Saturday, May 10, 2014

तीसरा मोर्चा भी 'उम्मीद' से!

इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के फ़िर सत्ता में आने की संभावनाएं बेहद क्षीण हैं। क्योंकि, अपने दस साल के कार्यकाल मे कांग्रेस की यूपीए सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया, जो वोटर उन्हें एक और मौक़ा दे! ऐसे में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के देश की सत्ता मे आने के आसार प्रकट किए जा रहे हैं। लेकिन, यदि एनडीए 272 का जादुई आंकड़ा जुटा पाने मे सफल नहीं हुई, तो दूसरा विकल्प तीसरे मोर्चे को माना जा सकता है! लेकिन, अभी इस मोर्चे का क़ोई आकार सामने नहीं आया है। यदि एनडीए पिछड़ा और तीसरे मोर्चे के भाग्य से छींका टूटा तो देश को अगले 5 साल से पहले एक और चुनाव का सामना पड़ सकता है। ये भी तय है कि कांग्रेस के बगैर तीसरे मोर्चे की सरकार बन पाना संभव नहीं है! लेकिन, राहुल गाँधी ने तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की संभावना और जोड़-तोड़ से सरकार बनाने से इंकार किया है।  
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 समाजवादी पार्टी मुखिया और तीसरे मोर्चे के पैरोकार मुलायम सिंह यादव ने हमेशा ही लोकसभा चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना को खारिज किया है। उनका तर्क था कि यदि अभी ऐसा हुआ होता तो विभिन्न दलों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर मतभेद उत्पन्न हो जाते। यादव ने हर बार दोहराया कि तीसरे मार्चे का गठन चुनाव के बाद होगा। उन्होंने साथ ही यह भी दावा किया कि देश का अगला प्रधानमंत्री गठबंधन के सहयोगी दलों से होगा। यादव ने कहा कि तीसरे मोर्चे का गठन चुनाव से पहले संभव नहीं था, क्योंकि टिकट बंटवारे और सीट साझा करने को लेकर पार्टियों के बीच मतभेद हो सकते थे। 
  उन्होंने कहा कि यही कारण है कि प्रस्तावित मोर्चे की सभी राजनीतिक पार्टियां अपने बल पर चुनाव लड़ा, और चुनाव के बाद एकसाथ आ जाएंगी। यादव ने कहा कि उनकी पार्टी सपा माकपा नेता प्रकाश करात और भाकपा नेता एबी बर्धन के सम्पर्क में है और इसको लेकर एक समझ है। उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि तीसरे मार्चे को केंद्र की सत्ता में आना चाहिए। देश का अगला प्रधानमंत्री तीसरे मोर्चे का उम्मीदवार होगा। उन्होंने दावा किया कि तीसरे मोर्चे का उम्मीदवार ही देश का अगला प्रधानमंत्री होगा।
समर्थन से इंकार 
  लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस द्वारा तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की सम्भावनाओं को लेकर अटकलें लगाए जाने के बीच पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी मोर्चे को समर्थन नहीं देगी। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल में कांग्रेस द्वारा तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की सम्भावना व्यक्त की थी। उसके बाद इसकी अटकलें तेज हो गयी थीं। हालांकि बाद में खुर्शीद अपने बयान से पलट गए थे। चुनाव के अंतिम दौर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तीसरे मोर्चे की सरकार को समर्थन देने की बात को नकार दिया। अलबत्ता कुछ दिन पूर्व कांग्रेस के कुछ नेताओं की ओर से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने संबंधी जो बयान आ रहे थे, उससे मुलायम सिंह यादव और जे. जयललिता को जरूर खुशी मिली होगी, क्योंकि ये दोनों अब भी खुलकर तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की उम्मीद जाहिर कर रहे हैं।
  अब तक इन दोनों नेताओं ने ही प्रधानमंत्री बनने की मंशाजाहिर की है। कुछ ऐसी ही उम्मीद ममता बनर्जी और मायावती ने भी लगा रखी है, लेकिन उन्होंने अपनी आकांक्षाओं को जाहिर नहीं किया है। जाहिर है, कांग्रेस की ओर से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात निकलते ही इन नेताओं को अपनी उम्मीद परवान चढ़ती नजर आने लगी होगी। यह बात और है कि नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल का गुब्बारा फोड़ने का दावा करते रहे राहुल ने जल्द ही तीसरे मोर्चे की सरकार को समर्थन का गुब्बारा भी फोड़ दिया।
 कांग्रेस ने सबसे पहले 1979 में जनता पार्टी को तोड़कर चौधरी चरणसिंह की सरकार बनवाई थी। तब कांग्रेस और उसकी नेता इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी से ज्यादा राजनीति में खुद की प्रासंगिकता को लेकर फिक्रमंद थीं। उन्हें उसी जनता पार्टी की आपसी कलह से मौका मिल गया, जिसने प्रचंड बहुमत से उन्हें हराकर पहली बार देश में गैरकांग्रेसी सरकार बनाई थी। इंदिरा के सहयोग से चरण सिंह प्रधानमंत्री तोबने, लेकिन वह सरकार उस संसद का भी मुंह नहीं देख पाई, जिसके प्रति वह जवाबदेह होती है। यह सरकार कुछ दिन ही चल पाई थी। तब चौधरी चरण सिंह की अगुआई वाले धड़े को तीसरा मोर्चा नहीं कहा गया था, लेकिन अपनी सियासी तासीर में वह तीसरे मोर्चे से ही जुड़ा था। उसका फायदा भी कांग्रेस को मिला और 1980 में इंदिरा गांधी की वापसी हो गई।
 दूसरा मौका कांग्रेस को 11 साल बाद दिसंबर 1990 में मिला। तब जनता दल में वीपी सिंह और चंद्रशेखर में मनमुटाव चल रहा था। इसका फायदा कांग्रेस ने उठाया। वीपी सिंह की सरकार राममंदिर आंदोलन के रथी आडवाणी की गिरफ्तारी और समर्थन वापसी के बाद अल्पमत में आ गई थी। तब कांग्रेस ने उकसाकर जनता दल को तुड़वाया था।
 कांग्रेस को एक बार फिर तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का मौका मिला 1996 में। तब लोकसभा में 162 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में सिर्फ 13 दिन सरकार चल पाई। तब कांग्रेस ने एचडी देवेगौड़ा की अगुआई वाली संयुक्त मोर्चे की सरकार को समर्थन दिया और 11 महीने में वापस भी ले लिया। आईके गुजराल की भी सरकार बनी। लेकिन कांग्रेस ने यह सरकार भी चंद माह ही चलने दी। यह बात और है कि जिस मकसद से उसने सरकार गिराई, वह पूरा नहीं हो पाया। उसे 1998 के चुनावों मेंबहुमत नहीं मिल पाया। अलबत्ता इसके पहले हर बार फायदा उसे ही हुआ था। कांग्रेस इस बार भी अपना फायदा देख रही है। लेकिन, वह भूल रही है कि आज का मतदाता 1980 या 1991 जैसा नहीं है। 
लेफ्ट की कोशिश 
  सीपीआई (एम) के महासचिव प्रकाश करात क कहना है कि चुनाव के बाद यदि गैर कांग्रेस-गैर भाजपा सरकार बनाने की संभावना बनती है तो 'आम आदमी पार्टी' को भी इसका हिस्सा बनाने की पेशकश की जाएगी। प्रकाश करात ने कहा कि इस बारे में फैसला 'आप' पर निर्भर रहेगा, लेकिन हम उन्हें गैर कांग्रेस-गैर बीजेपी दल के रूप में मानते हैं। करात ने कहा कि हम 11 पार्टियां मैदान में हैं जिन्होंने कांग्रेस या भाजपा के साथ कोई गठबंधन नहीं किया है। लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद हम इन दलों को एकजुट करने में सक्षम होंगे। 
  उन्होंने यह भी कहा कि तीसरे मोर्चे की सरकार के सत्ता में आने की पूरी संभावना दिखती है जिस पर हम चुनाव के बाद काम करेंगे। 25 फरवरी को सीपीआई (एम) ने 11 क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों की दिल्ली में बैठक की थी। इस बैठक में समाजवादी पार्टी, जनता दल (युनाइटेड) भी शामिल हुई थी। इस बात को स्वीकार करते हुए कि देश में कांग्रेस विरोधी भावना काम कर रही है, करात ने कहा कि इसे नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर कहकर गलत व्याख्या की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस कथित लहर का केवल उन्हीं जगहों पर भाजपा को लाभ मिलेगा जहां मुकाबला दोनों राष्ट्रीय दलों के ही बीच में हो रहा है। लेकिन इसका लाभ उन राज्यों में जहां क्षेत्रीय दलों की स्थिति मजबूत है, नहीं मिल पाएगा।

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