मध्य प्रदेश में 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की राजनीति को समझना आसान नहीं है। 9 जून को सरकार में उन्होंने केंद्र में मंत्री पद की शपथ ली और 17 जून को झारखंड चुनाव का प्रभारी बना दिया। इससे दो संकेत भी मिलता हैं। पहला यह कि शिवराज सिंह की राजनीतिक सक्रियता अब मध्यप्रदेश में कम दिखाई देगी। दूसरा संकेत यह कि जो लोग मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्हें हल्के में ले रहे थे, वे भी संभल जाएं। क्योंकि, वे कब, कौन सा जादू दिखा दें, कहा नहीं जा सकता!
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● हेमंत पाल
लोकसभा चुनाव के समय मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक बयान मीडिया में खूब चला था कि मैं मर भी गया, तो फीनिक्स पक्षी की तरह राख से जिंदा हो जाऊंगा। तब उनके इस बयान को गंभीरता से नहीं लिया और इस बात को मजाक समझा गया। क्योंकि, बयानबाजी के मामले में शिवराज सिंह की अपनी अलग ही अदा है। जब वे मुख्यमंत्री थे, तब अफसरों को चमकाने के लिए कहा था 'टाइगर अभी जिंदा है।' इसके अलावा भी शिवराज सिंह इस तरह के बयानों के जरिए अपने मन की बात बताते रहे और इशारे से अपने विरोधियों को भी चेताते रहे हैं। लेकिन, उनके बयान कभी खोखले और बेमतलब नहीं होते। वे कभी इस बहाने अपने मन का दुख दर्शाते हैं, तो कभी अपने भविष्य का संकेत भी देते रहते हैं।
● हेमंत पाल
लोकसभा चुनाव के समय मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक बयान मीडिया में खूब चला था कि मैं मर भी गया, तो फीनिक्स पक्षी की तरह राख से जिंदा हो जाऊंगा। तब उनके इस बयान को गंभीरता से नहीं लिया और इस बात को मजाक समझा गया। क्योंकि, बयानबाजी के मामले में शिवराज सिंह की अपनी अलग ही अदा है। जब वे मुख्यमंत्री थे, तब अफसरों को चमकाने के लिए कहा था 'टाइगर अभी जिंदा है।' इसके अलावा भी शिवराज सिंह इस तरह के बयानों के जरिए अपने मन की बात बताते रहे और इशारे से अपने विरोधियों को भी चेताते रहे हैं। लेकिन, उनके बयान कभी खोखले और बेमतलब नहीं होते। वे कभी इस बहाने अपने मन का दुख दर्शाते हैं, तो कभी अपने भविष्य का संकेत भी देते रहते हैं।
फीनिक्स पक्षी की तरह फिर जिंदा होने की बात, उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान कहकर अपने इरादों को बता दिया था। आज भी वे जिस स्थिति में है, उससे समझा जा सकता है कि उन्होंने गलत नहीं कहा था। वे फीनिक्स की तरह राख से जिंदा भी हो गए और केंद्र की राजनीति में पांचवे नंबर पर पहुंच गए। मोदी के मंत्रिमंडल में उन्हें कृषि और ग्रामीण विकास जैसे बड़े विभाग मिले। इसके बाद उन्हें झारखंड के विधानसभा चुनाव का प्रभार दे दिया गया। यदि उन्होंने वहां भाजपा का झंडा गाड़ दिया तो उनके लिए राजनीति के नए दरवाजे खुलना तय है।
नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में उन्हें दो भारी-भरकम विभाग देकर ये संदेश भी दिया गया कि शिवराज सिंह की ताकत को कम न समझा जाए। ये स्थिति इसलिए आई कि विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह हालात बदले और मुख्यमंत्री की कुर्सी अप्रत्याशित रूप से मोहन यादव को मिली, ये संदेश भी गया कि मध्यप्रदेश में अब शिवराज सिंह का जादू खत्म हो गया। जबकि, वास्तव में भाजपा को 163 सीट आना उनके 'मामा' होने का ही चमत्कार रहा। इसके बाद करीब एक महीने शिवराज सिंह कुछ दबे से रहे और उसी के साथ मोहन यादव की मुखरता बढ़ती गई। उनके कई पुराने फैसलों को बदला गया और उनके खास लोगों को पदों से बाहर कर दिया। लोकसभा चुनाव में जब उन्हें विदिशा से उतारा गया, तो साफ हो गया कि पार्टी उन्हें मध्यप्रदेश से बाहर भेजकर मोहन यादव को निष्कंटक करना चाहती है। यह संदेश छुपा भी नहीं रहा।
इसके बाद बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिससे लगा कि शिवराज सिंह भले लोगों के दिलों में हों, पर पार्टी की पहली सूची में वे नहीं हैं। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कई मंचों पर होते हुए भी उन्हें माइक नहीं थमाया गया। लेकिन, नतीजों ने सारी कहानी बदल दी। विदिशा से शिवराज सिंह की रिकॉर्ड तोड़ 8 लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की और मंत्रिमंडल की शपथ के दौरान पांचवे नंबर पर उनका शपथ लेना एक अलग ही संकेत था। साथ ही उन लोगों को सबक भी, जो ये मान रहे थे, कि 'मामा' अब उनके रास्ते में कहीं नहीं हैं। जबकि, देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में भाजपा का क्लीन स्वीप (सभी 29 सीटों पर जीत) भी उनकी 'लाड़ली बहना योजना' का ही असर था। पर, शिवराज सिंह ने इस बात का कभी दावा नहीं किया।
इस सबके बाद केंद्रीय मंत्री बनने के बाद जब शिवराज सिंह बीते सप्ताह भोपाल आए, तो उनका जिस तरह स्वागत हुआ, उसने अपना अलग ही असर दिखाया। इसे सिर्फ जनता और समर्थकों का हुजूम नहीं कहा जा सकता। ये सीधे-सीधे इस नेता का शक्ति प्रदर्शन था, जिसे उन्होंने भी समझा जिन्हें यह दर्शाया गया। यहां तक कि उन्हें उस ट्रेन में भी यात्रियों ने भरपूर स्नेह दिया जिससे वे दिल्ली से भोपाल आए थे। रास्ते भर यात्री उनके साथ सेल्फी लेते रहे। भोपाल की सड़कों पर तो उनका पांच घंटे ऐसा स्वागत हुआ, जो आने वाले कई सालों के लिए मिसाल बन गया। उनका ये स्वागत और रोड शो स्वमेव था या प्रयोजित जो भी था, अभूतपूर्व था। इस संयोग ही समझा जाना चाहिए कि भोपाल आने के अगले दिन उन्हें झारखंड विधानसभा चुनाव का प्रभारी बना दिया।
केंद्र सरकार के बाद अब संगठन के जरिए चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद कयास लगने लगे हैं कि क्या शिवराज सिंह चौहान को स्थायी रूप से मध्यप्रदेश की राजनीति से अलग कर दिया गया! तो इसका जवाब भी शिवराज सिंह ही देंगे। इस साल के अंत में झारखंड में विधानसभा चुनाव होना है। यदि उन्होंने कोई चमत्कार कर दिया तो फिर वे अपना राजनीतिक भविष्य खुद तय करेंगे। मध्यप्रदेश में जिस तरह उन्होंने 18 साल भाजपा की सरकार चलाई, वैसा ही कुछ जादू उन्होंने झारखंड में किया, तो वे भाजपा की केंद्रीय राजनीति में पार्टी की आंख तारा बन सकते हैं।
विदिशा चुनाव के दौरान एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात का इशारा भी किया था कि हम शिवराज सिंह को दिल्ली ले जा रहे हैं। बात सच निकली और जीत के बाद उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी गई। जबकि, शिवराज सिंह विधानसभा चुनाव की शुरुआत से ही हाशिए पर दिखाई देने लगे थे। संगठन में भी उनकी पूछ कम होती दिखाई दी। तब वे मुख्यमंत्री जरूर थे, पर कई बार लगा कि उनकी बातों को अनसुना किया जा रहा था। पर, इसका कोई नतीजा नहीं निकला। उनकी 'लाडली बहना' ने ही मतदाताओं को प्रभावित किया और पार्टी ने उस कांग्रेस को नेस्तनाबूद कर दिया, जो अति आत्मविश्वास में सत्ता में आने का सपना देखने लगी थी। उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि भाजपा में भी अपने विरोधियों को ध्वस्त किया। इससे लगता है कि उन्होंने गलत नहीं कहा था कि मैं मर भी गया तो फीनिक्स पक्षी की तरह अपनी राख से फिर जिंदा हो जाऊंगा।
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