- हेमंत पाल
इन दिनों मुंबई फिल्म इंडस्ट्री संक्रमण के दौर से गुजर रही है। दर्शक फिल्मों को लगातार नकार रहे हैं। ये स्थिति कोरोना काल के बाद कुछ ज्यादा बढ़ी। उंगलियों पर गिनी जा सकने वाली कुछ फिल्मों को छोड़ दिया जाए, तो अधिकांश फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षा के मुताबिक कमाई नहीं की। जबकि, कोरोना काल से पहले ऐसा नहीं था! फिर ऐसा क्या हुआ कि दर्शकों को हिंदी सिनेमा रास नहीं आ रहा! यदि ये सवाल उछाला जाए, तो जवाब में कई कारण गिनाए जा सकते हैं! लेकिन, इसका सबसे सही जवाब यह है, कि दर्शकों ने कोरोना संक्रमण के समय हिंदी सिनेमा की असलियत जान ली, कि यह पूरी तरह साउथ की रीमेक फिल्मों पर टिका है। फिल्मों के शौकीनों ने घरों में रहकर साउथ की इतनी फ़िल्में देखी कि हिंदी फिल्मों में खामी साफ़ नजर आने लगी! साउथ की फिल्मों में उन्हें इतनी नई कहानियां दिखाई दी, कि हिंदी में उस तरह के कथानक की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। इस बात को नजरअंदाज नहीं जा सकता कि हिंदी फिल्मकारों के पास अब ऐसी कहानियों का भारी अभाव है, जो दर्शकों को लुभाए और उन्हें बांधकर रखे! वास्तव में हिंदी फ़िल्में उनकी घिसी पिटी लीक के कारण दर्शकों को रास नहीं आ रही! हिंदी फिल्मकारों में इतना साहस भी नहीं है, कि वे कोई नया प्रयोग करके फिल्म बना सकें। दर्शकों ने जब ओटीटी पर साउथ की ओरिजनल फ़िल्में देखी, तो उन्हें समझ आया कि कथानक के मामले में हिंदी इंडस्ट्री बहुत पीछे है।
हिंदी फिल्मों में अच्छी कहानियों का अभाव का सबसे बड़ा प्रमाण यह माना जा सकता है कि आने वाले दिनों में हिंदी की दर्जनों फिल्में साउथ और हॉलीवुड की रीमेक होगी। इनमें तेलुगू फिल्म की रीमेक राजकुमार राव और सान्या मल्होत्रा की हिट 'द फर्स्ट केस' से लेकर अक्षय कुमार की 'मिशन सिंड्रेला' तक कई फिल्में शामिल हैं। जबकि, अक्षय की 'मिशन सिंड्रेला' तमिल की हिट फिल्म 'रत्सासन' की रीमेक है। दरअसल, शाहिद कपूर की रीमेक 'जर्सी' जिस तरह पिटी उससे इस बात का इशारा मिल गया कि अब रीमेक का जमाना चुक गया है! दर्शक अब बजाए रीमेक के अच्छे कंटेंट वाली हिंदी में डब पुष्पा, आरआरआर और 'केजीएफ 2' फिल्मों को देखना ज्यादा पसंद करने लगे। अगर तेलुगू की ओरीजनल 'जर्सी' को हिंदी में डब कर रिलीज किया जाता, तो 10 लाख का ही खर्च आता! जबकि, इसका रीमेक बनाने में 100 करोड़ फूंक दिए। बाहुबली, पुष्पा, आरआरआर और 'केजीएफ 2' जैसी साउथ की फिल्मों के हिंदी डब की अपार सफलता के बाद कोई साउथ का फिल्मकार अब अपनी हिट फिल्मों के रीमेक राइट्स भी हिंदी वालों को शायद नहीं बेचेगा! क्योंकि, हर मामले में हिंदी फिल्मकार साउथ से पिछड़ रहे हैं।
अब हिंदी के दर्शकों को साउथ की फिल्मों के कथानक के साथ वहां के कलाकार भी पसंद आने लगे! इससे हिंदी फिल्मकारों के साथ यहां के कलाकारों सामने भी संकट आ गया! उनका ये भ्रम भी टूट गया कि वे कैसी भी फ़िल्में करें, उन्हें चाहने वाले दर्शक उनके लिए सिनेमाघर तक जरूर आएंगे। अब तो हिंदी इलाके में साउथ के कलाकार भी उतने ही पसंद किए जाने लगे, जितने कभी हिंदी फिल्मों के थे। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि आखिर कैसी फिल्म बनाई जाए, जिसे हिंदी दर्शक पसंद करें। जब साउथ की फिल्मों का बाजार उत्तर भारत में अच्छा खासा बन गया, तो वे नहीं चाहेंगे कि उनकी हिट फिल्मों को हिंदी में बनाने का प्रयोग हो! सीधा सा आशय यह कि साउथ की फिल्मों के रीमेक अधिकार देने के बजाए वे उस फिल्म को हिंदी में डब करके रिलीज करना ज्यादा पसंद करेंगे। वास्तव में तो हिंदी के दर्शकों को अच्छा कंटेंट चाहिए! फिर वो किसी भी भाषा से मिले और उस कथानक को कोई भी कलाकार निभाएं! उन्हें न तो विषय से परहेज है और न किसी चेहरे से! तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम की फिल्मों ने हिंदी के दर्शकों को पिछले दो साल में बहुत ज्यादा प्रभावित किया और इसका असर दिखाई भी देने लगा।
कोरोना काल के लम्बे दौर में जब सिनेमाघर बंद थे और मनोरंजन के माध्यम सीमित हो गए थे, तब दर्शकों ने मज़बूरी में ओटीटी देखना शुरू किया! वेब सीरीज के साथ दर्शकों ने साउथ की डब की फ़िल्में भी खूब देखी! तब उन्हें महसूस हुआ कि जिस तरह वेब सीरीज सिर्फ कंटेंट से चलती है, उसी तरह की स्थिति साउथ की फिल्मों के साथ भी है। कंटेंट ही सबसे बड़ा हीरो है, उससे बड़ा कोई नहीं! वहां की फिल्में हिंदी में डब होकर ओटीटी पर दिखाई देने लगी, तो उनके हिंदी रीमेक के लिए फिल्मकारों को दर्शक जुटाना मुश्किल हो गया।
शाहिद की रीमेक फिल्म 'जर्सी' को कम दर्शक मिलना और अब अक्षय कुमार की साउथ रीमेक पर सवालिया निशान लगना ऐसे ही नए संकट का संकेत है। वो भी ऐसी स्थिति में जब साउथ की कई हिट फिल्मों के अधिकार लेकर उसे हिंदी में बनाया जा रहा है। अक्षय कुमार ने तमिल की ओटीटी पर रिलीज हुई फिल्म 'सुरारई पोटरु' के हिंदी रीमेक की घोषणा की, तो उन्हें अपने चाहने वालों की नाराजगी का शिकार होना पड़ा। इसके पीछे उनका यह कहना सही भी है कि वे इस फिल्म वे देख चुके हैं, इसलिए अब उन्हें कुछ नया चाहिए। सूर्या की 'सुरारई पोटरु' हिंदी में 'उड़ान' नाम से डब होकर ओटीटी पर भी आ चुकी है।
ये नहीं कहा जा सकता कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में रीमेक कोई नया चलन है। हिंदी सिनेमा के शुरुआती काल से ही ये चल रहा है। फर्क बस इतना आया कि दो दशकों में रीमेक फ़िल्में ज्यादा बनने लगी। 70 और 80 के दशक में तो साउथ में हिंदी की हिट फिल्मों के रीमेक बनते थे, जिसमें वहां के सुपर स्टार एमजी रामचंद्रन जैसे कलाकार दिखाई देते थे। पर, समय के साथ ट्रेंड बदलता गया और अब हालात ये हैं कि हिंदी की ज्यादातर फिल्में साउथ इंडस्ट्री की ही रीमेक होती हैं। फिल्म इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो 'राम और श्याम' पहली फिल्म थी, जो तेलुगु फिल्म 'रामूडू भीमुडू' की रीमेक थी। उसके बाद जितेंद्र ने ही अकेले 50 से ज्यादा रीमेक फिल्मों में काम किया। आधिकारिक रीमेक को छोड़ दिया जाए, तो ऐसी कई फ़िल्में हैं, जिन्हें हिंदी में हॉलीवुड या साउथ की नक़ल और थोड़े-बहुत फेरबदल के साथ बनाया गया। जिन फिल्मों की नक़ल बेहतर नहीं थी, उनकी चोरी पकड़ी गई। निर्माता संजय गुप्ता ने 2003 में 'ओल्ड बॉय' को देखकर हिंदी में 'जिंदा' बनाई। मगर, अवैध नक़ल की वजह से उन्हें मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा।
1990 के दशक में रीमेक का चलन ज्यादा नहीं चला। क्योंकि, उस समय हिंदी के ज्यादातर फिल्मकार रोमांटिक फिल्मों की बाढ़ में बह गए। लेकिन, 2000 में 'हेरा-फेरी' ने रीमेक फिल्मों के ट्रेंड को फिर हवा दी। यह 1989 में रिलीज हुई 'रामजी राव' की रीमेक थी। साढ़े 7 करोड़ में बनी इस फिल्म ने हिंदी में 20 करोड़ का कारोबार किया था। इसके बाद ऐसी कई फ़िल्में जैसे गरम मसाला, हलचल, भागम भाग, दे दना दन, चुप चुप के लगातार बनी और उन्होंने अच्छा कारोबार भी किया। ये सभी साउथ की फिल्मों की रीमेक थी। लेकिन, साउथ की फिल्मों की रिमेक के ट्रेंड में सबसे बड़ी उछाल 'गजनी' और 'वांटेड' ने मारी। आमिर खान की फिल्म 'गजनी' तमिल की ओरिजनल फिल्म 'गजनी' का ही रीमेक थी। जिसने हिंदी फिल्मों की कमाई को सबसे पहले 100 करोड़ कमाने का फार्मूला दिया। तेलुगू फिल्म 'पोकीरी' का रीमेक बनी सलमान खान की 'वांटेड' ने 83 करोड़ की कमाई की।
ऐसा नहीं कि दक्षिण की फिल्मों का रीमेक हिंदी का हिट फार्मूला है! कई रीमेक फ़िल्में भी फ्लॉप हुईं हैं। संजय दत्त की फिल्म 'पुलिसगिरी' बाॅक्स आफिस पर खास कमाल नहीं कर पाई। ये साउथ की फिल्म 'सामी' का हिंदी रीमेक थी, जिसने बाॅक्स आफिस पर बड़ी सफलता हासिल की थी। इसके अलावा हंगामा-2, लक्ष्मी, जय हो, रन जैसी फिल्में साउथ ही की हिट फिल्मों का रीमेक थी, पर ये बॉलीवुड में फ्लॉप साबित हुईं। जाह्नवी कपूर की आने वाली फिल्म 'गुड लक जेरी' तमिल फिल्म 'कोलामावु कोकिला' की रीमेक है। सलमान खान की अपकमिंग फिल्म 'कभी ईद कभी दिवाली' भी तमिल फिल्म 'वीरम' की रीमेक है।
कोरोना के चलते साउथ की कई पुरानी हिट डब फिल्मों को दर्शकों ने ओटीटी पर देख लिया। इनमें जय भीम, कर्णन, उड़ान, विक्रम वेधा और 'जर्सी' जैसी सुपरहिट फिल्मों के नाम गिनाए जा सकते हैं। अब हिंदी इंडस्ट्री इनमें से किसी का हिंदी रीमेक बनाएंगे, तो उसका हश्र 'जर्सी' के रीमेक की तरह होने के पूरे आसार है। अल्लू अर्जुन की 'पुष्पा' के हिट होने के बाद उनकी फिल्म 'अला वैकुंठपुरमलो' को भी उसके निर्माता हिंदी में डब करके रिलीज करना चाहते थे। लेकिन, ऐन मौके पर कार्तिक आर्यन की इस साल रिलीज होने वाली फिल्म 'शहजादा' के निर्माताओं ने इसे कुछ हर्जाना देकर रुकवाया। क्योंकि, कार्तिक की 'शहजादा' भी 'अला वैकुंठपुरमलो' का ही रीमेक है। निर्माताओं को डर था कि ओरिजिनल देखने के बाद उनकी रीमेक देखने सिनेमाघरों तक कौन जाएगा और क्यों! देखने वालों ने ओटीटी पर तेलुगू में उपलब्ध 'अला वैकुंठपुरमुलो' को इंग्लिश सबटाइटल्स के साथ देख लिया है। अजय देवगन की 'दृश्यम' को चाहने वालों ने इसकी ओरिजिनल मलयालम फिल्म के दूसरे पार्ट 'दृश्यम-2' को इंग्लिश सबटाइटल्स के साथ देख लिया। जबकि, हिंदी में इसकी शूटिंग शुरू हो चुकी है।
आने वाली सुपरहिट 'विक्रम वेधा' की रीमेक में रितिक रोशन और सैफ अली खान नजर आएंगे, लेकिन ऑरिजिनल 'विक्रम वेधा' को भी दर्शक देख चुके हैं। पिछली होली पर आई अक्षय कुमार की फिल्म 'बच्चन पांडे' को दर्शकों ने इसीलिए नकारा, क्योंकि यह भी एक तमिल फिल्म की रीमेक थी। आने वाले दिनों में अक्षय कुमार और इमरान हाशमी की फिल्म 'सेल्फी' भी एक मलयालम फिल्म का ही रीमेक है। सलमान खान की भी ज्यादातर फिल्में साउथ का रीमेक हैं। इनमें वांटेड के अलावा तेरे नाम, रेडी, किक, जैसी कई फिल्में हैं। ये सारी फिल्में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भाषा की ही रीमेक हैं। इसके अलावा कई एक्टर्स ऐसे रहे जिनकी फिल्में रीमेक के नाम पर ही चलती रही हैं। रोहित शेट्टी के निर्देशन और रणवीर सिंह की 'सिंबा' भी जूनियर एनटीआर की ब्लॉकबस्टर 'टेम्पर' का ही रीमेक थी। अब यह पूरी तरह साफ़ हो गया कि जब पुरानी फिल्मों को सिनेमाघरों में लाया जा रहा, तो भविष्य में साउथ की फ़िल्में सीधे शायद हिंदी में न आए। यानी बॉलीवुड के मार्केट पर दक्षिण के सितारों का दबदबा बढ़ेगा। इससे बॉलीवुड का रीमेक फ़ॉर्मूला पूरी तरह से ख़त्म होता नजर आ रहा है।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------