Tuesday, January 28, 2025

25 साल से अमिताभ ही 'केबीसी' में लॉक

- हेमंत पाल

      अमिताभ बच्चन की तरह बड़े परदे पर दूसरा एंग्री यंग मैन हुआ और न छोटे पर्दे पर उनके जैसा दूसरा सफल गेम शो होस्ट होगा। दोनों भूमिकाएं अलग-अलग हैं, पर इस शख्स ने दोनों में महारत हासिल की। साल 2000 में शुरू हुए टीवी गेम शो 'कौन बनेगा करोड़पति' ने 25 साल पूरे कर लिए। किसी गेम शो ने आजतक छोटे परदे पर ये कमाल नहीं किया। पर 'कौन बनेगा करोड़पति' (केबीसी) की बात अलग है। शो का फॉर्मेट अनोखा है, इसलिए दर्शकों को पसंद आना ही था, पर इस शो के एंकर अमिताभ बच्चन भी बेजोड़ हैं। उन्होंने इस शो को ऊंचाई दी और शो में उन्हें समृद्धि। 25 साल पहले जब वे इस शो से जुड़े थे, उनके सितारे गर्दिश में थे। लेकिन, उन्हें इंडस्ट्री में दोबारा स्थापित करने में 'केबीसी' का अहम रोल रहा।  
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    टीवी पर आने वाले किसी भी शो को दर्शक तभी तक याद रखते हैं, जब तक वो प्रसारित होता है। लेकिन, कौन बनेगा करोड़पति यानी 'केबीसी' इसका अपवाद है। साल में करीब दो-ढाई महीने आने वाले इस शो का इसके चाहने वाले बाकी के दस महीने इंतजार करते हैं। ये कुछ सालों की बात नहीं है, बल्कि ये सिलसिला 25 साल से चल रहा है और साल दर साल इसका जादू दर्शकों पर ज्यादा ही असर करने लगा। ये शो के फॉर्मेट का तो प्रभाव है ही, लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षण इसके एंकर अमिताभ बच्चन का है। किसी गेम शो का लगातार 25 साल प्रसारित होना और उसमें 24 साल एक ही एंकर का होना अपने आप में रिकॉर्ड भी है। इस शो को एक साल शाहरुख़ खान ने भी होस्ट किया, लेकिन अमिताभ बच्चन जैसा प्रभाव वे भी छोड़ सके। अमिताभ हॉट सीट पर बैठने वाले कंटेस्टेंट से 16 सवाल पूछते हैं और हर सवाल के सही जवाब पर कंटेस्टेंट को पैसे मिलते जाते हैं। शुरू में सबसे बड़ी राशि एक करोड़ रूपए थी, धीरे-धीरे यह 5 करोड़ हुई और अब 7 करोड़ हैं। 
      इस शो ने अमिताभ के स्टारडम को नया आयाम दिया। लेकिन, सच्चाई ये भी है कि शो से पहले बच्चन फैमिली ने उन्हें छोटे परदे पर ये शो करने से रोका था। उनसे कहा था कि ऐसा कोई गेम शो करना बड़ी गलती होगी। फिल्म के दर्शक उन्हें 70 एमएम पर देखना चाहते हैं, वे छोटी टीवी स्क्रीन पर देखेंगे, तो आपका कद कम हो जाएगा। लेकिन, बीते 25 सालों ने इस बात को गलत साबित कर दिया। खास बात यह कि इस बात का जिक्र खुद अमिताभ ने इस शो के बीच में किया। बीते सालों में समय के मुताबिक शो के फॉर्मेट में कुछ बदलाव किए गए। सवाल-जवाब के फॉर्मेट को छोड़कर इसमें बहुत कुछ जोड़ा-घटाया गया। टीआरपी और लोगों के मनोरंजन का ख्याल रखते हुए नए एंगल्स को इंट्रोड्यूस किया। लेकिन, शो ने अपनी सच्चाई को नहीं खोया। आज भी इस गेम शो का पहला फोकस सवाल-जवाब ही होता है। लाइफ-लाइन में जरूर कुछ घट-बढ़ होती रही। 
    अमिताभ अपने जीवन और फिल्मों से जुड़े पुराने किस्से, अपने दिल की बातें लोगों से कहते हैं। इसके साथ ही कंटेस्टेंट्स की इमोशनल लाइफ को सबसे ज्यादा हाईलाइट किया जाता। उसके छोटे से घर, मिट्टी के चूल्हे, जीवन के अभाव और अधूरी इच्छाओं को सामने लाकर कंटेस्टेंट की प्रतिभा को आगे लाया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, जब कोई सेलिब्रिटी गेस्ट शो में आते हैं, तब भी शो की गंभीरता को बरक़रार रखा जाता है, ताकि मर्यादा नहीं टूटे। दूसरे रियलिटी शो की तरह कोई भी नाटकीय या रोने-धोने के जबरदस्ती वाले एंगल नहीं होते। यही वे बातें हैं, जो अमिताभ के इस शो को दूसरों से अलग बनाती हैं। आज अमिताभ बच्चन 'केबीसी' की कामयाबी की सिल्वर जुबली मना रहे हैं। इस शो को देखते-देखते दूसरी पीढ़ी आ गई। लेकिन, शो की ऊर्जा बरक़रार है। हॉट सीट तक आने वाले अपने बड़े-बड़े सपने लेकर पहुंचते हैं और ज्यादातर कुछ न कुछ लेकर ही जाते हैं। जो वास्तव में इंटेलिजेंट होते हैं, वे 3 लाख 20 हजार से ऊपर जीतकर जरूर जाते हैं। लेकिन, कंटेस्टेंट के लिए सबसे कीमती होता है अमिताभ जैसी हस्ती से मिलना और बात करना।
     यह शो उस दौर में शुरू हुआ था, जब अमिताभ को भी एक लाइफ लाइन की जरूरत थी। फ़िल्में लगातार पिट रही थी। उनकी खड़ी की गई कंपनी 'एबीसीएल' घाटे की घाटी से उतरकर खड्ड में जा गिरी थी। लेकिन, इस शो की बदौलत सब कुछ संभल गया। आज अमिताभ 82 पार कर चुके। लेकिन, उम्र के इस दौर में भी हॉट सीट पर बैठे कंटेस्टेंट से बात करने का उनका अंदाज अनोखा है। हर कंटेस्टेंट का मनोबल बढ़ाना, अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की कविता और उनसे जुड़े किस्से सुनाने और मजाक करने का उनका अलग ही अंदाज है। फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के बाद जब कंटेस्टेंट हॉट सीट पर पहुंचता है, तो अमिताभ के सामने आकर उसका आत्मविश्वास मानो जवाब देता है। ऐसे कई कंटेस्टेंट को याद किया जा सकता है, जो अमिताभ को इतने नजदीक से देखकर घबरा से जाते हैं। लेकिन, बतौर एंकर अमिताभ उन्हें सहज करने में भी देर नहीं करते। किसी भी उम्र, किसी भी राज्य या भाषा में बातें करने वाला हो, वे सबसे सहजता से उससे तालमेल बैठाकर शो को मनोरंजक बना देते हैं।
     आज ढाई दशक बाद भी हॉट सीट तक पहुंचने वाले कंटेस्टेंट की बातें आश्चर्यजनक होती हैं। कोई बीस साल से यहां आने का इंतजार कर रहा होता है, कोई कहता है जब यह शो शुरू हुआ तब वे पैदा ही हुए थे। कोई कहता है उस साल उसकी शादी हुई थी, आज बच्चे बड़े हो गए। एक पीढ़ी निकल गई, दूसरी पीढ़ी आ गई। लेकिन, मुस्कुराते, खिलखिलाते और तालियां बजाते अमिताभ बच्चन हॉट सीट पर आज भी बैठने वालों में जोश भरते का कोई मौका नहीं चूकते। जब वे फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के लिए सवाल पूछते हैं, तब उनका जोश देखने लायक होता है। 82 पार के इस शख्स की फुर्ती वास्तव में देखने लायक होती है। वे दौड़ते हुए आते हैं और पूरी तत्परता के साथ कंटेस्टेंट को हॉट सीट पर बैठाते हैं। यदि कंटेस्टेंट महिला हो, तो कुर्सी थामते हैं और उसे सहज करते हैं। फिर भावुक करने वाले उस पल को हल्का-फुल्का बनाते हुए सवालों का सिलसिला शुरू करते हैं।
    फिल्मों में अमिताभ बच्चन के होने का मायना क्या है, ये फिल्म देखने और न देखने वाले दोनों जानते हैं। वे अपने किरदार को 'लार्जर देन लाइफ' बनाने के लिए विख्यात रहे हैं। एंग्री यंग मैन की तरह फिल्मी परदे पर लार्जर देन लाइफ का प्रभाव भी उनकी शख्सियत की विशिष्टता से जुड़ा है। भारी और दमदार आवाज में अपनी प्रभावशाली संवाद अदायगी से थ्रिल पैदा कर देना और दर्शकों के दिलों दिमाग को झकझोर देना उनके अभिनय कौशल की सबसे बड़ी खासियत है। यही वजह है कि 'केबीसी' के मंच पर भी अमिताभ अपनी पर्सनालिटी से पूरा रंग जमा देते हैं। इसके बाद कब-कब चमत्कार हुए, ये शो देखने वाले जानते ही हैं। क्योंकि, 'केबीसी' ने कई की जिंदगी में रंग भरे। किसी की झोपड़ी महल बन गई, किसी का लाखों का कर्ज उतर गया, कोई अपनी या परिवार में किसी की गंभीर बीमारी का इलाज करा सका तो किसी की बेटी की शादी धूमधाम से हुई। एक खासियत यह भी है कि हॉट सीट पर बैठने वाला अपनी हैसियत नहीं छुपाता। यह जानते हुए कि वो जो बताएगा, वो सारी दुनिया जान जाएगी। कौन कितना जरूरतमंद है, किसके कौन से सपने और अरमान हैं, कौन कितना फटेहाल है और कितना अमीर आज टीवी पर प्रसारित होने वाला 'केबीसी' शो उसकी बानगी पेश करता है। 
    बताते हैं कि जब इस शो का फॉर्मेट बनाया गया था, तब 'केबीसी' के प्रेजेंटेशन के लिए कोई स्क्रिप्ट तय नहीं की गई थी। बतौर एंकर अमिताभ बच्चन कंटेस्टेंट से क्या और कैसी बात करेंगे, इस बारे में कोई तैयारी नहीं थी। सिर्फ शो के सवालों का फॉर्मेट तय हुआ था। हर एपिसोड को शुरू करने और आगे बढ़ाने की कला अमिताभ ने खुद विकसित की। इस बात को सभी स्वीकार भी करेंगे कि 'केबीसी' पूरी तरह अमिताभ केंद्रित होकर रह गया। उन्होंने शो की एक नई भाषा विकसित की। कम्प्यूटर के आगे ‘महाशय’ और ‘जी’ लगाकर अनोखा प्रचलन शुरू किया। कंप्यूटर महाशय, कंप्यूटर महोदय, कंप्यूटर जी, ताला लगा दिया जाए, लॉक कर दिया जाए, टिकटिकी जी, दुगुनास्त्र, बज़रबट्टू या महिला प्रतियोगी के लिए 'देवी जी' जैसे शब्द के प्रयोग उन्होंने ही किए। यह किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं होते। इसमें अमिताभ बच्चन की आवाज का भी अपना जादू है। यह उनकी ही खासियत है कि आज 25 साल बाद भी शो में उनकी जुबान पर रिपिटेड शब्द बोर नहीं करते। 
     25 साल पहले जब टीवी पर पहली बार 'कौन बनेगा करोड़पति' गेम शो शुरू हुआ था, तो छोटे परदे पर गेम शो की बाढ़ सी आ गई थी। अमिताभ के इस शो को टक्कर देने के लिए कई गेम शो छोटे परदे पर प्रसारित किए गए। अनुपम खेर और मनीषा कोईराला का गेम शो ‘सवाल दस करोड़ का’ भी आया, पर अमिताभ बच्चन के 'एक करोड़' के आगे फीका साबित हुआ। सलमान खान ने 'दस का दम' शुरू किया, पर चला नहीं। यहां तक कि अमिताभ की गैर मौजूदगी में शाहरुख़ खान ने भी 'केबीसी' का एक सीजन होस्ट किया, पर अमिताभ जैसा जादू नहीं बना सके और कुछ विवाद भी हुए। दरअसल, ये शो जैसे अमिताभ की पर्सनालिटी के साथ चस्पा हो गया है। धीरे-धीरे केबीसी सिल्वर जुबली साल में प्रवेश कर गया। केबीसी भले ही प्रतियोगियों को जवाब देने के लिए चार ऑप्शन देता है, लेकिन खुद केबीसी के सामने अमिताभ बच्चन के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं है, जो उसे और आगे ले जा सके।
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Monday, January 20, 2025

मल्टीप्लेक्स की भीड़ में खोए पुराने सिनेमाघर


   मनोरंजन का असली आनंद उन दर्शकों ने कुछ ज्यादा ही उठाया, जिन्होंने 70 और 80 का दौर देखा है। तब पहले दिन-पहला शो देखने का जो जुनून था, आज तो उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। शो से दो घंटे पहले टिकट खिड़की के सामने लाइन लग जाती थी। ऐसे में सबसे आगे खिड़की पकड़कर खड़े होने वाले के चेहरे की मुस्कान अजब होती थी। फिर धक्का-मुक्की से टिकट हाथ में आना। हॉल में घुसने की जंग लड़ना, यदि सीट नम्बर नहीं होते तो सीट की जुगाड़। आज ऐसा कुछ नहीं होता। मल्टीप्लेक्स ने संभ्रांत दर्शकों और सुविधाजनक मनोरंजन की आदत डाल दी। अब न तो पहले की तरह हॉल में सीटियां सुनाई देती है और न परदे के पास बैठने वाले दर्शकों के कमेंट। हीरो के हाथ से जब विलेन पिटता था तब सारा गुस्सा यहीं महसूस होता था। तब फिल्म का मनोरंजन जो भी हो, पर सिनेमाघर का भी अपना अलग ही मजा होता था।
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- हेमंत पाल

     बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदला। जीने का अंदाज, नई जरूरतें, सुविधाएं और यहां तक कि मनोरंजन का तरीका भी नए ज़माने के साथ बदल गया। याद कीजिए दो-तीन दशक पहले फिल्म देखने का आनंद कैसा था! तब आज की तरह घर बैठे टिकट बुक नहीं होते थे और न सीटें आरामदायक होती थीं। उस समय सिनेमाघर की टिकट खिड़की में हाथ घुसाकर मुट्ठी में टिकट थामकर मसले हुए टिकट ऐसे लगते थे जैसे जंग जीतने का प्रमाण पत्र मिल गया हो। उसके बाद हॉल में तीन घंटे तक फिल्म के साथ-साथ कई तरह के मनोरंजन की बात ही अलग थी। आज वो सिर्फ याद बनकर रह गया। अब न वैसे सिनेमाघर बचे न दर्शक। सिंगल स्क्रीन तो करीब-करीब ख़त्म ही हो गए। उनकी जगह ब्रांडेड मल्टीप्लेक्स ने ले ली। पहले 3 रुपए 20 पैसे में दर्शक बॉलकनी में अकड़कर बैठता था, आज वही टिकट 500 रूपए से शुरू होकर एक हजार रूपए से ज्यादा में मिलता है। उसमें भी सुविधा के मुताबिक पैसे लिए जाते हैं। तात्पर्य यह कि अब दर्शकों का फिल्म देखने अंदाज ही नहीं बदला, सुविधाएं भी जेब पर असर डालने लगी। 
      फिल्में बनना, उनका रिलीज होना और फिर थिएटर में जाकर दर्शकों का उन्हें एंजॉय करना, मनोरंजन की दुनिया में ये सब रोज होता आया है। इसके पीछे सिर्फ एक ही मकसद होता है कि दर्शकों को अपनी फिल्म तक खींचना और उसके जरिए कमाई करना। आज करीब हर शहर में मल्टीप्लेक्स थियेटर हैं, जहां दर्शक आरामदायक सीटें, बेहतर साउंड क्वालिटी के साथ फ़िल्म एंजॉय करते हैं। लेकिन, पीछे मुड़कर देखा जाए, तो एक दौर वह भी था, जब सिर्फ सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर हुआ करते थे। फिर भी इनका अलग ही क्रेज था। दर्शकों को थियेटर की सुविधाओं से कोई वास्ता नहीं था। बस बैठने के सीट हो और सामने परदे पर जब फिल्म दिखाई दे कोई अड़चन न आए। पुराने समय में फिल्में बनाना भी कम बड़ी चुनौती नहीं थी। क्योंकि, उस समय काल में फिल्म बनाने की तकनीक आज की तरह विकसित नहीं थी। फिल्म पूरी होने के बाद हर निर्माता-निर्देशक की उम्मीद होती है कि उसे बेहतर ढंग से रिलीज किया जा सके। पहले उनकी इस उम्मीद को सिंगल स्क्रीन पूरा करते थे, आज वही भूमिका मल्टीप्लेक्स निभाते हैं। 
   अब तो फिल्म का अर्थशास्त्र बदल गया। पहले सिल्वर और गोल्डन जुबली यानी 25 और 50 हफ्ते चलने वाली फिल्म ही सुपर हिट कहलाती थी। आज तो पहले शो से अंदाजा लगा लिया जाता है। दो या तीन हफ्ते चलने वाली फिल्म भी हिट हो जाती है। इसलिए कि अब फिल्म कमाई सिर्फ दर्शकों के टिकट की खरीद पर ही निर्भर नहीं रह गई। फिल्मकारों ने इस कारोबार में ऐसे कई नए विकल्प खोज लिए, जो उनकी कमाई के नए रास्ते खोलती है। फ़िल्मों के डिजिटल, सैटेलाइट और म्यूजिक राइट्स बेचकर भी फिल्म निर्माता पैसे कमाता है। फिल्मों के रीमेक, प्रीक्वल, सीक्वल, और डबिंग राइट्स बेचकर भी कमाई की जाती है। इसके अलावा ओवरसीज राइट्स, म्यूजिक राइट्स से भी पैसा कमाया जाता है। इसके बाद फिल्म के प्रदर्शन पर निर्भर है कि फिल्म से कितना मुनाफा होगा।
    कई निर्माता विदेश में शूटिंग करके मिलने वाली छूट से भी कमाई करते हैं। जैसे लंदन में शूटिंग करके। इसके बाद आता है बॉक्स ऑफिस। लेकिन, यह सब फिल्म के प्रदर्शन पर निर्भर होता है। यदि फिल्म दर्शकों की पसंद पर खरी उतरी तो सारे राइट्स से कमाकर देते हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ तो सारे राइट्स का कोई मतलब नहीं रह जाता। इस नए ट्रेंड से निर्माता को ये फ़ायदा हुआ कि भले ही उसकी फिल्म नहीं चले पर प्रोडक्शन कास्ट तो निकल ही आती है। याद करें राज कपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' को। इस फिल्म की असफलता ने उन्हें बर्बाद कर दिया था। जबकि, आज यह स्थिति किसी निर्माता के सामने होती, तो हालात इतने बुरे नहीं होते।    
      बड़े परदे पर फ़िल्में देखने की शुरुआत सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों से ही हुई। सिंगल स्क्रीन थिएटर्स की परिभाषा इसके नाम में ही छुपी है। सिंगल स्क्रीन उन्हें कहा जाता है, जहां एक स्क्रीन हो और उस पर रोज फिल्म के 4 शो दिखाए जाते हैं। अकेला स्क्रीन होने की वजह से इन्हें सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर कहा जाता है। कुछ ऐसे थिएटर आज भी बड़े शहरों में मिल जाते हैं। आज के दौर में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की तुलना में मल्टीप्लेक्स का क्रेज बढ़ गया। ऐसे सिनेमाघर वे होते है, जहां एक से ज्यादा स्क्रीन होती हैं। कई अलग-अलग फिल्में एक साथ चलती हैं। आज मल्टीप्लेक्स का चलन बहुत ज्यादा बढ़ गया। इनकी बनावट और सीट का दायरा भी अलग रहता है। जहां सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर में फर्स्ट क्लास और बालकनी के दो सीटिंग फॉर्मेट होते हैं। वहीं, मल्टीप्लेक्स थिएटर इससे अलग नजर आते हैं। मल्टीप्लेक्स में सीटिंग फॉर्मेट प्लैटिनम, गोल्ड और सिल्वर कैटेगरी के हिसाब से बंटता है। 
     मुंबई में 1947 में लिबर्टी सिनेमाघर बना था। इस सिनेमा हॉल को हबीब हुसैन ने बनाया था और इसका आर्किटेक्चर फ़्रांस से प्रभावित रहा। यह आजादी का साल था, इसलिए इसका नाम 'लिबर्टी' रखा गया। ये अपने आप में कुछ खास सिनेमाघर रहा। इस सिनेमाघर में फिल्म का प्रदर्शन खास हुआ करता है। 1960 में फिल्म 'मुगल ए आजम' का प्रीमियर हुआ था। यहां 'मदर इंडिया' 25 अक्टूबर 1957 को रिलीज हुई थी। यह फिल्म पूरे साल यहां लगी रही, जो अपने आप में उस दौर का 1 रिकॉर्ड था। इसके बाद 1994 में सलमान खान और माधुरी दीक्षित की फिल्म 'हम आपके हैं कौन' इस सिनेमाघर में 105 दिनों तक चली थी। राज कपूर भी इस सिनेमाघर के मुरीद रहे। उनकी कई बड़ी फ़िल्में यहां रिलीज हुई, उनमें 'राम तेरी गंगा मैली' भी थी। यहां प्रेस प्रीव्यू और प्राइवेट स्क्रीनिंग के लिए इसकी पांचवी मंजिल पर 30 सीट का 'लिबर्टी मिनी' भी बनाया गया था।      
     मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर में 20 साल पहले तक 30 से ज्यादा सिंगल स्क्रीन टॉकीज थे। लेकिन, अब वो स्थिति नहीं रही। अब यहां देश के सभी बड़े ब्रांड वाले मल्टीप्लेक्स के साथ ओपन एयर ड्राइव इन थिएटर भी है। इस बीच इंदौर के एक व्यवसायी ने सिंगल स्क्रीन सिनेमा की यादों को धरोहर के रूप में संजो लिया। यह देश का अकेला सिंगल स्क्रीन म्यूजियम है। इसमें इंदौर के 30 से ज्यादा टॉकीज से जुड़े फोटो, टिकट, स्लाइड, प्रोजेक्टर, पोस्टर्स सहित कई चीजें रखी गई हैं। 1917 से लेकर 2000 के दशक तक का कलेक्शन है। विनोद जोशी को सिनेमा से जुडी यादें सहेजने का शौक 1983 से था। 
     लेकिन, 2015 में उन्होंने इस शौक को इस तरह पूरा किया। उन्होंने अपने म्यूजियम की टिकट दर भी इतनी ही रखी है, जितनी उस दौर में सिनेमा की टिकट (1 रुपए 60 पैसे) थी। इस थिएटर को देखने में करीब आधा घंटा लगता है। उनके कलेक्शन में किस साल, किस महीने में, किस टॉकीज में कौन सी पिक्चर चली, उसके विज्ञापन, पोस्टर कैसे होते थे वह सब शामिल है। प्रोजेक्टर से परदे पर फिल्म कैसे दिखाई जाती थी, उसे वे खुद प्रोजेक्टर चलाकर बताते हैं। इंटरवल में विज्ञापन के रूप में कौन-कौन सी स्लाइड चलती थी। नई फिल्मों के ट्रेलर की स्लाइड भी दिखाते हैं। उन्होंने इंदौर के पुराने श्रीकृष्ण टॉकीज का भी मॉडल बनवाया। ऐसे ही अन्य टॉकीजों के भी मॉडल हैं।
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Monday, January 13, 2025

भाजपा जिला अध्यक्षों के 62 नाम में कौन सा पेंच

- हेमंत पाल  

     भाजपा जिला अध्यक्षों की सूची को लेकर फंसा पेंच लगता है अभी निकला नहीं। शनिवार को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने अपना रटा रटाया जवाब फिर दोहराया कि जिला अध्यक्षों की लिस्ट जल्दी जारी की जाएगी। पर, वे ये नहीं बता पाए कि उनकी 'जल्दी' का मतलब क्या निकाला जाए! क्योंकि, पार्टी के कार्यक्रम के मुताबिक तो 5 जनवरी को सभी जिलों के अध्यक्षों के नाम सामने आ जाना थे, जो नहीं आए। यानी अभी भी कुछ जिलों में नामों को लेकर उलझन है। उधर, पार्टी के दिल्ली में बैठे नेता अधूरी लिस्ट जारी करने के पक्ष में नहीं है। एक अनुमान यह भी है कि मलमास की वजह से यह लिस्ट शायद 14 जनवरी के बाद जारी हो!  
     प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पार्टी के जिलों के अध्यक्ष को लेकर जिस तरह के दावे कर रहे हैं, अब वे दावे भरोसे वाले नहीं कहे जा सकते। क्योंकि, वे भी हितानंद शर्मा के साथ इस मामले को लेकर दिल्ली तलब किए जा चुके हैं। इसके बावजूद अभी उन 62 नामों लिस्ट को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका, जो भाजपा के लिए जिलों की जिम्मेदारी संभालेंगे। वीडी शर्मा का यह भी कहना था कि मंडल स्तर पर लिस्ट को अलग से जारी नहीं किया गया था। वैसे ही जिला अध्यक्ष की ही प्रोसेस होगी। पार्टी में इस प्रकार के निर्णय संवार और तंत्र के आधार पर ही लिए जाते हैं, जिसकी कोई तारीख नहीं है। हम लोग लगे हुए हैं। जो भी होगा जल्द आपके समक्ष होगा। सवाल उठता है कि फिर पार्टी ने 5 जनवरी किस आधार पर तय थी! 
   भाजपा पहले 60 संगठनात्मक जिलों के लिए लिस्ट जारी करने वाली थी, अब 62 अध्यक्षों की घोषणा करेगी। सीधा सा आशय है कि बड़े जिलों में शहर और ग्रामीण के लिए अलग-अलग को जिम्मेदारी दी जाएगी। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर की ही तरह सागर और धार में भी दो अध्यक्ष बनाए जाएंगे। अभी तक भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर ही चार ऐसे जिले थे. जहां दो अध्यक्षों की व्यवस्था थी, अब इसमें सागर और धार को भी जोड़ा गया है। प्रदेश संगठन ने पहले 60 संगठनात्मक इकाइयों में से प्रत्येक के लिए नामों का एक पैनल दिल्ली भेजा था। बताया गया कि इसके बाद बड़े नेताओं ने दिल्ली तक भागदौड़ करके अपनी पसंद के नाम पर दबाव बनाया। 
   बीजेपी से जुड़े एक पदाधिकारी ने कहा कि जब पैनल की सूची दिल्ली पहुंची, तो इसमें एक और पेंच आया। बड़े नेता ने पैनल पर सहमत नहीं हुए और उन्होंने अपनी आपत्ति लगाई। इसलिए कि पार्टी का कोई भी बड़ा नेता अपने खेमे के आदमी को ही अध्यक्ष बनाने से चूकना नहीं चाहता। इसका कारण यह है कि 2028 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव तक यही अध्यक्ष पद पर रहेंगे और उनकी अनुशंसा उम्मीदवार के पैनल में मायने रखती है। ऐसे में उन्हें जिला अध्यक्ष कुर्सी पर अपना ही आदमी चाहिए, ताकि वे जिले में अपनी पसंद को आगे बढ़ा सकें।  
     जिलों का पैनल भोपाल पहुंचने के बाद 3 जनवरी को मुख्यमंत्री मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की बंद कमरा बैठक हुई थी। अंदर क्या हुआ, ये तो औपचारिक रूप से बाहर नहीं आया, पर बताते हैं कि इस बैठक में कई जिलों के पैनल के नामों पर गतिरोध था। सभी जिलों के पैनल तो दिल्ली भेज दिए गए, पर 5 जनवरी को नाम घोषित नहीं हुए। दिल्ली में यदि नाम फाइनल हो जाते तो अभी तक लिस्ट घोषित हो जाती, पर अंदर की ख़बरें बताती है कि अभी कुछ जिलों के नाम फंसे हुए हैं। अधिकांश नाम तय हो गए, पर दिल्ली के नेता अधूरी लिस्ट जारी करने के पक्ष में नहीं हैं। क्योंकि, जो जिले बचेंगे उनके बारे में साफ़ समझा जाएगा कि पेंच की वजह से इन्हें रोका गया है। दिल्ली का संगठन यह भी नहीं चाहता कि नाम की लिस्ट जारी होने के बाद कोई असंतोष सामने आए और अनुशासनहीनता जैसे हालात बने।      
      इसके अलावा लिस्ट अटकने का एक कारण यह भी बताया जा रहा कि सनातन पार्टी मलमास में किसी अच्छे फैसले को अंतिम रूप देना नहीं चाहती। समझा जाता है कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस एक माह में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। यही वजह है कि नाम फ़ाइनल होने के बाद भी लिस्ट को 14 फ़रवरी तक रोक लिया गया। कारण चाहे जो भी हो, पर 5 जनवरी को भाजपा ने किस आधार पर सभी जिलों के अध्यक्षों की घोषणा का दावा किया था उसकी हवा जरूर निकल गई। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष जिस 'जल्दी' की बात कर रहे हैं, कहीं वो 14 जनवरी ही तो नहीं है! 
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Friday, January 3, 2025

उम्मीदों से भरा होगा हिंदी सिनेमा का नया साल!

 

   नया साल सबके लिए नई उम्मीद लेकर आता है। फिल्म वालों के लिए तो नए साल से ढेरों उम्मीदें बंधी होती है। क्योंकि, उनका सारा दारोमदार और मेहनत फिल्म की हिट से ही जुड़ी होती है। यह नया साल भी उम्मीदों का पिटारा लेकर आया, जिसमें कई फिल्में हैं जो कलाकारों, निर्देशकों के साथ कई लोगों के सपनों को पूरा करेंगी। बीते साल हॉरर-कॉमेडी जैसे नए जॉनर ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया और बॉक्स ऑफिस पर सफलता का डंका बनाया। इस साल फिर वही ट्रेंड अपना असर दिखाएगा या दर्शकों का मूड बदलेगा, यह तय होना बाकी है। लेकिन, सलमान खान 'सिकंदर' से फिर अपने रंग में हैं। जबकि, शाहरुख़ खान और रणवीर कपूर की इस साल कोई फिल्म नहीं दिखाई देगी। 
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- हेमंत पाल

    या साल वैसे तो तारीखों का सिलसिला होता है, लेकिन अलग-अलग पेशे और काम धाम में इसका महत्व कुछ अलग होता है। सिनेमा में भी नया साल कुछ अलग अंदाज रखता है। यह साल हिंदी फिल्मों के नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण समझा जा सकता है। इनसे न सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री की दिशा तय होगी, बल्कि साल भर में आने वाली फिल्मों से यह भी देखने को मिलेगा कि क्या साउथ की फिल्मों का हिंदी फिल्मों पर दबदबा कायम रहेगा या नए चेहरे और नए ट्रेंड का जादू चलेगा। इस साल यह भी तय होने वाला है, कि हिंदी फिल्मों में कौन कैसा रंग जमाएगा। खास बात यह कि इसकी झलक जनवरी से ही मिलनी शुरू हो जाएगी। इसके बाद जनवरी से लेकर दिसंबर तक रिलीज होने वाली फिल्मों की कतार में हिंदी सिनेमा की आस टिकी है। क्योंकि, हर साल नए ट्रेंड की फ़िल्में दर्शकों को आकर्षित करती  है। 2023 में शाहरुख़ खान की 'पठान' और 'जवान' के अलावा सनी देओल की 'ग़दर-2' जैसी एक्शन फिल्मों ने धूम मचाई थी। 2024 में दर्शकों बदली और हॉरर-कॉमेडी वाली फिल्मों ने माहौल बनाया। स्त्री-2, भूल भुलैया-3 और 'मुँज्या' ने दर्शकों का मनोरंजन किया। अब नए साल में नजारा क्या होगा, फ़िलहाल  में कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन, लगता नहीं कि हॉरर-कॉमेडी और एक्शन  अभी जाएगा। ये 2025 में कायम रहे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 
      नए साल के पहले महीने जनवरी को दिलचस्प बनाने की फिल्मकारों ने पूरी तैयारी कर ली। पहले महीने में जो बड़ी फ़िल्में आने वाली है उनमें सोनू सूद की एक्शन फिल्म फतेह, साउथ स्टार राम चरण की गेम चेंजर, कंगना रनौत की 'इमरजेंसी' और अक्षय कुमार की 'स्काई फोर्स' का नाम है। इन फिल्मों के लिए दर्शकों में क्रेज देखा जा रहा है। इस महीने सिनेमाघरों में 12 फ़िल्में रिलीज होने वाली हैं। इनमें हिंदी से लगाकर साउथ तक की कई फ़िल्में हैं। लेकिन, इनमें चार फिल्में हिंदी की भी हैं। कुछ फिल्में ऐसी हैं, जो एक-दूसरे के साथ बॉक्स ऑफिस पर भी टकराएगी। हिंदी की 'इमर्जेन्सी' और 'आजाद' ऐसी ही फ़िल्में हैं, जो 17 जनवरी को आमने-सामने होंगी। इन दोनों के अलावा तीसरी हिंदी फिल्म 'फतेह' है जो 10 जनवरी को सिनेमाघरों में उतरेगी। इसके अलावा तमिल की 'रिंग-रिंग' 3 जनवरी को रिलीज हो चुकी है। 
      तमिल की ही 'विदामुयार्ची' 9 जनवरी को आएगी, तेलुगु की 'गेम चेंजर' की रिलीज 10 जनवरी को तय है। मलयालम की 'रचेल' भी 10 जनवरी को दर्शकों के सामने आने वाली है। 12 जनवरी को तेलुगु की 'डाकू महाराज' रिलीज होगी। 14 जनवरी संक्रांति को तेलुगु फिल्म 'संक्रांतिकी वस्तुन्नम' परदे पर दिखाई देगी। कंगना रनौत की हिंदी फिल्म 'इमरजेंसी' अब 17 जनवरी को आएगी। इस फिल्म की रिलीज तारीख पहले भी दो बार आगे बढ़ चुकी है। अजय देवगन की 'आजाद' भी इसी दिन मुकाबले में आ रही है। कन्नड़ की 'रुद्र गरुणा पूर्णा' 24 जनवरी से दर्शकों को देखने का मौका मिलेगा। अक्षय कुमार की हिंदी फिल्म 'स्काई फोर्स' 24 जनवरी को आएगी। मलयालम फिल्म 'थुडारम' की रिलीज डेट 30 जनवरी को है। 
   जहां तक साल भर में आने वाली नई फिल्मों का मुद्दा है, तो इस साल रवीना टंडन की बेटी राशा और अजय देवगन के भांजे अमन ‘आजाद’ के जरिए बड़े परदे पर उतरने जा रहे हैं। अमन ने भी अपने मामा की तरह एक्शन फिल्मों से ही अपनी शुरुआत करना तय किया है। प्रदीप रंगनाथन की तमिल फिल्म 'लव टुडे' की रीमेक ‘लवयापा’ से आमिर खान के बेटे जुनैद दर्शकों के सामने आ रहे हैं। वैसे तो उनकी पहली फिल्म ‘महाराज’ है, लेकिन वो ओटीटी पर रिलीज हुई। इस फिल्म से बोनी कपूर की बेटी खुशी बड़े परदे पर डेब्यू कर रही है। साल की सबसे बड़ी और बहुप्रतीक्षित सलमान खान की फिल्म 'सिकंदर' ईद पर आएगी। एआर मुरुगदास की इस फिल्म में सलमान का धांसू एक्शन अवतार दिखेगा। इसका अंदाजा उसके टीजर से हो चुका है। इस फिल्म में पुष्पा सीरीज की हीरोइन रश्मिका मंदाना भी लीड रोल में है। सनी देओल की अगली फिल्म 'जाट' है। रेजिना कसांड्रा और सैयामी खेर फिल्म हीरोइन हैं और रणदीप हुड्डा, विनीत कुमार सिंह व उपेंद्र लिमये जैसे कलाकार भी फिल्म में हैं। अजय देवगन की आने वाली दूसरी फिल्म ‘रेड 2’ होगी। छापेमारी पर पहले आई फिल्म को ही इसके दूसरे भाग में आगे बढ़ाया गया है। फिल्म की वाणी कपूर, रितेश देशमुख और रजत कपूर भी हैं।
     कुछ सालों से अक्षय कुमार के सितारे गर्दिश में हैं। इस साल उनकी पहली फिल्म जून में ‘हाउसफुल-5’ रिलीज होगी। इस फिल्म में कलाकारों की भीड़ है। ये हैं जैकलीन फर्नांडीज, रितेश देशमुख, जैकी श्रॉफ, संजय दत्त, अभिषेक बच्चन, नरगिस फखरी, नाना पाटेकर, डीनो मोरिया और फरदीन खान। सिद्धार्थ मल्होत्रा और जाह्नवी कपूर की फिल्म 'परम सुंदरी' भी इसी साल आएगी। 'वॉर' के बाद ऋतिक रोशन के साथ साउथ के सुपरस्टार जूनियर एनटीआर अब ‘वॉर 2’ में नजर आएंगे। टाइगर श्रॉफ को अपना करियर बचाने का मौका 'बागी-4' से मिलेगा। टाइगर की 2019 के बाद से कोई फिल्म हिट नहीं हुई। 
      इस फिल्म से पूर्व विश्व सुंदरी हरनाज संधू हिंदी फिल्मों में डेब्यू कर रही हैं। उनके साथ पंजाबी फिल्मों की हीरोइन सोनम बाजवा और संजय दत्त भी दिखाई देंगे। अभिनेता वरुण धवन की फिल्म 'है जवानी तो इश्क होना है' से बहुत कुछ तय होना है। अपने पिता डेविड धवन निर्देशित इस फिल्म पर बहुत कुछ निर्भर है। इस फिल्म की हीरोइन पूजा हेगड़े है, जिनकी फिल्म को लंबे समय से हिट का इंतजार है। इस साल अजय देवगन की तीसरी फिल्म ‘दे दे प्यार दे 2’ आएगी जिसमें वे रकुल प्रीत सिंह के साथ एक अलग अंदाज की प्रेम कहानी में नजर आएंगे। उनके साथ आर माधवन और अनिल कपूर भी दिखाई देंगे। इस साल क्रिसमस पर यशराज स्पाई यूनिवर्स की फिल्म 'अल्फा’ पहली महिला प्रधान फिल्म है, जिसमें आलिया भट्ट और शरवरी वाघ हैं। शिव रवैल इस फिल्म से बड़े परदे पर शुरुआत करेंगे। 
    बीते साल हॉरर कॉमेडी फ़िल्में स्त्री-2, भूलभुलैया-3 और मुँज्या की सफलता के बाद हॉरर कॉमेडी फिल्मों का ट्रेंड फिल्मों में आता दिखाई दिया। इस साल भी इस जॉनर की दो बड़ी फिल्में आएंगी। ये हैं आयुष्मान खुराना की 'थामा' और प्रभास की 'राजा साब' जो हॉरर कॉमेडी। इसके अलावा सीक्वल फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखते हुए कई सीक्वल फिल्में घोषित हुई। इस साल धड़क-2, सितारे जमीन पर, जॉली एलएलबी-3, हाउसफुल-5, वेलकम टु जंगल, वॉर-2, रेड और बागी-4 समेत कई सीक्वल फ़िल्में परदे पर दिखाई देने वाली है।
    फिल्मों में बायोग्राफी की वापसी का ट्रेंड भी दिखाई दिया। फरहान अख्तर की '120 बहादुर' में परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की बहादुरी दिखाई देगी। जबकि, 'इक्कीस' में परमवीर चक्र विजेता सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल की जांबाजी के किस्से होंगे। 'इमरजेंसी' में कंगना रनौत इंदिरा गांधी की भूमिका में दिखाई देगी। इस साल में परदे पर कॉमेडी की भी कई फिल्में मनोरंजन करेंगी। इनमें अक्षय कुमार की 'हाउसफुल-5' से वेलकम-3' तक हैं। वहीं 'है जवानी तो इश्क होना है' से कॉमेडी डायरेक्टर डेविड धवन की वापसी हो रही  हैं। फिल्म इंडस्ट्री ने 'पद्मावत' और 'बाजीराव मस्तानी' जैसी इतिहास आधारित फ़िल्में दी। लेकिन, ऐसी फिल्मों को लेकर विवाद भी होते रहे। इस साल विक्की कौशल की फिल्म 'छावा' कतार में है। 
    सलमान खान की 'टाइगर-3' के बाद परदे से बाहर थे। अब वे फिल्म 'सिकंदर' से वापसी करने वाले हैं। जबकि, 2022 में फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' के फ्लॉप होने के बाद आमिर खान ने फिल्मों से लंबा ब्रेक लिया था। इस साल 'सितारे जमीन पर' से उनकी वापसी होना थी। लेकिन, अब शायद ये फिल्म अगले साल बड़े पर्दे पर आएगी। 2023 में शाहरुख खान की दो फिल्मों 'पठान' और 'जवान' ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई का तूफान मचा दिया था। लेकिन, 2024 में उनकी कोई फिल्म नहीं आई। इस साल भी दर्शकों को उनकी फिल्म का इंतजार रहेगा। उनकी अगली फिल्म अब 2026 में परदे पर नजर आएगी। सिर्फ वही नहीं इस साल रणबीर कपूर भी दर्शकों को दिखाई नहीं देंगे। उनकी फिल्म 'एनिमल' को काफी पसंद किया गया था। पहले उम्मीद थी कि उनकी कोई फिल्म इस साल आएगी, पर उनकी आने वाली फिल्म 'रामायण' होगी, जो अब अगले साल (2026) ही आएगी। सनी देओल ने अपनी फिल्म 'गदर-2' से बॉक्स ऑफिस पर गदर मचाया था। उसके बाद से दर्शकों को उनकी अगली फिल्म का इंतजार है। इस साल उनकी 'जाट' और 'लाहौर 1947' रिलीज होगी।
    15 अगस्त 2024 को तीन फिल्में स्त्री 2, खेल खेल में और 'वेदा' एक साथ परदे पर उतरी थी। इस साल भी इसी दिन तीन फ़िल्में वॉर-2, द दिल्ली फाइल्स और कार्तिक आर्यन की नै फिल्मों में टकराव होगा। सिर्फ यही नहीं, अप्रैल में सनी देओल की 'जाट' के सामने अक्षय कुमार की 'जॉली एलएलबी-3' और जून में कमल हासन की 'ठग लाइफ' और 'हाउसफुल-5' एक-दूसरे को टक्कर देंगी। दशहरे पर 'कांतारा-2' के सामने वरुण धवन की 'है जवानी तो इश्क होना है' टकराएगी। पिछले साल दिवाली पर रोहित शेट्टी की अजय देवगन स्टारर सीक्वल फिल्म 'सिंघम अगेन' ने उम्मीद के मुताबिक कलेक्शन नहीं किया। 
      इस साल वे अपनी दो हिट फिल्मों के सीक्वल 'रेड-2' और 'दे दे प्यार-2' लेकर आने वाले हैं। अक्षय कुमार को भी इस साल अपनी फिल्मों से बहुत उम्मीद है। वे इस साल नए कलेवर में जोरदार वापसी करने वाले हैं। इस साल उनकी स्काई फोर्स, शंकरा, जॉली एलएलबी 3, हाउसफुल-5 और 'वेलकम टू जंगल' जैसी फिल्में आने वाली है। देशभक्ति वाली फिल्में हमेशा का ट्रेंड रहा है। इस साल भी ऐसी कहानियों का बोलबाला रहेगा। साल की शुरुआत ही 'स्काई फोर्स' जैसी फिल्म से हो रही है। साल के अंत में फरहान अख्तर की '120 बहादुर' आएगी। इसके अलावा 'लाहौर 1947' और 'इक्कीस' जैसी फिल्में भी दर्शकों के मनोरंजन की कतार में है। 
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दरवाजा तोड़ने फिर लौट आए दया!

- हेमंत पाल

     टीवी को आए 6 दशक से ज्यादा हो गए। लेकिन, इतने लंबे अरसे बाद भी यदि दर्शकों की पसंद पर खरे उतरे सीरियलों का जिक्र किया जाए, तो ऐसे सीरियल उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। इन्हीं में से एक है क्राइम-इन्वेस्टिगेशन शो 'सीआईडी' जो अपने बहुप्रतीक्षित दूसरे सीजन के साथ वापस आ गया। करीब 21 साल तक ये नॉन स्टॉप प्रसारित होता रहा। इसके बाद ये 6 साल तक छोटे परदे से गायब हो गया था। अब ये फिर अपने उसी कलेवर के साथ वापस लौट आया। जिस तरह फिल्मों का दूसरा सीजन आता है 'सीआईडी' की वापसी भी कुछ उसी तरह हुई। शो के वही तीन प्रमुख किरदार हैं जिनमें कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके प्रमुख किरदार प्रद्युम्न सिंह हैं, जो 'सीआईडी' के एसीपी की भूमिका में हैं। '
       सीआईडी' 1998 में 'सोनी टीवी' पर आना शुरू हुआ था। 2018 तक इस शो ने छोटे परदे के दर्शकों का मनोरंजन किया। एसीपी प्रद्युम्न सिंह और इंस्पेक्टर दया का आज भी लोग जिक्र करते हैं। इसके चर्चित डायलॉग 'कुछ तो गड़बड़ है' और 'दया दरवाजा तोड़ो' लोगों की बातचीत का जैसे हिस्सा बन गए। 6 साल के लंबे अंतराल के बाद 'सीआईडी' फिर छोटे परदे पर उसी चैनल पर वापस आ गया। शो के कलाकार अपने अभिनय की बदौलत घर-घर में मशहूर थे। अब एक बार फिर पसंदीदा किरदारों की छोटे परदे पर वापसी हो गई। लंबे अरसे बाद फिल्मों के प्रति दर्शकों की रूचि फिर बढ़ने लगी है। फ़िल्में हिट और सुपरहिट होने लगी। इसके अलावा ओटीटी जैसा विकल्प भी दर्शकों की पसंद में शामिल हो गया। ऐसे में टीवी सीरियल दर्शकों की रूचि से बाहर होने लगे हैं। 
        इस माहौल में 'सीआईडी' की वापसी अलग तरह का सुकून है। अपराध कथाओं पर आधारित ये सीरियल भले ही चैनल पर बंद हो गया था, पर इसकी दो एपिसोड लंबी कहानियां कई बार दिखाई देती रही। टीवी पर 'सीआईडी' की अहमियत वैसी ही थी, जैसी रामानंद सागर के 'रामायण' और बीआर चोपड़ा की 'महाभारत' के अलावा 'हम लोग' और 'बालिका वधु' जैसे सीरियलों की रही। सीरियल के हर एपिसोड में किसी रोचक आपराधिक केस की गुत्थी 'सीआईडी' की टीम सुलझाती रही। कथानक की रोचकता और डायरेक्शन ने दर्शकों को इससे बांध रखा था। लेकिन, 6 साल के लिए जो साथ छूट गया था, वो फिर जुड़ गया। एसीपी के किरदार में शिवाजी साटम, आदित्य श्रीवास्तव और दयानंद शेट्टी की तिकड़ी पर ही इस सीरियल का दारोमदार रहा, वही आज भी है। 'सीआईडी-2' के एपिसोड सोनी टीवी के साथ अब ओटीटी 'सोनी लिव' पर भी आने लगे। बहुचर्चित किरदार एसीपी प्रद्युम्न सिंह, इंस्पेक्टर अभिजीत और दया अपनी इन्वेस्टिगेशन करने वापस आ गए। 
       टेलीविजन पर दो दशकों तक चलने वाले सीरियलों का इतिहास काफी लम्बा है। इसके सामने सास-बहू पुराण और पारिवारिक षड्यंत्रों वाले सीरियलों को तब तक खींचा जाता रहा, जब तक दर्शक उससे बिदकने न लगें! लेकिन, लम्बा चलकर भी जो शो दर्शकों की पसंद बने रहे, तो उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है। 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे धार्मिक ग्रंथों पर बने सीरियलों के बरसों तक चलने के अपने कारण हैं। उनका कथानक कई मोड़ लिए होता है। इनके कथानक को बीच में ख़त्म नहीं किया जा सकता। जबकि, अधिकांश लम्बे चलने वाले सीरियलों की कहानी को रबर की तरह तब तक खींचा जाता है, जब तक वो टूट न जाए! ऐसे में 'सीआईडी' जैसे किसी टीवी सीरियल का लगातार 21 साल मनोरंजन करना मायने रखता है। उसके बाद भी यदि दर्शकों में उसकी लोकप्रियता बनी हुई है, तो ये एक बड़ी उपलब्धि कही जाएगी! सोनी टीवी के अपराध आधारित सीरियल 'सीआईडी' ने ये कामयाबी हासिल की थी। ये शो अपने पहले सीजन में दो दशक तक से दर्शकों का मनोरंजन करता रहा और आज भी इसे पसंद करने वाले कम नहीं हुए। इस शो में हर बार नए केस आते रहते हैं, जिन्हें सीआईडी की पूरी टीम मिलकर हल करती है।
     'सीआईडी' की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है कथानक की कसावट और रोचकता के साथ कलाकार का अभिनय। एसीपी प्रद्युम्न सिंह के नाम से शिवाजी साटम इस शो के केंद्रीय पात्र हैं। इसके अलावा आदित्य श्रीवास्तव, दयानंद शेट्टी, दिनेश फड़नीस, श्रद्धा मुसले, अंशा सय्यद और नरेंद्र गुप्ता जैसे कलाकारों की टीम ने जो किया वो कामयाबी का शिखर बन गया। यह शो अपराध और हत्या के रहस्यों को सुलझाने वाली पैचीदा कहानी के लिए जाना जाता रहा है। दो दशक किसी एक शो का परदे पर बने रहना आसान नहीं है। यह शो दुनिया में सबसे लम्बे समय तक चलते रहने वाले शो की लिस्ट में भी शामिल किया गया था। शो के निर्माता और एसीपी प्रद्युम्न बने शिवाजी साटम ने खुद एक बार कहा था कि उन्हें कभी आभास नहीं था कि 'सीआईडी' का सफर इतना लम्बा होगा। 'सीआईडी' पूरी दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाला शो बना, तो इसके पीछे दर्शकों का लगाव ही रहा।
     छह साल पहले 27 अक्टूबर 2018 को जब 21 साल तक चलने के बाद यह शो बंद होने वाला था, तब इसे लेकर कई तरह की चर्चा मीडिया में थी। उन्हीं में से एक थी चैनल और शो के प्रोड्यूसर के बीच सब कुछ ठीक नहीं है, इसलिए शो को बंद किया जा रहा। दया का किरदार निभाने वाले दयानंद शेट्टी ने भी कहा था कि शो के बंद होने की बात सुनकर मैं स्तब्ध हूं। शो सक्सेसफुली चल रहा था, फिर क्या वजह थी कि इसे ऑफ एयर किया जा रहा। जब ये शो बंद हुआ, इसके 1546 एपिसोड दिखाए जा चुके थे। दर्शकों के कई ग्रुप ने शो को चालू रखने की मांग की थी। अचानक शो बंद होने से दर्शक बेहद निराश हुए थे और उन्होंने चैनल-मेकर्स से इसे बंद करने का कारण भी पूछा। लेकिन, किसी के पास कोई ठोस कारण नहीं था। इसलिए माना गया कि ये चैनल का ही फैसला है। जिस समय 'सीआईडी' का प्रसारित हो रहा था, उसी समय सोनी चैनल पर ही 'क्राइम पेट्रोल' भी दिखाया जाता था। यह शो भी अपराध कथाओं पर आधारित था। इसमें भी इन्वेस्टिगेशन दिखाई जाती थी। इसके अलावा एक अन्य चैनल पर 'सावधान इंडिया' भी दिखाया जाता था। इन दो शो से 'सीआईडी' को काफी टक्‍कर मिली थी। हालांकि, दया उस चुभन को लंबे समय तक नहीं भूले कि कैसे 'सीआईडी' के साथ सब कुछ खत्म हो गया था। 2018 में शो ऑफ-एयर हुआ, किसी को इसका कारण नहीं पता था। शो अच्छा चल रहा था लेकिन ऑर्गेनाइज्‍ड तरीके से इसे टारगेट किया गया। उनका तो ये भी कहना था कि 2016 से ही चैनल इसे बंद करने की कोशिश में था। आखिरकार 2018 में उन लोगों ने शो बंद कर ही दिया। 
     1998 में जब 'सीआईडी' शुरू हुआ था, तब टीवी पर कोई क्राइम इन्वेस्टिगेशन आधारित शो नहीं था। इसके बाद कई चैनलों पर ऐसे शो शुरू हुए, पर 'सीआईडी' की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ा। यही कारण है कि जब तक ये शो चलता रहा सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले टीवी क्राइम शो में एक बना रहा। इस शो के डायलॉग 'दया, दरवाजा तोड़ दो' और 'कुछ तो गड़बड़ है' सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हुए।  लॉकडाउन के दौर में जब सिनेमाघरों के दरवाजे बंद कर दिए गए और सीरियलों की शूटिंग पर भी रोक लग गई थी, तब घरों में बंद दर्शकों के लिए टीवी पर 'रामायण' और 'महाभारत' के साथ 'सीआईडी' के पुराने सीरियल भी दिखाए गए थे। तब भी दया ने कहा था मुझे नहीं पता था कि 'सीआईडी' रोज सुबह फिर से आ रहा है। लोग मुझे कॉल और मैसेज करके बताते कि आप सभी को टीवी पर फिर से देखना अच्छा लग रहा है। तब मुझे पता चला कि लॉकडाउन में चैनल ने शो को फिर से दिखाने का फैसला किया है। मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी। अब, जबकि 'सीआईडी' का दूसरा सीजन परदे पर है दया निश्चित रूप से बहुत खुश होंगे। क्योंकि, दरवाजा तो दया जैसे ताकतवर कलाकार ही तोड़ करते हैं!  
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बीता बरस 2024 : कुछ ने जीता दिल, कुछ गिरी धड़ाम से

 
    हिंदी सिनेमा की अपनी अलग परंपरा और इतिहास है। सौ साल से ज्यादा पुरानी फिल्म इंडस्ट्री ने कई उतार-चढ़ाव देखे। इसके बावजूद दर्शकों की पसंद और नापसंद को फिल्मकार अब तक समझ नहीं सके। कब कौन सी फिल्म दर्शकों का दिल जीत लेगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यही वजह है कि कई बार बड़े बजट और मल्टी स्टार फिल्म धड़ाम हो जाती है और छोटे बजट की फिल्म दर्शकों के सिर चढ़कर बोलती है। बीते बरस भी यही हुआ। 'लापता लेडीज' जैसी अनाम कलाकारों की फिल्म दर्शकों पसंद पर खरी उतरी। जबकि, 'सिंघम अगेन' और 'मैदान' जैसी सितारों से भरी फिल्म नहीं चली। साल की सबसे खास बात ये रही कि दर्शकों ने हॉरर-कॉमेडी वाली फिल्मों को हाथों-हाथ लिया। इसके साथ ही बड़े कलाकारों की जगह छोटे कलाकारों का रंग खूब जमा। राजकुमार राव और कार्तिक आर्यन दर्शकों के पसंदीदा रहे!
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- हेमंत पाल

      र व्यक्ति के लिए हर साल कुछ अलग होता है। जिस तरह घटनाएं अपने आपको नहीं दोहराती, वही स्थिति सिनेमा की भी है। यहां तक कि सिनेमा की दुनिया में भी हर साल उतार-चढाव आते रहते हैं। कभी दर्शक रिलीज हुई ज्यादातर फिल्मों को पसंद नहीं करते, पर बीता साल इस मामले में लकी रहा कि दर्शकों ने अधिकांश फिल्मों को सराहा। उनमें भी हॉरर-कॉमेडी और एक्शन फिल्मों का जलवा कुछ ज्यादा छाया। स्त्री-2, भूल भुलैया-3 और 'मुँज्या' के अलावा सिंघम अगेन, किल और 'फाइटर' जैसी फिल्मों को सराहा गया। साल खत्म होने से पहले 'पुष्पा-2' रिलीज हुई। अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। इसने कई बड़ी फिल्मों के रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए और हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी ओपनिंग फिल्म बन गई। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के हिसाब से भी यह साल फिल्मों के लिए अच्छा कहा जा सकता है। लेकिन, कई बड़ी फ़िल्में फ्लॉप भी हुई। सबसे खास बात यह रही कि बीते बरस बड़े सितारों का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर नहीं बोला, बल्कि राजकुमार राव और कार्तिक आर्यन की फिल्मों के अच्छी कमाई की। अक्षय कुमार की फिल्मों के फ्लॉप होने का सिलसिला इस साल भी जारी रहा। अजय देवगन भी दर्शकों को प्रभावित करने में नाकाम ही रहे। 
      कहा जा सकता है कि फिल्म इंडस्ट्री के लिए साल 2024 बीते सालों के मुकाबले बेहतर रहा। ऐसी कई फिल्में आई, जिसे दर्शकों ने पसंद किया। लेकिन, कुछ फिल्में ऐसी भी हैं, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर खास कमाई नहीं की, लेकिन उनकी कहानी ने लोगों को प्रभावित किया। इस लिस्ट में किरण राव के डायरेक्शन में बनी 'लापता लेडीज' भी है, जिसे भारत की तरफ से ऑस्कर में भेजा गया है। यह जिक्र उन फिल्मों का जो सुपरहिट रही। ऐसी फिल्मों में '2-स्त्री' अव्वल रही, जिसमें श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी ने काम किया। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर छाई रही और बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्ड वाइड 858 करोड़ का कलेक्शन किया। 'भूल भुलैया-3' दिवाली के मौके पर रिलीज हुई थी। 150 करोड़ में बनी इस फिल्म का वर्ल्ड वाइड ग्रॉस कलेक्शन 396.7 करोड़ बताया गया। फिल्म का घरेलू कलेक्शन 260.7 करोड़ है। कार्तिक आर्यन की इस फिल्म ने कलेक्शन के मामले में 'सिंघम अगेन' को भी पीछे छोड़ दिया। 
      प्रभास, दीपिका पादुकोण और अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कल्कि 2898 एडी' भी बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। फिल्म को दर्शकों ने पसंद किया। कलेक्शन की बात करें तो बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने 378.4 करोड़ का वर्ल्ड वाइड कलेक्शन किया। विजय सेतुपति की फिल्म 'महाराजा' कुछ अलग तरह की फिल्म रही, जिसमें सस्पेंस और थ्रिलर है। फिल्म की कहानी ने दर्शकों को बांध दिया था। अजय देवगन और आर माधवन की 'शैतान' भी हिट रही। इस हॉरर फिल्म को पसंद किया गया। फिल्म ने कलेक्शन भी अच्छा किया था और सिनेमाघरों में टिकी रही। इस लिस्ट में किरण राव के डायरेक्शन में बनी फिल्म 'लापता लेडीज' को भूला नहीं जा सकता। 'लापता लेडीज' में ज्यादातर नए कलाकार हैं, पर फिल्म के कथानक ने दर्शकों को बांधकर रखा। फिल्म की कहानी इतनी दमदार थी कि दर्शकों को वो अपने आसपास की घटना लगी। यह ओटीटी की सबसे ज्यादा देखने वाली फिल्म तो बनी, इसका वर्ल्डवाइड कलेक्शन तो बेहद सीमित 27.06 करोड़ रहा। वहीं घरेलू कलेक्शन भी 20.58 करोड़ रहा।
    साल की शुरुआत में आई ऋतिक रोशन, दीपिका पादुकोण और अनिल कपूर की फिल्म 'फाइटर' को देखने वालों ने पसंद किया। लंबे समय से दर्शक ऋतिक और दीपिका की जोड़ी को देखने का इंतजार कर रहे थे। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने 355.4 करोड़ का वर्ल्ड वाइड ग्रॉस कलेक्शन किया है। मल्टी स्टार फिल्म 'सिंघम अगेन' देखने वालों को अच्छी तो लगी, लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षा के अनुरूप कलेक्शन नहीं कर सकी। पर, फिल्म ने हंसाया बहुत। रणवीर सिंह की एक्टिंग की अच्छी तारीफ हुई। उनकी परफॉर्मेंस से लोग बहुत प्रभावित हुए। राघव जुयाल और लक्ष्य की एक्शन फिल्म 'किल' में जबरदस्त मारधाड़ दिखाई गई। फिल्म की कहानी एक ट्रेन की थी, जिसमें बहुत खून खराबा होता है। इस लिस्ट की आखिरी फिल्म 'मंजुमेल बॉयज' एक सच्ची घटना पर आधारित है। ये तमिलनाडु के जंगलों में गुना केव्स की सच्ची घटना है। ये मलयालम फिल्म है, जिसे ओटीटी पर डब किया गया है। इसके अलावा 'देवरा-1' ने 443.8 करोड़ का वर्ल्ड वाइड ग्रॉस कलेक्शन किया। 
    हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए साल संतोषजनक कहा जाएगा। कुछ बड़े बजट की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई, तो कुछ कम बजट की फिल्मों ने धमाल मचाया। हॉरर-कॉमेडी वाली फिल्मों को दर्शकों ने बहुत पसंद किया। पसंद भी इतना किया गया कि बॉक्स ऑफिस पर भी इन फिल्मों ने अच्छी कमाई की। 'मुंज्या' इस साल के शुरू में आई, जिसे देखकर हर दर्शक प्रभावित हुआ। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर इतना धमाल मचाया कि दर्शक चौंक गए। 'मुंज्या' ने बॉक्स ऑफिस पर 132 करोड़ का कलेक्शन किया। जबकि, फिल्म का बजट 30 करोड़ के आसपास रहा। श्रद्धा कपूर और राजकुमार राव की फिल्म 'स्त्री-2' अगस्त में रिलीज हुई। फिल्म के साथ दो और बड़ी फिल्में आईं थीं। 'स्त्री-2' ने दोनों बड़ी फिल्मों को पटखनी देकर बॉक्स ऑफिस पर धमाल कर दिया। 'स्त्री-2' साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक है। इस फिल्म ने वर्ल्ड वाइड 840 करोड़ का कलेक्शन किया। जबकि, फिल्म की लागत 50 करोड़ थी। ऐसी फिल्मों में कार्तिक आर्यन की 'भूल भुलैया-3' ने भी रंग जमाया। ये फिल्म दर्शकों को डराने के साथ हंसाती भी है। 'भूल भुलैया-3' का बजट 150 करोड़ था और इसने बॉक्स ऑफिस पर 450 करोड़ से ज्यादा का कलेक्शन किया। सोनाक्षी सिन्हा के डबल रोल वाली फिल्म 'काकुड़ा' ओटीटी पर रिलीज हुई थी। हॉरर कॉमेडी पसंद करने वालों के लिए ये अच्छी फिल्म रही। 
     फिल्मों के अलावा कलाकारों के लिए भी यह साल बेहतरीन साबित हुआ। लोगों ने कई कलाकारों के अभिनय को सराहा। इस साल अपनी अदाकारी से लोगों का दिल जीतने वाले कलाकारों का जिक्र किया जाए तो राजकुमार राव का नाम ही सबसे पहले आता है। यह साल इस अभिनेता के लिए सफल साबित हुआ। इस साल उनकी कई फ़िल्में सुपरहिट रही। राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की 'स्त्री-2' को दर्शकों का जबरदस्त प्यार मिला। फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई की। फिल्म में पंकज त्रिपाठी के अभिनय को भी पसंद किया गया। इस फिल्म ने उन्हें बॉक्स ऑफिस का महाराजा बना दिया।
   राजकुमार राव की हिट फिल्मों में 'श्रीकांत' भी है, जो मई में रिलीज हुई। इसमें राजकुमार ने एक दृष्टिहीन का किरदार निभाया है। इस फिल्म को अच्छी सफलता भी मिली। फिल्म ने 50.05 करोड़ का कलेक्शन किया। उनकी फिल्म 'विक्की विद्या का वो वाला वीडियो' फिल्म रिलीज हुई। इसमें उनके साथ तृप्ति डिमरी को देखा गया। इस कॉमेडी फिल्म की कहानी को दर्शकों ने पसंद किया, पर फिल्म चली नहीं। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ 41.93 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया। राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज माही' का नाम भी इस सूची में है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 36.28 करोड़ का कलेक्शन किया। जाह्नवी और राजकुमार की जोड़ी को भी दर्शकों ने पसंद किया, पर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर जलवा नहीं दिखा। 
      इस साल कई बड़े बजट वाली और बड़े कलाकारों की फ़िल्में आईं। लेकिन, कई फ़िल्में उम्मीद के मुताबिक बॉक्स ऑफ़िस कमाल नहीं कर सकी और न दर्शकों पर खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। आलिया भट्ट की फ़िल्म 'जिगरा' से लेकर कार्तिक आर्यन की चंदू चैंपियन, विक्की विद्या का वो वाला वीडियो समेत कई फिल्में हैं, जिन्होंने दर्शकों पर असर नहीं छोड़ा और इस वजह से बॉक्स ऑफिस पर भी फ्लॉप रही। आलिया भट्ट की फिल्म 'जिगरा' में भाई-बहन का प्रेम दिखाया गया। लेकिन, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असर नहीं दिखा सकी। इसका बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन: मात्र 55.05 करोड़ रुपए ही रहा। अक्षय कुमार, टाइगर श्रॉफ की फिल्म 'बड़े मियां छोटे मियां' भी उन फिल्मों में शामिल है जिसे दर्शकों ने नापसंद किया। फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन भी 102.16 करोड़ रुपए रहा। पैरालंपिक में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले मुरलीकांत पेटकर की जीवनी पर आधारित फिल्म 'चंदू चैंपियन' भी नहीं चली। कार्तिक आर्यन की इस फिल्म ने 88.14 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया!
      इंडियन फुटबॉल टीम के मैनेजर और कोच सैयद अब्दुल रहीम की रियल लाइफ आधारित फिल्म 'मैदान' भी उम्मीद पर खरी नहीं उतरी। सैयद अब्दुल रहीम को इंडियन फुटबॉल का आर्किटेक्ट माना जाता है। इसमें अजय देवगन की मुख्य भूमिका है। फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 71 करोड़ रुपए ही रहा! 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 814 और भारतीय इतिहास में अन्य हवाई जहाज अपहरण ने फिल्म 'योद्धा' के लिए प्रेरणा का काम किया। सिद्धार्थ मल्होत्रा, राशि खन्ना और दिशा पटानी मुख्य कलाकार है। 'योद्धा' ने बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ 35.56 करोड़ रुपए कमाए। 
     शाहिद कपूर और कृति सेनन की फिल्म 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' इंजीनियर और रोबोट की प्रेम कहानी है। फिल्म को दर्शकों से ज्यादा प्यार नहीं मिला और 85.16 करोड़ रुपए पर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन सिमट गया। राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की फिल्म 'मिस्टर और मिसेज माही' क्रिकेट के जुनून पर आधारित फिल्म है ,पर फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पटखनी खा गई। फिल्म ने सिर्फ 35.55 करोड़ रुपए कमाए! राजकुमार राव और तृप्ति डिमरी की फिल्म 'विक्की विद्या का वो वाला वीडियो' में कॉमेडी जरूर थी लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पूरी तरह फ्लॉप रही। 
      फिल्मों के दर्शक अब ओटीटी तरफ भी जाने लगे हैं और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज 'हीरामंडी: द डायमंड बाजार' के सुपरहिट होने का। ओटीटी पर रिलीज के बाद से इस सीरीज ने तहलका मचा दिया। 'हीरामंडी' ने ग्लोबल लेवल पर भी अपना असर दिखाया। शानदार विज़ुअल्स, बेहतरीन संगीत, बांधने वाली कहानी, निर्देशन और कलाकारों के बेहतरीन परफॉर्मेंस ने दर्शकों के साथ समीक्षकों का भी दिल जीत लिया। गूगल ट्रेंड्स में ये वेब सीरीज साल 2024 की सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली सीरीज बन गई। ग्लोबल लिस्ट में जगह बनाने वाली यह एकमात्र भारतीय वेब सीरीज है। इसके अलावा मिर्जापुर-3, ग्यारह ग्यारह, पंचायत-3, सिटाडेल : हनी बनी, मर्डर इन माहिम और शेखर होम को दर्शकों ने पसंद किया। 
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