Sunday, September 19, 2021

मेरा 'मन' क्यों तुम्हें चाहे, मेरा 'मन'

हेमंत पाल 

    सिनेमा को मनोरंजन भी कहा जाता है। मनोरंजन में वह सब कुछ आता है जो मन को लुभाए या बहलाए। एक तरह से सिनेमा मन मोहने का एक साधन है जिसमें कभी कहानीकार, कभी निर्माता कभी गीतकार या संगीतकार के मन की बातें इस अंदाज में कही और दिखाई जाती है कि दर्शकों का मन डोलने लगता है। यही कारण है कि सिनेमा में अधिकांशतः मन हावी रहा है। फिल्मकारों ने सिनेमा में मन का बेहताशा उपयोग किया और सिनेमा के शैशवकाल से चली आ रही यह मन की बात आज भी जारी है। मन कुछ ऐसी ही चीज है, जिसे आज तक न तो किसी ने अच्छी तरह से समझा है और न इसे मनमाफिक तरीके से परिभाषित किया। आखिर यह मन है क्या? कोई इसे दिल से जोड़ता है, तो कोई दिमाग से! लेकिन, मन न तो दिल है और न दिमाग। मन तो बस मन है, जिस पर किसी की मनमानी नहीं चलती। जब सिनेमा की बात आती है, तो यहां मन का दो तरह से इस्तेमाल किया जाता है। जब दर्शकों के मन की होती है तो फिल्में बॉक्स ऑफिस की वैतरणी पार कर जाती है। लेकिन, इसके विपरीत जब कोई निर्माता या निर्देशक दर्शकों के साथ मनमानी पर उतर आता है, तो दर्शक भी उसे मनचाहा प्रतिसाद नहीं देते और फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धराशाही हो जाती है।
    अब यदि सिनेमा में मन के प्रयोग की बात की जाए तो फिल्मों के शीर्षक से लेकर गानों में मन का मनचाहा, मनमाफिक और मनपसंद उपयोग किया गया है। यह भी संयोग है कि मन ऐसा विषय है जिस पर बनी अधिकांश फिल्में सफल हुई। शुरुआत इंद्र कुमार की फिल्म 'मन' से कर ली जाए। आमिर खान और मनीषा कोइराला अभिनीत इस फिल्म का शीर्षक भले ही 'मन' रहा हो, लेकिन इसमें मन की बजाए तन-बदन पर ज्यादा ध्यान दिया गया था। फिर भी यह फिल्म सफल रही। 'मन' को आधार बनाकर रखे गए शीर्षक वाली फिल्मों में छोटे से लेकर बड़े सभी सितारों ने काम कर दर्शकों का मन बहलाया है। देव आनंद और टीना मुनीम अभिनीत फिल्म 'मनपसंद' अंग्रेजी फिल्म 'माय फेयर लेडी' पर आधारित थी। इसे देव आनंद के सचिव और खास तरह के गद्य नुमा गीत लिखने में माहिर अमित खन्ना ने बनाया था। इस फिल्म में राजेश रोशन ने भी मनपसंद संगीत दिया। संजीव कुमार को 'मन' वाले शीर्षक ज्यादा भाते थे। यही कारण है कि 'मनचली' में उन्होंने पूरे मनोयोग से काम कर दर्शकों का मन जीतने में कामयाबी हासिल की थी। इसके बाद संजीव कुमार ने 'मन की आँखें' की नायिका के साथ जिस मन पर आधारित फिल्म में काम किया वह थी 'मनमंदिर।' इस फिल्म में दर्शकों ने भले ही आंसू बहाए, लेकिन निर्माता दर्शकों के आंसुओं से पैसा बटोरकर मन ही मन मुस्कुराते रहे।
   धर्मेंद्र और वहीदा रहमान ने 'मन की आंखें' में पारिवारिक कहानी का आधार लेकर मन को बहलाने की सफल कोशिश की। इस फिल्म में मन से ज्यादा दर्शकों की आंखे खुली! सुनील दत्त ने जब अपने भाई सोमदत्त को लेकर फिल्म बनाई तो उसका शीर्षक भी 'मन का मीत' रखा। इसमें सोमदत्त को फिल्म की नायिका लीना चंदावरकर के 'मन का मीत' बताया गया और विनोद खन्ना लीना चंदावरकर पर मनमानी कर उसे अपने मन में बसाने का असफल प्रयास करते रहे। लेकिन हकीकत में हुआ उल्टा ही। 'मन का मीत' सफल रही। लेकिन, फिल्म के नायक सोमदत्त दर्शकों के 'मन के मीत' नहीं बन पाए। इसके उलट दर्शकों के मन में नफरत के बीज बोने वाले विनोद खन्ना के रूप में दर्शकों को मनचाहा खलनायक मिल गया, जो आगे चलकर नायक बनकर कई नायिकाओं के मन के मीत बने। फिल्मों की सफलता का सबसे बड़ा फार्मूला है दर्शकों के मन को पढ़ना और उनके मन के मुताबिक मनचाहे मसालों का उपयोग कर मनचाही फिल्म बनाना। इस विधा में जो निर्माता निर्देशक सबसे ज्यादा दर्शकों के मन भाये संयोग से उन्हें भी 'मन' जी के संबोधन से पुकारा जाता था। वाकई में मनमोहन देसाई हिन्दी सिनेमा के मनचाहे फिल्मकार थे। दुर्भाग्य से वह नंदा से विवाह करने की चाह मन में लिए ही चल बसे।
     किशोर कुमार को परदे पर उल जलूल हरकतें करने में माहिर माना जाता था। उनकी इन हरकतों को देखते हुए निर्माता ने उन्हें साधना के साथ लेकर 'मनमौजी' नाम से फिल्म ही बना डाली, जो मदनमोहन के मनमोहक संगीत से सजी थी लिहाजा उसका सफल होना तो तय ही था। फिल्मों के शीर्षक और गीतों के अलावा मन पर डायलॉग भी लिखे गए, जिसमें फिल्म 'चाइना गेट' का संवाद 'मेरे मन को भाया मैं कुत्ता मारकर खाया' खूब चला तो मनमोहन कृष्ण आजीवन मनचाही भूमिका मिलने की तलाश में रोने वाली भूमिका निभाते रहे। मनमोहन नामक दूसरे अभिनेता ने 'शहीद' में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका में प्राण फूंके। लेकिन, बाद में वह हीरोइन पर मनमानी कर बलात्कार करने की भूमिका में कुख्यात हो गए। 'आराधना' में जब शर्मिला टैगोर मनमोहन को तमाचा मारती है, तो वे कहते हैं 'जब कोई लड़की मुझे थप्पड़ मारती है, तो मैं बुरा नहीं मानता उसका नाम डायरी में लिख लेता हूं और मौका मिलते हिसाब पूरा कर डालता हूं।' इस संवाद ने दर्शकों के मन में उनके प्रति इतनी नफरत भर दी कि इसके बाद जब भी मनमोहन परदे पर आते दर्शक गालियां देने लगते हैं।
    फिल्मी शीर्षकों के बाद दो अक्षरों का यह छोटा सा शब्द 'मन' गीतकारों के इतने मन भाया कि इसे लेकर दर्जनों लोकप्रिय गीतों का सृजन हुआ। फिल्म 'रागिनी' का गीत 'मन मोरा बावरा' वैसे तो किशोर कुमार पर फिल्माया गया था। लेकिन, इसे गाया मोहम्मद रफी ने, क्योंकि किशोर कुमार का मन कहता था कि रफी ही इसके साथ इंसाफ कर सकते हैं। ऐसा ही एक क्लासिकल गीत 'नाचे मन मोरा मगन' था जिसे 'मेरी सूरत तेरी आंखें में' अशोक कुमार पर फिल्माया गया था। 'असली नकली' में देव आनंद नायिका साधना के मन की थाह लेकर गाते हैं 'मन मंदिर में तुझको बिठाकर रोज करूंगा बातें शाम सबेरे हर मौसम में होगी मुलाकातें' तो 'सरस्वतीचंद्र' में नूतन तन के ऊपर मन की श्रेष्ठता साबित करने के लिए कहती है 'तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या, मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं।' 
    1954 में बनी 'नागिन' में जब प्रदीप कुमार बीन बजाते हैं, तो वैजयंती माला बेसुध होकर नाचने लगती है। पार्श्व में गीत बजता है 'मन डोले मेरा तन डोले, मेरे दिल का गया करार रे, ये कौन बजाये बाँसुरिया!' गीतकार शैलेन्द्र ने विजय आनंद की फिल्म ‘काला बाजार’ के लिए आत्मा का ताप मिटाने वाला भजन ‘मोह मन मोहे, लोभ ललचाए, कैसे-कैसे ये नाग लहराए’ लिखा था। 1964 में आई फिल्म 'चित्रलेखा' का गीत 'मन रे तू काहे न धीर धरे, वो निर्मोही मोह न जाने, जिनका मोह करे' बहुत लोकप्रिय हुआ था। संजीव कुमार फिल्म 'मनचली' में हीरोइन को छेडते हुए गाते हैं 'ओ मनचली कहां चली' तो 'शर्मिली' में नीरज ने लिखा था 'आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन।' मन से जुड़े कुछ गीतों में फिल्म 'उत्सव' का गीत मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को, 'मन' फिल्म का गीत मेरा मन क्यों तुम्हे चाहे, 'हैप्पी न्यू इयर' का मनवा लागे रे सांवरे, दो कलियां का बच्चे मन के सच्चे, 'नागिन' का तन डोले मेरा मन डोले, एक बार फिर का मन कहे मैं झूमूं नाचूं। फिल्म 'सीमा' का 'मन मोहना बड़े झूठे' बहुत लोकप्रिय हुए हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि 'मन' की थाह पाना आसान नहीं! कम से कम सिनेमा की दुनिया में तो 'मन' खूब चलता है! कभी फिल्मों के नाम में, कभी डायलॉग में तो कभी गीतों में! एक और बात याद कीजिए, हमारे राष्ट्रगान 'जन गण मन अधिनायक जय है' में भी 'मन' की अपनी अहमियत है।       
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