Thursday, August 18, 2022

बांध का पानी उतरा, पर सवाल अभी जिंदा!

- हेमंत पाल


   अपनी नीतियों, फैसलों और समाजसेवी क़दमों पर तालियां बजवाने वाली मध्यप्रदेश की सरकार धार जिले के कारम बांध की रिसन पर खामोश है! सरकार इसलिए खुश है कि उसने बिना जन हानि या पशु हानि के बांध को फोड़कर सारा पानी निकाल दिया। बांध से लगातार 36 घंटे तक बहकर पानी नर्मदा नदी में समाहित हो गया। इस तरह बांध का पानी तो खाली हो गया, पर सवाल खड़े हो गए! ऐसे सवाल जिनके जवाब न तो सरकार के पास हैं न जल संसाधन विभाग के अफसरों के पास! 
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     धार जिले की धरमपुरी तहसील के कोठीदा-भारुडपुरा में करीब 304 करोड़ की लागत वाले इस निर्माणाधीन बांध में पहली बारिश में रिसाव हो गया था। इस मध्यम सिंचाई परियोजना के बांध के दाएं हिस्से में 500-530 के बीच डाउन स्ट्रीम की मिट्टी फिसलने और रिसन से बांध खतरे में आ गया। इस बांध की लंबाई 590 मीटर और ऊंचाई 52 मीटर है। जब बांध में रिसन शुरू हुई, तब इसमें 15 एमसीएम पानी जमा था। सारी कोशिशों के बाद जब रिसन को रोका नहीं जा सका, तो तीन दिन बाद उसे फोड़ना ही पड़ा! क्योंकि, 16 गांवों की 22 हजार जिंदगियों का सवाल था। 50 घंटे में 6 पोकलेन मशीन लगाकर 30 लाख से ज्यादा खर्च करके नहर बनाई गई और पानी को खाली किया गया। ये तो वो स्थितियां हैं, जो बनी!
   पर, सवाल उठता है कि जब बांध अधूरा था, तो उसे पूरा क्यों भरा गया! किसी आपात स्थिति में बांध का पानी निकालने के लिए इंतजाम क्यों नहीं किए गए! इसके अलावा जिसने भी सरकार से सवाल पूछने की कोशिश की, उसे समझाने की कोशिश की गई कि अभी संकटकाल है, इसलिए जनहित में कोई सवाल मत करो। जबकि, इस लीकेज ने बांध निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की सारी परतें उघाड़ दी। ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब देने को कोई तैयार नहीं। इन दलीलों की आड़ ली गई कि अभी दोषियों को ढूंढने के बजाए लोगों की जान बचाना जरूरी है। अब बांध का पानी उतर गया, 16 गांव के जो 22 हज़ार लोग अपने घरों से हटाए गए थे, वो वापस घरों को पहुंच गए! अब संकट की वो घड़ी भी टल गई, जिसकी आड़ में सवालों से बचा जा रहा था। आशय यह कि अब सरकार को 304 करोड़ के बांध की बर्बादी का जवाब ढूँढना होगा! क्योंकि, बांध की रिसन से सरकार के सामने आई मुसीबत तात्कालिक थी, सवाल तो अब उठेंगे कि ये हालात कैसे बने और क्यों बने!   
    कोई भी यह बताने को तैयार नहीं कि निर्माणाधीन बांध भरने की मज़बूरी क्या थी! 10 किमी के कैचमेंट एरिया में जब जलस्तर बढ़ने लगा तो बांध में नहर के लिए बनाए गए वॉल्व क्यों नहीं खोले गए। हद यह कि बांध का निर्माण भी दिल्ली की एएनएस कंस्ट्रक्शन कंपनी से कराया गया, जिसे पांच साल पहले पवई बांध निर्माण में लापरवाही के आरोपाें के चलते सस्पेंड किया गया था। बांध का जलस्तर बढ़ने की बात विभाग को पहले से पता थी। ठेकेदार की तकनीकी खामी भी सामने आ गई थी कि बांध के अंदर पाल पर मिट्‌टी बिछाते समय 12 मीटर बाद मूरम की पिचिंग की गई! लेकिन, दूसरी तरफ भी मुरम नहीं लगाई। लीकेज होने पर वॉल्व खोलने की कोशिश की, तो मेंटेनेंस नहीं होने से 48 में से 24 नट ही खुल सके।
   बांध के मुद्दे पर चार दिन सरकार और प्रशासन हर स्तर पर परेशान रहा। धार और खरगोन जिले के 16 गांव के लोगों को घरों से हटाकर सुरक्षित जगह भेजा गया। कैनाल खोदकर पानी का रास्ता बनाया गया और फिर बांध को फोड़कर पानी बहाया गया! सरकार और प्रशासन अब इसलिए खुश हैं, कि सब ठीक हो गया! पर, क्या ये सोच सही है। आखिर सरकार अपनी ही गलती पर खुशियां कैसे मना सकती है। विपक्ष के सवालों पर जनता की सुरक्षा का बहाना बनाकर जवाब को ज्यादा दिन नहीं टाला जा सकता! विधानसभा में तो सवालों के जवाब देना ही पड़ेंगे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने बांध स्थल का दौरा करने के बाद कहा था कि प्रदेश में भाजपा सरकार घोटालों की सरकार है। इनके कार्यकाल में सैकड़ों घोटाले हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि यही एक बांध नहीं, कई योजनाएं भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ गई। उनका कहना था कि कारम बांध बना रही कंपनी का नाम पहले भी निविदाओं से छेड़छाड़ करके घोटाला करने में आया था। इस कारण कंपनी को 'ब्लैक लिस्ट' कर दिया था। लेकिन, भाजपा सरकार ने इस कंपनी को 'ब्लैक लिस्ट' से हटाकर उसे फिर बांध को बनाने का काम दे दिया।
    जो हुआ वो अचानक नहीं हुआ ये होना था, इसलिए हुआ! अब जानकार इस बात के कारण खोज लेंगे कि बांध में रिसन क्यों आई। जबकि, वास्तव में सीधा-सीधा मुद्दा है कि 304 करोड़ के कारम बांध में बड़ी लापरवाही सामने आई। स्थानीय लोगों ने पहले ही इस मामले की शिकायत प्रशासन से लगाकर सरकार के अधिकारियों तक से की, पर कोई जांच नहीं करवाई गई। एक स्थानीय व्यक्ति के वायरल हुए वीडियो में भी ये सब बातें खुलकर सामने आई! लेकिन, सरकार का इस पर कोई जवाब नहीं आया! ये वीडियो ठेठ ग्रामीण का था, उसकी जानकारी भी सीमित जरूर थी, पर गलत नहीं! उस व्यक्ति ने सवाल उठाए कि बांध का निर्माण मिट्टी में पत्थरों को दबाकर किया गया। इससे बांध की दीवार पर पानी का दबाव बढ़ेगा और बांध के टूटने की संभावना बढ़ेगी! वही सब हुआ भी, पर किसी अधिकारी ने उस अंजान ग्रामीण से बात करने और उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की।  
     304 करोड़ की लागत से बनने वाले बांध की पार में मोटी दरार आने और बांध को टूटने से बचाने के लिए 40 करोड़ खर्च करने के बाद धार और खरगोन जिले के 18 गांव के नागरिकों पर से खतरा टल गया। अब समीक्षा और सरकार से जवाब तलब का समय शुरू होगा। इस बांध के टेंडर में गड़बड़ी का खुलासा 2018 में ही हो गया था। लेकिन, न तो कमलनाथ सरकार ने कोई कार्रवाई की और न सरकार बदलने के बाद शिवराज सिंह चौहान सरकार ने। यदि जान, माल का नुकसान होता तो सरकार के सामने लेने के देने पड़ जाते। सबसे बड़ी चिंता की बात तो यह है, कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद इस पर परदा डालने की कोशिश की जा रही है। कहा जा रहा है कि जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई करेंगे। सरकार ने सारे प्रयास करने के बाद टोने-टोटके भी करवाए! दो सुहागन महिलाओं से बांध की पूजा करवाई गई, ताकि बांध फूटने का संकट टल जाए। ये टोटके इस बात का संकेत भी हैं कि सरकार अंदर से कितना घबराई हुई है!
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