- हेमंत पाल
यह शायद पहला प्रसंग है, जब किसी प्रमुख सचिव ने अपने ही विभाग के कार्यक्रम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मंच शेयर करते हुए ऐसी बात कही जिससे बवाल मच गया। उन्होंने महिलाओं को लेकर जो टिप्पणी की, वो इतनी आपत्तिजनक थी, कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने इसका विरोध किया। 'लाड़ली लक्ष्मी योजना' के दूसरे चरण की लॉन्चिंग में प्रमुख सचिव अशोक शाह ने माइक से बोलते हुए जो कहा वो बेटी विरोधी, माता विरोधी और मध्यप्रदेश की मातृशक्ति की छवि खराब करने वाला माना गया।
उन्होंने जो कहा उसका कोई तथ्यात्मक आधार भी शायद नहीं होगा! लेकिन, उन्होंने अपने भाषण में जिस तरह की बातें कही वो निश्चित रूप से किसी महिला की छवि को धूमिल करने के लिए काफी है। मुख्यमंत्री जो मंच पर मौजूद थे, उन्होंने भी अपनी सरकार के इस बड़े अधिकारी के 'उच्च विचार' सुने होंगे! लेकिन, उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए कहा कि मैंने हल्ला होने के कारण उनकी बातों को नहीं सुना! लेकिन, जब बाद में उन्हें बात पता चली होगी तो अच्छा नहीं लगा होगा!
अब जानिए कि उन्होंने ऐसा क्या कहा जो महिलाओं के लिए बेहद लज्जास्पद बात थी। उन्होंने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा 'कृपया आप परिवार में इस बात पर विशेष ध्यान दें कि हमारी बालिकाएं पीछे क्यों रह जाती हैं! इसका कारण यह कि 2005 में सिर्फ 15% माताएं बेटियों को दूध पिलाती थीं। थोड़ी खुशी की बात की यह है कि आज 42% माताएं अपनी बेटियों को दूध पिलाती हैं। अगर जन्म के 6 महीने तक बेटियों को मां का दूध नहीं मिलता, तो वे हर दृष्टिकोण में पीछे रह जाती हैं। आप आगे आओ सरकार आपके आर्थिक, सामाजिक सशक्तिकरण के लिए साथ खड़ी है। मैं ये नहीं कहता कि बेटों को दूध न पिलाओ, मैं ये कहता हूं कि बेटियों को भी पिलाना चाहिए, ये प्रण लेना पड़ेगा।'
अब सवाल यह उठता है कि वे आखिर वे साबित क्या करना चाहते थे! उनके कहने का सीधा आशय तो यह हुआ कि समाज में मां अपनी बेटियों को स्तनपान नहीं करवाती सिर्फ बेटों ही करवाती है! उन्होंने एक आंकड़ा भी पेश किया कि 17 साल पहले सिर्फ 15% माताएं बच्चियों को स्तनपान करवाती थी, अब वो बढ़कर 42% हो गया। जबकि, किसी भी दृष्टि से देखा जाए, तो इस तरह की विचारधारा महिलाओं को अपमानित करती है।
अब सवाल यह उठता है कि वे आखिर वे साबित क्या करना चाहते थे! उनके कहने का सीधा आशय तो यह हुआ कि समाज में मां अपनी बेटियों को स्तनपान नहीं करवाती सिर्फ बेटों ही करवाती है! उन्होंने एक आंकड़ा भी पेश किया कि 17 साल पहले सिर्फ 15% माताएं बच्चियों को स्तनपान करवाती थी, अब वो बढ़कर 42% हो गया। जबकि, किसी भी दृष्टि से देखा जाए, तो इस तरह की विचारधारा महिलाओं को अपमानित करती है।
कोई अफसर मंच से महिलाओं का सामूहिक अपमान कैसे कर सकता है! जबकि, सब जानते हैं कि महिलाओं और बच्चियों के प्रति मुख्यमंत्री बेहद संवेदनशील हैं। जिस कार्यक्रम के मंच से उन्होंने ये बात कही वो भी 'लाड़ली लक्ष्मी योजना' का ही आयोजन था। आश्चर्य की बात है कि अशोक शाह को स्वयं महसूस क्यों नहीं हुआ कि वे कुछ गलत बयानी कर रहे हैं!
उनकी बात कितनी लज्जास्पद थी, इस बात का पता इससे चलता है, कि बीजेपी की पूर्व महिला मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी अशोक शाह के बयान की घोर निंदा की। उन्होंने तो मुख्यमंत्री को भी इस मामले की शिकायत भी की! लेकिन, मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के अफसर को बचाने की गरज से बात को टाल दिया कि हो-हल्ले की वजह से मैं ठीक से सुन नहीं पाया! लेकिन, उमा भारती ने जो कहा वो सामाजिक दृष्टिकोण से सही भी है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बात बेटी विरोधी, माता विरोधी और प्रदेश की मातृशक्ति की छवि खराब करने वाली बात है।
उन्होंने यह भी कहा अधिकारियों को ऐसे बयानों के प्रति सचेत और जिम्मेदार रहना चाहिए। अमीर हो या गरीब, बेटा हो या बेटी, बच्चे के जन्मते ही हर मां अपने बच्चे को दूध पिलाती ही है। लाखों में एक केस में कई कारणों से ऐसा नहीं होता होगा। आखिर सारी महिलाएं बेटियां ही हैं, वो जिंदा कैसे रह गईं! जबकि, कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि एक अधिकारी महिलाओं के लिए इतना लज्जाजनक और अपमानजनक बयान कैसे दे रहे हैं। मुख्यमंत्री जी आपकी मौजूदगी में आपके विभाग के यह प्रमुख अधिकारी महिलाओं के लिए ऐसा बयान कैसे दे रहे हैं! जरा इनसे पूछिए कि यह जानने का विभाग के पास कौन सा पैमाना है, कि कौन सी मां बच्ची को स्तनपान कराती है और कौन सी नहीं! आंकड़ा ये कहां से लाए!
अशोक शाह 1990 बैच के आईएएस हैं और अगले साल जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। लेकिन, नौकरी से जाने से तीन महीने पहले उन्होंने सरकार को एक नई मुसीबत में डाल दिया। अब सरकार को कई दिन तक उनके इस बयान पर लीपापोती करना पड़ेगी और उनके बयान का सकारात्मक पक्ष सामने लाना होगा कि उनके कहने का मतलब ये नहीं, ये था! क्योंकि, विभाग भी सरकार का है और अफसर भी!
उनकी बात कितनी लज्जास्पद थी, इस बात का पता इससे चलता है, कि बीजेपी की पूर्व महिला मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी अशोक शाह के बयान की घोर निंदा की। उन्होंने तो मुख्यमंत्री को भी इस मामले की शिकायत भी की! लेकिन, मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के अफसर को बचाने की गरज से बात को टाल दिया कि हो-हल्ले की वजह से मैं ठीक से सुन नहीं पाया! लेकिन, उमा भारती ने जो कहा वो सामाजिक दृष्टिकोण से सही भी है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बात बेटी विरोधी, माता विरोधी और प्रदेश की मातृशक्ति की छवि खराब करने वाली बात है।
उन्होंने यह भी कहा अधिकारियों को ऐसे बयानों के प्रति सचेत और जिम्मेदार रहना चाहिए। अमीर हो या गरीब, बेटा हो या बेटी, बच्चे के जन्मते ही हर मां अपने बच्चे को दूध पिलाती ही है। लाखों में एक केस में कई कारणों से ऐसा नहीं होता होगा। आखिर सारी महिलाएं बेटियां ही हैं, वो जिंदा कैसे रह गईं! जबकि, कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि एक अधिकारी महिलाओं के लिए इतना लज्जाजनक और अपमानजनक बयान कैसे दे रहे हैं। मुख्यमंत्री जी आपकी मौजूदगी में आपके विभाग के यह प्रमुख अधिकारी महिलाओं के लिए ऐसा बयान कैसे दे रहे हैं! जरा इनसे पूछिए कि यह जानने का विभाग के पास कौन सा पैमाना है, कि कौन सी मां बच्ची को स्तनपान कराती है और कौन सी नहीं! आंकड़ा ये कहां से लाए!
अशोक शाह 1990 बैच के आईएएस हैं और अगले साल जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। लेकिन, नौकरी से जाने से तीन महीने पहले उन्होंने सरकार को एक नई मुसीबत में डाल दिया। अब सरकार को कई दिन तक उनके इस बयान पर लीपापोती करना पड़ेगी और उनके बयान का सकारात्मक पक्ष सामने लाना होगा कि उनके कहने का मतलब ये नहीं, ये था! क्योंकि, विभाग भी सरकार का है और अफसर भी!
सबसे बड़ी तो यह कि जिस तरह मुख्यमंत्री आजकल अधिकारियों को उनकी गलती की सजा दे रहे हैं, क्या अशोक शाह पर भी कार्रवाई होगी! इंदौर के एक आईएएस अफसर को सिर्फ एक विकलांग व्यक्ति के साथ असंवेदनशीलता दिखाने पर हटा दिया गया! ... तो क्या अशोक शाह का कथन उस श्रेणी का असंवेदनशील नहीं है! उन्होंने तो प्रदेश की उन सारी मांओं को कटघरे खड़ा कर दिया और उनको आंकड़ों में भी बांट दिया! क्या जिन मांओं पर उंगली उठाई गई, क्या उनकी मां ने उनको स्तनपान नहीं कराया था!
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