Saturday, June 11, 2022

हिंदी सिनेमा में खूब चली भाइयों की जोड़ी!

- हेमंत पाल

      सिनेमा में जब भी पारिवारिक रिश्तों को भुनाने का फार्मूला आजमाया गया, भाई-बहन या भाई-भाई के रिश्तों को ज्यादा तरजीह दी गई। इसलिए कि किसी भी परिवार में सबसे मजबूत रीढ़ इन्हीं रिश्तों की होती है। बहनों पर आधारित छोटी बहन, बड़ी बहन, मंझली दीदी जैसी कई फिल्में बनी, तो भाईयों पर आधारित फिल्में भी कम नहीं हैं। ऐसी फिल्मों के शीर्षकों पर नजर दौड़ाई जाए तो 'भाई' शीर्षक से जुड़ी फिल्मों की संख्या बहन से ज्यादा निकलेगी। भाई, दो भाई, भाई-भाई, बड़ा भाई, चल मेरे भाई, मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई, मेरे भैया, बिग ब्रदर, हैलो ब्रदर, गुरु भाई, भाई हो तो ऐसा, मैं और मेरा भाई। हमारे यहां यदि रागिनी और पद्मिनी से लेकर करीना और करिश्मा जैसी बहनों ने नाम कमाया, तो भाईयों ने भी अभिनय के क्षेत्र में अपना दमखम दिखाया है। इसमें कुछ भाई सफल तो कुछ असफल रहे। सफल भाइयों में अशोक कुमार और किशोर कुमार हैं, तो इनके तीसरे भाई अनूप कुमार ज्यादा चल नहीं पाए। कपूर ब्रदर्स ने सबसे ज्यादा नाम कमाया, फिर चाहे वो राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर हों या ऋषि कपूर और रणधीर कपूर। कपूर भाई का होना सफलता की गारंटी है। ऐसा होता तो राज कपूर के तीसरे बेटे राजीव कपूर और अनिल कपूर के छोटे भाई संजय कपूर भी सफलता के झंडे गाड़ते। अभिनय की दुनिया में नाम या भाई का रिश्ता नहीं, दर्शकों की पसंद ज्यादा मायने रखती है।    
    ऐसा भी हुआ कि एक भाई के सफल होने पर दूसरा भाई वैसी ही सफलता की आस लगाकर परदे की दुनिया में कूद पड़ता है। लेकिन, उसे असफलता ही हाथ लगती है। दिलीप कुमार की सफलता से प्रेरित होकर उनके भाई नासिर खान ने भी कोशिश की, पर ज्यादा नहीं चल सके। सुनील दत्त चाहकर भी अपने भाई सोमदत्त को सफलता का दीदार नहीं करवा पाए। मनोज कुमार भी अपने भाई को अभिनेता बनाने के चक्कर में पारिवारिक कलह में ऐसे उलझे कि उबर नहीं पाए। प्रेमनाथ के साथ उनके भाई राजेन्द्र नाथ तो सफल रहे, लेकिन नरेन्द्र नाथ ज्यादा नहीं चले। आमिर खान के भाई फैजल खान, फिरोज खान के भाई संजय खान और अकबर खान, सलमान खान के भाई अरबाज खान और सोहेल खान की कहानी भी इससे कुछ अलग नहीं है। अभिनय के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी भाईयों ने अपनी किस्मत आजमाई। गायन में जिस तरह मंगेशकर बहनों का एक छत्र राज चलता रहा, पर भाइयों में ऐसी कोई जोड़ी नहीं दिखी। 
    देव आनंद के भाई विजय आनंद और चेतन आनंद ने कुछ फिल्मों में अभिनय पर हाथ आजमाए। वे बेहतरीन निर्देशक जरूर बनें। पर, चाहकर भी दूसरे देव आनंद नहीं बन पाए। निर्देशन के क्षेत्र में आनंद बंधुओं की सफलता का ग्राफ सबसे ज्यादा ऊंचा रहा। चेतन आनंद गंभीर निर्देशन के क्षेत्र में अग्रणी रहे, तो विजय आनंद ने मनोरंजक फिल्मों में खूब नाम कमाया। उनकी तरह देव आनंद भी निर्देशक बने, पर 'हरे राम हरे कृष्ण' और 'देस परदेस' को छोड़कर तीसरी सफल फिल्म का निर्देशन नहीं कर पाए। संयोग से यह दोनों सफल फिल्में भाई-बहन और भाई-भाई के प्रेम पर ही आधारित थी। राज कपूर के साथ शम्मी कपूर और शशि कपूर ने, रणधीर कपूर के साथ ऋषि और राजीव कपूर, फिरोज खान के साथ संजय खान और अकबर खान ने निर्देशन की परम्परा को आगे बढ़ाया! लेकिन, इनमें भी एक भाई सफल तो दूसरा असफल रहा। अब्बास-मस्तान भाईयों की जोड़ी जरूर निर्देशन के क्षेत्र में कुछ हद तक सफल रही। हिन्दी सिनेमा में राकेश रोशन और उनके छोटे भाई राजेश रोशन दोनों ने अपार सफलता पाई, लेकिन दोनों के क्षेत्र अलग-अलग थे।  
    कई फिल्मों में रियल लाइफ के भाईयों ने रील लाइफ में साथ-साथ काम किया। इस तरह की फिल्मों में 'चलती का नाम गाड़ी' सबसे सफल फिल्म है जिसमें अशोक कुमार किशोर कुमार और अनूप कुमार की तिकड़ी ने कॉमेडी की गाड़ी को पर्दे पर दौड़ाया था। अशोक कुमार और किशोर कुमार ने 'भाई भाई' और 'रागिनी' में भी काम किया। जबकि, किशोर कुमार और अनूप कुमार ने 'झुमरू' और 'हम दो डाकू' में अभिनय का जौहर दिखाया। अशोक कुमार और अनूप कुमार की जोडी 'आंसू बन गए फूल' में दिखाई दी थी। जबकि, आनंद बंधु की तिकड़ी दर्शकों ने 'काला बाजार' में देखी थी। तीनों के किरदार अलग थे। विजय आनंद और चेतन आनंद 'हकीकत' में थे, तो देव आनंद और विजय आनंद 'तेरे मेरे सपने' में साथ नजर आए। कपूर परिवार के भाई भी कुछ फिल्मों में साथ नजर आए। राज कपूर और शम्मी कपूर ने ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'चार दिल चार राहें' में साथ काम किया तो शम्मी कपूर और शशि कपूर, अनिल कपूर के पिता और शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली के सेक्रेटरी एसके कपूर की पहली फिल्म 'जब से तुम्हे देखा' में एक साथ कव्वाली गाते दिखाई दिए थे। 
    शशि कपूर ने बड़े भाई की दो फिल्मों 'आग' और 'आवारा' में राज कपूर के साथ किया। लेकिन, दोनों साथ में कभी स्क्रीन शेयर नहीं कर पाए। क्योंकि, दोनों फिल्मों में शशि कपूर ने राज कपूर के बचपन का रोल किया था। रणधीर कपूर और ऋषि कपूर 'हाउस फ़ूल 2' में साथ दिखाई दिए थे। इसके अलावा दिलीप कुमार और नासिर खान 'गंगा-जमुना' में साथ दिखाई दिए, तो सलमान और अरबाज 'प्यार किया तो डरना क्या' में साथ थे। खान बंधुओं की तिकड़ी 'हैलो ब्रदर' में भी साथ नजर आई, तो सलमान और सोहेल हेलो, मैंने प्यार क्यूँ किया और 'ट्यूबलाइट' में साथ थे। 'मेला' नाम से तो कई बार फिल्में बनीं, लेकिन संयोग से दो बार बनी 'मेला' में सगे भाइयों ने साथ काम किया। एक मेला में फिरोज खान और संजय खान थे, तो दूसरी में आमिर खान और उनका फ्लॉप भाई फैजल खान कोई कमाल नहीं दिखा पाए थे।
    रिश्ते के भाइयों के अलावा कुछ फ़िल्मी कथानकों में दो भाइयों के रिश्तों की प्रगाढ़ता को बहुत अच्छे ढंग से फिल्माया गया। मनोज कुमार की कालजयी फिल्म 'उपकार' की कहानी भी दो भाइयों मनोज कुमार और प्रेम चौपड़ा पर केंद्रित थी। 'राम लखन' के दो भाई अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ को कोई कैसे भूल सकता है। फ़िल्म 'भाई' में सुनील शेट्टी और कुणाल खेमू ने भाइयों की भूमिका निभाई थी। शाहरुख़ ख़ान और सलमान खान ने 'करन-अर्जुन' में जो काम किया उसे आजतक याद किया जाता है। अक्षय कुमार और सिद्धार्थ मल्होत्रा ने फिल्म 'ब्रदर्स' में अक्षय कुमार और सिद्धार्थ मल्होत्रा भाई बनकर आए थे। 'आंखें' में गोविंदा और चंकी पांडे के किरदार 'मुन्नू' और 'मुन्नू' का नाम सुनते ही चेहरे पर हंसी आना स्वाभाविक है। 
   अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की फिल्म 'दीवार' का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में 'तुम्हारे पास क्या है' वाला डायलॉग कान में गूंजने लगता है।  इसके साथ दोनों भाइयों के बीच का सन्नाटा सुनाई देता है। संजय दत्त और कुमार गौरव की फ़िल्म 'नाम' में संजय दत्त और कुमार गौरव भाई बने थे। सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार फिल्म 'मदर इंडिया' की राधा यानी नरगिस दत्त हों या फिर मुंशी सभी किरदार अमर हैं। इनमें ही एक किरदार था दो भाइयों का जिसे सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार ने निभाया, इनका नाम बिरजू और रामू था। अमिताभ बच्चन, गोविंदा और रजनीकांत की फिल्म 'हम' के ये तीनों भाई किसी मिसाल से कम नहीं थे। 'अमर अकबर एंथोनी' में भी तीन भाइयों की कहानी में अमिताभ, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर थे। 'परवरिश' में अमिताभ के साथ फिर विनोद खन्ना भाई बनकर आए। अमिताभ और ऋषि कपूर की फिल्म 'नसीब' में दोनों भाई बनकर नज़र आए थे। सनी देओल-बॉबी देओल को 'अपने' में देखकर लगा ही नहीं कि वो एक्टिंग कर रहे हैं। जब तक हिंदी फिल्मों में रिश्तों के पत्ते फेंटे जाते रहेंगे भाई-भाई के किस्सों की भी कमी नहीं आएगी।   
---------------------------------------------------------------------------------------

No comments: