Sunday, July 3, 2022

फिल्मों में हर जगह गिनती का बोलबाला!

- हेमंत पाल

    यदि किसी से पूछा जाए कि फिल्मों में सबसे ज्यादा टाइटल किस चीज पर आधारित हैं, तो ज्यादातर लोग दिल, प्यार या मोहब्बत जैसे नाम लेंगे। लेकिन, कम ही लोग जानते हैं कि अब तक हिन्दी फिल्मों के शीर्षक संख्याओं पर ही दिए गए हैं। बात केवल शीर्षक ही नहीं हिन्दी फिल्मों के गानों और फिल्मी शब्दावलियों में भी संख्या का सबसे ज्यादा महत्व है। देखा जाए तो फिल्मों में संख्या का उपयोग फिल्म निर्माण के साथ ही शुरू हो जाता है। फिल्म का जो क्लैप दिया जाता है उसमें भी शॉट नम्बर का उल्लेख होता है। किसी भी दृश्य को फिल्माने से पहले क्लैप बॉय एक पट्टी पर फिल्म का नाम और शॉट का नम्बर लिखकर बोलते हुए क्लैप देता है। फिल्म पूरी होने के बाद सेंसर बोर्ड को भेजी जाती है, तो पास होने के बाद जो सेंसर सर्टिफिकेट होता है उसमें पहले यह दर्शाया जाता था। इसमें फिल्म की लम्बाई फीट के साथ साथ रीलों की संख्या में जैसे कि 14 रील या 24 रील दर्शायी जाती थी। आजकल इसे समय अवधि के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, वह भी संख्या ही है। फिल्म के प्रदर्शन के साथ भी संख्या का मेल होता है जैसे 4 शो और शो का समय। फिल्म के प्रदर्शन के बाद भी संख्याएं उसका पीछा नहीं छोडती। संख्याएं ही तय करती हैं कि फिल्म कितना चली। जैसे 100 दिन, 25 सप्ताह , 50 सप्ताह। यहां तक कि फिल्म के व्यवसाय को भी बॉक्स ऑफिस के कलेक्शन के रूप में प्रदर्शित किया जाता है कि उसने 100 करोड़ कमाए या 500 करोड़!
    फिल्मों के सबसे ज्यादा टाइटल संख्याओं से ही बनाए गए। यकीन नहीं आता तो खुद देख लीजिए। आपने सोचा नहीं होगा कि संख्याओं पर आधारित इतनी फिल्में बन सकती हैं। शुरुआत शून्य से कीजिए। शून्य का मान कुछ नहीं होता, इस पर आधारित फिल्म 'जीरो' की असफलता ने इसे शब्दशः साबित कर दिया। एक नंबर पर तो ढेरों फिल्में बनी है। इसी एक नंबर के चलते हीरो नंबर वन, कुली नंबर वन और जोड़ी नंबर वन के हीरो को गोविंदा को तो नंबर वन का खिताब तक मिल गया। इसके अलावा एक नंबर से जो फिल्में बनी हैं उनमें एक विलेन, एक डॉक्टर की मौत, एक रुका हुआ फैसला, एक फूल दो माली, एक फूल चार कांटे, एक बार मुस्कुरा दो, एक दिल सौ अफ़साने, एक दूजे के लिए, एक गांव की कहानी, एक जान है हम, एक झलक, एक मुसाफिर एक हसीना, एक रात, एक राज, लाखों में एक, एक चालीस की लास्ट लोकल, एक और एक ग्यारह, एक राजा एक रानी, एक रात की कहानी, एक था राजा एक थी रानी, एक था टाइगर, एक मैं और एक तू, एक दीवाना था, वन बॉय टू, एक ही भूल, एक से बढ़कर एक, एक महल हो सपनों का, एक हसीना दो दीवाने, एक नारी एक ब्रह्मचारी, एक नारी दो रूप, एक पहेली, फर्स्ट लव लेटर, इक्के पर इक्का, बीबी नंबर वन, आंटी नम्बर वन, अनाड़ी नंबर-वन, बेटी नंबर वन, जोड़ी नंबर वन, शादी नंबर वन, एक अनाड़ी दो खिलाड़ी, एक बेचारा, एक     था राजा, एक रिश्ता, वन टू का फोर, एक अजनबी, वन टू थ्री, एक पॉवर वन, एक कली मुस्काई, एक बार  कहो, एक सपेरा एक लुटेरा, एक गुनाह और सही, एक दिन का बादशाह, एक नन्ही मुन्नी लड़की और बात एक रात की।
    संख्याओं पर टाइटल की दौड़ में दो भी पीछे नहीं है। यकीन नहीं आता हो, तो खुद गिन लीजिए। दो आंखें बारह हाथ, दो कैदी, दो दोस्त, दो रास्ते, दो दूल्हे, दो प्रेमी, दो दूनी चार, दो और दो पांच, दो बदन, दो बीघा जमीन, दो बूंद पानी, दो दिलों की दास्तान, दो कलियां, चतुरसिंह- 2 स्टार, वन बाय टू, टू स्टेटस, लहू के दो रंग, दो लड़के दोनों कड़के, दो शिकारी, दो भाई, दो अजनबी, दो लड़कियां, दो जासूस, दो ठग, दो झूठ, दो आंखे, दूसरी सीता, दो चोर, दो यार, दो गज जमीन के नीचे, दो दिल, डबल क्रॉस, एक हसीना दो दीवाने, दो दोस्त और तो हर फिल्म के रिमेक में दो नंबर जोड़ दिया जाता है, जैसे डॉन-2, गोलमाल-2, हाउसफुल-2 और भूल भुलैया-2 फिल्म और दूसरा आदमी!
    तीन शीर्षक से बनी फिल्मों में राज कपूर, देव आनंद और शम्मी कपूर जैसे सुपर सितारों की फिल्में शामिल है। जैसे तीसरी कसम, तीन देवियां और तीसरी मंजिल। इसके अलावा 3-जी, 3 इडियट्स, तीन बत्ती चार रास्ता, तीसरा कौन, पेज-3, तीन पत्ती, तीन थे भाई, 3 बैचलर्स, त्रिदेव, त्रिमूर्ति, त्रिनेत्र, 3 दीवाने और वन टू थ्री। कुछ फिल्में ऐसी हैं, जिन्होंने अपने टाइटल का चौका लगाया। इन फिल्मों में तीन बत्ती चार रास्ता, चार दिल चार राहें, चार दिन की चांदनी, वन टू का फोर, क्रेजी फोर और 'चांडाल चौकड़ी' प्रमुख हैं। पांच शीर्षक से निर्माताओं ने दो और दो पांच, हम पांच, पांच कैदी, 5 राइफल्स और पांच फौलादी जैसी फिल्में बनाई। चौके की जगह फिल्मों के टाइटल में छक्के कम ही लगे। इन फिल्मों में मनोरमा सिक्स फीट अंडर और दिल्ली 6 शामिल हैं।
    सात का आंकड़ा भी हिन्दी फिल्मों में दिखाई दिया। इस नंबर से बनने वाली फिल्मों में सूरज का सातवां घोड़ा, सात खून माफ, सात हिन्दुस्तानी, सात साल बाद, सात रंग के सपने, सात समुंदर पार, सात सहेलियां, सत्ते पर सत्ता और वो सात दिन प्रमुख हैं। ऐसा नहीं कि निर्माताओं ने 8 नंबर को भूल गए। इस संख्या से भले ही एक फिल्म बनी, लेकिन 'अराउंड द वर्ल्ड इन 8 डॉलर्स' ने इस संख्या का फिल्मों के टाइटिल में जोड़ दिया। नौ नंबर से देव आनंद ने 'नौ दो ग्यारह' बनाई तो वी शांताराम ने 'नवरंग' जैसी क्लासिक फिल्म रची। दस नम्बर तो वैसे ही अलग हैसियत रखता है, तो निर्माता इसे कैसे बख्शते। उन्होंने ने दस नंबरी, बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, दस और दस कहानियों पर फिल्में बनाकर पर्दे पर उतार दिया। यह बात अलग है कि 'दस नंबरी' को छोड़कर कोई भी फिल्म सफल नहीं हो सकी और 'दस' पूरी नहीं बन सकी थी।  
   वैसे तो गिनती एक से दस तक ही होती है। लेकिन, फिल्म वाले इससे भी आगे बढ़ गए। उनका संख्या ज्ञान दस से आगे था। लिहाजा उन्होंने एक और एक ग्यारह, दो आंखें बारह हाथ, 12 बजे, 13-बी, 14 पार्क एवेन्यू, सोलहवां सावन, 16 दिसम्बर, मैं सोलह बरस की, 20 साल बाद, स्पेशल-26, तीस मार खां, टर्निंग-30, 36 चौरंगी लेन, 36 घंटे, 36 चाइना टाउन, अलीबाबा 40 चोर, नॉटी एट 40, फिफ्टी फिफ्टी जैसी फिल्में बनाकर संख्याओं का अर्धशतक पूरा किया। फिल्मकारों का संख्या प्रेम यहीं नहीं रूका, उन्हें तो संख्याओं का एक पहाड़ खड़ा करना था, लिहाजा गुरूदत्त ने 'मिस्टर एंड मिसेज 55' बनाई, फिर बनी लव-86,  99, 100 डेज, 36 घंटे, एक दिल सौ अफसाने, डायल-100, सौ करोड़ और 'सौ दिन सास के' से उन्होंने संख्या के शतक को पार किया।
     इसके बाद आरंभ हुआ हजार और लाख का सफर! इन संख्याओं पर' हजारों ख्वाहिशें ऐसी' बनी तो 'हजार चौरासी की मां' और 'ग्यारह हजार लड़कियां' भी बनी। संख्याओं पर बनी फिल्मों में लाखों में एक, दस लाख, लखपति, करोड़पति 1942 ए लव स्टोरी, हाउस नम्बर 44, 83, रोड 303, 1947 : अर्थ, रन-वे 34, 1971, 2001, श्री 420, अब तक 56 ,पोस्ट बॉक्स नं 999, कैदी नंबर 911, विक्टोरिया नंबर 203, दफा 302, एट बाय टेन तस्वीर, आईएम 24, खिलाड़ी 786, बिल्ला नंबर 786, डेढ़ इश्किया, चाची 420, 88 एनटॉप हिल, 40 दिन, टैक्सी नम्बर 9211 और लव स्टोरी 2050 तक सफर जारी रहा।
   फिल्मों के टाइटल के अलावा कुछ फिल्मों के गीतों में भी संख्या बल देखने को मिला। इनमें एक मैं और एक तू, एक तू जो मिला, एक तू ना मिला, दो दिल मिले, मिले दो बदन, दो सितारों का जमी पर है मिलन, दोनों ने किया था प्यार मगर, एक अकेला इस शहर में, दो रंग दुनिया के और दो रास्ते, चार दिनों की छुट्टी है, मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सात सहेलियां खड़ी खड़ी, हजार राहें मुड़कर देखी, वन टू का फोर, दो एकम दो दो दूनी चार, जहां चार यार मिले, एक हजारों में मेरी बहना है, लाखों हैं यहां दिल वाले, मैं एक राजा हूं, तू एक रानी हैं, एक रात मैं दो दो चांद खिले, तीतर के आगे दो तीतर दो कदम तुम भी चलो दो कदम हम भी चलें, सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, एक था गुल और एक थी बुलबुल, एक दिन तू मेरे सपनों की रानी बनेगी, हम वो हैं जो दो और दो पांच बना दें, सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं प्यार के दो चार दिन, मै सोलह बरस की तू सतरा बरस का  सोलह बरस की बाली उमर को सलाम, सौ बार जनम लेंगे सौ बार फना होगे सहित दर्जनों गीत सभी ने गुनगुनाए है। लेकिन, इन सबसे आगे निकल गया 'तेज़ाब' का माधुरी पर फिल्माया गीत एक-दो-तीन जो बारह-तेरह की गिनती तक गया!  
   एक बात कहूं मैं सजना, एक तेरा साथ हमको दो जहाँ से प्यारा है, एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो, एक बंजारा गाए, एक तारा बोले सुन सुन, एक चमेली के मंडवे तले! एक बढकर एक मैं लाई हूं तोहफे अनेक, दो निगाहें तेरी दो निगाहें मेरी मिल के चार हुई। गा रही है जिंदगी हर तरफ बहार है, किस लिए चार चांद लग गए हैं तेरे मेरे प्यार में इसलिए, तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा, हजार राहें मुडके देखी, बारा बजे की सुइयों जैसे हम दोनों मिल जाएं, लाखों तारे आसमान में एक मगर ढूंढे ना मिला, लाखों है यहाँ दिल वाले, ताश के बावन पत्ते पंजे छक्के सत्ते, एक दिन मिट जाएगा माटी के मोल, पहला पहला प्यार है से पहली पहली बार है।  अभी ये सिलसिला बंद नहीं हुआ है, आने वाले दिनों में और भी कई गिनती वाले शीर्षक देखने को मिल सकते हैं।
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