Sunday, March 27, 2022

फ़िल्मी गीतों के रंग बिरंगे बोल में छुपी उपमाएं

- हेमंत पाल
     रंगों से फिल्मों का नाता सिर्फ होली गीतों तक ही नहीं होता! इसके अलावा भी कई ऐसे प्रसंग होते हैं, जब फ़िल्मी गीतों के बोलों में रंगों को पिरोया जाता है। कई बार ये फिल्म के कथानक की जरुरत भी होती है। नायक और नायिका के बीच रंग भरे यह गीत चुहलबाजी के लिए होते हैं, कभी किसी और वजह से गीतों को रंगों से रंगा जाता है। ये सब मिलकर ही ऐसा तारतम्य रचते हैं, जिसमें दर्शक को बंधता है। गीतों में ऐसा भी कुछ होता है, जिसे सुनकर पता चल जाता है कि ये किस सिचुएशन में फिल्माए गए होंगे! यदि नायिका रूठ जाती है, तो नायक कुछ अलग अंदाज में उसके गुस्से की तुलना लाल रंग से करता है। यदि मस्ती के मूड में होता है, तो 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखी' जैसा गीत गुनगुनाने लगता है। तात्पर्य यह कि फिल्म के कथानक के मुताबिक गीतों के बोल में रंग मिलाए जाते हैं। ये सिर्फ होली गीतों में ही नहीं होता, नायक-नायिका के बीच मोहब्बत और मान-मुनव्वल वाले गीतों में भी रंग पिरोए जाते रहे है। इसलिए कि जीवन में रंगों का अपना अलग ही महत्व है। रंगों के बिना तो जिंदगी बेरंग है, फिर वो फ़िल्मी गीतों की बात क्यों न हो!
     रंग की अपनी पहचान तो होती ही है, उनका उपयोग उपमाएं देने के लिए भी किया जाता है। फिल्मों में नायिका की खूबसूरती का बखान करने के लिए शायद रंगों से अच्छी शायद कोई जुबान नहीं होती! जब नायक प्रेमपाश में बंधकर नायिका की तारीफ करना शुरू करता है, तो नायिका का हर अंग रंगों में रंग जाता है। कत्थई आँखों वाली एक लड़की, ये काली-काली आँखें, नीला दुपट्टा पीला सूट जैसे कई गीत अब तक रचे जा चुके हैं, जो रंगों की कूची से नायिका की खूबसूरत रचना करते हैं। ये चलन सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित नहीं है। पुराने ग्रंथों, नाटकों और कविताओं में भी रंग सदियों से छाए हैं। यश चोपड़ा की फिल्म 'सिलसिला' के गीत 'नीला आसमां सो गया' को सुनकर ही नायक के दर्द का अहसास हो जाता है। 
    जबकि, 'कोहिनूर' में दिलीप कुमार और मीना कुमारी पर फिल्माए 'तन रंग लो जी आज मन रंग लो' में होली की चुहलबाजी का इशारा है। इसी तरह 'आखिर क्यों' में राकेश रोशन भी होली खेलते हुए जब 'सात रंग में खेल रही हैं दिलवालों की होली रे' गाते  हैं, तो अलग ही मस्ती का एहसास होता है। पर, जरूरी नहीं कि होली गीतों में ही रंगों की बात हो! इससे अलग भी कई ऐसे गीत हैं, जिनमें रंगों का जिक्र किया गया। गुलज़ार का लिखे और मुकेश के गाए 'आनंद' के गीत 'मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सपने सुरीले सपने' में नायक का कुछ अलग ही रोमांटिक अंदाज नजर आता है।
   कई गीतों को सुनकर लगता है कि रंगों की दुनिया ही फ़िल्मी गीतों में समा गई। अनिल कपूर ने '1942 ए लव स्टोरी' में 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' गाकर नायिका की खूबसूरती को चार दर्जन उपमाओं से सराहा है। जबकि, शाहरुख़ खान ने 'डुप्लीकेट' में गाया 'कत्थई आँखों वाली एक लड़की।' 'बाजीगर' में फिर शाहरुख़ ने कहा 'ये काली-काली आँखें, ये गोरे-गोरे गाल।' थोड़ा पीछे जाएं तो राजेश खन्ना ने 'द ट्रेन' में नंदा के लिए कहा था 'गुलाबी आँखे जो तेरी देखी शराबी ये दिल हो गया।' पर, हर बार नायक ने ही उपमाएं नहीं दी! नायिका ने खुद अपनी आँखों का रंग बताकर अपनी लाचारी प्रकट की। 'खुद्दार' फिल्म के गीत 'ये नीली-नीली आँखें मेरी मैं क्या करूँ' में करिश्मा कपूर की आँखों के रंग की लाचारी साफ़ नजर आती है।
     कभी-कभी नायक और नायिका के रंग रूप को भी गीतों में समाहित किया गया। यही वजह है कि फिल्म 'जाने-अनजाने' में शम्मी कपूर की नीली नीली आंखें देखकर लीना चंदावरकर चहकने लगी थी 'तेरी नीली नीली आंखों के दिल पे तीर चल गए' तो यही शम्मी कपूर 'राजकुमार' में साधना को सलाह देते हुए कहते हैं 'इस रंग बदलती दुनिया में इंसान की नीयत ठीक नहीं, निकला न करो तुम सज धज के ईमान की नीयत ठीक नहीं!' रंगीन मिजाज देव आनंद को भी रंगों से बेहद प्यार था। उनके निर्देशन में बनी फिल्म 'प्रेम पुजारी' के कई गीतों में गीतकार नीरज ने रंगों का इस्तेमाल किया। उन्होंने लिखा 'रंगीला रे तेरे रंग में, फूलों के रंग से दिल की कलम से, शोखियों में घोला जाए के अंतरे में वे फरमाते हैं 'रंग में पिघले सोना अंग से यूं रस छलके!' तो उनके समकालीन राज कपूर को फिल्म 'श्री 420' में 'सर पे लाल टोपी रुसी' कुछ ज्यादा ही पसंद आई। उनके छोटे भाई शशि कपूर ने भी फिल्म 'कन्या दान' में नीरज ने जो चिट्ठी लिखवाई, उसमें भी रंगों का हवाला देते हुए कहा 'लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद हजारों रंग के सितारे बन गए!'
    कभी-कभी गीतों में रंग भरने वाले गीतकार इन्हीं रंगों में इतने डूब जाते ही कि वे एक ही गीत में नायिका के रंग की अलग-अलग उपमा देने लगते हैं। फिल्म 'जिंदगी' में वैजयंती माला की खूबसूरती का बयान करते हुए हसरत जयपुरी जो लिखा उस गीत को गाते हुए राजेन्द्र कुमार कहते हैं 'पहले मिले थे सपनों में और आज सामने पाया' इस गीत के अलग-अलग अंतरों में वे उन्हें कभी सांवली तो कभी गोरी मानने की भूल कर बैठते है। एक अंतरे में वे गाते हैं 'ओ सांवली हसीना दिल मेरा तूने छीना' गाते हैं, तो दूसरे अंतरे में कहते हैं 'गोरे बदन पर काला आंचल और रंग ले आया हाय कुर्बान जाऊं!' वैसे तो प्यार का रंग सबसे प्यारा होता है. लेकिन जब सजना दूर हो, तो यही रंग नायिका को नहीं भाते। तभी तो राजेश खन्ना से मिलने को बेताब आशा पारेख फिल्म 'आन मिलो सजना' में अऱज करती है 'रंग रंग के फूल खिले मोहे भाये कोई रंग ना, अब आन मिलो सजना।' 
     जिन गीतों में रंगों का सुंदर प्रयोग किया है उनमें कुछ चुनिंदा गीत हैं नील गगन पर उड़ते बादल, नीले गगन के तले धरती का प्यार पले, नील गगन तले, तेरी आँखों का रंग है अंगूरी तौबा तेरे होठों का रंग है सिंदूरी तौबा, रंग और नूर की बारात किसे पेश करूं, रंगीन समां है, पीली-पीली सरसों फूली पीली उड़े पतंग, आज रंग लो दिलों को एक रंग में, मैने रंग ली आज चुनरियां, रंग बसंती छा गया, लाल लाल गाल मेरे मैं क्या करूं, मोरा गोरा रंग लइले, बज उठेगी सनम हरे कांच की चूड़ियां, ओ लाल दुपट्टे वाली, ओ काली टोपी वाले तेरा नाम तो बता, सर पे टोपी लाल हाथ में रेशम का रूमाल!  
    फ़िल्मी गीतों में बात सिर्फ नायिका के अंगों की व्याख्या तक ही सीमित नहीं रहती, कई बार उससे आगे भी निकल जाती है। 'प्रेम नगर' में राजेश खन्ना अपनी शराब की आदत से परेशान होकर गाते हैं 'ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा।' कभी-कभी तो नायिका अपनी फरमाइश ही रंगों से जोड़कर करती है, 'आज का अर्जुन' में जयाप्रदा ने अमिताभ बच्चन से कहा था 'गोरी है कलाईयाँ तू ला दे मुझे हरी हरी चूड़ियां।' नायिका की ड्रेस के रंग भी गीतों में समाते रहे हैं। 'हमेशा' के इस गीत को याद कीजिए जिसमें सैफ अली काजोल को देखकर गाते हैं 'नीला दुपट्टा पीला सूट कहाँ चली तू दिल को लूट।' बॉबी देओल भी 'बादल' में रानी मुखर्जी को देखकर गाते हैं 'झूम-झूम के घूम-घूम के इसने सबको मारा ... ले ली सबकी जान, गरारा ... लाल गरारा।' 
    रंगों का ये जादू नायिका की सुंदरता ही नहीं दर्शाता, नायिका की छेड़खानी का बहाना भी बन जाता है। 'आई मिलन की रात' में काला सा काला, अरे काले हैं दिलवाले गोरियन दफा करो' क याद कीजिए। 'देवदास' का भी एक गीत बहुत चर्चित है 'हम पे ये किसने हरा रंग डाला' तात्पर्य यह कि रंगों के बहाने कोई भी बात की जा सकती है। लेकिन, दिल की व्यथा भी यही रंग बताते हैं। 'कोरा कागज' का गाना मेरा जीवन कोरा कागज़, कोरा ही रह गया' अपने आपमें मनःस्थिति और दिल की पीड़ा को उजागर करता है। इसलिए कि कोरा कागज़ सफ़ेद होता है, जो मायूसी की निशानी है।    
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