Sunday, October 21, 2012

रिटेल का खेल : राजनीति पास ... जनता फेल

- भारत के मध्यमवर्ग पर दुनिया की नज़र - रिटेल के महारथियों का लोकल बाजार पर गहरा असर (हेमंत पाल) केंद्र सरकार के रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के फैसले ने देश के विपक्षी दलों को नया मुद्दा थमा दिया है! इस मुद्दे पर ममता बेनर्जी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया! जबकि, सरकार भी ऐसे अड़कर बैठी है की उसने भी ममता के फैसले की परवाह नहीं की! बीजेपी भी कमर कसकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी! दरअसल, सरकार का यह फैसला उसका खुद का कम अमेरिकी दबाव में लिया गया ज्यादा लगता है! किसानों, लोगों और छोटे दुकानदारों को सब्जबाग़ दिखाकर सरकार भले ही उन्हें भ्रमित करने का प्रयास करे पर पिछले अनुभव बताते हैं की दुनिया के जिस भी देश ने इस तरह के फैसले लिए हैं, उन्हें अपने जनता के कोप का भजन बनना पड़ा है! 00000 यह आम जनता के माँगों की अनदेखी कर अपनी दादागिरी बताने जैसा ही है! ... केंद्र सरकार ने रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का दरवाजा पूरी तरह से खोल दिया है। देशभर में विरोध और बंद का खेल हुआ, लेकिन अंत में वही हुआ जो सरकार चाहती थी! सरकार ने इसे आर्थिक सुधार तेज करने का प्रयास बताया और तेज गति से निर्णय लेकर तमाम विरोधों के बावजुद रिटेल के क्षेत्र में एफडीआई को मंजूरी दे दी। रिटेल में विदेशी निवेश के पक्षधर इस फैसले को साल 1991 में आर्थिक उदारीकरण लागू होने के बाद से सबसे अहम् फ़ैसला बता रहे हैं! उनका मानना है कि इस फैसले से देश में कोई भी बड़ा निर्णय लेने की रुकी हुई प्रक्रिया फिर से आरंभ होगी। भारत के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा के हिसाब से भारत 475 अरब अमेरिकी डॉलरों के बराबर के रिटेल के क्षेत्र में विदेशी निवेश चहुँमुखी विकास लाएगा। किसानों को लाभ? कई विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में एक तिहाई फल, सब्जियां और खाने-पीने की चीज़ें हर साल नष्ट हो जाती हैं, क्यों कि उन्हें सुरक्षित ढंग भंडारों में नहीं रखा जा सकता! अगर 'वॉलमार्ट' और 'टेस्को' जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत आती हैं तो वो अगले तीन से पांच साल तक हर साल तीन से पांच अरब डॉलर तक भण्डारण क्षमता को विकसित करने और ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को मज़बूत करने में लगाएंगी। इस वजह से किसानों का माल कम सड़ेगा और और वो ज़्यादा बेच पाएगें। विदेशी व्यापारी किसानों का शोषण करने वाले दलालों से किसानों को मुक्ति दिलाएंगे और उनसे सीधे माल खरीदेंगे। इस प्रस्ताव का विरोध करने वालों का कहना है कि यह हसीन सपने कभी पूरे नहीं होंगे। इस फैसले के विरोधी कहते हैं कि रिटेल के क्षेत्र में काम करने वाली बड़ी-बड़ी भारतीय कंपनियों ने ऐसा कुछ नहीं किया! आम तौर पर बड़े-बड़े भारतीय रिटेलरों ने कोल्ड स्टोरेज में कोई खास निवेश नहीं किया और ज़्यादातर मौजूदा दलालों या थोक बाज़ार से खरीदते हैं। क्या उपभोक्ता का लाभ होगा ? इस पक्ष पर फैसले के समर्थकों का कहना है कि किसानों को ज़्यादा दाम देने के बावजूद बड़ी रिटेल कंपनियां उपभोक्ताओं को कम दामों में सामान बेच पाती हैं, क्योंकि वो दलालों को चलता कर देती हैं। वॉलमार्ट सालभर में अपनी १० हज़ार दुकानों के ज़रिये 450 अरब डॉलर का कारोबार करती है। वॉलमार्ट इन सभी दुकानों पर तुलनात्मक रूप से बेहद सस्ता सामान बेचती है। लेकिन, भारत में सर्वाधिक लाभ मध्य और उच्च मध्यवर्ग के उपभोक्ताओं को ही होगा। इस फैसले के विरोधियों का दावा है कि इसकी वजह से छोटे दुकानदार तबाह हो जायेगें। भारत में अभी रिटेल में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी महज़ 4.2 फीसदी है। उद्योग व्यापार के संगठन 'फिक्की' के महासचिव राजीव कुमार का मानना है कि अगर अगले बीस सालों में ये हिस्सेदारी चार गुना बढ़कर 17 फ़ीसदी भी हो जाती है, तब भी साल 2032 में 900 अरब डॉलर के बाज़ार में इसका हिस्सा केवल 150 अरब डॉलर का होगा। तार्किक रूप से विदेशी रिटेल कंपनियां आरंभ में केवल बड़े शहरों में अपनी दुकानें खोलेंगी, क्योंकि इन शहरों के उपभोक्ताओं के पास ज़्यादा पैसा है। अभी प्रस्तावित सरकारी नीति में बहुराष्ट्रीय कंपनियां केवल उन्ही शहरों में दुकान खोल सकेगीं, जहाँ की आबादी दस लाख से ज़्यादा है। रिटेल की राजनीति नवंबर 2011 में यह फ़ैसला इसलिए नहीं लागू हो सका था, क्योंकि सरकार के कई साथी और विपक्षी दल इसके पक्ष में नहीं थे। जब सरकार को लगा की मामला उलझ सकता है तो वो पीछे हट गई! राज्यों के निर्णय : समर्थन में * हरियाणा : मुख्यमंत्री भुपिंदरसिंह हुड्डा ने ख़ुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के निर्णय का फ़ैसला किया और कहा है कि इससे किसानों को उनके माल की बेहतर क़ीमत मिलेगी और ये उपभोगताओं को फ़ायदेमंद होगा। * दिल्ली : मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मंत्रीमंडल के फ़ैसले को बहुत बड़ा क़दम बताया और कहा कि इससे लोगों को बेहतर गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ मुहैया हो पाएंगे और नौकरियां पैदा होंगी। * राजस्थान : कांग्रेस शासित एक दूसरे प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत ने कहा कि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कृषि क्षेत्र को फ़ायदा पहुंचेगा। * महाराष्ट्र : मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान के मुताबिक़ इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी और माल की सप्लाई में पैदा होनेवाली बाधाएं ख़त्म होंगी। * असम : असम के मुख्यमंत्री के इस फ़ैसले से ख़ुश होने की बात कही गई है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्रियों द्वारा भी इस फैसले के समर्थन की बात कही गई है। फैसले का विरोध रिटेल क्षेत्र को खोले जाने के विरोध के चलते इसे लंबे समय से टाला जाता रहा है। जहां कांग्रेस शासित इन प्रदेशों ने मंत्रीमंडल के फ़ैसले का स्वागत किया है, वहीं दक्षिणी राज्य केरल ख़ुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के ख़िलाफ़ है। * गुजरात : मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वो नहीं जानते कि प्रधानमंत्री कर क्या रहे हैं! उनके मुताबिक़ छोटे दुकानदारों का धंधा इससे चौपट हो जाएगा। हालांकि, नरेंद्र मोदी पहले इस खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के पक्ष में बोलते रहे हैं। * उड़ीसा : मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसे मुल्क को पीछे ले जानेवाला और ग़लत सलाह पर लिया गया फ़ैसला बताया। * पश्चिम बंगाल : तृणमुल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर सरकार से समर्थन ही वापस ले लिया है और वे आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार है। * उत्तर प्रदेश : केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के राज्य के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में किए गए एक प्रेस कांफ्रेस में साफ़ किया है कि वो इस फ़ैसले को राज्य में लागू नहीं करेंगे। * बिहार : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इससे लाखों लोगों को कामकाज का नुक़सान होगा। * मध्य प्रदेश : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के अनुसार इस फ़ैसले से छोटे व्यापारियों और किराना दुकानदारों को नुक़सान उठाना होगा। अनिश्चित स्थिति * पंजाब : मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल ने भी कहा है कि वो इस पर बाद में निर्णय देंगे। प्रकाश सिंह बादल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हैं, जिसका मुख्य दल भारतीय जनता पार्टी इस फैसले का विरोध कर रहा है। * झारखंड : मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा है कि वो नागरिकों और स्थानीय व्यापारियों से सलाह मशविरा करने के बाद किसी नतीजे पर पहुंचेंगे। * कर्नाटक : उद्योग मंत्री मुरुगेश निरानी ने कहा है कि राज्य सरकार नीति का गहन अध्ययन करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचेगी। इस राज्य में बीजेपी की सरकार है। जोरदार तरीके से लाबिंग रिटेल के महारथी जैसे टेस्को व वॉलमार्ट ने भारत में प्रवेश पाने के लिए अपनी ओर से काफी मेहनत की है, ऐसा कहा जा सकता है। राजनीतिक पार्टियों से लेकर नीतियां बनाने वाली संस्थाओं के लिए कंपनी ने जबर्रदस्त लाबिंग की। इसी का परिणाम है कि सरकार ने इस क्षेत्र में एफडीआई की छूट दे दी। हमें यह समझना होगा कि इन रिटेल के दिग्गजों का भारत में आने का रास्ता यू हीं नहीं खुला, बल्कि अमेरिका के दबाव में खोला गया है! वॉलमार्ट कंपनी इस बात को स्वीकार करती है कि उसने भारत में इस एफडीआई के लिए लाबिंग की है। अमेरिका में लाबिंग करना कानून सम्मत है, पर भारत में अभी ऐसा कुछ नहीं है। अगर कोई अमेरिकी कंपनी विदेश में लाबिंग कर रही है, तब उसे अमेरिकन सीनेट को इस बारे में जानकारी देनी होती है। अमेरिका की कई कंपनियां भारत में विभिन्न आयोजनों व अन्य तरीकों से अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटी हैं। यह बात तय है कि रिटेल में एफडीआई के लिए भारत में जोरदार तरीके से लाबिंग हुई और सरकार ने इसी के कारण मंजूरी दी है। अब देश को यह जानकारी मांगने का हक है कि अमेरिकी कंपनियों ने किस तरह से लाबिंग की और इसका असर और फायदा किसे हुआ? इस लाबिंग का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से फायदा कौन से नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को हुआ? इनके नुकसान पर कई शोध रिटेल के महारथियों का किसी देश में जाना और वहां उसका असर, इस विषय पर अब तक कई शोध हो चुके हैं। लोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के केनेथ स्टोन ने अपने शोध में बताया था कि छोटे शहरों में अगर वॉलमार्ट स्टोर खुलते हैं तो उस शहर का रिटेल व्यापार दस वर्ष में आधा हो जाता है। एक अन्य शोध में यह तथ्य सामने आया कि जब भी वॉलमार्ट किसी शहर में अपना मेगा स्टोर आरंभ करता है, तो वहां के बड़े स्टोर्स की सेल्स ४० प्रतिशत, सुपरमार्केट की १७ प्रतिशत तथा ड्रग स्टोर का ६ प्रतिशत सेल्स कम हो जाता है। यह शोध टक स्कूल ऑफ बिजनेस डार्टमाउथ कॉलेज ने किया था। वही लोयलो यूनिवर्सिटी शिकागो ने भी शोध किया था! उसमें यह तथ्य सामने आया कि वॉलमार्ट की किसी शहर में अन्य रिटेल स्टोर्स से दूरी पर ही सबकुछ निर्भर करता है। वहीँ जून २००६ में प्रकाशित एक लेख के अनुसार वॉलमार्ट के कारण कुछ रिटेल बिजनेस बंद जरुर हुए हैं, पर छोटे बिजनेस के लिए नई उम्मीदे भी जगी हैं। वहीँ वॉलमार्ट और कंसल्टिंग फर्म ग्लोबल इनसाईट द्वारा किए गए शोध में यह तथ्य सामने आया कि जहां भी वॉलमार्ट स्टोर खुले, वहां के कार्यकारी परिवारों को प्रतिवर्ष ढाई हजार डॉलर की बचत होती है। इकोनामिक पॉलिसी इंस्टि्‌टयूट के अनुसार वर्ष २००१ से २००६ के बीच वॉलमार्ट के चीन से व्यापारिक संबंधों के कारण दो लाख अमेरिकियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। आज विश्व में वॉलमार्ट ८९७० जगहों पर हैं, वहीँ टेस्को के ५३८० स्टोर्स हैं। बढेंगे रोजगार या बेरोजगारी इस वक्त सबसे अहम सवाल है कि एफडीआई के आने के बाद नौकरियों के अवसर बढेंगे या फिर बेरोजगारी बढेगी? अर्थशास्त्री और मार्केट विशेषज्ञ डॉ अश्विनी महाजन का कहना है कि एफडीआई आने के बाद रिटेल भी आईटी सेक्टर की तरह बन जाएगा। विदेशी कंपनियों का कारोबार करने का तरीका ही अलग है, उन्हें कुशल पेशेवर चाहिए। जो कुशल नहीं हैं या ज्यादा पढे-लिखे नहीं हैं, उन्हें इन विदेशी रिटेल स्टोर्स में नौकरी नहीं मिलेगी। वे यहां पर उन्नत तकनीक लेकर आएंगे। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं की अमेरिका में रिटेल मार्केट का साइज ५२ लाख करोड़ रुपये का है, मगर वहां रिटेल सेक्टर में महज १५ लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है। इसके उलट भारत का रिटेल सेक्टर ५ लाख करोड़ रुपये का है, मगर यहां पर प्रत्यक्ष रोजगार ५ करोड़ हैं। अगर यहां भी रिटेल कारोबार की शक्ल अमेरिका की तरह हो जाए तो रोजगार कितना कम हो जाएगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कृषि सेक्टर को कितना फायदा? सरकार की चाहत कृषि सेक्टर के ग्रोथ रेट को ४ फीसदी पर पहुंचाने की है। सरकार का भी मानना है कि रिटेल सेक्टर में एफडीआई के आने से कृषि सेक्टर में पैसो की आवक बढ़ेगी, यह कहना सही नहीं होगा। क्योंकि, हमारे यहां नीति और नियम तो बनते हैं, मगर सही तरीके से लागू नहीं होते! बेशक एफडीआई के आने से कंपनियां कृषि उत्पाद सीधे किसानों से खरीदेंगी। कंपनियां परोक्ष रूप से कॉरपोरेट खेती भी शुरू कर सकती हैं। वे किसानों को पैसा देकर खेती करवा सकती हैं और कृषि उत्पाद खरीद सकती हैं। मगर इसकी क्या गारंटी है कि सब कुछ तय नीति-नियमों के आधार पर होगा या बिचौलिया इसका फायदा नहीं उठाएंगे? नियम कड़ाई से लागू करना होंगे रिटेल के क्षेत्र में ध्यान देनेवाली पहली बात यह है कि विदेशी कंपनियां शुरू में अपने बाजार की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अपना मुनाफा कम कर सकती हैं। इससे चीजों की कीमतें कम हो जाएंगी, मगर दूसरी कंपनियों के लिए उस कीमत पर कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा। ऐसा ही थाईलैंड में भी हुआ था। मल्टी-नेशनल कंपनियों ने शुरू में अपना मुनाफा ३ से ५ प्रतिशत रखा। इसकी वजह से घरेलू कंपनियों के लिए काम करना मुश्किल हो गया। सरकार को हस्तक्षेप कर कम से कम कीमत को लेकर एक नीति बनानी पड़ी। दूसरे, विदेशी कंपनियों के कारोबार पर नजर रखने के लिए उनकी समीक्षा करनी होगी। ब्रिटेन और अमेरिका में तिमाही में एक बार मल्टी-नेशनल कंपनियों के कारोबार, उनकी चीजों की दूसरे देशों में कीमतें, विस्तार योजना, रोजगार और दूसरे संबंधित पहलुओं पर एक्सपर्ट कमेटी एक रिपोर्ट तैयार करती है। इससे मल्टी-नेशनल कंपनियां बेकाबू नहीं हो पातीं और मार्केट भी काबू में रहता है। वॉलमार्ट अमेरिकी कंपनी है, मगर अमेरिका में कारोबार के अपने तय नियम हैं। वॉलमार्ट ने जब इन नियमों का उल्लंघन किया तो कैलिफॉर्निया और शिकागो की नगर पालिका ने वॉलमार्ट के स्टोर खोलने पर रोक लगा दी! वॉलमार्ट पर वस्तुओं के भाव बाजार से ज्यादा रखने और अपने कर्मचारियों से तय समय से ज्यादा काम कराने के आरोप लगे थे। क्या है ब्रांडेड रिटेल में एफडीआई आजकल किसी भी मॉल या रिटेल स्टोर में ज्यादातर विदेशी ब्रांड की चीजें एक साथ मिल जाती हैं। मगर किसी विदेशी ब्रांड की दुकानों में सिर्फ उसी ब्रांड की चीजें मिलती हैं। इसे 'सिंगल ब्रांडेड रिटेल' कहते हैं। अब यह स्थिति बदलेगी। विदेशी कंपनियां अपनी भारतीय सहयोगी कंपनियों के साथ मिलकर मॉल या रिटेल स्टोर खोल सकेंगी, जिसमें सभी ब्रांड की चीजें बेची जा सकेंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो अब विदेशी कंपनियां भारत में रिटेल स्टोर खोल सकेंगी और वे रिटेल स्टोर की मालिक होंगी।