाली पार्टी ने इस बार 67 सीटें जीतकर न सिर्फ दिल्ली बल्कि, देश की राजनीति में सभी को चौंका दिया! उनकी इस जीत ने राष्ट्रीय राजनीति की भी दशा और दिशा बदलने का संदेश दे दिया। 'आप' की इस अप्रत्याशित सफलता से कांग्रेस और भाजपा की रातों की नींद हराम हो गई! अहंकार से भरी भाजपा ने दिल्ली चुनाव में राजनीतिक मर्यादा की सीमाओं को जिस तरह लांघा, उसे दिल्लीवालों ने पसंद नहीं किया। नतीजा ये रहा कि आप की 'झाड़ू' ने भाजपा के 'कमल' को झाड़ दिया! 
  इस बात से इंकार नहीं कि केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' दिल्ली के आम लोगों का भरोसा जीतने में पूरी तरह कामयाब रही है। सरकारी भ्रष्टाचार, महंगाई, बिजली, पानी, शिक्षा और रोजगार से जुड़े मुद्दों को लेकर केजरीवाल की पार्टी के प्रति दिल्ली के मतदाताओं ने जो समर्थन दिखाया, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह किसी पार्टी की नहीं बल्कि आम आदमी की जीत है! लेकिन, अब केजरीवाल को उन वादों को भी पूरा करना है, जिसे लेकर दिल्ली की जनता ने उनमे विश्वास जताया है।  
  देश की जनता भ्रष्टाचार और मंहगाई से बुरी तरह परेशान है। पहले कांग्रेस और बाद में भाजपा ने लोगों को इससे मुक्त करने का विश्वास दिलाया, पर कोई भी भरोसे पर खरा नहीं उतरा! पिछली बार 8 दिसंबर 2013 को आए चुनावी नतीजों में दिल्ली में 15 साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस की सरकार का सूपड़ा साफ कर दिया था। उसे 70 में सिर्फ 8 सीटों पर ही कामयाबी मिली थी। दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी केजरीवाल से हार गई थी। इस बार फिर वही इतिहास दोहराया गया! केंद्र की सत्ता में आसमान फाड़ जीत के साथ काबिज हुई भाजपा को फिर 'आप' ने धूल चटा दी! राजनीतिक मायनों में ये हार किसी सबक से कम नहीं है! 70 में से महज 3 सीटें भाजपा के खाते में गई और 67 पर 'आप' जीती!  
  हार-जीत से अलग अब भाजपा के सामने सबसे बड़ा संकट ये है कि दिल्ली में 'आप' अपनी सरकार जिस तरह चलाएगी, उससे भाजपा के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी होंगी! 'जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार' जो फैसले लेगी, उससे नया राजनीतिक संकट खड़ा होना तय है। अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सरकार चलाने के साथ जिस तरह के लोकप्रिय फैसले लेंगे, उससे भाजपा शासित सरकारों के सामने नई-नई परेशानी आना पक्का है। शक नहीं कि केजरीवाल जनहितकारी फैसले लेने से नहीं चूकेंगे! उनके अराजनीतिक फैसलों का असर भाजपा की राजनीति पर पड़ना। 
--------------------------------------------------------------------------------------------

दिल्ली में क्या इसलिए हारी बीजेपी!

दिल्ली में बीजेपी की बुरी तरह हार संगठन और सरकार के सोच में कई तरह के सुधार का संकेत दे रही है।
(1) बीजेपी को कोई हरा नहीं सकता, ये मुगालता और अहंकार दूर हो जाना चाहिए। 
(2) नरेंद्र मोदी पूरे के देश के निर्विवाद नेता हैं, ऐसे जुमलों पर गंभीरता से विचार हो! 
(3) लोकसभा चुनाव हारे अरुण जेटली ने दिल्ली में भी पार्टी को हरवा दिया, उन्हें पार्टी में कितनी हैसियत दी जाए?
(4) केंद्र सरकार का प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून क्या सही है? 
(5) बीजेपी के पुराने नेताओं को तवज्जो दी जाए, न कि किरण बेदी जैसे मौका परस्त रिटायर अफसरों को!
(6) पार्टी के हिंदूवादी नेताओं के मुँह के बवासीर का तत्काल इलाज किया जाए!
(7) गैर-बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने की राजनीति बंद हो!
(8) अति-आत्मविश्वास और वाचालता वाले बोलों पर अंकुश लगे!
(9) देश सिर्फ आर्थिक नीतियों और देशाटन से नहीं चलता, इस पर सोचा जाना चाहिए!
(10) विपक्ष से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो और नकारात्मक चुनाव प्रचार बंद हो!