Saturday, January 27, 2024

दक्षिण की फिल्में भी धार्मिक विवाद फैलाने में पीछे नहीं!

- हेमंत पाल

    फ़िल्में सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती, इनसे कई बार विवाद भी खड़े होते हैं। देखा गया है कि ऐसे विवादों का कारण धार्मिक या पौराणिक कहानियों फिल्मों में ही ज्यादा होता है। कई बार राजनीतिक फ़िल्में भी विवाद का कारण बना है। हाल ही में 'आदि पुरुष' से उठे विवाद से समझा जा सकता है कि जब कोई फिल्म ऐसे मामलों में फंसती है, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान उसके कारोबार पर पड़ता है। क्योंकि, ऐसी फिल्मों से दर्शकों की धार्मिक भावनाएं आहत होती है। कई बार तो इन फिल्मों को लेकर धार्मिक संगठन सड़कों पर उतरकर न केवल ऐसी फिल्मों का विरोध करते हैं, बल्कि स्थिति हिंसात्मक भी हो जाती है। फिल्मों के बायकॉट की नौबत तक आ जाती हैं और ये भी हुआ कि चलती फिल्मों को सिनेमाघरों से उतारने तक की नौबत आती है। लेकिन, फिल्मों से धार्मिक भावनाएं आहत होने का सिलसिला सिर्फ हिंदी सिनेमा तक ही सीमित नहीं है। दक्षिण भारत में भी फिल्मों से भी ऐसे विवाद पैदा होते रहते हैं। हिंदी की 'आदि पुरुष' ही नहीं हॉलीवुड की फिल्म 'ओपनहाइमर' पर भी धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगे हैं। हॉलीवुड डायरेक्टर क्रिस्टोफर नोलन 'ओपेनहाइमर' को लेकर खासे सुर्खियों में रहे। भारत में फिल्म के एक इंटिमेट सीन को लेकर दर्शकों ने आपत्ति जताई थी। फिल्म के आपत्तिजनक सीन में श्रीमद् भगवत गीता का श्लोक पढ़ा गया। इसके बाद सेंसर बोर्ड ने उस पर उंगली उठाई। 
     दक्षिण की नयनतारा अभिनीत फिल्म 'अन्नपूर्णानी' को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म से इसे हटाने तक की नौबत आ गई। फिल्म के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में एफआईआर भी दर्ज की गई। हिंदूवादी संगठनों ने फिल्म पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया। ज़ी स्टूडियोज़ ने उनकी चिंताओं को समझते हुए कहा कि फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म से हटाकर संपादित किया जाएगा। आरोप था कि फिल्म में हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के साथ भगवान राम का अपमान किया गया। फिल्म के जरिए लव जिहाद को बढ़ावा भी दिया गया है। यह पहली बार नहीं है जब साउथ फिल्म इंडस्ट्री की कोई फिल्म विवादों में आई है। इस तरह के विवाद की दक्षिण में काफी पुरानी परम्परा है।
     विजय और काजल अग्रवाल अभिनीत 2012 में आई फिल्म 'थुप्पक्की' (2012) तब विवादों में आई, जब मुस्लिम समाज ने दावा किया कि फिल्म में उनके समुदाय को गलत तरीके से दिखाया गया। इसे सिर्फ फिल्म ही विवादों में नहीं आई, बल्कि कलाकारों की जान भी खतरे में पड़ गई थी। विजय के प्रशंसक फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे। एक समूह ने विजय के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने का भी प्रयास किया था। मणि सेल्वराज जैसे फिल्मकार को भी धार्मिक भावनाएं आहत करने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा था। 2021 में प्रदर्शित उनकी फिल्म 'कर्णन' में एक गाना जिसका शीर्षक था 'पंडारथी पुराणम।' निर्माताओं को गाने का नाम बदलना पड़ा। क्योंकि, एक याचिकाकर्ता ने एक शिकायत दर्ज की, जिसमें दावा किया गया था कि ’पंडारथी’ तमिलनाडु के कुछ समुदायों में एक आपत्तिजनक शब्द है। फिर गाने का नाम बदलकर ’मंजंती पुराणम’ कर दिया गया।
      दक्षिण भारत में सितारा हैसियत रखने वाले लोकप्रिय फिल्म स्टार कमल हासन की फिल्म 'विश्वरूपम' (2013) का प्रदर्शन इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि धार्मिक समूहों का दावा था कि यह फिल्म मुसलमानों का अपमान कर रही है। फिल्म एक कथक शिक्षक के इर्द-गिर्द घूमती है जो एक जासूस के रूप में अंधेरी दुनिया से जुड़ा है। फिल्म को इस बात के लिए विवादास्पद माना गया कि इसमें एक खास समुदाय के आतंकवादियों को परदे पर उतारा गया था। कमल हासन की ही फिल्म 'पम्मल' के सम्बंदम को भले ही दर्शकों ने इस फिल्म को सराहा। लेकिन, इसमें दिखाए गए कुछ दृश्यों ने दर्शकों की भावनाओं को आहत किया। इस फिल्म में जब कमल हासन भगवान शिव की वेशभूषा में नजर आए और इसी के साथ वह चुइंगम चबाते दिखे तो दर्शकों को उनकी यह हरकत कतई पसंद नहीं आई और उन्होंने इसे नकार दिया।
     साउथ के सुपरस्टार में गिने जाने वाले रवि तेजा की फिल्मों का दर्शकों को पूरी बेसब्री से इंतजार रहता है। उनकी फिल्म 'जीने नहीं दूंगा' को भी दर्शक बड़ी उम्मीद से देखने गए थे। लेकिन, एक्टर ने इस फिल्म में ऐसा कुछ किया कि दर्शकों के गुस्से के सामना रवि को करना पड़ा। दरअसल, रवि को इस फिल्म में भगवान से भी ज्यादा शक्तिशाली दिखाया गया, जो दर्शकों को नागवार गुजरा। इस कारण काफी विवाद भी हुआ था। 'गोपाला गोपाला' फिल्म में साउथ फिल्मों के जाने माने एक्टर वेंकटेश ने नास्तिक इंसान का किरदार निभाकर दर्शकों को हैरान कर दिया था। इस फिल्म में उनका किरदार दर्शकों को हजम नहीं हुआ। दर्शकों ने तब वेंकेटेश को बुरा भला कहना शुरू कर दिया, जब वह झूठ बोलकर भगवान की प्रतिमा को बेचते नजर आए। इस सीन को लेकर फिल्म निर्माता  को दर्शकों के गुस्से का सामना करना पड़ा था।
      साउथ इंडस्ट्री की चर्चित ऐक्ट्रेस समंथा ने 'एक का दम' फिल्म में ऐसा कुछ किया, जिससे दर्शक नाराज हो गए। इस फिल्म में सामंथा नेगेटिव रोल में नजर आई थीं। उनके साथ प्रभु चियान विक्रम भी इस फिल्म में नजर आए। डबल रोल में नजर आईं सामंथा ने पूजा की थाली से अपनी सिगरेट जलाई, तो दर्शकों का गुस्सा फूट गया। इस सीन का लोगों ने खूब विरोध किया था। दर्शकों ने सामंथा को खूब खरी खोटी सुनाई। 2022 में प्रदर्शित तमिल क्राइम फिल्म 'एफआईआर' (2022) को इसके कंटेंट के लिए कई लोगों ने सराहा था। लेकिन, साथ ही धार्मिक समूहों ने इसकी आपत्तिजनक सामग्री पर झंडा उठाया। एक धार्मिक समूह ने मुख्य अभिनेता विष्णु विशाल की गिरफ्तारी की मांग की, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्म सभी मुसलमानों को आतंकवादियों के रूप में चित्रित करना चाहती है। प्रदर्शनकारियों को यह भी लगा कि फिल्म में विष्णु का किरदार एक धार्मिक उपदेशक से मिलता जुलता है। पिछले साल प्रदर्शित तमिल फिल्म 'फरहाना' से तमिलनाडु के मुसलमानों में आक्रोश फैल गया। फिल्म में एक युवा विवाहित मुस्लिम महिला को पुरुषों की सेवा देने वाले कॉल सेंटर में काम करते हुए दिखाया गया था। धार्मिक समूहों ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया। इस वजह से हालात इतने बिगड़ गए थे कि पुलिस को फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली ऐश्वर्या राजेश के घर के आसपास सुरक्षा बल तैनात करना पड़ा था।
     धर्म हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। यही कारण है कि फिल्मकार अकसर धर्म के मुद्दे को फिल्मों के जरिए उठाकर भावनाओं का फ़ायदा उठाने की कोशिश करते है। ऐसी ही एक फिल्म 'धर्म संकट में' जो ब्रिटिश कॉमेडी फिल्म 'द इनफिडेल' से प्रेरित है, उसमें मूल फिल्म की तरह धर्म और धार्मिक पहचान के संकट का चित्रण कॉमिकल रखा गया। देखा गया है कि ऐसी फिल्मों के लिए परेश रावल सबसे सही कलाकार हैं। इस फिल्म में भी उन्होंने धर्मपाल का किरदार बेहतर ढंग से निभाया है। निर्देशक फवाद खान ने मूल फिल्म के यहूदी और मुसलमान चरित्रों की हिंदी कथानक में हिंदू और मुसलमान किरदारों में बदल दिया था। फिल्म में मुसलमानों के बारे में प्रचलित धारणाओं और मिथकों पर संवेदनशील कटाक्ष किया गया। हिंदी फिल्मों के इतिहास में इस विषय पर कई फिल्म बनी हैं कि कोई भी इंसान पैदाइशी बुरा नहीं होता। हालात और परवरिश ही इसके पीछे जिम्मेदार माने गए हैं। लेकिन, इस सच्चाई को फिल्मकार अपने ढंग से इस्तेमाल करते आए हैं।   
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रिश्ता टूटा फिर भी बच्चों की गांठ लगी रही!

- हेमंत पाल

     पति-पत्नी में रिश्तों की गांठ खुलती है, तो सब कुछ तहस-नहस हो जाता है। दोनों तरफ से एक-दूसरे पर आरोप लगाए जाते हैं। कई निजी प्रसंग सार्वजनिक हो जाते हैं, जिसका मलाल बाद में होता है। लेकिन, फ़िल्मी दुनिया इससे कुछ अलहदा है। यहां रिश्ते ज्यादा ही टूटते हैं, पर कहीं न कहीं आत्मीयता की डोर बंधी रहती है। इसकी वजह होती है दोनों के बच्चे। आमिर खान की बेटी आईरा की शादी में लोगों ने आमिर को अपनी दोनों पूर्व पत्नियों के साथ देखा। वे बतौर मेहमान ही नहीं आई, बल्कि जुड़ाव साफ़ दिखा। यही स्थिति ऋतिक रोशन और सुजैन के साथ भी अकसर देखा जाता है।
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    इस बात को ज्यादा दिन नहीं बीते, जब जाने-माने फिल्म कलाकार आमिर खान की बेटी आईरा की शादी हुई। आमिर बड़े कलाकार हैं, तो उनकी बेटी की शादी में धूमधाम भी खासी रही। देश की जानी-मानी सेलिब्रिटी इस शादी में मेहमान बनकर आई। लेकिन, सबसे ज्यादा ध्यान गया आमिर की दोनों पूर्व पत्नियों रीना दत्ता और दूसरी पूर्व पत्नी किरण राव पर, जो इस शादी में जमकर थिरकी। शादी में शामिल हुए मेहमानों के अलावा दुनियाभर में वायरल हुए वीडियो में पूरे आमिर-परिवार को अलग ही मूड में देखा गया। आमिर के साथ उनके बड़े बेटे जुनैद खान, पहली पत्नी रीना दत्ता और दूसरी पूर्व पत्नी किरण राव सभी साथ दिखाई दिए। दोनों पूर्व पत्नियों के साथ वे डांस करते हुए भी दिखे। सामने आए वीडियो में आमिर खान का पूरा परिवार मस्ती के मूड में दिखाई दिया। सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात थी कि आमिर अपनी एक्स वाइफ पर प्यार बरसाते भी नजर आए। ऐसा करके आमिर ने लाइम लाइट भी बटोर ली। अपनी दोनों पूर्व पत्नियों के साथ आमिर का ये व्यवहार सामने आने के बाद बेटी आईरा की शादी से ज्यादा आमिर खान की चर्चा है।
       लोगों की उत्सुकता इस बात को लेकर थी कि जब आमिर खान ने अपनी पत्नियों को छोड़ दिया, फिर भी वे दोनों से इतनी आत्मीयता से कैसे जुड़े हैं। रीना दत्ता का शादी में आना तो बनता है, क्योंकि आईरा उनकी बेटी है। लेकिन, किरण राव वहां किस भूमिका में आई, वो भी अपने बेटे आजाद को लेकर जो आमिर से उनके रिश्तों की निशानी है। उत्सुकता इसलिए भी है कि आम जिंदगी में पति-पत्नी का रिश्ता टूटने पर दोनों में हजारों मील की दूरियां बढ़ जाती है। सिर्फ दूरियां ही नहीं, शिकायतों का भी अंबार लग जाता है। ऐसे में वे दोनों ही दूर नहीं होते, उनके परिवारों में भी चार गुना दूरियां बढ़ जाती है। जब समाज में रिश्ता टूटना सामाजिक नजरिए से अपराध माना जाता है, तो क्या कारण है कि फ़िल्मी कलाकारों में ये सामान्य घटना है। यहां पति-पत्नी में मतभेदों या किसी तीसरे की एंट्री के बाद दोनों अलग होने में देर नहीं करते, पर बच्चों के लिए उनमें नजदीकियां बनी रहती है। क्योंकि, दोनों में जो भी तनाव है, उसमें बच्चों का क्या दोष! ये सिर्फ आमिर खान की बेटी की शादी का ही प्रसंग नहीं है, ऐसे और भी उदाहरण सामने हैं, जब टूटे रिश्तों में बच्चों ने गांठ लगाकर उसे जोड़कर रखा। 
      ऋतिक रोशन और सुजैन भी कुछ साल पहले अलग हो गए, पर वे अपने बच्चों के साथ छुट्टियां भी मनाते हैं और पार्टियां भी। हाल ही में दोनों एक ज्वेलरी एग्जीबिशन में साथ दिखे। ऋतिक और सुजैन की सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और तस्वीरें भी सामने आई, जिसने लोगों का दिल जीत लिया। एक वीडियो में ऋतिक अपनी एक्स वाइफ को गले लगाते नजर आए। वे इवेंट में दोनों के बीच जुड़ाव दिखता है। दोनों आपस में आत्मीयता से बात करते हुए भी दिखाई दिए। इस दौरान सुजैन को अपने एक्स पति के लिए कैमरामैन बनते भी गया। अफवाह तो यह भी है कि अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय में भी तनातनी है, पर बेटी आराध्या के स्कूल के फंक्शन में पति-पत्नी साथ दिखाई दिए। सैफ अली खान और अमृता सिंह में सालों पहले तलाक हो गया था। इसके बाद सैफ ने करीना कपूर से शादी कर ली। लेकिन, बेटी और बेटे सारा अली खान और इब्राहिम से आज भी सैफ के रिश्तों में कोई अंतर नहीं आया।   
     फिल्म से लगाकर टीवी की दुनिया के कई कलाकारों के रिश्तों की डोर बेहद उलझन भरी है। कई सितारे ब्रेकअप और तलाक के दौर से गुजरे और ये स्थिति अभी भी है। लेकिन, उसके बाद भी ये सितारे एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा खड़े दिखाई दिए। इसलिए नहीं कि वे किसी भी सामाजिक स्थिति से आते हों, पर ऐसा करना उनके करियर और इमेज के लिए जरूरी है! बल्कि, निश्चित रूप से इसके पीछे एक सोच है, जो उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिलाती है। आमिर अपनी बेटी की शादी में दोनों पूर्व पत्नियों को नहीं बुलाते तो उन पर कोई दबाव नहीं था। उन पर उंगलियां भी नहीं उठती, पर उन्होंने अपनी और बेटी की ख़ुशी में रीना दत्ता और किरण राव को भी हिस्सेदार बनाया जो समाज के लिए सबक है। क्या ऐसा व्यवहार समाज में संभव नहीं है!  
   
      दो साल पहले हम सभी कोरोना काल से गुजरे हैं। इस दौर को सबने अलग-अलग त्रासद स्थितियों से भोगा है। आर्थिक रूप से भी और पारिवारिक रूप से भी। लेकिन, ऐसे समय में 14 साल बाद रिश्तों का बंधन तोड़ चुके ऋतिक रोशन और सुजैन ने साथ रहने का फैसला किया, ताकि बच्चों को अकेलापन न लगे। सुजैन ने एक इंटरव्यू में अपने इस फैसले से जुड़ी बातों को उजागर भी किया। उन्होंने कहा था कि सबसे पहले तो दोनों ने एक ही छत के नीचे रहने का फैसला किया। इसके बाद सुजैन ऋतिक के घर आ गई, ताकि दोनों बेटों रेहान और रिदान की देखभाल कर सकें। ऋतिक के यहां आने के बाद सभी एक परिवार की तरह साथ रहे। ऐसा करने के पीछे की वजह यह बताई गई कि संकट के इस समय में मन को शांत, शरीर को मजबूत और अपने दिल को रोग मुक्त रखना जरूरी था। पति-पत्नी के बीच के तनाव को वे बच्चों के लिए भूल गए और यह जरूरी भी था।
    सुज़ैन का यह भी मानना है कि जीवन में आने वाला समय कुछ अलग होगा और दुनिया भी बदली होगी। सुजैन का यह भी कहना है कि पति-पत्नी किसी वजह से अलग हो जाएं, लेकिन उन्हें अपना कर्तव्य निभाते रहना चाहिए। ऋतिक और सुजैन आज भले ही अलग हो गए हों, पर उन्होंने कभी किसी को अपने रिश्तों में आग लगाने की इजाजत नहीं दी। कंगना रनौत ने जब ऋतिक रोशन पर गंभीर आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर उनकी धज्जियां उड़ाई थीं। उस समय भी सुजैन खान ने अपने पूर्व पति का बचाव किया था। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था 'ऐसा कोई आरोप या बुरी साजिश नहीं है, जो एक अच्छी आत्मा पर विजय हासिल कर सके।'
     फिल्मों की दुनिया में रिश्ते बनना और बिगड़ना नई बात नहीं है। ऐसे कई सितारे हैं, जिन्होंने शादी के सालों बाद तलाक लेकर अपना रिश्ता खत्म किया। इसके बाद भी ये लोग रिश्ते की एक ऐसी नाजुक डोर से बंधे हुए हैं। अपने बच्चों की खातिर ये एक-दूसरे से जुड़े हैं। जाने-माने गीतकार जावेद अख्तर और उनकी पत्नी हनी ईरानी इस तरह के रिश्तों की मिसाल है। तलाक के बाद दोनों अपने बच्चों फरहान और जोया की वजह से जुड़े रहे। जावेद अख्तर ने तलाक के बाद भी अपने बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह संभाली। अर्जुन रामपाल और मेहर जेसिया ने शादी के 20 साल बाद अलग होने का फैसला किया था। लेकिन, तलाक के बाद भी दोनों अपनी बेटियों की साझा रूप से देखभाल कर रहे हैं। एक्ट्रेस कोंकणा सेन शर्मा और रणवीर शौरी ने भी शादी के 5 साल बाद ही अलग होने का फैसला किया था। दोनों एक बेटे हारुन के पेरेंट्स हैं। तलाक के बाद ये कपल अभी भी बेटे के लिए को-पैरेंटिंग कर रहा है। सलमान खान के भाई सोहेल खान और सीमा सचदेव ने भी कुछ वक्त पहले ही तलाक लिया। दोनों ने शादी के 24 साल बाद अलग होने का फैसला किया। पर, वे अपने बच्चों की वजह से जुड़े हुए हैं। अरबाज खान और मलाइका अरोड़ा का रिश्ता 19 साल बाद टूट गया। पर, दोनों अपने बेटे अरहान के लिए मिलते रहते हैं। ये सामंजस्य सिर्फ सिनेमा के कलाकारों में ही दिखाई देता है। इसे इमेज बनाए रखने की कोशिश समझा जाए या बच्चों के बहाने रिश्तों को जोड़े रखने की कोशिश, जो भी है इसकी तारीफ तो की ही जाना चाहिए।  
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Sunday, January 14, 2024

छोटे परदे से बहुत कुछ 'बड़ा' होकर निकला

- हेमंत पाल

        टेलीविजन को उसके आकार की वजह से भले ही 'छोटा परदा' कहा जाता रहा हो, पर सिनेमा के इस वैकल्पिक मनोरंजन ने करीब 40-45 सालों में दर्शकों को बहुत कुछ दिया है। इस माध्यम ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं किया ज्ञान और सूचनाओं से भी अपने दर्शकों को समृद्ध भी किया। यही कारण है कि छोटे परदे ने कुछ मामलों में सिनेमा को भी पीछे छोड़ दिया। शुरूआती दौर में जरूर फिल्म जगत ने टेलीविजन की खिल्ली उड़ाई, उसे बुध्दू बक्सा तक कहा गया। पर, बाद में फिल्मकारों को भी इस परदे की ताकत का अहसास होने लगा था। क्योंकि, घर के एक कमरे में जो मनोरंजन पूरे परिवार को मिलता है, उसका मुकाबला सिनेमाघर कैसे कर सकता था। टेलीविजन के कई धारावाहिक इतने लोकप्रिय हुए कि उसके कलाकारों को फिल्म सितारों की तरह पसंद किया जाने लगा और फिर वे छोटे से बड़े परदे पर भी छा गए। इसके बाद समय इतना बदला कि सभी बड़े सितारे टेलीविजन के छोटे परदे में समा गए। टेक्नोलॉजी ने इस घर में रखे परदे को समृद्ध किया। इसके बाद कोरोना काल ने तो और भी बड़ा कमाल यह किया कि ओटीटी जैसा विस्तृत मनोरंजन छोटे परदे का हिस्सा बन गया। इसका प्रभाव ये हुआ कि छोटे परदे के सामने बड़ा परदा भी छोटा दिखाई देने लगा। यही वजह है कि अब सिनेमा के बड़े कलाकार और दिग्गज ओटीटी के जरिए छोटे परदे में समा गए।  
     सभी इस सच को जानते हैं कि मनोरंजन की दुनिया पर कई दशकों तक सिनेमा का राज रहा। जब भी समय बिताने या कुछ अलग करने की इच्छा होती थी, तो लोग फिल्म देखने जाते रहे। ये सब 20वीं सदी के शुरूआती दौर से शुरू हुआ और लंबे समय तक चला। तब सिनेमा का विकल्प सिर्फ नाटकों को ही समझा जाता था, पर मंचीय नाटकों की भी अपनी सीमा थी। जबकि, दर्शकों के लिए सिनेमा आसान मनोरंजन था। लेकिन, जब टीवी आया तो दर्शक बंट गए। इसका सीधा असर सिनेमा पर पड़ा। जब टीवी थोड़ा समृद्ध हुआ, तो इसके धारावाहिकों ने घर के दर्शकों को बांध लिया। 80 और 90 के दशक में तो ऐसा दौर भी आया जब हम लोग (1984-85), मालगुडी डेज (1986), रामायण (1987-88), महाभारत (1988-89), बुनियाद (1986-87), तमस (1987), ब्योमकेश बख्शी (1993-97) और फौजी (1988) जैसे टीवी शो ने मनोरंजन की परिभाषा ही बदल दी। सिनेमाघर खाली होने लगे। यहां तक कि दर्शक टीवी के मोहपाश में इतना बंध गए कि उनकी दिनचर्या टीवी के धारावाहिकों के अनुसार तय होने लगी। मनोरंजन का मकसद ही बदल गया। रविवार को जब छोटे परदे पर बड़ी फ़िल्में दिखाई जाने लगी तो फिल्म के दर्शक भी छोटे परदे के सामने आ गए। कुछ ही सालों में टीवी का प्रभाव इतना प्रबल हो गया कि बड़े कलाकार भी छोटे परदे में सिमट गए। इसके साथ ही टीवी धारावाहिकों के कलाकारों को फिल्मों में मौका मिलने लगा। 
     ऐसा भी समय था, जब टेलीविजन को मनोरंजन का इतना छोटा माध्यम माना जाता था कि फिल्मों के बड़े कलाकार उसके कार्यक्रमों में काम करने से कतराते थे। कलाकारों में सीधा विभेद किया जाने लगा। एक तरफ थे फिल्मों के कलाकार जिनकी लोकप्रियता आसमान छूती थी। दूसरे थे छोटे परदे के कलाकार जिनकी थोड़ी-बहुत लोकप्रियता धारावाहिक के प्रसारण तक ही सीमित थी। लेकिन, 90 के दशक के बाद ये भेद भी ख़त्म हो गया जब, छोटा और बड़ा परदा दोनों एक-दूसरे में समाहित हो गए। टीवी के क्विज शो में फ़िल्मी सितारों का जमघट लगने लगा। अमिताभ बच्चन, सलमान खान और करण जौहर जैसे बड़े कलाकार होस्ट बनकर छोटे परदे समा गए। जबकि, टीवी से शाहरुख खान, इरफान खान और विद्या बालन ने बड़े परदे पर जगह बना ली। छोटे परदे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि उस पर बड़े सितारों को भी सहारा मिलने लगा। यदि अमिताभ बच्चन का शो 'केबीसी' नहीं होता तो क्या 20 साल तक दर्शक अमिताभ को याद रखते! सलमान खान और शाहरुख खान भी क्विज़ शो लेकर इसी छोटे परदे पर आए। शिल्पा शेट्टी और माधुरी दीक्षित जैसी कलाकार भी टीवी के रियलिटी शो की जज बनने लगी। 
     निःसंदेह अब मनोरंजन के मामले में टीवी की पहचान पहले जैसी नहीं रही। अब 80 और 90 का वो दौर नहीं रहा, जब छोटे परदे का एकछत्र राज था। टीवी ने अपने धारावाहिकों में कई ऐसे कलाकारों को मौका दिया, जो आज बड़े परदे के बड़े स्टार हैं। शाहरुख खान ने अपने करियर की शुरुआत टीवी से ही की। उनके अभिनय करियर की शुरुआत 1989 में 'फौजी' और 'सर्कस' जैसे टीवी शो से हुई थी, जो दूरदर्शन पर प्रसारित होते थे। लेकिन, आज वे जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है। इसके कुछ साल बाद उन्होंने फिल्म 'दीवाना' से फ़िल्मी दुनिया में जगह मिली। आज विद्या बालन को फिल्मों की संजीदा एक्ट्रेस माना जाता है, उन्होंने भी एकता कपूर के कॉमेडी शो 'हम पांच' से अपना करियर शुरू किया था। 2005 में उन्होंने फिल्म 'परिणीता' से फिल्मों में एंट्री की और सफल हुई। उन्होंने द डर्टी गर्ल, कहानी, तुम्हारी सुलु और शेरनी जैसी हिट फिल्मों में काम किया। नवाजुद्दीन सिद्दीकी को फिल्मों में काम पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने भी टीवी शो 'परसाई कहते हैं' के कुछ एपिसोड में काम किया था। इसके बाद उन्हें बड़े परदे पर छोटे मोटे-रोल मिले। 2012 में 'गैंग ऑफ वासेपुर' से उन्हें पहचाना जाने लगा। 
      रेणुका शहाणे ने दूरदर्शन के शो 'सर्कस' से अपना अभिनय करियर शुरू किया। लेकिन, उन्हें पहचाना गया सिद्धार्थ काक के शो 'सुरभि' से। बाद में रेणुका ने टीवी और फिल्मों में एक साथ काम किया। राजश्री की फिल्म 'हम आपके हैं कौन' से उनका करियर परवान चढ़ा। इसी तरह साक्षी तंवर दूरदर्शन की टेलीफिल्म 'ललिया' से अभिनय शुरू किया। इसके बाद गाने के रियलिटी शो 'अलबेला सुर मेला' को होस्ट किया। फिर कहानी घर घर की' से वे महिला दर्शकों की लोकप्रिय एक्ट्रेस बन गई। उन्होंने टीवी शो 'बड़े अच्छे लगते हैं' से दूसरी पारी शुरू की। जबकि, 'दंगल' फिल्म में आमिर की पत्नी का किरदार निभाकर लोकप्रियता हासिल की। मंदिरा बेदी ने 1994 में दूरदर्शन के शो 'शांति' से अपनी अलग पहचान बनाई थी और बाद में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' से फिल्मों में दिखाई दीं। वे अब भी फिल्मों और टीवी दोनों में दिखाई देती हैं। टीवी के रियलिटी शो 'बिग बॉस' में आई अंजान सी शहनाज कौर का नाम भी इस लिस्ट में लिया जा सकता है। उनकी मासूमियत ने दर्शकों के दिलों पर ऐसा जादू चलाया कि वे रातों-रात लोकप्रिय हो गई। फिल्मों में भी उनको लिया गया। 
     बेहद पसंद किए जाने वाले धारावाहिक 'जस्सी जैसी कोई नहीं' वालीं मोना सिंह भी आमिर खान की फिल्म 'थ्री इडियट्स' और 'लाल सिंह चड्ढा' में दिखाई दी थीं। 'बिग बॉस' के 15वें सीजन की प्रेम तेजस्विनी प्रकाश 'ड्रीम गर्ल-टू' में नजर आई। 'नागिन' धारावाहिक से प्रसिद्ध हुई मोनी राय भी अक्षय कुमार के साथ 'गोल्ड' में आई हैं। वे 'केजीएफ' और 'मेड इन चाइना' में काम कर चुकी हैं। रणबीर-आलिया और अमिताभ बच्चन की फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' और 'बोले चूड़ियां'  दिखाई दी। टीवी एक्ट्रेस टिस्का चोपड़ा ने 'कहानी घर-घर की' और 'अस्तित्व' से पहचान बनाई थी। उन्होंने आमिर खान के साथ 'तारे जमीन पर' से फिल्मों में पहचान बनाई। फिल्म 'जुग जुग जियो' में उनकी खास भूमिका थी। टीवी अभिनेत्री मृणाल ठाकुर को रितिक रोशन के साथ 'सुपर थर्टी' में देखा गया था।  वे जर्सी, तूफान और 'बाटला हाउस' फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं। वे साऊथ की कुछ फिल्मों में भी नजर आई। 
      सिर्फ अभिनेत्रियां ही नहीं, कई अभिनेताओं ने भी छोटे-छोटे किरदार निभाकर बड़े परदे पर अपनी जगह बनाई। इनमें मनोज बाजपेई, कपिल शर्मा, सुनील ग्रोवर, सुशांत सिंह, सिद्धार्थ शुक्ला हैं। 1995 मैं महेश भट्ट के निर्देशन में बने टीवी सीरियल 'स्वाभिमान' से अपना करियर शुरू करने वाले मनोज बाजपेई ने 'सत्या' फिल्म से अपने फिल्म करियर की शुरुआत की। सुनील ग्रोवर ने 'गुड बॉय' और 'जवान' में भी काम किया है। टीवी के परदे पर लोकप्रिय रहे शरद केलकर ने दरबान, बादशाहो, लक्ष्मी और 'इरादा' में काम किया हैं। कितने ही कलाकारों के नाम गिनाए, फिर भी ये सूची अधूरी ही रहेगी। क्योंकि, शाहरुख़ खान जैसा कलाकार टेलीविजन की ही देन है। ओटीटी के बाद तो छोटे परदे के बड़े कलाकारों की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि वे सिनेमा से बड़े हो गए। अब कहा जा सकता है कि मनोरंजन के मामले में छोटे और बड़े परदे का फर्क ख़त्म हो गया। अब स्थिति ये है कि छोटे परदे से बहुत से चेहरे बड़े बनकर निकल रहे हैं!  
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Sunday, January 7, 2024

कंगना रनौत का करियर घिसटने क्यों लगा!

- हेमंत पाल

   कंगना रनौत की अभिनय की दुनिया में अलग ही पहचान रही। वे जब पहली बार परदे पर आई, तो दर्शकों ने उनके चेहरे और अभिनय दोनों में बहुत ताजगी महसूस की। क्योंकि, वे कभी किसी अभिनेत्री के पदचिन्हों पर चलती दिखाई नहीं दी। दर्शकों ने उनमें गंभीरता भी देखी और चंचलता भी, उत्साह भी देखा और आत्मविश्वास भी। लेकिन, अब वे इन दिनों इस वजह से चर्चा में हैं, क्योंकि उनका नाम लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश की एक सीट से बतौर उम्मीदवार लिया जा रहा है। अभी तय नहीं कि वे चुनाव लड़ेंगी तो जीतेंगी भी या नहीं! क्योंकि, ये अभिनेत्री हमेशा ही विवादों के चक्रव्यूह में रही। जबकि, कंगना की शुरुआती फिल्मों क्वीन, तनु वेड्स मनु और इसके सीक्वल ने अपार सफलता पायी। लेकिन, कुछ फिल्मों ने असफलता का स्वाद भी चखा। जल्द ही वो समय भी आ गया, जब वे नए-नए विवादों में फंसती चली गई।
    ये विवाद फ़िल्मी भी थे और गैर फ़िल्मी भी। कुछ मसले तो इतने गैरजरूरी थे, जिनमें कंगना रनौत का दखल उन दर्शकों को नहीं भाया जिनके दिमाग में इस अभिनेत्री की अलग छवि बनी थी। बात यहीं तक नहीं रुकी। कंगना ने ऐसे कई मामलों में टिप्पणी करना शुरू कर दिया, जो बतौर अभिनेत्री बिल्कुल भी जरुरी नहीं था। राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद हुए विवादों के जवाब,  रितिक रोशन के साथ लंबा विवाद, उनके पासपोर्ट में गलत उम्र, नेपोटिज्म पर फिजूल का बवाल, जेएनयू मामले पर टिप्पणी और इसके बाद चीन से विवाद पर भी टिप्पणी जैसे कई मामले हैं, जिन पर कंगना का टांग अड़ाना ठीक नहीं लगा। इसका नतीजा ये हुआ कि सोशल मीडिया पर 'कंगना' ब्रांड ने निगेटिव रंग ले लिया। खुद अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्म 'मणिकर्णिका' के समय भी उनके अपने डायरेक्टर से कई विवाद हुए! सोशल मीडिया पर कंगना के पक्ष-विपक्ष में अक्सर खेमेबाजी होती है। कंगना के खिलाफ सोशल मीडिया पर नकारात्मक हैशटैग भी ट्रेंड करते रहते हैं। कंगना ने अपनी आदतों से राम मंदिर मामले में अमिताभ बच्चन पर भी उंगली उठाने का मौका निकाल लिया। 
      कंगना रनौत को अब ऐसी अभिनेत्री माना जाने लगा जिनकी तुनक मिजाजी के किस्से आम रहते हैं। इसका असर ये हुआ कि नामी प्रोडक्शन हाउस, जोरदार कहानी और कंगना के अभिनय के बावजूद उनकी फ़िल्में फ्लॉप होने लगी। उनकी फिल्म 'तेजस' की यही गत हुई। इससे पहले आई 'धाकड़' का भी यही हाल हुआ था। कंगना कि इन दोनों फिल्मों ने बेहद ठंडा प्रदर्शन किया। 'तेजस' के बारे में तो कहा गया कि वीक-एंड के दिन जब कमजोर फ़िल्में भी देख ली जाती है, उन दिनों में भी कई सिनेमाघर में 'तेजस' देखने एक भी दर्शक नहीं पहुंचा। आधे से ज्यादा थियटरों में दर्शकों के अभाव में शो तक कैंसिल करने पड़े। जबकि, रिलीज से पहले 'तेजस' का काफी डंका बज रहा था। इस फिल्म का कंगना ने भी प्रमोशन किया। लेकिन, रिलीज होते ही फिल्म का हाल बुरा हो गया। पहले ही दिन दर्शकों के लिए तरसती दिखाई दी। फिल्म कैसी थी, फ़िलहाल इस पर चर्चा नहीं, पर दर्शकों ने कंगना की फिल्मों से कन्नी काट ली है। इसलिए यह कयास गलत नहीं है, कि कंगना की फिल्मों के फ्लॉप होने का कारण इस अभिनेत्री की छवि है, जो धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही है। 
    माना जा रहा है कि पहले 'धाकड़' और अब 'तेजस' 2023 की सुपर फ्लॉप फिल्म की लिस्ट में शामिल हो चुकी। दर्शकों की कसौटी पर ये फिल्म खरी नहीं उतर पायी। 45 करोड़ में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर लागत निकालने के लिए कड़ा संघर्ष किया। कंगना रनौत की ये फिल्म उनके फिल्म करियर की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म बन गई। इस साल 'धाकड़' की हालत भी यही हुई थी। उस फिल्म के तो कई सिनेमाघरों में एक शो भी नहीं चल सके थे। जानकारों का मानना है कि कंगना की फ़िल्में उनके ख़राब अभिनय की वजह से फ्लॉप नहीं होती, बल्कि तुनक मिजाजी की उनकी आदत, निजी बातों को उजागर करने की सनक और बड़े कलाकारों के साथ काम करने से इंकार करने से उनकी नकारात्मक छवि बन गई। इस कारण ज्यादातर फिल्मकार और कलाकार कंगना से दूर रहने लगे। लोग उनकी बातों का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझते। क्योंकि, वे कब, किस बात पर किसे कटघरे में खड़ा कर दें, कहा नहीं सकता। ऐसी आदतों के कारण मीडिया भी कंगना का साथ नहीं देती। मीडिया में ज्यादातर जगह कंगना की खिल्ली ही उड़ाई जाती है। अपने बगावती तेवरों के कारण यह अभिनेत्री सोशल मीडिया में भी खलनायिका बन गई!  अपनी आदतों के कारण कंगना बॉलीवुड में हमेशा अकेली पड़ जाती है! देखा नहीं गया कि कोई कंगना के समर्थन में ज्यादा देर खड़ा रहा हो!
       दरअसल, कंगना की नजर में पूरा बॉलीवुड ख़ामियों से भरा है और सभी उनकी उपलब्धियों से जलते हैं। वास्तव में यह सब इस अभिनेत्री की खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने की ग़लतफ़हमी है, और कुछ नहीं! उन्हें हर फ़िल्मकार से शिकायत है कि वे बड़े कलाकारों के बच्चों को लेकर ही फिल्म क्यों बनाते हैं! इससे कई प्रतिभाशाली कलाकार दबकर रह जाते हैं! सुशांत की आत्महत्या वाले मामले में कंगना ने किसी को भी कटघरे में खड़ा करने में देर नहीं की! नेपोटिजम (भाई-भतीजावाद) के नाम पर उन्होंने करण जौहर से लगाकर यशराज फिल्म्स, महेश भट्ट और संजय लीला भंसाली तक को नहीं छोड़ा! इन फिल्मकारों के अलावा टाइगर श्रॉफ और सोनाक्षी सिन्हा तक पर उंगली उठाई! कुछ लोगों ने कंगना को उसी अंदाज में जवाब भी दिया। जबकि, बॉलीवुड में नेपोटिज्म नई बात नहीं है!  ये सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, राजनीति और बिज़नेस वर्ल्ड में भी ये सब होता है। ये आज की बात भी नहीं है।
     राज कपूर परिवार और भट्ट कैंप आज नहीं पनपे! लेकिन, परदे पर वही लम्बी रेस का घोड़ा बन पाता है, जिसमें क़ाबलियत होती है। राज कपूर का एक ही बेटा ऋषि कपूर चला, देव आनंद का बेटा अभिनय में नहीं चला, राकेश रोशन दूसरे दर्जे के नायक थे, पर उनका बेटा रितिक आज सफल हीरो है। जैकी श्रॉफ का बेटा टाइगर अलग जॉनर का कलाकार है। शशि कपूर का बेटा भी नहीं चला, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और जीतेंद्र के बेटे भी आउट हो गए। क्योंकि, उनमें क़ाबलियत नहीं थी। बड़े अभिनेताओं के बच्चों की असफलताओं की लिस्ट बहुत लम्बी है। लेकिन, औसत हीरो जैकी श्रॉफ का बेटा टाइगर आज स्टार है। शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी भी औसत दर्जे की हीरोइन है, पर महेश भट्ट की बेटी आलिया का जलवा है। इसलिए नेपोटिज्म जैसी बहस फिल्म इंडस्ट्री के लिए बेमतलब है। लेकिन, कंगना ने लंबे समय तक इस विवाद को घसीटा। काफी साल पहले एक फिल्म आई थी 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है!' इस फिल्म में अल्बर्ट पिंटो का गुस्सा महज अभिनय था! लेकिन, अभिनेत्री कंगना रनौत का गुस्सा फ़िल्मी नहीं है। उनके गुस्से का कारण कुछ भी हो सकता है। कंगना रनौत को कब, किस बात पर गुस्सा आ जाए कहा नहीं जा सकता। जरूरी नहीं कि उनके गुस्से का कोई आधार हो! कंगना कब किस बात पर अपना आपा खो दें, कोई नहीं जानता! वास्तव में तो कंगना असहमति का दूसरा नाम है। हर मामले में अपनी सलाह और नज़रिया व्यक्त करना कंगना की आदत रही है!
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फिल्मों में गीत अड़चन या कहानी का हिस्सा!

- हेमंत पाल 

    फिल्मों में गीतों को लेकर कई बारे सवाल उठाए जाते हैं। कुछ दर्शकों को लगता है, कि कई बार फिल्म के कथानक में गीत अड़चन डालते हैं। जबकि, गीतों को फिल्मों का जरूरी हिस्सा मानने वाले भी कम नहीं! दोनों तरह का सोच रखने वाले दर्शकों की बातें अपनी जगह सही है। क्योंकि, यदि फिल्म को मनोरंजन माना जाता है, तो उसमें गीत की अपनी अलग जगह है। लेकिन, कुछ ऐसी फ़िल्में भी आई, जिन्होंने इस प्रथा को तोड़ा! इन फिल्मों के कथानक में गीतों के लिए कोई जगह नहीं थी! इसके बाद भी इन फिल्मों ने सफलता पाई! ये चमत्कार इसलिए हुआ कि इनकी कहानी बहुत प्रभावशाली थी, जिसने दर्शकों को सोचने तक का मौका नहीं दिया और बांधकर रखा। यानी सारा दारोमदार फिल्म के दमदार कथानक से जुड़ा है। ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से आज तक बनने वाली फिल्मों में जो नहीं बदला, वो गीत ही है! कभी कहानी को मदद देने के लिए तो कभी कहानी को आगे बढ़ाने के लिए फिल्मों में गीतों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। दुनिया में हमारे यहां बनने वाली फ़िल्में ही हैं, जिनमें गीतों के बगैर काम नहीं चलता। कहानी में सिचुएशनल के मुताबिक गाने पिरोकर दर्शकों के सामने ऐसा माहौल बनाया जाता है कि वो बंध जाता है। फ़िल्मी कारोबार में भी गीत-संगीत कमाई का बड़ा जरिया है! ये भी एक कारण है, कि फिल्मों में गीत भी अहम किरदार निभाते हैं। ऐसी बहुत सी फिल्मों के नाम गिनाए जा सकते हैं, जिन्होंने अपने गीतों की वजह से सफलता हासिल की! 
      फिल्म इतिहास में बिना गीतों वाली पहली फिल्म बीआर चोपड़ा की 'कानून' को माना जाता है, जो 1960 आई थी। ये फिल्म कानूनी पैचीदगियों के बीच एक वकील के दांव-पेंच की कहानी थी, जो हत्यारे को बचा लेता है। इसमें सवाल उठाया गया था कि क्या एक ही अपराध में किसी व्यक्ति को दो बार सजा दी जा सकती है? ये फिल्म इसी सवाल का जवाब ढूंढती है। इस फिल्म में अशोक कुमार ने एक वकील का किरदार निभाया था। बगैर गीतों वाली दूसरी फिल्म थी 'इत्तेफ़ाक़' जिसे 1969 में यश चोपड़ा ने निर्देशित किया था। राजेश खन्ना और नंदा ने इसमें मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। यह फिल्म एक रात की कहानी है, जिसमें दर्शक बंधा रहता है। गीतों के बिना भी ये फिल्म पसंद की गई थी। यह फिल्म हत्या से जुड़े एक रहस्य पर आधारित थी, यही कारण था कि दर्शको को फिल्म में गीत न होना खला नहीं।
   बरसों बाद श्याम बेनेगल ने 1981 में 'कलयुग' बनाकर इस परम्परा की फिर याद दिलाई थी। इसमें शशि कपूर, राज बब्बर और रेखा मुख्य भूमिकाओं में थे। महाभारत से प्रेरित इस फिल्म में दो व्यावसायिक घरानों की दुश्मनी को नए संदर्भों में फिल्माया गया था। बदले की कहानी पर बनी इस फिल्म में कोई गाना न होने के बावजूद इसे पसंद किया गया था। इसे 1982 में 'फिल्म फेयर' का सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला था। इसके अगले साल 1983 में कुंदन शाह की कॉमेडी फिल्म 'जाने भी दो यारो' आई इसमें भी कोई गीत नहीं था। इसमें नसीरुद्दीन शाह, रवि वासवानी, ओमपुरी और सतीश थे। ये एक मर्डर मिस्ट्री थी, जिसने व्यवस्था पर भी करारा व्यंग्य किया था।
     बिना गीतों की फिल्म की सबसे बड़ी खासियत होती है पटकथा की कसावट। यदि फिल्म की कहानी इतनी रोचक है, कि वो दर्शकों को बांधकर रख सकती है, तो फिर गीतों का न होना कोई मायने नहीं रखता! इस तरह की अगली फिल्म 1999 में रामगोपाल वर्मा की 'कौन है' आई थी। ये रोमांचक कहानी वाली फिल्म थी, जिसमें मनोज बाजपेयी, सुशांत सिंह और उर्मिला मातोंडकर ने अभिनय का जादू दिखाया था। इस फिल्म की पटकथा इतनी रोचक थी, कि दर्शकों को हिलने तक का मौका नहीं मिला था। 2005 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म 'ब्लैक' जिसने भी देखी, उसे याद होगा कि फिल्म में कोई गीत नहीं था, पर इस फिल्म को आज भी याद किया जाता है। अमिताभ बच्चन और रानी मुखर्जी की ये फिल्म एक ऐसी लड़की और उसके टीचर की कहानी थी जो देख और सुन नहीं पाती। इस फिल्म को कई अवॉर्ड्स भी मिले।
    इसके अलावा बिना गीतों वाली उल्लेखनीय फिल्मों में 2003 में आई 'भूत' थी, जिसका निर्देशन राम गोपाल वर्मा ने किया था। इस फिल्म में अजय देवगन, फरदीन खान, उर्मिला मातोंडकर और रेखा थे। ये डरावनी फ़िल्म थी और इसमें कोई गीत नहीं था। इसी साल आई फिल्म 'डरना मना है' में सैफ अली खान, शिल्पा शेट्टी, नाना पाटेकर और सोहेल खान थे। इस फिल्म में भी कोई गीत नहीं था, फिर भी यह हिट हुई। 2008 में आई 'ए वेडनेसडे' अपनी कहानी के नएपन की वजह से सुर्खियों रही। फिल्म में एक आम आदमी की कहानी थी, जो व्यवस्था से परेशान होकर खुद उससे टक्कर लेता है। 2013 की फिल्म 'द लंच बॉक्स' दो अंजान अधेड़ प्रेमियों की कहानी थी, जो गलती से लंच बॉक्स जरिए प्रेम पत्रों का आदान-प्रदान करने लगते हैं। ऐसी ही कॉमेडी फिल्म 'भेजा फ्राई' 2007 में आई, लेकिन कमजोर कहानी वाली इस फिल्म को पसंद नहीं किया गया। इसमें विनय पाठक, रजत कपूर और मिलिंद सोमण थे।
      इन फ़िल्मी गीतों का एक दूसरा सकारात्मक पक्ष भी है। ऐसी भी फिल्में हैं, जो केवल एक गाने के कारण बाॅक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ इकट्ठा करने में कामयाब रही। कभी ये कव्वाली रही, कभी ग़ज़ल तो कभी शादियों में गाए जाने वाले गीत! एक गीत की बदौलत बाॅक्स ऑफिस पर सिक्कों की बरसात कराने में संगीतकार रवि बेजोड़ रहे। उनकी एक नहीं, कई ऐसी फिल्में हैं, जो केवल एक गाने के कारण बार-बार देखी! ऐसी फिल्मों में एक है शम्मी कपूर की 'चाइना टाउन' जिसका गीत 'बार बार देखो, हजार बार देखो' तब जितना मशहूर हुआ था, आज भी उतना ही मशहूर है। शादी ब्याह से लेकर पार्टियों में जहां कई नौजवानों को संगीत के साथ थिरकना होता है, इसी गीत की डिमांड होती है। रवि की दूसरी फिल्म हैं 'आदमी सड़क का' जिसका गीत 'आज मेरे यार की शादी है' बारात का नेशनल एंथम बनकर रह गया। इसके बिना दूल्हे के दोस्त आगे ही नहीं बढ़ते! इसी तरह दुल्हन की विदाई पर 'नीलकमल' का रचा गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' ने दर्शकों की आंखें नम तो की, फिल्म की सफलता में भी बहुत योगदान दिया।
    रवि ने आरएटी रेट (दिल्ली का ठग), तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा (दस लाख ), मेरी छम छम बाजे पायलिया (घूंघट), हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं (घराना), हम तो मोहब्बत करेगा (बॉम्बे का चोर), ए मेरे दिले नादां तू गम से न घबराना (टावर हाउस ), सौ बार जनम लेंगे सौ बार फना होंगे (उस्तादों के उस्ताद), आज की मुलाकात बस इतनी (भरोसा), छू लेने दो नाजुक होंठों को (काजल ), मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी (आंखें), तुझे सूरज कहूँ या चंदा (एक फूल दो माली), दिल के अरमां आंसुओं में बह गए (निकाह) जैसे एक गीत की बदौलत पूरी फिल्म को दर्शनीय बना दिया! फिल्मों को बाॅक्स ऑफिस पर कामयाबी दिलवाने वाले अकेले गीतों में दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्करा के चल दिए (दादा), आई एम ए डिस्को डांसर (डिस्को डांसर), बहारों फूल बरसाओ (सूरज), परदेसियों से न अंखियां मिलाना (जब जब फूल खिले), चांद आहें भरेगा (फूल बने अंगारे), चांदी की दीवार न तोड़ी (विश्वास), शीशा हो या दिल हो (आशा), यादगार हैं। 
     सत्तर के दशक में एक फिल्म आई थी 'धरती कहे पुकार के' जिसका एक गीत 'हम तुम चोरी से बंधे इक डोरी से' इतना हिट हुआ था कि इसी गाने की बदौलत यह औसत फिल्म सिल्वर जुबली मना गई। इंदौर के अलका थिएटर में तो उस दिनों प्रबंधकों को फिल्म चलाना इसलिए मुश्किल हो गया था कि काॅलेज के छात्र रोज आकर सिनेमाघर में जबरदस्ती घुस आते और इस गाने को देखकर ही जाते थे। कई बार तो ऐसे मौके भी आए जब रील को रिवाइंड करके छात्रों की फरमाइश पूरी करना पड़ी। हिंदी सिनेमा में एक दौर ऐसा भी आया जब किसी सी-ग्रेड फिल्म की एक कव्वाली ने दर्शकों में गजब का क्रेज बनाया था। इस तरह की फिल्मों में 'पुतलीबाई' भी शामिल है। फिल्म की नायिका आदर्श की पत्नी जयमाला थी। इस फिल्म की एक कव्वाली 'ऐसे ऐसे बेशर्म आशिक हैं ये' ने इतनी धूम मचाई थी, कि सी-ग्रेड फिल्म 'पुतलीबाई' ने उस दौरान प्रदर्शित सभी फिल्मों को पछाड़ते हुए सिल्वर जुबली मनाई थी।
     इसके बाद तो हर दूसरी फिल्म में कव्वाली रखी जाने लगी। 'पुतलीबाई' के बाद एक और फिल्म आई थी नवीन निश्चल, रेखा और प्राण अभिनीत 'धर्मा' जिसमें प्राण और बिंदू पर फिल्माई कव्वाली 'इशारों को अगर समझों राज को राज रहने दो' ने सिनेमा हाॅल में जितनी तालियां बटोरी बॉक्स आफिस पर उससे ज्यादा सिक्के लूटने में सफलता पाई। इसके बाद कव्वाली का दौर थमा,तो फिल्मकारों ने इससे पीछा छुड़ाकर फिर गजलों पर ध्यान केंद्रित किया। एक गजल से सफल होने वाली फिल्मों में राज बब्बर, डिम्पल और सुरेश ओबेराय की फिल्म 'एतबार' (किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है) और 'नाम' (चिट्ठी आई है) यादगार है। इस तरह देखा जाए तो हिंदी फिल्मों का मिजाज बड़ा अजीब है, कभी फिल्में दर्जनों गानों के बावजूद हिट नहीं होती, तो कभी बिना गाने और महज एक गाने के दम पर बाॅक्स ऑफिस पर सारे कीर्तिमान तोड़ देती है।
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बीते साल की खट्टी-मीठी यादें और सिनेमा

- हेमंत पाल

      बीता हुआ हर साल खट्टी-मीठी यादों का गुलदस्ता होता है। इन यादों में से कुछ यादों को नए साल के लिए संजोकर रख लिया जाता है। ये जीवन में भी होता है और फिल्मों में भी। सिनेमा के नजरिए से देखा जाए, तो खट्टी-मीठी यादों का आशय है हिट और फ्लॉप होने वाली फ़िल्में। साल 2023 ने भी फिल्मों को बहुत कुछ ऐसा दिया, जिसका बीते कई सालों से इंतजार किया रहा था। देश के साथ सिनेमा ने भी कोरोना काल में दो साल का बहुत बुरा वक़्त देखा। कई महीनों तक सिनेमाघर बंद रहे। जब खुले तो दर्शकों ने उससे दूरी बनाए रखी, क्योंकि संक्रमण का खतरा टला नहीं था। लंबे समय तक फिल्मकार नई फ़िल्में रिलीज करने से बचते रहे। इस कारण 2022 का साल भी फिल्मों के हिसाब से ठंडा रहा था। कोरोना काल बीतने के बाद दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने में फिल्म इंडस्ट्री को 3 साल लग गए। लेकिन, साल 2023 ने कई धारणाओं को खंडित करके कई फिल्मों को सफलता का नया शिखर छूने का मौका दिया। 
      साल का आरंभ एक जानवर के नाम वाली फिल्म 'लकड़बग्घा' से हुआ। जो साल के अंत में 'एनिमल' से होते हुए 'डंकी' पर जाकर ख़त्म हुआ। इस साल हिंदी की कुल 148 हिंदी फ़िल्में रिलीज हुई। कुछ फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई का रिकॉर्ड बनाया, तो कुछ फिल्मों को दर्शकों ने इतना बुरी तरह नकारा कि वे एक-दो शो के बाद ही सिनेमाघरों से ही उतार दी गई। बीते साल को सफलता और असफलता के पैमाने पर परखा जाए, तो फ्लॉप होने वाली फिल्मों की संख्या हिट के मुकाबले बहुत ज्यादा रही। इसी पैमाने पर हिट और फ्लॉप हीरो और हीरोइन को परखा जाए तो अक्षय कुमार और कंगना रनौत की फ़िल्में दर्शकों की कसौटी पर खरी नहीं उतरी। सबसे सफल हीरो शाहरुख़ खान को माना जा सकता है, जिनकी लगातार तीन फिल्मों ने करोड़ों की कमाई की। लंबे समय बाद शाहरुख खान का सितारा आसमान पर चमका। इस लिस्ट में सनी देओल को भी रखा जा सकता है, जिन्होंने सिर्फ एक फिल्म 'ग़दर-2' से लंबे अरसे बाद दर्शकों के दिल में जगह बना ली। सलमान खान भी एक फ्लॉप 'किसी का भाई किसी की जान' और एक हिट 'टाइगर-3' से चर्चा में बने रहे।        
     इस साल कुछ फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़े। लेकिन, इनकी संख्या उंगलियों पर गिनने वाली रही। कुछ ऐसी भी फिल्में रहीं, जो बेवजह विवादों में फंसी। सफलता के साथ विवादों में आई फिल्मों में सबसे ज्यादा चर्चित फिल्म रही 'आदिपुरुष' जिसके संवादों पर दर्शकों को एतराज हुआ। 'रामायण' जैसे धार्मिक कथानक पर आधारित इस फिल्म का फिल्मांकन भी दर्शकों के गले नहीं उतरा। भगवान राम बने दक्षिण के हीरो प्रभास से दर्शकों को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन उन्होंने खासा निराश किया। भगवान राम और हनुमान के संवादों को पसंद नहीं किया गया। इसी तरह शाहरुख खान की सफल फिल्म 'पठान' ने बॉक्स ऑफिस पर तो कामयाबी के झंडे गाड़े, पर फिल्म के एक गाने 'बेशर्म रंग' की वजह से लंबा विवाद चला। 
       इसी तरह केरल में धर्मांतरण के मुद्दे पर बनी फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर भी बहुत झमेला हुआ। इसे लव जिहाद का नया एंगल भी कहा गया, फिर भी फिल्म काफी चर्चित रही। अक्षय कुमार की फिल्म 'ओएमजी-2' को लेकर भी नकारात्मक माहौल बना। वास्तव में ये सीक्वल फिल्म पहली वाली की तरह धार्मिक नहीं थी। इस फिल्म का कथानक सेक्स एजुकेशन पर था, जिसे लेकर नाराजगी भी सामने आई। साल के अंत में भी विवाद से छुटकारा नहीं मिला। रणबीर कपूर की सफल फिल्म 'एनिमल' में महिला किरदारों के चित्रण और अति हिंसा को लेकर बहस छिड़ी और ये बहस संसद तक पहुंची।   
      इस साल कई कलाकारों ने बॉक्स ऑफिस पर जलवा बिखेरा। उनकी फिल्मों ने सिनेमाघरों में दर्शकों की पसंद का रिकॉर्ड बनाया। इन कलाकारों की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों की कमाई भी की। साउथ से लेकर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री तक के कलाकारों ने बॉक्स ऑफिस पर कब्जा जमाए रखा। साल के शुरूआती दौर में शाहरुख खान की फिल्म 'पठान' रिलीज हुई। 'पठान' ने बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई की। आंकड़े की बात करें तो दुनियाभर में 'पठान' ने 1050 करोड़ का कलेक्शन किया। इसके बाद सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म 'गदर-2' ने भी 22 साल पहले का वो दौर याद दिला दिया, जब इस सीरीज की पहली फिल्म 'ग़दर' (2001) ने बॉक्स ऑफिस को हिला दिया था। दर्शकों का इस फिल्म को लेकर जबरदस्त क्रेज दिखाई दिया। इस सीक्वल फिल्म ने भी दुनियाभर में 691.08 करोड़ का कारोबार किया। 
       इसके बाद आई शाहरुख़ खान की फिल्म 'जवान' ने तो मानो भूचाल ला दिया। ये शाहरुख़ की दूसरी हिट फिल्म थी। 'जवान' ने दुनियाभर में 1160 करोड़ का बिजनेस किया। इन दो फिल्मों ने शाहरुख़ पर वर्साटाइल एक्टर की मुहर भी लगा दी और शाहरुख़ की उस इमेज को पूरी तरह बदल दिया। अभी तक उन्हें रोमांटिक किरदारों का परफेक्ट हीरो ही माना जाता था। साल के अंत में आई शाहरुख़ की 'डंकी' ने भी अच्छी कमाई के संकेत दिए। खास बात ये भी रही कि शाहरुख़ खान लंबे अरसे बाद परदे पर आए और तीन फिल्मों से छा गए। शाहरुख की इस कॉमेडी-ड्रामा फिल्म का इंतजार हो रहा था। इस फिल्म ने पहले दिन 35 करोड़ की कमाई की। इससे पता चलता है कि दर्शक शाहरुख खान और उनकी फिल्में देखना पसंद करते हैं। उधर, साऊथ में रजनीकांत का अलग ही जलवा रहा। फ़िल्में उनके नाम से चलती है, न कि उनके काम और कहानी से। रजनीकांत की फिल्म 'जेलर' ने भी सिनेमाघरों में धमाल मचाया। 'जेलर' को लेकर रजनीकांत की तारीफ भी हुई और बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का कलेक्शन 650 करोड़ रहा। 
      सफल फिल्मों में एक साऊथ की ही फिल्म 'लियो' भी रही जिसके हीरो विजय थलापति थे। 'लियो' एक एक्शन थ्रिलर फिल्म है, जिसमें तृष्णा कृष्णन और संजय दत्त ने भी किरदार निभाए। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कारोबार किया। फिल्म ने 612 करोड़ रुपए कमाए। साल के आखिरी महीनों में आई रणबीर कपूर की फिल्म 'एनिमल' ने उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छा बिजनेस किया। रिलीज के बाद से ही फिल्म दर्शकों के दिलों पर छा गई। फिल्म ने दो सप्ताह में ही 800 करोड़ का कारोबार किया। फिल्म में ज्यादा हिंसा को लेकर भी टिप्पणी की गई, फिर भी दर्शक फिल्म देखने का मोह नहीं छोड़ पाए।
      'द केरल स्टोरी' फिल्म को लेकर शुरू में काफी विवाद हुआ। लेकिन, फिर भी यह फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई। इस फिल्म में केरल में होने वाले धर्म बदलाव की कहानी है। इस फिल्म के फैक्ट्स को लेकर सड़क से संसद तक बातें हुई। यह फिल्म एक लड़की फातिमा की कहानी है, जो नर्स बनना चाहती थीं। लेकिन, उसे कट्टरपंथी अपने चंगुल में फंसाकर जबरन धर्म परिवर्तन करवा कर आतंकवादियों के चंगुल में ले आते हैं। इस फिल्म ने साढ़े 500 से ज्यादा कलेक्शन किया। 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' को भी अप्रत्याशित सफलता मिली। कथानक के अनुसार एक पंजाबी लड़का रॉकी एक बंगाली पत्रकार रानी के प्यार में फंस जाता है। उससे शादी करने के लिए अपने परिवार से लड़ जाता है। कैसे उन दोनों की शादी होती है यही कहानी क्लाइमेक्स है। 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में कॉमेडी के साथ रोमांस और ड्रामा का तड़का भी है। डेढ़ सौ करोड़ की इस फिल्म ने करीब 500 करोड़ का बिजनेस करके सबको चौंका तो दिया।  
      कुछ समय पहले रिलीज हुई फिल्म पोंनियिन सेल्वन पार्ट-2 एक सीक्वल फिल्म है। इस फिल्म में ऐतिहासिक चोला साम्राज्य का कथानक था। दक्षिण भारत के इस साम्राज्य की गाथा सुनी तो गई, पर इस फिल्म में उस कहानी को बेहद रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया। सलमान खान और कैटरीना कैफ की सीक्वल फिल्म 'टाइगर 3' को लेकर काफी कयास लगाए गए थे। लेकिन, फिल्म ने संभावना से कम बिजनेस किया। फिल्म ने बजट से ज्यादा कमाई जरूर की, पर सलमान खान का जादू दिखाई नहीं दिया, जो इस सीरीज की दो फिल्मों में दर्शकों ने देखा था। 'टाइगर 3' में देश को दुश्मनों से बचाने के लिए सलमान खान और कैटरीना की कोशिशों की कहानी है। फिल्म ने देश और दुनिया में मिलकर करीब साढ़े 700 करोड़ का कारोबार किया। ये तो हुआ फिल्म के कारोबार का सच।
     लेकिन, बीता साल कुछ कलाकारों के लिए भी अच्छा नहीं रहा। क्योंकि, फिल्मों की सफलता के साथ उसके किरदारों की भी तारीफ होती है। लेकिन, बीते साल दो कलाकार ऐसे रहे, जो दर्शकों की नजर से पूरी तरह उतर गए और उनकी फ़िल्में भी फ्लॉप रही। अक्षय कुमार उनमें एक हैं जिनकी लगातार 5 फिल्में दर्शकों ने नकार दी। इनमें बच्चन पांडे, सम्राट पृथ्वीराज, रक्षा बंधन, राम सेतु और 'सेल्फी' शामिल है। यही स्थिति कंगना रनौत की भी रही। उनकी फिल्म 'धाकड़' और 'तेजस' दोनों बुरी तरह फ्लॉप हुई। एक समय कंगना की फ़िल्में दर्शकों के दिमाग पर चढ़ी थी, पर अब स्थिति ये है, कि दर्शक उसके चार शो भी नहीं झेल पाए।    
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कई बड़ों के पर कतरे, कुछ को नए पंख लगे!

- हेमंत पाल 

     मंत्रिमंडल के गठन के बाद मंत्रियों को उनके विभागों के बंटवारे में इतना समय लग सकता है, ये अब से पहले कभी नहीं देखा गया। इसका नतीजा ये हुआ कि अनुमानों वाले विभागों की लिस्ट ज्यादा बांची गई। सोशल मीडिया पर तो स्थिति ये हुई कि जिसे जो लिस्ट बनाना था, वो बनाकर पोस्ट करता रहा। जिससे फर्जी लिस्टों की भीड़ लग गई। जब असली लिस्ट सामने आई तो कुछ देर उसे भी फर्जी ही माना गया। इससे ये समझा जा सकता है कि भाजपा के लिए मुख्यमंत्री का चयन जितना आसान था, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल मंत्रियों के नाम फ़ाइनल करना और अब उससे भी ज्यादा मुश्किल उन्हें विभाग देना रहा। इस सबके पीछे उस दबाव को समझा जा सकता है, जो मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और पार्टी पर होगा। लेकिन, अंततः मंत्रियों को उनके दफ्तर सौंप दिए गए। निश्चित रूप से कुछ मंत्री विभाग पाकर खुश होंगे, तो कुछ दुखी भी और ये स्वाभाविक भी है!       
      मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने पास सामान्य प्रशासन,गृह, जनसंपर्क, नर्मदा घाटी विकास, उद्योग, जेल, खनिज संसाधन, विमानन सहित महत्वपूर्ण विभाग रखे हैं। खास बात यह कि मुख्यमंत्री के बाद दोनों उप मुख्यमंत्रियों को भी महत्वपूर्ण विभागों से नवाजा गया। उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा को वित्त, वाणिज्यिक कर, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग दिया गया। जबकि, राजेंद्र शुक्ला को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा विभाग का मंत्री बनाया गया है। पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह जैसे नेताओं को कई बड़े विभाग दिए जाएंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि, इन्हें लीक से हटकर विधानसभा चुनाव में उतारा गया था। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दिग्गजों को उनके कद के मुकाबले कम विभाग सौंपे गए। हालांकि, कैलाश विजयवर्गीय को शायद उनके पुराने  अनुभव के कारण अच्छा विभाग अच्छा दिया गया। मुख्यमंत्री ने गृह, खनिज समेत जितने विभाग रखे, उससे लगता है कि इन विभागों की वजह से ही विभागों के बंटवारे में पांच दिन लगे। 
       गृह, जनसंपर्क और खनिज जैसे महत्वपूर्ण विभाग मुख्यमंत्री ने अपने पास रखे इस संकेत को स्वतः समझा जा सकता है। उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा पहले वाली सरकार में भी वित्त मंत्री थे, उन्हें फिर उसी दफ्तर की जिम्मेदारी दी गई। कैलाश विजयवर्गीय को नगरीय प्रशासन और संसदीय कार्य जैसे जनता से जुड़े विभाग सौंपे गए हैं। विजयवर्गीय पहले भी यह विभाग संभाल चुके हैं। प्रहलाद पटेल को पंचायत एवं ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री बनाया गया। जबकि, वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे खड़े थे।
     सांसद से विधायक और अब मंत्री बनाए गए राकेश सिंह को जरूर लोक निर्माण जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया। विभागों के बंटवारे में इस बार विजय शाह के पर कतर दिए गए। उन्हें जनजातीय कार्य, लोक परिसंपत्ति प्रबंधन, भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास जैसे विभाग दिए गए। निश्चित रूप से ये उनके कद और जिस तरह की उनकी पहचान है उस हिसाब से इसे छोटा माना जा सकता है। सांसद से विधायक बने उदय प्रसाद सिंह को परिवहन और स्कूली शिक्षा जैसे दमदार विभाग दिए गए। 
    सिंधिया कोटे वाले तीन मंत्रियों में से तुलसी सिलावट और प्रद्युम्न सिंह तोमर के विभाग नहीं बदले गए। प्रधुम्न सिंह को फिर ऊर्जा विभाग दिया गया, जो पिछली सरकार में भी उनके पास था। जबकि, तुलसी सिलावट को फिर जल संसाधन की जिम्मेदारी दी गई। सिंधिया गुट के तीसरे मंत्री गोविंद राजपूत को खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग का मंत्री बनाया गया। राजपूत के पास शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल वाली सरकार में राजस्व और परिवहन जैसे बड़े विभाग थे। इसे सीधे से पर कतरने वाली बात कहा जा सकता है। 
     इस बार करण सिंह वर्मा को राजस्व दिया गया, दो दशक पहले भी वे इस विभाग को संभाल चुके हैं। जिनके पर कतरे गए उनमें विश्वास सारंग का नाम भी लिया जा सकता है। उन्हें खेल एवं युवा कल्याण, सहकारिता विभाग का मंत्री बनाया गया हैं। जबकि, दूसरी बार मंत्री बनी आदिवासी कोटे की निर्मला भूरिया को महिला एवं बाल विकास का मंत्री बनाया गया। पहली बार मंत्री बने आदिवासी नेता नागरसिंह चौहान को वन, पर्यावरण, अनुसूचित जाति कल्याण जैसे बड़े विभाग का मंत्री बनाया गया। पहली बार कैबिनेट में आए जैन समाज से जुड़े चेतन कश्यप को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की जिम्मेदारी दी गई। वे खुद उद्योगपति हैं, इसलिए बतौर मंत्री उनका अनुभव काम आएगा।
     मंत्रिमंडल में पहली बार शामिल की गई कृष्णा गौर को पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण, विमुक्त, घुमंतू और अर्ध घुमंतू कल्याण विभाग दिया गया। लगता नहीं कि ये विभाग उन्हें रास आएंगे। स्वतंत्र प्रभार वाले दूसरे मंत्री गौतम टेटवाल को तकनीकी शिक्षा और धर्मेंद्र लोधी को संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास विभाग का मंत्री बनाया गया। जिस तरह से विभागों का बंटवारा हुआ उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि संतुलन का ध्यान दिया गया। कुछ के पंख कतरे गए तो ऐसे भी मंत्री हैं जिन्हें नए पंख लगाकर ताकतवर बनाया गया हैं।
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