- हेमंत पाल
सिनेमा ने परदे पर कहानियों में चरित्रों को गढ़ा जाता है! ऐसे चरित्रों में डॉक्टर्स के चरित्र भी हैं, जिन्हें लेकर कई फिल्मों की कहानियां रची गईं! कई फिल्मों के तो केंद्रीय पात्र ही डॉक्टर्स रहे, जिसे दर्शको ने काफी पसंद भी किया। सिनेमा में डॅाक्टरों से संबंधित फिल्में ही नहीं बनी, कुछ डॉक्टर्स ने फिल्मों में अभिनय भी किया है। इनमें एसडी नारंग सफल निर्देशक बने। डाॅ श्रीराम लागू ने डॉक्टर होते हुए चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं निभाई। मनोज कुमार, अशोक कुमार और ओपी नैयर भी होम्योपैथी से लोगों का उपचार करते थे।
डॉक्टर्स की जिंदगी पर बनने वाली पहली फिल्म थी वी.शांताराम की 'डाॅक्टर कोटनिस की अमर कहानी।' इसमें डाॅक्टर की पेशे के प्रति लगन और देशभक्ति को दिखाया गया था। खुद वी. शांताराम ने इस फिल्म में डाॅ कोटनिस की भूमिका निभाई थी। ये ऐसे डॉक्टर की कहानी थी, जो प्लेग जैसी महामारी से लोगों को बचाने के लिए चीन जाता है वहीं सेवा करते-करते अपना जीवन समर्पित कर देता है। तपन सिन्हा की फिल्म 'एक डाॅक्टर की मौत' में भी बताया था कि आखिर क्यों प्रतिभाशाली डॉक्टर देश से पलायन करते हैं। यह ऐसे डाॅक्टर की है, जो गंभीर रोगों की दवाइयां खोजता है! अपने काम के लिए उसे कुछ सुविधाओं की जरूरत होती है। लेकिन, उसे गांव भेज दिया जाता है जहाँ उसकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है। जब उसकी खोज सामने आती है, तो इसका श्रेय अमेरिकी डाॅक्टरों को दिया जाता है।
राजकपूर और प्राण की फिल्म 'आह' भी डॉक्टर और मरीज के रिश्तों पर बनी फिल्म थी। इसमें डॉक्टर की भूमिका प्राण ने निभाई, थी। उनके लिए ये भूमिका इसलिए चुनौती भरी थी, कि तब तक वे खलनायक के रूप में स्थापित हो चुके थे। इसमें राजकपूर की भूमिका टीबी के मरीज की थी। इसी फिल्म से प्रेरित होकर ही बाद में ऋषिकेष मुखर्जी ने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को लेकर 'आनंद' बनाई थी। इस कालजयी फिल्म में अमिताभ ने डॉक्टर का किरदार निभाया था और राजेश खन्ना बीमार थे, जिनकी अंत में मौत हो जाती है। यह फिल्म जितनी संवेदनशील थी, उतनी ही सफल भी रही।
'दिल अपना और प्रीत पराई' में राजकुमार मरीज बने थे और डाॅक्टर थे राजेन्द्र कुमार, जो राजकुमार की पत्नी मीना कुमार के पूर्व प्रेमी होते हैं। मरीज डाॅक्टर और प्रेमिका के त्रिकोण पर निर्मित इस फिल्म की मजेदार बात यह थी कि इसमें कैंसर का रोगी तो बच जाता है, लेकिन डाॅक्टर मरकर पति पत्नी के बीच से हट जाता है। देव आनंद और विजय आनंद अभिनीत 'तेरे मेरे सपने' एक ऐसी फिल्म है जिसमें गांव की सेवा करने आए डाॅक्टर को दूसरे कमाऊ डाॅक्टर के लालच के कारण अपना बच्चा खोना पड़ता है और इसके बाद वह भी पैसा कमाने शहर चला जाता है। शहर का सफल डाॅक्टर विजय आनंद गांव चला आता है। चिकित्सक धर्म की दुहाई देकर विजय आनंद एक बार फिर देव आनंद को गांव वापस लाता है।
नर्स के बिना डॉक्टर की भूमिका कभी पूरी नहीं होती! नर्स और रोगी के बीच संबंध की बात आती है, तो वहीदा रहमान और राजेश खन्ना की फिल्म 'खामोशी' को याद किया जाता है। इस में वहीदा रहमान ने पेशे के मानवीय पक्ष को खूबसूरती से निभाया था। फिल्म ने नर्सो की भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया और बताया कि उन्हें भी प्यार करने का हक़ है। 'दिल अपना प्रीत पराई' में राजकुमार बने डाॅक्टर और मीना कुमारी उनकी प्रेमिका नर्स थी। फिल्म में डाॅक्टर की पत्नी उसे रात में मरीज की जान बचाने नहीं जाने देती! बहाना बनाकर उसे सूचना तक नहीं देती। इसके बात आए तनाव को इस फिल्म में बखूबी से प्रस्तुत किया गया था। डाॅक्टर से संबंधित चर्चित फिल्मों में 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' भी है। राजकुमार हिरानी ने इसे मजेदार अंदाज में प्रस्तुत कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। लेकिन, अभी लम्बे समय से डॉक्टर से जुड़ी कोई संवेदनशील फिल्म नजर नहीं आई! -------------------------------------------------------
डॉक्टर्स की जिंदगी पर बनने वाली पहली फिल्म थी वी.शांताराम की 'डाॅक्टर कोटनिस की अमर कहानी।' इसमें डाॅक्टर की पेशे के प्रति लगन और देशभक्ति को दिखाया गया था। खुद वी. शांताराम ने इस फिल्म में डाॅ कोटनिस की भूमिका निभाई थी। ये ऐसे डॉक्टर की कहानी थी, जो प्लेग जैसी महामारी से लोगों को बचाने के लिए चीन जाता है वहीं सेवा करते-करते अपना जीवन समर्पित कर देता है। तपन सिन्हा की फिल्म 'एक डाॅक्टर की मौत' में भी बताया था कि आखिर क्यों प्रतिभाशाली डॉक्टर देश से पलायन करते हैं। यह ऐसे डाॅक्टर की है, जो गंभीर रोगों की दवाइयां खोजता है! अपने काम के लिए उसे कुछ सुविधाओं की जरूरत होती है। लेकिन, उसे गांव भेज दिया जाता है जहाँ उसकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है। जब उसकी खोज सामने आती है, तो इसका श्रेय अमेरिकी डाॅक्टरों को दिया जाता है।
राजकपूर और प्राण की फिल्म 'आह' भी डॉक्टर और मरीज के रिश्तों पर बनी फिल्म थी। इसमें डॉक्टर की भूमिका प्राण ने निभाई, थी। उनके लिए ये भूमिका इसलिए चुनौती भरी थी, कि तब तक वे खलनायक के रूप में स्थापित हो चुके थे। इसमें राजकपूर की भूमिका टीबी के मरीज की थी। इसी फिल्म से प्रेरित होकर ही बाद में ऋषिकेष मुखर्जी ने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को लेकर 'आनंद' बनाई थी। इस कालजयी फिल्म में अमिताभ ने डॉक्टर का किरदार निभाया था और राजेश खन्ना बीमार थे, जिनकी अंत में मौत हो जाती है। यह फिल्म जितनी संवेदनशील थी, उतनी ही सफल भी रही।
'दिल अपना और प्रीत पराई' में राजकुमार मरीज बने थे और डाॅक्टर थे राजेन्द्र कुमार, जो राजकुमार की पत्नी मीना कुमार के पूर्व प्रेमी होते हैं। मरीज डाॅक्टर और प्रेमिका के त्रिकोण पर निर्मित इस फिल्म की मजेदार बात यह थी कि इसमें कैंसर का रोगी तो बच जाता है, लेकिन डाॅक्टर मरकर पति पत्नी के बीच से हट जाता है। देव आनंद और विजय आनंद अभिनीत 'तेरे मेरे सपने' एक ऐसी फिल्म है जिसमें गांव की सेवा करने आए डाॅक्टर को दूसरे कमाऊ डाॅक्टर के लालच के कारण अपना बच्चा खोना पड़ता है और इसके बाद वह भी पैसा कमाने शहर चला जाता है। शहर का सफल डाॅक्टर विजय आनंद गांव चला आता है। चिकित्सक धर्म की दुहाई देकर विजय आनंद एक बार फिर देव आनंद को गांव वापस लाता है।
नर्स के बिना डॉक्टर की भूमिका कभी पूरी नहीं होती! नर्स और रोगी के बीच संबंध की बात आती है, तो वहीदा रहमान और राजेश खन्ना की फिल्म 'खामोशी' को याद किया जाता है। इस में वहीदा रहमान ने पेशे के मानवीय पक्ष को खूबसूरती से निभाया था। फिल्म ने नर्सो की भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया और बताया कि उन्हें भी प्यार करने का हक़ है। 'दिल अपना प्रीत पराई' में राजकुमार बने डाॅक्टर और मीना कुमारी उनकी प्रेमिका नर्स थी। फिल्म में डाॅक्टर की पत्नी उसे रात में मरीज की जान बचाने नहीं जाने देती! बहाना बनाकर उसे सूचना तक नहीं देती। इसके बात आए तनाव को इस फिल्म में बखूबी से प्रस्तुत किया गया था। डाॅक्टर से संबंधित चर्चित फिल्मों में 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' भी है। राजकुमार हिरानी ने इसे मजेदार अंदाज में प्रस्तुत कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। लेकिन, अभी लम्बे समय से डॉक्टर से जुड़ी कोई संवेदनशील फिल्म नजर नहीं आई! -------------------------------------------------------
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