Saturday, August 10, 2024

कहानी बदली, कलाकार बदले, फिल्म का नाम वही!

- हेमंत पाल 

     दर्शकों को फ़िल्में जिस भी तरीके से आकर्षित करती है, उसके पीछे कई कारण होते हैं। फिल्म का कथानक, कलाकार और डायरेक्टर के अलावा पहला आकर्षण होता है फिल्म का नाम! ये नाम ही दर्शकों को इस बात का संकेत देता है कि फिल्म का कथानक किस विषय पर केंद्रित है। इस बात पर भले विश्वास न किया जाए, पर फिल्मों के नाम का फिल्म इतिहास में अपना अलग ही महत्व है। इतना ज्यादा कि कई फ़िल्में एक ही नाम से तीन-चार बार नहीं आठ बार तक बनाई गई। इसलिए कि फिल्म के कथानक को ये टाइटल इतने ज्यादा सटीक लगे, कि उसी को दोहराया गया। आज के दौर में फिल्मकार अपनी फिल्मों के कुछ अलग और हटकर नाम रखने की कोशिश करते हैं, ताकि उनकी फिल्म सबसे अलग लगे। लेकिन, फिर भी कुछ टाइटल ऐसे हैं, जिनका लोभ हमेशा बना रहा। समय के साथ टाइटल में बदलाव का रिवाज भी देखने को मिलता है। कभी टाइटल बहुत लंबे तो कभी बहुत छोटे रखे जाते रहे। ये ट्रेंड पर निर्भर है कि उस दौर के दर्शक क्या पसंद करते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में 'सलीम लंगड़े पे मत रो' और 'अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है' जैसे लम्बे-लम्बे टाइटल रखे गए तो 'पा' जैसे नाम की फिल्म भी आई।     
       फिल्मकारों ने एक नाम से तीन या चार बार तो फिल्में बनाई। पर, एक नाम ऐसा है, जिस पर आठ बार फिल्म बनी है। न सिर्फ हिंदी में बल्कि बांग्ला, तमिल तेलुगु और उर्दू में भी 'देवदास' फिल्म बनाई गई। इस फिल्म की सबसे अनोखी विशेषता है, कि हर बार एक ही कहानी को दोहराया गया। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'देवदास' पर इतनी बार फ़िल्में बनी है कि उसका रिकॉर्ड शायद ही कभी टूटे। 1917 में लिखे गए इसी उपन्यास पर आठ बार फिल्म बनी। 1928 में पहली बार इस उपन्यास पर नरेश सी मित्रा ने मूक 'देवदास' बनाई थी। नरेश सी मित्रा खुद ने खुद भी एक्टिंग की थी। जबकि, 'देवदास' का किरदार फानी बर्मा ने निभाया था। 1935 में पीसी बरुआ ने बंगाली और हिंदी भाषाओं में 'देवदास' बनाई। ये पहली बोलती 'देवदास' कही जा सकती है। पीसी बरुआ ने बंगाली में बनी 'देवदास' में मुख्य किरदार निभाया था। जबकि, हिंदी में केएल सहगल 'देवदास' बने थे। फिल्म जबरदस्त हिट हुई थी, पर आज इस फिल्म का कोई प्रिंट उपलब्ध नहीं हैं। तीसरी बार 1953 में बनी 'देवदास' तेलुगू और तमिल में वेदान्तम राघावैया ने बनाई थी। इसमें 'देवदास' की भूमिका नागेश्वर राव की थी। दोनों फ़िल्में बेहद सफल रही थीं। 
     हिंदी में दिलीप कुमार वाली चौथी 'देवदास' 1955 में पीसी बरुआ ने ही बनाई। तब उनकी इस फिल्म के कैमरे का काम बिमल रॉय ने संभाला था। फिल्म के किरदार से उन्हें इतना लगाव हो गया था कि बाद में उन्होंने भी 'देवदास' बनाई। बिमल रॉय ने इस फिल्म में ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार को देवदास बनाया। वैजयंती माला चंद्रमुखी और सुचित्रा सेन ने पार्वती की भूमिका निभाई थी। पांचवी बार 'देवदास' 1965 में उर्दू में बनाई गई। इसका निर्देशन ख्वाजा सरफराज ने किया था। छठी बार 'देवदास' 1979 में बांग्ला में बनी जिसमें मुख्य भूमिका सौमित्र चटर्जी ने की थी। इसे दिलीप रॉय ने बनाया और उत्तम कुमार ने चुन्नी बाबू का रोल निभाया था। शक्ति सामंत ने 2002 में बंगाली में 'देवदास' को फिर बनाया। इसमें प्रसनजीत, तापस पॉल और इंद्राणी हलदर मुख्य भूमिका में थे। आठवीं बार इसे संजय लीला भंसाली ने 2002 में बड़े कैनवस पर शाहरुख़ खान को 'देवदास' बनाकर बनाया। इसमें माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय भी थी। ये हिंदी में बनी पहली रंगीन 'देवदास' है।  
      इसके बाद फेमस टाइटल आता है 'अंदाज' जिस पर चार बार फ़िल्म बनी और अपने समय काल के दर्शकों ने पसंद भी किया। इस टाइटल से पहली बार 1949 में फिल्म बनी, जो रिलीज होने के साथ ही छाई थी। इस रोमांटिक फिल्म का निर्देशन महबूब खान ने किया था और इसमें नरगिस, दिलीप कुमार और राज कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे। इसके बाद 'अंदाज' 1971 में बनाई गई। यह भी रोमांटिक फिल्म थी, जिसका डायरेक्शन रमेश सिप्पी ने किया। इसे चार लेखकों सलीम-जावेद, गुलजार और सचिन भौमिक ने लिखा था। 1994 में डेविड धवन की इसी नाम से बनी फिल्म में एक्शन कॉमेडी थी। इसमें अनिल कपूर, जूही चावला, करिश्मा कपूर और कादर खान थे। आखिरी बार 'अंदाज' 2003 में बना, जिसे राज कंवर ने निर्देशित और सुनील दर्शन ने बनाया था। इसमें अक्षय कुमार, लारा दत्ता और प्रियंका चोपड़ा थे। एक और फिल्म है, जो चार बार एक ही टाइटल से बनी। ये है 'किस्मत' जिसका पहली बार 1943 में ज्ञान मुखर्जी ने उपयोग किया। इसमें अशोक कुमार और मुमताज शांति ने काम किया था। ये फिल्म बार-बार बनी लेकिन, पहली बार को छोड़कर तीनों बार इसे दर्शकों ने नकार दिया। 
      पहली बार की सफलता के बाद 1968 में फिर 'किस्मत' नाम फिल्म बनाई गई। इसे मनमोहन देसाई ने निर्देशित किया था। ये रोमांटिक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म थी जिसमें विश्वजीत चटर्जी, बबीता कपूर, हेलेन और कमल मेहरा ने अदाकारी की थी। 1995 में फिर 'किस्मत' नाम से फिल्म बनी जिसका निर्देशन हरमेश मल्होत्रा ने किया। चौथी बार 2004 में इसी टाइटल का उपयोग करके गुड्डू धनोआ ने 'किस्मत' बनाई। ये एक्शन फिल्म थी, जिसमें बॉबी देओल और प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थे।  
    'आंखे' भी ऐसा ही टाइटल है जिस पर तीन बार फ़िल्म बनी और हर बार हिट रही। पहली बार 1968 में बनी 'आंखे' का निर्माण और निर्देशन रामानंद सागर ने किया था। यह जासूसी थ्रिलर फिल्म थी। इसमें धर्मेंद्र, माला सिन्हा, महमूद अहम रोल में थें। इसे कई देशों में शूट किया गया था और बेरूत में शूट की गई पहली हिंदी फिल्म थी। दूसरी बार 'आंखें' 1993 में बनी जो गोविंदा की सुपरहिट फिल्मों में एक गिनी जाती है। यह एक्शन-कॉमेडी फिल्म थी, जिसे डेविड धवन ने बनाया। इसमें गोविंदा के साथ चंकी पांडे भी लीड रोल में थे और दोनों ही डबल रोल में नजर आए। बाद में इसे तेलुगु में 'पोकिरी राजा (1995)' के नाम से बनाया गया। तीसरी बार 'आंखें' 2002 में बनाई गई जिसमें अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार और अर्जुन रामपाल ने अभिनय किया। इस फिल्म को उसकी अनोखी कहानी की वजह से दर्शकों ने पसंद किया। 
      'जेलर' भी एक ऐसा टाइटल है जो तीन बार उपयोग किया गया। सबसे पहले 1938 में 'जेलर' फिल्म बनी। इसे सोहराब मोदी ने बनाया था। फिल्म में सोहराब मोदी, लीला चिटनिस, सादिक अली मुख्य भूमिकाओं में थे। इसी टाइटल से 1958 में फिर फिल्म बनाई गई। यह 1938 में आई पहली 'जेलर' की रीमेक थी। इसे फिर सोहराब मोदी ने ही निर्देशित किया था। इसकी कहानी और संवाद भी कमाल अमरोही ने ही लिखे थे। सोहराब मोदी ने एक बार फिर खुद को जेलर की मुख्य भूमिका में ढाला था। फिल्म में कामिनी कौशल, गीता बाली, अभि भट्टाचार्य थे। 1938 और 1958 के बाद 2023 में इसी नाम से रजनीकांत की 'जेलर' बनी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास बना डाला। इसमें रजनीकांत के साथ विनायकन, राम्या कृष्णन और वसंत रवि हैं। 
   एक ही टाइटल 'जिद्दी' से भी तीन बार फिल्म बनी। पहली बार 1948 में शाहिद लतीफ ने निर्देशन में बनी, जिसमें देव आनंद मुख्य भूमिका में थे। 1964 में प्रमोद चक्रवर्ती ने 'जिद्दी' बनाई जिसमें जॉय मुखर्जी, आशा पारेख और महमूद ने भूमिकाएं निभाई थी। तीसरी बार 'जिद्दी' 1997 में बनी, जिसमें सनी देओल मुख्य भूमिका में और रवीना टंडन फिल्म की अभिनेत्री थी।
      2008 में आई फिल्म 'रेस' नाम से भी तीन फिल्में आ चुकी हैं। लेकिन, पहली फिल्म जैसी बाद की दोनों फ़िल्में नहीं चली। तीसरी में तो सलमान खान नजर आए थे। 'शानदार' भी एक ऐसा ही नाम है जिस पर अब तक तीन बार फिल्म बन चुकी। पहली बार फिल्म कब बनी इसका उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन, दूसरी बार 1990 में जो 'शानदार' रिलीज हुई उसमें मिथुन चक्रवर्ती, मीनाक्षी शेषाद्रि और जूही चावला थे। 2015 में विकास बहन ने एक बार 'शानदार' टाइटल का उपयोग करके शाहिद कपूर और आलिया भट्ट को लेकर फिल्म बनाई जो बुरी तरह फ्लॉप रही।    
    एक टाइटल से दो बार बनने वाली कई फ़िल्में हैं। फिल्म 'लहू के दो रंग' भी टाइटल से दो बार बनी। 1979 में आई फिल्म के निर्देशन की कमान महेश भट्ट ने संभाली थी। इसमें विनोद खन्ना, शबाना आज़मी और डैनी नजर आए थे। इसमें विनोद खन्ना ने दोहरी भूमिका थी। इसके बाद साल 1997 में अक्षय कुमार और करिश्मा कपूर  को लेकर भी 'लहू के दो रंग' बनी। पर, ये खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। 2009 में आई दीपिका पादुकोण और सैफ अली खान की फिल्म 'लव आजकल' को दर्शकों ने पसंद किया था। दूसरी बार बनी 'लव आजकल' में सारा और कार्तिक आर्यन नजर आए थे, जिसे खास सफलता नहीं मिली।
    'कुली नंबर वन' में गोविंदा और करिश्मा कपूर की हिट जोड़ी ने धमाल मचा दिया था। इसी नाम से आई वरुण धवन और सारा अली खान की फिल्म कमाल नहीं दिखा पाई। सलमान खान की 'जुड़वां' ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी। जबकि वरुण धवन और जैकलीन फर्नांडिस, तापसी पन्नू की 'जुड़वां-2' नापसंद कर दी गई। 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' सिद्धार्थ मल्होत्रा, आलिया भट्ट और वरुण धवन की डेब्यू फिल्म थी। इसके दूसरी पार्ट में टाइगर श्रॉफ, अनन्या पांडे और तारा सुतारिया नजर आए। यंग यूथ पर बेस्ड ये लव स्टोरी पहली फिल्म के मुकाबले एवरेज साबित हुई। अभी ये सिलसिला रुका नहीं है। आगे भी एक ही टाइटल पर बार-बार आगे भी फ़िल्में बनती रहेंगी।
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यादों में बसे 'दूरदर्शन' के वे सीरियल

- हेमंत पाल

   मय के साथ बहुत कुछ बदला और उसके साथ मनोरंजन के तरीके भी बदले। फिल्मों का लम्बा दौर चला, कई बार उसमें भी बदलाव आया। यह दौर आज भी चल रहा है। फर्क इतना आया कि पीढ़ियों बदलने के साथ दर्शकों की पसंद बदलती गई। 80 के दशक में फिल्मों के साथ मनोरंजन का नया माध्यम टेलीविजन भी इसमें जुड़ गया। इससे दर्शकों को घर में बैठकर मन बहलाने का विकल्प मिल गया। सबसे पहले आया 'दूरदर्शन' जिसने दर्शकों का बरसों तक मनोरंजन किया। आज भले ही 'दूरदर्शन' मनोरंजन की दौर में पिछड़ गया हो, पर उस पीढ़ी के दर्शकों की यादों में आज भी दूरदर्शन के सीरियल चस्पा है। शुरू में दूरदर्शन के प्रसारण का समय भी सीमित था। पर, जब भी कोई कार्यक्रम शुरू होता, पूरा परिवार टीवी के सामने बैठ जाता था। जिन घरों में टीवी नहीं था, वे भी पड़ौसी या परिचितों के यहां बिन बुलाए पहुंच जाते थे। ये दर्शक सिर्फ मनोरंजन के कार्यक्रम देखने के लिए ही नहीं जुटते थे, बल्कि वे कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रमों को देखने का भी मौका नहीं छोड़ते!         
      भारतीय टेलीविजन इतिहास में 'हम लोग' पहला सीरियल था, जो 7 जुलाई 1984 को दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। दर्शकों को यह शो इतना पसंद आया था कि इसके चरित्र विख्यात हो गए! इस सीरियल की कहानी लोगों की रोजमर्रा की बातचीत का हिस्सा बन गई थी। इस सीरियल ने देश के मध्यम वर्ग की ज़िंदगी को बहुत नजदीक से दर्शाया था। इसकी लोकप्रियता का पैमाना कुछ वैसा ही था, जैसा बाद में 'रामायण' और 'महाभारत' का रहा! 'रामायण' को भारतीय टेलीविजन के सबसे सफल सीरियलों में से एक माना जाता है। रामानंद सागर के इस सीरियल का असर ऐसा था, जिससे दर्शकों की धार्मिक भावनाएं उभरकर सामने आईं! जबकि, निर्माता रामानंद सागर पर इसका इतना असर हुआ कि उन्होंने इसके बाद फ़िल्में बनाना ही छोड़ दी। दूरदर्शन पर ये सीरियल जब पहली बार प्रसारित किया, तो गाँव व शहरों में कर्फ्यू जैसा माहौल हो गया था। आज की पीढ़ी को ये बात अचरज लग सकती है, पर सच यही था। सीरियल के समय सड़कें खाली हो जाती थी। जो जहां वहीं किसी तरह 'रामायण' देखने लगता।   
'रामायण' के बाद 'महाभारत' ने दर्शकों को लुभाया  
    इसके बाद में बीआर चोपड़ा ने भी 'महाभारत' बनाकर छोटे परदे पर कुछ ऐसा ही जादू किया था। ये सीरियल 2 अक्टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुआ। इस सीरियल की शुरुआत सबसे खास हिस्सा होता तब होता था, जब हरीश भिमानी की आवाज गूंजती थी 'मैं समय हूं!' ब्रिटेन में इस धारावाहिक का प्रसारण बीबीसी ने किया, तब इसकी दर्शक संख्या 50 लाख पार कर गई थी। 'दूरदर्शन' के सफल सीरियलों में 'चंद्रकांता' भी रहा, जिसका प्रसारण 4 मार्च 1994 को शुरू हुआ था। देवकीनंदन खत्री के फंतासी उपन्यास पर बने इस सीरियल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया।
    दूरदर्शन पर 1994 में प्रसारित हुए 'अलीफ लैला' के दो सीजन में 260 एपिसोड प्रसारित हुए! जादू, जिन्न, बोलते पत्थर, एक मिनट में गायब हो जाना, राजा व राजकुमारी की कहानी को मिलाकर बने इस सीरियल को लोग आज भी याद करते हैं। '1001 नाइट्स' पर आधारित इस धारावाहिक में मिस्र, यूनान, फ़ारस, ईरान और अरब देशों की बहुत सी रोमांचक कहानियां थीं जिनके हीरो सिंधबाद, अलीबाबा और चालीस चोर, अलादीन हुआ करते थे। रामानंद सागर ने 'रामायण' से पहले 'विक्रम और बेताल' बनाया था। इस धारावाहिक के सिर्फ 26 एपिसोड ही प्रसारित हुए थे। ये 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। ये महाकवि सोमदेव की लिखी 'बेताल पच्चीसी' पर आधारित था।
    'जंगल, जंगल बात चली है पता चला है ऐसे ...' ये वो लाइन है, जिन्हें गुलजार ने 'जंगल बुक' सीरियल के लिए लिखा था। ये लाइनें और ये सीरियल आज भी उस दौर के दर्शकों के दिलों में बसा है! बच्चों से लेकर बड़ों तक को बेसब्री से इंतज़ार रहता था। दूरदर्शन पर ये जापानी एनिमेटेड इंग्लिश सीरीज़ आती थी जिसे हिंदी में रूपांतरित किया था। कई गांव में तब बिजली नहीं होती थी, तो लोग बैटरी से टीवी को जोड़कर ये शो देखते थे। यही क्यों 80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित ऐसे कई सीरियल है, जो बहुत ज्यादा पसंद किए गए। 'हम लोग' और 'बुनियाद' तो लोकप्रियता में मील का पत्थर थे। इसके अलावा भी ऐसे कई सीरियल हैं, जो निर्माण के मामले में भले ही आज से हल्के दिखाई देते हों, पर अपने कथानक के कारण दर्शकों की पहली पसंद थे। आरके नारायण की कहानियों पर आधारित 'मालगुडी डेज़' भी बच्चों का पसंदीदा सीरियल था, जिसका प्रसारण 1987 में हुआ था। इसमें स्वामी एंड फ्रेंड्स तथा वेंडर ऑफ स्वीट्स जैसी लघु कथाएं व उपन्यास शामिल थे। इसे हिन्दी और अंग्रेजी में बनाया गया था। इसके 39 एपिसोड प्रसारित हुए, फिर इसे 'मालगुडी डेज़ रिटर्न' नाम से पुनर्प्रसारित भी किया गया। हमारे देश के बच्चों को अपना पहला सुपर हीरो 'शक्तिमान' 27 सितम्बर 1997 को मिला था। इसका अपना अलग ही क्रेज़ था। 400 एपिसोड वाला यह शो करीब 10 साल तक चला!
     'भारत एक खोज' भी दूरदर्शन का 53 एपिसोड तक चला एक कालजयी कार्यक्रम था। यह 1988 से 1989 के बीच हर रविवार प्रसारित होता रहा। जवाहरलाल नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ (भारत की खोज) पर आधारित यह टीवी सीरीज़ शायद टेलीविज़न के इतिहास में अब तक का सबसे बेहतरीन रूपांतरण है। इसके निर्माता और निर्देशक हिन्दी फिल्मों के मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल थे। अंकुर, निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फिल्मों के लिए चर्चित बेनेगल समानांतर सिनेमा के बड़े निर्देशकों में हैं। बेनेगल ने जो सीरियल बनाया, वह न सिर्फ दूरदर्शन बल्कि देश के टीवी सीरियलों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। 80 के दशक में जब 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे सीरियलों ने हर घर में अपनी जगह बनाई थी। उस समय सरकार को लगा कि भारत के इतिहास पर भी एक टीवी सीरियल बनाया जाना चाहिए। बेनेगल ने देश के दर्शकों तक भारत की ऐसी अनसुनी कहानी को पहुंचाने का मुश्किल काम किया। वास्तव में श्याम बेनेगल की दिलचस्पी 'महाभारत' बनाने में ज्यादा थी। लेकिन, वह पहले ही बीआर चोपड़ा को दिया जा चुका था। जब उनके पास भारतीय इतिहास पर 'भारत एक खोज' बनाने का ऑफर आया तो वे मना नहीं कर सके।
      दूरदर्शन पर धार्मिक सीरियलों में रामायण, महाभारत, जय हनुमान, श्री कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, जय गंगा मैया। ऐतिहासिक सीरियलों में टीपू सुल्तान, अकबर द ग्रेट, द ग्रेट मराठा, भारत एक खोज, चाणक्य। पारिवारिक सीरियलों में स्वाभिमान, अंजुमन, संसार, बुनियाद, हम लोग, कशिश, फ़र्ज़, वक़्त की रफ़्तार, अपराजिता, इतिहास, शांति, औरत, फरमान, इंतज़ार और सही, हम पंछी एक डाल जैसे कालजयी सीरियल भला कौन भूला होगा। कॉमेडी और मनोरंजन वाले सीरियल ये जो है जिंदगी, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, विक्रम और बेताल, सुराग, मालगुडी डेज, तेनालीराम, व्योमकेश बक्शी, कैप्टेन व्योम, चंद्रकांता, शक्तिमान, आप-बीती, फ्लॉप शो, अलिफ़ लैला, आँखें, देख भाई देख, एक से बढ़कर एक, ट्रक धिना धिन, तहकीकात जैसे कई नाम है।
    उस समय एनिमेशन इंडस्ट्री ज्यादा विकसित नहीं थी, इसलिए विदेशी सीरियलों को डब करके परोसे गए। डिज्नी के मोगली जंगल बुक, टेलस्पिन, डक टेल्स, अलादीन, ऐलिस इन वंडरलैंड, गायब आया जैसे सीरियल बहुत देखे गए। 'सुरभि' भी दूरदर्शन का सबसे लंबे समय तक चलने वाली सीरीज थी, जिसका नाम 'लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में भी दर्ज था। शो देखने वाले हर हफ्ते 10 लाख चिट्ठियां भेजते थे। इस सीरीज को रेणुका शहाणे और सिद्धार्थ काक होस्ट करते थे। 'सुरभि' 1990 से 2001 तक चला था। 1991 में इसे प्रसारित नहीं किया गया। 
      करीब 10 साल तक चले इस शो के 415 एपिसोड प्रसारित हुए। 'सुरभि' दूरदर्शन का पहला ऐसा कार्यक्रम था, जिसमें नियमित इनामी प्रतियोगिता होती थी। भारत की संस्कृति और सामान्य ज्ञान से संबंधित सवाल पूछे जाते थे। इनाम में भारत के विभिन्न राज्यों के टूर-पैकेज दिए जाते थे। एक एपिसोड में मचान बांधकर लगाए गए पौधे दिखाए गए थे। उन मचानो से बेलें लटक रही थी। पूछा गया था कि ये किस चीज़ की खेती है। इसके जवाब में उस एपिसोड में लाखों पोस्टकार्ड मिले, जो रिकॉर्ड था। इसी से अंदाजा लगाया गया कि 'सुरभि' कितना लोकप्रिय सीरियल था। लेकिन, अब दूरदर्शन उस पीढ़ी की यादों में दर्ज होकर रह गया।  
   'कृषि दर्शन' दूरदर्शन का क्लासिक शो रहा है। इसमें खेती-बाड़ी और किसानी से संबंधित जानकारी दी जाती थी। इसका 26 जनवरी 1967 को प्रीमियर किया था। 'कृषि दर्शन' के 16,780 एपिसोड प्रसारित हुए। इसके 62 सीजन आए थे। इसी तरह चित्रहार' में बॉलीवुड के नए और पुराने सुपरहिट गानों को दिखाया जाता। 80 और 90 के दशक में इस शो का भी खूब क्रेज रहा था। यह भी दूरदर्शन के सबसे लंबे समय तक चलने वाले शो में शामिल रहा। इसने 12,000 एपिसोड पूरे किए थे। इसी तरह रंगोली' जैसा फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम और 'फूल खिले हैं गुलशन गुलशन' टॉक शो भी उस दौर के दर्शकों को याद होगा। इसमें फिल्म और टीवी हस्तियां अपनी जिंदगी के बारे में खुलकर बात करती थी। इसे एक्ट्रेस तबस्सुम होस्ट किया करती थीं। 'फूल खिले हैं गुलशन गुलशन' साल 1972 से 1993 तक प्रसारित हुआ। यह भी दूरदर्शन के लंबे समय तक चलने वाले शो में से एक रहा। लेकिन, अब ये टीवी शो पिछली पीढ़ी की यादों में ही दर्ज होकर रह गए।  
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Saturday, August 3, 2024

सब कुछ बदल गया, रेखा नहीं बदली

- हेमंत पाल 

     पचास साल का अरसा कम नहीं होता। न जीवन में और अभिनय की दुनिया में! इस समय काल में तीन पीढ़ियां जन्म लेकर जवान हो जाती है। यदि फिल्मों की बात की जाए तो इस अरसे में कई हीरो और हीरोइन आकर, पहचान बनाकर गुम हो जाते हैं। याद किया जाए, तो बीते पचास साल में कलाकारों की एक लंबी कतार आगे निकल गई। लेकिन, कोई अपनी जगह खड़ा है, तो वो है अभिनेत्री रेखा, जिसने उम्र को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया। वे अब फिल्मों में काम नहीं करती, पर उनकी लोकप्रियता बरक़रार है। आज भी उतनी ही खूबसूरत दिखती हैं, जितनी 30 साल पहले लगती थी। जबकि, फ़िलहाल वे 69 साल की हैं। उम्र का ये वो पड़ाव है जिसमें व्यक्ति खुद स्वीकार लेता है कि वो बूढ़ा हो गया, पर रेखा नहीं हुई! आज भी जब टीवी पर किसी फंक्शन में दिखाई देती हैं, तो सारे कैमरे उनकी तरफ मुड़ जाते। भारी कांजीवरम साड़ी, हाई हील, चेहरे पर भरपूर मेकअप, मांग में सिंदूर और चेहरे पर वही मुस्कराहट। सब कुछ वैसा ही जो किसी हीरोइन में दर्शक देखना चाहते हैं। लेकिन, बढ़ती उम्र को थामना आसान नहीं हैं। फिर भी रेखा ने यह सब किया। 
        निःसंदेह रेखा बेहद खूबसूरत है। वे फिल्म इंडस्ट्री की उन हीरोइनों से भी कहीं ज्यादा सुंदर हैं, जिन्हें दुनिया विश्व सुंदरी और ब्रह्मांड सुंदरी के ख़िताब से नवाज चुकी है। उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में ढेरों उतार-चढ़ाव आए, लेकिन इसका असर उनकी खूबसूरती पर नहीं पड़ा। किंतु, जिन्होंने रेखा को 1970 में आई उनकी पहली फिल्म 'सावन भादों' में देखा था, वे तब और बाद की रेखा में फर्क समझते हैं। सांवली और बेडौल सी उस रेखा में बाद में बहुत फर्क आता गया। खासकर अमिताभ के साथ आई फिल्मों ने उन्हें लोकप्रियता भी दिलाई और शिखर पर पहुंचाया। अमिताभ के साथ उनकी पहली फिल्म 1976 में आई 'दो अनजाने; थी। इसमें रेखा की अदाकारी से ज्यादा अमिताभ के साथ उनकी केमिस्ट्री को पसंद किया गया था। तभी से रेखा और अमिताभ का नाम जोड़कर देखा जाने लगा। दोनों ने कई हिट फ़िल्में साथ की। इनमें मुकद्दर का सिकंदर, खून पसीना, मिस्टर नटवरलाल, गंगा की सौगंध, राम बलराम और सुहाग आई। दोनों की फिल्मों का यह दौर 'सिलसिला' तक चला। अपने 50 साल के करियर में रेखा ने 180 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। आज भी उनकी पुरानी फिल्मों को पसंद करने वालों की कमी नहीं है। 
    रेखा ने अपनी जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे। बचपन में पिता का प्यार नसीब नहीं हुआ। रेखा के पिता जेमिनी गणेशन साउथ सिनेमा के सुपरस्टार थे, जिनका अभिनेत्री पुष्पवल्ली से अफेयर था। पुष्पावल्ली ने बिना शादी किए रेखा को जन्म दिया, इस वजह उन्हें बचपन में पिता के प्यार से वंचित रहना पड़ा। वे एक बिन ब्याही मां की संतान थीं। उन्होंने बहुत कम उम्र में तमिल और कन्नड़ फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया था। इसके बाद वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आ गई। रेखा का एक्टिंग करियर तो बहुत अच्छा रहा, पर निजी जिंदगी उतनी ही अस्त-व्यस्त रही। यहां तक कि उम्र के इस दौर में भी रेखा की प्रेम कहानियों के किस्से फिल्म इंडस्ट्री में चर्चित हैं। जीवन में कई रोमांस में उनका नाम जुड़ा, 3 शादियां की, फिर भी वे आज अकेली है। यदि उनके साथ कुछ है, तो अनसुलझे किस्से और कहानियां। इसके अलावा अमिताभ बच्चन से उनके रिश्ते के गॉसिप। ऐसे कई किस्से उनके आसपास हैं, जिनके जवाब कभी बाहर नहीं आए। उनकी दुनिया में सिर्फ उनकी दोस्त, सेक्रेटरी और उनकी राजदां सिर्फ फरजाना ही है। आज भी लोग रेखा का नाम अमिताभ से जोड़कर देखते हैं, पर इसकी सच्चाई कोई नहीं जानता। यदि कोई जानता है तो सिर्फ फरजाना। 
     यह अभिनेत्री अपनी फिल्मों से ज्यादा अपनी प्रेम कहानियों की वजह से चर्चा में रही। अमिताभ उनकी जिंदगी में आने वाले पहले शख्स नहीं रहे, पर आखिरी जरूर। सबसे पहले रेखा का नाम जितेंद्र से जुड़ा था। लेकिन, जितेंद्र शादीशुदा थे, तो यह रिश्ता ज्यादा नहीं चला, पर चर्चा में जरूर आया। फिर चरित्र अभिनेता जीवन का एक्टर बेटा किरण कुमार और रेखा का रोमांस भी कुछ समय तक चला। इसके बाद रेखा की जिंदगी में आए उनके साथी कलाकार विनोद मेहरा। कहा तो यहां तक जाता है कि विनोद मेहरा और रेखा ने शादी कर ली थी। लेकिन, विनोद मेहरा की मां ने रेखा को स्वीकार नहीं किया। उनका नाम संजय दत्त के साथ भी लिया गया। दोनों जब फिल्म 'जमीन आसमान' में साथ काम कर रहे थे, तब उनके नाम जुड़े, पर संजय दत्त ने ऐसी बातों का खंडन किया था। अक्षय कुमार के साथ भी इस सदाबहार अभिनेत्री का नाम जुड़ा। लेकिन, अमिताभ बच्चन के साथ जब रेखा का नाम जुड़ा तो फिर वो कभी अलग नहीं हो सका। कहा जाता है, कि रेखा आज भी अपनी मांग में जो सिंदूर लगाती है, वो अमिताभ के नाम का ही है। फिल्म इंडस्ट्री ने रेखा को पहली बार सिंदूर लगाए हुए ऋषि कपूर और नीतू सिंह की शादी के रिसेप्शन में देखा था। लेकिन, 40 साल बाद भी अभी रेखा ने यह राज नहीं खोला कि उनकी मांग में लगे सिंदूर का कारण क्या है!
      रेखा की जिंदगी में एक पड़ाव मुकेश अग्रवाल के नाम का भी आया। पर, हवा झोंके की तरह आया और चला गया। दिल्ली के इस कारोबारी से रेखा ने 1990 में बकायदा शादी की, पर ये साथ साल भर भी नहीं रहा। संदिग्ध स्थितियों में मुकेश अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली। इस तरह इस रिश्ते का दर्दनाक अंत हुआ। आज भी यह राज ही है कि मुकेश अग्रवाल को किस वजह से जीवन से विरक्ति हुई! कहा जाता है कि रेखा को शादी के बाद पता चला था कि मुकेश को मानसिक बीमारी हैं। इसके बाद रेखा ने मुकेश से दूरी बना ली। एक दिन ऐसा भी आया, जब मुकेश अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली। मुकेश के परिवार ने इसका दोषी रेखा को ही माना। फिल्म इंडस्ट्री में भी उन्हें 'वैम्प' मान लिया गया। यहां तक कहा गया कि रिश्तों को लेकर उनकी मनहूसियत मौत तक ले जाती है। पहले विनोद मेहरा और उसके बाद मुकेश अग्रवाल। लेकिन, रेखा ने सारे लांछनों को ख़ामोशी से झेल लिया। 

खूबसूरती बनाए रखने के सीक्रेट
    फ़िल्मी दर्शक रेखा की जिस टाइमलेस ब्यूटी के दीवाने हैं, उसे बनाए रखने के लिए वे बहुत जतन करती हैं। अच्छी अभिनेत्री होने के साथ रेखा का बेबाक अंदाज और ग्लैमर ने उन्हें सुंदरता का प्रतीक बना दिया। 69 की उम्र में भी रेखा अपनी खूबसूरती और अदाओं से लोगों के दिलों पर राज करती हैं। लेकिन, यह सब आसान नहीं है।    
- प्राचीन आयुर्वेदिक औषधियों और अरोमा थेरेपी पर रेखा को ज्यादा भरोसा है। वे अपने स्पा सेशन के दौरान इसी तरह के स्पा लेती है।
- जीवन की ढेरों पेचीदगियों के बावजूद रेखा अनुशासित जीवन जीती है। हमेशा खुश रहने की कोशिश करती हैं और तनाव-मुक्त रहती हैं। 
- रेखा की खूबसूरती और ग्लैमरस त्वचा का एक बड़ा राज है पानी का सेवन। वे दिन भर में 10 से 12 गिलास पानी पीती हैं। 
- एक सीक्रेट यह भी है कि वे हर काम सही समय पर करती हैं और अच्छी नींद लेती हैं। यह उन्हें पूरा दिन फिट, स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखता है।  
- सुंदर और स्वस्थ रहने के लिए पोषण आहार लेना जरूरी है। वे जंक, फ्राइड और ओवरकुक्ड फ़ूड खाने से परहेज करती है। 
- इस उम्र में जब सबके बाल सफ़ेद और कमजोर हो जाते हैं, रेखा अपने बालों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने के लिए सप्ताह में एक बार शहद, दही और अंडे का सफेद पैक का इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा आंवले, शिकाकाई, मेथी के बीज और नारियल के तेल में विश्वास करती है। 
- रेखा शाम साढ़े 7 से पहले ही डिनर कर लेती हैं। उनका मानना है कि केवल खाना ही खाना महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि क्या और कब खाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उनका खाना स्वस्थ, संतुलित, स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। 
- रेखा अपने चेहरे की नियमित सफाई, टोनिंग और मॉइस्चराइजिंग करती हैं। रात में अपनी त्वचा से सभी मेकअप को हटा देती हैं और उसे अच्छे से साफ कर मॉइस्चराइज करती हैं। 
- रेखा कई सालों से योग और ध्यान करती रही हैं। वे मानती हैं कि योग और ध्यान मुख्य रूप से उनकी सुंदरता, बेदाग त्वचा और करिश्माई व्यक्तित्व के लिए जरूरी है।

रेखा और फरजाना में कैसा रिश्ता 
    रेखा और उनकी सेक्रेटरी फरज़ाना के संबंधों को हमेशा संदेह की नजर से देखा जाता रहा है।  इसलिए कि 40 साल से ज्यादा समय से फरजाना जितनी रेखा से जुड़ी है, उतना कोई नहीं जुड़ा। वे हेयर ड्रेसर के रूप में रेखा के करीब आई थी, पर आज उनका साया हैं। इन दोनों के रिश्ते पर उंगलियां उठी, पर जवाब किसी के पास नहीं है। रेखा पर 2016 में सामने आई यासिर उस्मान की किताब में भी दावा किया था कि फरजाना को ही रेखा के बेडरूम तक जाने की इजाजत है। इसमें उनकी निजी जिंदगी, रोमांस और शादी को लेकर कई अनसुनी बातें लिखी गई थी। वक़्त के साथ दोनों का रिश्ता गहराता गया। रेखा ने उन्हें 1986 में हेयर ड्रेसर से सेक्रेटरी बना लिया। आज भी अगर किसी को रेखा से मिलना है, तो उसे पहले फरजाना से मिलना पड़ता है।
     यासिर उस्मान की लिखी रेखा की बायोग्राफी में तो यह भी दर्ज है कि वे अपनी सेक्रेटरी के साथ लिव-इन में रहती हैं। दोनों के रिश्ते पर कई बार सवाल उठ चुके हैं। मुकेश अग्रवाल की भाभी ने तो दोनों के रिश्ते को लेकर यह कह दिया था कि इनका रिश्ता पति पत्नी जैसा है। कहा जाता है कि मुकेश अग्रवाल यदि फरजाना के बारे में रेखा से कुछ कहते थे, तो रेखा नाराज हो जाती थी। यह रिश्ता आज भी सवालों के घेरे में है। रेखा नजदीक से जानने वालों का तो यह भी कहना है कि फरज़ाना का पहनावा कुछ ख़ास तरह है, अमिताभ की तरह का है। क्या इसलिए कि रेखा को हमेशा अमिताभ के अपने आसपास होने का भ्रम बना रहे!
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