Friday, June 19, 2015

'ताई' और 'भाई' के बाद अब बदलेगी इंदौर की राजनीति

 

 - हेमंत पाल 
 इंदौर की भारतीय जनता पार्टी राजनीति करीब दो दशकों से एक ही ढर्रे पर चल रही थी! सारे समीकरण 'ताई' और 'भाई' के आसपास की बनते, बिगड़ते रहते थे! यही कारण था कि यहाँ का सोच इससे आगे नहीं बढ़ सका! पार्टी की राजनीति लम्बे समय से 'ताई' और 'भाई' तक ही केंद्रित रही! 'ताई' यानी सुमित्रा महाजन और 'भाई' हैं कैलाश विजयवर्गीय! पार्टी के जो भी नेता अपना जरा भी वजूद रखते थे, वे इन दोनों में से किसी एक के खेमें में शामिल होकर अपनी पहचान बनाते रहे! पिछले 15 सालों में इनके अलावा किसी और भाजपा नेता ने अपनी अलग पहचान बनाई हो, ऐसा नहीं लगा! 
   'ताई' और 'भाई' में शह और मात का खामोश खेल करीब डेढ़ दशक तक चला! ऐसे कई मौके आए, जब लगा कि इनके समीकरण उलझेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं! लेकिन, पिछले लोकसभा चुनाव में अचानक इंदौर की भाजपा राजनीति में कुछ ऐसा घटा कि 'भाई' ने 'ताई' सहारा दिया! दोनों के साथ आने से कई नए समीकरण बने! स्थानीय राजनीति को समझने वाले भी हतप्रभ थे, पर इसके पीछे छुपे मंतव्य को नहीं समझ सके! उन्हें लगा कि शहर  के जो दो दिग्गज हमेशा एक-दूसरे के पैरों के नीचे से जमीन खींचने की कोशिश में रहते थे, वे साथ कैसे हो लिए? सवाल अहम था, पर जवाब किसी के पास नहीं था! इसके बाद से इंदौर की भाजपा राजनीति में जो नया दौर चला, उसकी अगली कड़ी ही कैलाश विजयवर्गीय का भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनना है! इंदौर 'में ताई' और 'भाई' के बीच में दूरी बढाकर कई नेताओं ने  फायदे की फसल काटी है! शायद यही कारण था कि सही वक़्त पर दोनों एक जाजम पर आ गए! 
     जिले के महू क्षेत्र से विधायक कैलाश विजयवर्गीय का भाजपा की राजनीति में अलग रुतबा हैं। उनके पास अभी प्रदेश में नगरीय प्रशासन विभाग का दायित्व है। विजयवर्गीय ने संकेत भी दिए हैं कि वे मंत्री पद छोड़ देंगे! क्योंकि, वे अब अपना पूरा समय केंद्र की राजनीति में ही लगाना चाहते हैं! उन्होंने साफ कहा कि वे मंत्री पद से मुक्त होना चाहते हैं। पार्टी वैसे भी एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर विश्वास करती है। 
  यही कारण है कि विजयवर्गीय के राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद इंदौर की राजनीति में कई बदलाव आने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता! अब इंदौर के किसी विधायक को मंत्री पद दिया जा सकता है! क्योंकि, विजयवर्गीय को संगठन में लिए जाने के प्रदेश में एक मंत्री पद खाली हो जाएगा! ऐसे में सबसे पहले नाम आता हैं महेंद्र हार्डियां का, दूसरे नंबर पर रमेश मेंदोला का और सबसे अंत में सुदर्शन गुप्ता को मौका मिल सकता हैं! महेंद्र हार्डिया पहले भी शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके हैं। स्वास्थ्य राज्य मंत्री के तौर पर उन्होने काम भी अच्छा किया था! वहीं, विजयवर्गीय के संगठन में जाने के बाद उनके सबसे नजदीक कहे जाने वाले विधायक रमेश मेंदोला भी प्रमुख दावेदारो में हैं! वे प्रदेश में रिकॉर्ड मतो से जीते भी थे। तीसरे स्थान पर हैं सुदर्शन गुप्ता जो कि मुख्यमंत्री के गुड लिस्ट में कोटे के हैं। 
   हरियाणा के विधानसभा चुनाव के बाद से ही ये संभावना थी कि कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती हैं। हरियाणा से यूं तो मध्यप्रदेश से कोई लेना-देना नहीं, पर कैलाश विजयवर्गीय के प्रभारी होने की वजह से सभी का ध्यान वहां लगा था! समर्थकों का भी और विरोधियों का भी!
हरियाणा में किसी को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं थी, क्योंकि तब विधानसभा में भाजपा के पास सिर्फ 4 सीट थीं। मोदी लहर के अलावा यह विजयवर्गीय के चुनाव मैनेजमेंट का भी कमाल रहा कि भाजपा ने 47 सीटें जीतकर अपने दम पर पहली बार हरियाणा में भाजपा सरकार बनाने का इतिहास रच डाला। इस जीत के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में कैलाश विजयवर्गीय का कद शिखर पर पहुँच गया! इसके बाद से ही उनका शाह-टीम में उनका शामिल होना तय माना जा रहा था!
   पार्टी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा महासदस्यता अभियान का प्रभारी बनाकर 9 राज्यों की जिम्मेदारी सौंपने के बाद से इस बात को बल भी मिला था कि विजयवर्गीय के लिए दिल्ली में कुछ चल रहा है! वही हुआ भी! अब जहाँ प्रदेश की राजनीति में नए समीकरण बनेंगे, वहीं इंदौर की राजनीति भी नई करवट लेगी! देखना है कि ये ऊंट किस करवट बैठता है?