Monday, August 10, 2020

कांग्रेस की राम भक्ति या राजनीतिक मज़बूरी!

- हेमंत पाल

   कांग्रेस पर हमेशा तुष्टिकरण का लांछन लगता रहा है। पार्टी ने इसे कभी छुपाने की कोशिश भी नहीं की! लेकिन, बदलते दौर में कांग्रेस के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व अब मजबूरी बन चुका है। यही कारण है कि वो अपनी पुरानी छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस साबित करना चाहती है, कि राम मंदिर को लेकर उसे कोई विरोध नहीं है। रामभक्ति में भाजपा को मात देने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेशभर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हनुमान चालीसा का पाठ करने का संदेश दिया। नतीजा ये हुआ कि प्रदेश में पार्टी ब्लॉक स्तर तक हनुमान चालीसा के पाठ में लग गई! खुद कमलनाथ भी सोशल मीडिया पर रामनामी ओढ़े नजर आए। किसी व्यक्ति की अपनी निजी आस्था हो सकती है, लेकिन आस्था और पार्टी लाइन में बड़ा बारीक फर्क होता है, जिसका ध्यान रखा जाना जरुरी है। कमलनाथ ने 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले जिस तरह राम मंदिर का समर्थन किया, उससे पार्टी का मुस्लिम पक्ष भी हैरान हैं। कांग्रेस नेताओं ने यह याद दिलाने की कोशिश भी की, कि विवादित स्थल पर ताला पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ही खुलवाया था। जवाब में भाजपा उन्हें अदालती अड़ंगों से लेकर मुहूर्त पर सवाल उठाने तक की याद दिला रही है। 
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   मध्यप्रदेश में इन दिनों रामभक्ति का जुनून सिर चढ़कर बोल रहा है। भाजपा की रामभक्ति तो जगजाहिर है! उससे किसी को एतराज भी नहीं! क्योंकि, भाजपा की पूरी राजनीति ही राम के इर्द-गिर्द घूमती है! पार्टी को बुनियादी ताकत भी राम जन्मभूमि के मंदिर आंदोलन से मिली, इसलिए उनके नेताओं का उत्साहित होना स्वाभाविक है। लेकिन, प्रदेश में कांग्रेस ने जिस तरह राम मंदिर निर्माण शिलान्यास अवसर पर धर्मध्वजा थामी, वो आश्चर्य करने वाली बात है। कांग्रेस ने प्रदेशभर में अपने नेताओं से रामायण और हनुमान चालीसा का पाठ करवाए और रामभक्त दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा! दरअसल, ये चौंकाने वाली बात इसलिए है, कि अभी तक कांग्रेस नेताओं को कभी इस तरह सार्वजनिक रूप से भगवा धारण करते नहीं देखा गया! बल्कि, राम मंदिर की बातों पर कांग्रेस ने हमेशा भाजपा को घेरा और सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगाने से भी नहीं चुके! लेकिन, न जाने कैसे कांग्रेस का हृदय परिवर्तन हुआ और वो धर्मनिरपेक्षता की राह छोड़कर धर्मदर्शन से प्रभावित हो गई!
     वास्तव में ये कांग्रेस की मज़बूरी है, कि उसे वक़्त की नजाकत देखते हुए, रामजी की सवारी का हिस्सा बनना पड़ रहा है। बदलाव का ये दौर ऊपर से नीचे तक दिखाई दिया! लेकिन, मध्यप्रदेश में कांग्रेस की रामभक्ति ने सारी सीमाएं तोड़ दी। चौंकाने वाली बात थी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का भगवाकरण! सामान्यतः वे कम बोलते हैं और अपनी भावनाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करने से भी बचते हैं। लेकिन, अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण से पहले उन्होंने जिस तरह रामभक्त होने का दिखावा किया, वो किसी के गले नहीं उतर रहा! वीडियो जारी करके मंदिर निर्माण का समर्थन किया गया। उनके निवास पर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ हुआ। उन्होंने सोशल मीडिया पर भी रामभक्त होने का मौका नहीं छोड़ा।ट्विटर हैंडल पर अपनी भगवा भेष वाली प्रोफाइल फोटो डाल दी! जबकि, शिवराजसिंह चौहान इसमें उनसे कुछ घंटे पिछड़ गए! कई नेताओं ने भी उनकी देखा-देखी अपने घरों में यही कर्मकांड किए! कई जिलों में भी कांग्रेस कार्यालयों में रामायण बांची गई! कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में भी भगवान राम का बड़ा सा पोस्टर नजर आया और शाम को दिये जलाए गए! वहाँ मौजूद कार्यकर्ताओं ने 'जय श्रीराम' का उद्घोष भी किया। सब भाजपा के नेता करते तो कोई नई बात नहीं थी! पर, कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का ये प्रदर्शन लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहा है। इतना ही नहीं, प्रदेश कांग्रेस ने भूमिपूजन के लिए 11 चांदी की ईंटें भी भेजीं। अपने मुख्‍य मंत्रित्वकाल में कमलनाथ ने राम वनगमन पथ का काम करने के निर्देश भी दिए थे।
   प्रदेश में यदि सत्ता के लिए निर्णायक उपचुनाव नहीं होते, तो शायद कांग्रेस का हृदय परिवर्तन भी नहीं होता! कांग्रेस को पता था कि भाजपा अयोध्या आयोजन को राजनीतिक फायदे के लिए भुनाने की पूरी कोशिश करेगी और वही सब हुआ भी! यही कारण था कि कांग्रेस ने भी रामभक्ति दिखाकर ये साबित करने की कोशिश की, कि वे भी राम मंदिर के खिलाफ नहीं हैं! राम के प्रति उनकी आस्था भी भाजपा से कम नहीं है। लेकिन, अपनी रामभक्ति दिखाने में कांग्रेस कुछ ज्यादा ही आगे निकल गई और राजनीतिक मर्यादा तक लांघ ली। कांग्रेस को खतरा था कि उपचुनाव के प्रचार में भाजपा उसे राम विरोधी प्रचारित करके उसका नुकसान न कर दे! यही कारण है कि उन्होंने अपनी पार्टी लाइन से आगे निकलकर रामभक्ति का दिखावा किया! इंदौर में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में गीता भवन स्थित राम मंदिर पर भगवान राम का विधिवत पूजन कर रामपथ यात्रा निकाली गई। कांग्रेस कार्यकर्ता अब बाइक से इंदौर में रखे भगवान राम का रजत शिलालेख और सात नदियों का जल लेकर अयोध्या जाएंगे। उपचुनाव में इस सबका कोई फ़ायदा हो या नहीं, पर भाजपा कम से कम उसे राम विरोधी साबित नहीं कर पाएगी!
      कमलनाथ के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर दिए बयानों से मुस्लिम संगठन 'जामिया निजामिया' ने ऐतराज़ जताया। हैदराबाद से जारी बयान में कहा गया कि कौम कमलनाथ और कांग्रेस के भरोसे न रहे। अपने इलाके में साथ देने वाले उम्मीदवार को तौलकर अपना वोट दे। कुछ अरसे से कांग्रेस और कमलनाथ ने जिस तरह से मुसलमानों से मुंह मोड़ा है, उससे साफ है कि अब हमारा साथ देना उनकी सियासत के हक में नहीं है। कौम को कभी भी कमलनाथ पर यकीन नहीं था, फिर भी जिस तरह से उन्होंने कौम के नुमाइंदों के आगे हिंदुओं से निपट लेने की दलील दी, उस पर हमने भी खुलकर उनका साथ दिया था। अब हम उनकी बेखौफ हिंदूपरस्ती के नमूने देख रहे हैं। कभी हनुमानजी की पूजा, कभी राम मंदिर का इस्तकबाल। उनके बयानों में कौम की तकलीफ के लिए ज़रा भी हमदर्दी नहीं थी। उनकी बातों ने शक की हर बुनियाद को साफ कर दिया है कि मुसलमान सिर्फ उनके लिए सियासती प्यादे हैं। आने वाले समय में कौम का रुख साफ है। इस दौर में हमें अपने लिए सोच समझकर रहनुमा ढूंढ़ना होगा। 
   इस बीच कांग्रेस विधायक और दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने भी हमेशा की तरह अपना ज्ञानदर्शन बघारने मौका नहीं छोड़ा! उन्होंने अपनी ही पार्टी पर शब्दबाण चलाए। भाजपा के साथ उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को भी भगवान राम के नाम पर राजनीति नहीं करने की नसीहत दी। लक्ष्मण सिंह ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि रामभक्ति दिखाने और शुद्धीकरण से कुछ नहीं होने वाला! ऐसा करके हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं। शुद्धीकरण और राम भक्ति दिखाकर एक तरह से हम बसपा को फायदा पहुंचा रहे हैं। हमें इन मुद्दों से दूर रहकर बुनियादी मुद्दों पर ही चुनाव लड़ना चाहिए। दरअसल, ये कमलनाथ के प्रति उनकी खुन्नस है, जिसे वे गाहे-बगाहे निकालते रहते हैं।  
  मध्यप्रदेश में श्रीराम को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों मुकाबले में हैं। भाजपा इसे अपनी तीन दशक की तपस्या का सुफल मानती है, तो कांग्रेस भी राजीव गाँधी के जन्मभूमि के ताले खुलवाने प्रसंग के बहाने नरम हिंदुत्व कॉर्ड खेलने का मौका नहीं छोड़ रही। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने भी राम मंदिर के समर्थन में बयान देकर पार्टी के नजरिए को स्पष्ट कर दिया। लेकिन, भाजपा को कांग्रेस का ये बदला रुख अच्छा नहीं लग रहा। भाजपा नेता कांग्रेस की राम भक्ति पर उंगली उठा रहे हैं। लेकिन, दोनों पार्टियों में से जनमानस को किसका कदम सही लगा, ये उपचुनाव में ही पता चलेगा! नतीजे बताएंगे कि किसकी रामभक्ति पर जनता ने मुहर लगाई।   
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