Tuesday, November 11, 2025

'हक़' से फिर चर्चित हुआ इंदौर का शाहबानो विवाद

- हेमंत पाल 

      फिल्मों के साथ कानूनी विवाद जुड़े होना नई बात नहीं है। ऐसी फिल्मों की कहानी बहुत लंबी है। ऐसी कई फ़िल्में हैं, जो रिलीज से पहले कानूनी झमेलों में फंसी और निपटारे के बाद ही ही उन्हें परदे का मुंह देखना नसीब हुआ। कई फ़िल्में तो इतनी ज्यादा उलझन में आई कि वास्तविक फिल्म कभी रिलीज ही नहीं हो सकी। ऐसी फिल्मों में आपातकाल के दौर की फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' विवाद सबसे ज्यादा चर्चित हुआ। उसके बाद भी कई फिल्मों को लेकर ऐसे विवाद हुए। ताजा दौर में इमरजेंसी, जॉली एलएलबी-3, छावा और मराठी फिल्म 'फुले' भी ऐसे मसलों में फंसकर निकली। 
     नया विवाद इंदौर के चर्चित शाहबानो प्रकरण पर आधारित फिल्म 'हक़' को लेकर उठा, जिसने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की नींव रखी।  इस मसले पर 1985 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर नई बहस छेड़ दी थी। तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ उनकी लड़ाई ने न सिर्फ व्यक्तिगत न्याय की मांग की, बल्कि यह फैसला पूरे समाज के लिए मिसाल बना। इसके 33 साल बाद, जब 2019 में तीन तलाक को अवैध घोषित करने वाला कानून लागू हुआ, तो यह शाहबानो की उस जीत का प्रतीक था, जो अलख उन्होंने जगाई थी। अब इस संघर्ष की कहानी बड़े परदे उतारी गई, जिस पर कानूनी विवाद हुआ। लेकिन, हाई कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और फिल्म की रिलीज को हरी झंडी दिखाई। फिल्म 'हक' के जरिए अब दुनिया तीन तलाक को कोर्ट ले जाने वाली शाहबानो के संघर्ष की कहानी देखेगी। 
     यह फिल्म एक ड्रामा है, जो मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से प्रेरित है। फिल्म पर्सनल लॉ और सेक्युलर लॉ के बीच की बहस को सामने लाती है। इसमें इमरान हाश्मी और यामी गौतम की मुख्य भूमिकाएं हैं। दरअसल, 'हक़' की कहानी जिग्ना वोरा की किताब 'बानो: भारत की बेटी' पर आधारित एक काल्पनिक और नाटकीय कहानी है। जबकि, वास्तव में यह घटना शाहबानो बेगम के पुरुष प्रधान समाज में अपने स्वाभिमान और हक़ के लिए लड़ी सच्ची घटना है। यह बहस मुस्लिम समाज में आज भी प्रासंगिक है। इस फिल्म में ये मुद्दे गंभीरता से उठाए गए हैं कि क्या न्याय के अवसर सभी के लिए समान नहीं होना चाहिए! अब एक राष्ट्र, एक कानून का समय आ गया! व्यक्तिगत आस्था और धर्मनिरपेक्ष कानून के बीच की कैसी रेखा होना चाहिए यह मुद्दा भी उठा। 
   इसके अलावा यह सवाल भी उठा कि क्या अब समान नागरिक संहिता की जरूरत महसूस नहीं हो रही। फिल्म ने ऐसे कई सवालों को पुरजोर तरीके से उठाया है। 'हक़' बनाने वाली जंगली पिक्चर्स ने हमेशा ही ऐसी फिल्में बनाई है, जो सामान्य से कुछ अलग होती हैं और समाज के पुराने नियमों को चुनौती देती हैं। राज़ी, तलवार और 'बधाई दो' जैसी फिल्में बनाने के बाद जंगली पिक्चर्स ने अब मुस्लिम महिलाओं के इस मुद्दे को उठाया। 'आर्टिकल 370' के बाद यामी गौतम 'हक़' में नए कलेवर में दिखाई दी। फिल्म में वे ऐसी मुस्लिम महिला की भूमिका में है, जो अन्याय के सामने झुकने से इंकार करती है। वह गलत तरीके से बेसहारा की गई औरत की भूमिका में है, जो अपने और अपने बच्चों के लिए धारा 125 के तहत अपने 'हक' की मांग करते हुए कोर्ट में एक बड़ी लड़ाई लड़ती है और अंततः जीतती है।
     परित्यक्ता मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण की राशि पाने के अधिकार की नींव जिस शाहबानो केस से ही पड़ी थी, उस पर बनी फिल्म 'हक' को रिलीज से पहले कानूनी विवाद का सामना करना पड़ा। शाहबानो की बेटियों ने फिल्म की कहानी पर ऐतराज जताया। फिल्म में उनकी मां के निजी जीवन को दिखाया गया, जिस पर उन्होंने आपत्ति उठाई। सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष करने वाली इंदौर की महिला शाहबानो की बेटियों ने फिल्म पर ऐतराज जताया है कि फिल्म में उनकी मां के निजी जीवन को दिखाया गया है। उनका तर्क था कि फिल्म बनाने के लिए उनसे अनुमति नहीं ली गई। इस कारण फिल्म 'हक' की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई। लेकिन, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फिल्म 'हक' की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
    विवादों से परे शाहबानो की कहानी हमेशा याद दिलाएगी कि एक महिला की दृढ़ता कानून, समाज और परंपरा तीनों को बदलने की ताकत रखती है। अदालत ने कहा कि यह फिल्म स्पष्ट रूप से काल्पनिक और नाटकीय रूपांतरण है। फिल्म 1985 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से भी प्रेरित है। फैसले में कहा कि फिल्म के डिस्क्लेमर में यह साफ लिखा है कि यह एक काल्पनिक रचना है, जो किसी व्यक्ति की सच्ची कहानी नहीं है। इसलिए इसे गलत चित्रण या मनगढ़ंत कहानी नहीं कहा जा सकता। अदालत ने माना कि जब कोई फिल्म वास्तविक घटनाओं से प्रेरित होती है, तो उसमें कुछ रचनात्मक छूट दी जा सकती है, और केवल कुछ व्यक्तिगत या नाटकीय विवरण जोड़ने से उसे आपत्तिजनक नहीं कहा जा सकता। 
      'हक़' के अलावा भी कई फिल्मों को लेकर अदालती विवाद हुए हैं। प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की फिल्म ‘फुले' पर भी ‘ब्राह्मणों' के अपमान का आरोप लगा और विवाद हुआ। ब्राह्मण समुदाय ने फिल्म के खिलाफ आपत्ति जताई और उन्हें अपमानित करने का आरोप लगाया, विरोध के बाद सेंसर बोर्ड ने फिल्म में कई कट लगाए और आखिरकार सिनेमाघरों में दर्शकों के सामने फिल्म आने में सफल रही। 'फुले' सामाजिक कार्यकर्ता ज्योतिराव गोविंदराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ और महिलाओं के शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी थी। फिल्म ‘इमरजेंसी' भी विवाद में फंसी। कंगना रनौत निर्देशित और अभिनीत फिल्म में वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के किरदार में नजर आई थीं। 1975 में लगाए गए 'इमरजेंसी' पर आधारित फिल्म की रिलीज को लेकर काफी विवाद हुआ। विरोध करने वालों ने ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे। सेंसर ने कुछ कट के बाद फिल्म की रिलीज को अनुमति दी थी।
    विक्की कौशल और रश्मिका मंदाना की ‘छावा' भी विवादों में रिलीज होने वाली फिल्मों की लिस्ट में है। लेकिन, इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 600 करोड़ का आंकड़ा भी पार किया। सनी देओल, रणदीप हुड्डा जैसे कलाकारों की फिल्म 'जाट' को लेकर भी विवाद। फिल्म के एक सीन को लेकर ईसाई समुदाय ने नाराजगी जताई और फिल्म की टीम के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई। समुदाय ने आरोप लगाया कि फिल्म में ईसाई समुदाय का अपमान किया गया और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया। शाहबानो मामले पर बनी फिल्म 'हक़' में विवाद कुछ नहीं है। क्योंकि, शाहबानो प्रकरण सुप्रीम कोर्ट तक गया और वहां इस पर फैसला हुआ। यदि इस महत्वपूर्ण मामले पर फिल्म नहीं बनती, तो यह सामाजिक बदलाव सिर्फ कानूनी किताबों में दर्ज होकर रह जाता। 
     शाहबानो का जीवन संघर्ष नई पीढ़ी के सामने नहीं आ पाता। शाहबानो के संघर्ष ने ही पहली बार मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की नींव रखी। 1985 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दहलीज पर एक नई बहस छेड़ी थी। तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ उनकी लड़ाई ने न सिर्फ व्यक्तिगत न्याय की मांग की, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक मिसाल बन गई। 33 साल बाद, जब 2019 में ट्रिपल तलाक को अवैध घोषित करने वाला कानून लागू हुआ, तो यह भी शाहबानो की जीत का प्रतीक था। अब ये संघर्ष बड़े पर्दे पर उतरा है। यामी गौतम और इमरान हाशमी की फिल्म 'हक' के जरिए दर्शक देखेंगे कि 3 तलाक को कोर्ट ले जाने वाली शाहबानो के संघर्ष की कहानी आखिर क्या थी! 
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