Sunday, November 18, 2018

इतिहास बचेगा या कुछ रचेगा?


- हेमंत पाल

    भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि वाली दो अहम फिल्में इस साल आईं! 'पद्मावत' और 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान।' तीसरी फिल्म 'मणिकर्णिका' भी इसी साल आने वाली थी, जो अगले साल तक बढ़ गई। वास्तव में 'पद्मावत' को 2017 में रिलीज होना था, परंतु इससे जुड़े विवादों के कारण ये फिल्म खिंचकर इस साल रिलीज हुई। 'पद्मावत' के साथ जो कुछ हुआ उससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या फिल्मकारों को वास्तव में इतिहास के अँधेरे में झांकने का जोखिम उठाना चाहिए? क्योंकि, सेंसर सिर्फ बोर्ड नहीं रह गया है? अब तो गली, मोहल्लों तक के लोग और जेबी संगठन भी कैंची लेकर फिल्मों को कतरना चाहते हैं। 'पद्मावत' बॉलीवुड में 200 करोड़ रुपए के बजट से बनी पहली फिल्म थी। लेकिन, उसका भविष्य लम्बे समय तक अधर रहा! 
   'रंगून' और 'सिमरन' के फ्लॉप होने के बाद कंगना रनौत को अब अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म 'मणिकर्णिका' से बहुत उम्मीदें हैं। क्योंकि, यह फिल्म देश की आजादी से जुड़ी एक महान योद्धा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बायोपिक है। 'पद्मावत' के विरोध देखते हुए इसके लेखक, निर्देशक की टीम ने लक्ष्मीबाई से जुड़े इतिहास को काफी खंगाला! ये जरुरी भी था, क्योंकि अब लोग किसी भी ऐतिहासिक फिल्म को महज फिल्म की तरह नहीं देखते! बल्कि, उससे जुड़े सामाजिक दृष्टिकोण को भी परखते हैं। इसके बाद भी 'मणिकर्णिका' पर से खतरा टला नहीं है। फिल्म के ट्रेलर को लेकर भी उंगली उठ चुकी है।
  एक और ऐतिहासिक विषय पर फिल्म बनना शुरू हुई है, जो 1897 में तत्कालीन भारत-अफगान सीमा पर सरागढ़ी में हुई लड़ाई पर आधारित है। ये फिल्म राजकुमार संतोषी और रणदीप हुड्डा को लेकर बना रहे हैं। यह फिल्म दस हजार अफगानों के खिलाफ 21 भारतीय जवानों के भीषण युद्ध की दास्तान है। हाल ही में रिलीज हुई आमिर खान और अमिताभ बच्चन की फिल्म 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान' को लेकर दर्शकों में काफी उत्सुकता थी, पर फिल्म ने बहुत निराश किया। इस फिल्म में भारत में 18वीं सदी के ठगों के कारनामे हैं। फिल्म के प्रति दर्शकों की उत्सुकता का प्रमाण ये है कि फिल्म ने पहले ही दिन सर्वाधिक 50 करोड़ की कमाई की! लेकिन, बाद में फिल्म ने पानी नहीं माँगा! 
   फिल्मकारों के नजरिए की बात की जाए, तो कहा जा सकता है कि सिनेमा कलापूर्ण अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है, अतः फिल्मकार को थोड़ी छूट लेने का अधिकार होना चाहिए। यह तर्क सही भी है। समझा जाना चाहिए कि ऐतिहासिक फिल्में उस समय के इतिहास को नहीं, बल्कि उसकी पृष्ठभूमि में एक कहानी को दर्शकों के सामने प्रस्तुत करती हैं। इसलिए प्रस्तुति का स्तर सिनेमा को देखने का मुख्य आधार होना चाहिए। लेकिन, ऐसा कहने से इस सवाल का जवाब नहीं मिल जाता कि ऐतिहासिक, इतिहास की बड़ी घटनाओं या किरदारों पर फिल्म बनाने के मामले में हिंदी सिनेमा इतना स्तरहीन और पिछड़ा क्यों है? एक भी ऐसी फिल्म का नाम याद नहीं किया जा सकता, जो पूरी तरह इतिहास या किसी महान चरित्र पर आधारित हो। चेतन आनंद की 'हकीकत' (1964) और एस राम शर्मा की 'शहीद' (1965) ही ऐसी फ़िल्में थीं, जो इस मापदंड के काफी करीब मानी जाती हैं। इसके बाद जेपी दत्ता की 'बॉर्डर' (1997) एक बेहतरीन फिल्म थी, जिसमें पाकिस्तान से जंग लड़ रही एक बटालियन की कहानी को बहुत मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया था। 
 आशुतोष गोवारिकर की 'मोहन जो दाड़ो' और टीनू सुरेश देसाई की 'रुस्तम' भी ऐतिहासिक विषयों पर बनी फिल्में थीं। जहां गोवारिकर ने हजारों साल पहले की हड़प्पा सभ्यता में अपनी कहानी को बुना था। वहीं देसाई ने 1950 के दशक की एक बहुचर्चित अपराध कथा को परदे पर चित्रित किया। कथानक, अभिनय और प्रस्तुति को लेकर इन दोनों फिल्मों को जो भी प्रशंसा या आलोचना मिली है, वह तो अलग विषय है, परंतु कथा के कालखंड और इतिहास के साथ समुचित न्याय नहीं करने के लिए दोनों की बड़ी निंदा हुई! 
 पौराणिक कथाएं, ऐतिहासिक घटनाएं और लोक में प्रचलित कहानियां हमेशा ही सिनेमा के पसंदीदा विषय रहे हैं। पहली हिंदुस्तानी फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' (1913) को दादा साहेब फाल्के ने बनाया था। अर्देशर ईरानी ने पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' (1931) में बनाई। सबसे लोकप्रिय फिल्में 'मुगले आजम' (1960) में के आसिफ ने बनाई। एस राम ने 1965 में 'शहीद' और आशुतोष गोवारीकर ने 2001 में 'लगान' बनाई! एसएस राजामौली ने 2015 में 'बाहुबली' का खाका भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की तरह बना। ऐसे में हातिम ताई (1990) और 'बाहुबली' जैसी फिल्में 'मोहन जो दाड़ो' या 'मुगले आजम' से कहीं ज्यादा ईमानदार फिल्में रहीं, जो एक अनजाने मिथकीय वातावरण में ले जाकर दर्शकों का मनोरंजन तो करती हैं! ऐसी फ़िल्में इतिहास का प्रतिनिधि होने का ढोंग भी नहीं रचती! अब, जबकि तकनीक है, दर्शक हैं, धन है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे फिल्मकार इतिहास को लेकर अधिक संवेदनशील होंगे और विगत को ईमानदारी से पेश करने का जोखिम उठाएंगे। 
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