Sunday, November 3, 2019

परदे पर गंदी बातों का गंदा चलन!

- हेमंत पाल 

  वैसे तो सिनेमा को समाज का आइना कहा जाता है, लेकिन अपने घरों में भी हम आइने को इस नजरिए से रखते हैं कि वह सबको दिखाई न दे, जो हम परिवार को दिखाना नहीं चाहते! बेडरूम में आइना न रखने की हिदायत का सरासर उल्लंघन करके अब फिल्मकारों ने वहां आइना ही नहीं रखा, बल्कि खिड़की के बाहर दूरबीन भी रख दी ताकि सब कुछ साफ साफ दिखाई दे। जब वर्जित दृश्यों को दिखाने से भी पेट नहीं भरा, तो अब परदे पर गंदी बातों यानी अश्लील संवादों की मिसाइलें दागी जा रहीं है। तथाकथित प्रयोगवादी फिल्मों के नाम पर यह प्रयोग कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं, जिससे घर में परिवार के साथ बैठे दर्शक भौचक्के हैं! उन्हें पता नहीं कि कब कौनसा ऐसा संवाद उछलकर आ जाए कि परिवार के सदस्य एक दूसरे से मुंह छिपाने की कोशिशों में जुट जाएं।
  इन दिनों 'मेड इन चाइना' और 'बाला' के ट्रेलर की चर्चा है, जिसके संवाद सुनकर एक पल के लिए चेहरे पर हंसी आती है! लेकिन, दूसरे ही क्षण यह सोचकर वह हंसी गायब हो जाती है कि घर के दूसरे सदस्य पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी! 'बाला' का गंजा नायक जब मैथुन और हस्तमैथुन में अंतर बताता है। सिर पर गुप्तांग के बालों के प्रत्यारोपण की बात करता है। नीम हकीम बैल के वीर्य को सिर में लगाने की बात करते हैं! ये सुनकर लगता कि हम सिनेमा  हॉल में नहीं, बल्कि गालियों से भरे किसी दलदल में फंसे हैं। फिल्मों में वर्जित संवादों का यह सिलसिला बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। पहले जब किसी को गाली देनी होती थी तो संबंधित पात्र केवल ओंठ हिला देता था! उसके बाद जब वर्जित संवाद आता तो बीप बीप की आवाज सारी बात बयां कर देती थी। उसके बाद फिल्मों में  गालियों की जगह सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल आरंभ हुआ! लेकिन, आज का सिनेमा इससे भी आगे निकल गया है। 
   लोकभाषा के नाम पर दर्शकों को गालियां यह कहकर परोसी जा रही है कि क्या करें, वहां की बोलचाल ही ऐसी है ! 'गैंग ऑफ़ वासेपुर' में मनोज बाजपेई बेझिझक अपनी क्षैत्रीय भाषा बोलते हैं 'घर जाकर जब अपने पिता जी का ... खुजला रहे होंगे, तब उनसे पूंछियेगा हम कौन हैं?' तिग्मांसु धूलिया जैसे निर्देशक और एक्टर भी डॉयलॉग बोलने में जरा नहीं झिझके “भो... के अब तो सच बोल दे!' इसके अलावा 'डेली बैली' के डॉयलाग और फिल्म 'पीपली लाईव' का संवाद 'साले यहां ... फटी पड़ी है, तुझे अपनी पड़ी है! 
  सिनेमा के पर्दे पर अब सुदूर के उन गांवों की कहानियां और उनके किरदारों की भाषा सुनाई दे रही है, जहां सौ साल से सिनेमा नहीं पहुंचा था। गैंग ऑफ़ वासेपुर, पानसिंह तोमर, बैंडेट क्वीन, हांसिल, डेली बैली, ओय लकी लकी ओय, सोनचिडिया और अब 'मेड इन चाइना और 'बाला!' कितनी ही ऐसी फिल्में हैं, जो उनके गंदे संवाद के लिए भी जानी जाती हैं। इन फिल्मों के संवाद उस बोलचाल में लिखे गए हैं, जिसे स्थानीय लोग आपस में बोलते हैं। इसलिए इन फिल्मों के संवाद लोगों की जबान पर आसानी चढ़ जाते हैं। कुछ सालों में ऐसी फिल्में आई हैं, जिन्हें उनकी भाषा के लिए बहुत दिनों तक याद किया जाएगा। 
   पहले तो फिल्मों में नायक ही गाली या अश्लील शब्दों का प्रयोग करता था। ज्यादा से ज्यादा वैम्प या तवाइफ का किरदार निभाने वाली नायिकाओं से ऐसी बातें सुनने में आती थी। लेकिन, आज की प्रगतिशील महिलाओं का सच दिखाने के प्रयास में निर्माताओं ने करिश्मा, स्वरा भास्कर और राधिका आप्टे जैसी नायिकाओं से वर्जित संवाद बुलवाने मे कोताही नहीं बरती! पर्दे के बाहर वाकयुद्ध के लिए मशहूर कंगना रनौत भी इस दौड में पीछे नहीं है। भूमि पेडणेकर की फिल्म 'सोन चिड़िया' ने एक बार फिर बेंडिट क्वीन के अश्लील संवादों की याद दिला दी! वैसे तो 'शुभ मंगल सावधान' पवित्र नाम लगता है! लेकिन, उसके दृश्य और संवाद सारी पाकीजगी को हवा में उड़ा देते हैं। 
   कुछ दर्शक मानते हैं कि दृश्यों में वर्जित बातें होने के बावजूद लेखक-निर्देशक ने इसे इतने गुदगुदाने वाले अंदाज में रचते हैं कि सिनेमाहाल में दर्शक असहज महसूस करने की बजाए हंसते हैं। सिनेमा हाॅल में तो पास बैठे दर्शक का चेहरा साफ दिखाई नहीं देता! लेकिन, क्या यही बात उस सूरत में भी कही जा सकती है जब सारा घर में यह फिल्में देख रहा हो! सच बात तो यह है कि फिल्मकार अपनी जवाबदारी से मुंह नहीं फेर सकते और उन्हें ऐसा करना भी नहीं चाहिए! वरना रील लाइफ और रीयल लाइफ में फर्क की क्या रह जाएगा?
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