- हेमंत पाल
हिंदी फिल्मों में एक्शन का काम नायक का होता है। खलनायक से लड़ना हो या पूरी सेना को चित करना हो, नायक ये काम बखूबी से करता रहा है। ऐसे काम के लिए कभी नायिका को लायक नहीं माना जाता। ऐसी फ़िल्में बहुत कम आई, जब नायिका ने हंटर फटकारा हो! लेकिन, जब भी ऐसी फिल्म आईं वो दर्शकों की पसंद पर खरी उतरी। याद किया जाए तो 1935 में रिलीज हुई 'हंटरवाली' पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें नायिका हंटर चलाती थी। होमी वाडिया की डायरेक्ट की हुई इस फिल्म में फीयरलेस नाडिया ने काम किया था। कहा जाता है कि सीक्वल फिल्मों का सिलसिला भी इसी फिल्म से शुरू हुआ। इस सीरीज की दूसरी फिल्म 1943 में 'हंटरवाली की बेटी' रिलीज हुई थी। 1930-1950 के बीच में डायमंड क्वीन, हंटरवाली, शेर दिल और 'तूफान क्वीन' में भी फियरलेस नाडिया को दिखाया गया। इन फिल्मों में नाडिया बेखौफ अंदाज में स्टंट करती नजर आईं थीं। ये वो दौर था जब परदे पर नायिका सिर्फ पति के प्रति समर्पित होकर त्याग की प्रतिमूर्ति होती थी। लेकिन, उस दौर में नाडिया ने ऐसी कई फिल्मों में काम किया, जिनमें एक तरफ उन्होंने जमींदारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी तो दूसरी तरफ औरतों की शिक्षा और आजादी की बात की।
घुड़सवारी करते हुए करतब दिखाना हो, चलती ट्रेन से कूदना हो, झरने के ऊपर से छलांग लगाना या शेरों के साथ खेलना हो, 'हंटरवाली' के नाम से जाने जानी वाली नाडिया सारे स्टंट खुद किया करती थीं। यही कारण था कि उन्हें 'फियरलेस नाडिया' का नाम दिया गया, इसी नाम से उनकी पहचान भी बनी। 'मैरी' से कब उन्हें लोग फियरलेस नाडिया या निडर नाडिया कहने लगे, ये उन्हें भी पता नहीं चला। 1935 में बनी फिल्म 'हंटरवाली' में स्टंट्स दिखाने के बाद नाडिया हर तरह की फिल्में करने लगी थीं। लेकिन, उनके फैंस उन्हें बेखौफ अंदाज में ही देखना चाहते थे। नाडिया को फिल्मों में इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके पति होमी का एक बहुत बड़ा हाथ रहा। दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया। फिल्मों में साथ काम करते हुए दोनों के बीच प्यार हुआ और कुछ साल बाद उन्होंने इस प्यार को शादी में बदलने का फैसला किया। दोनों ने 1961 में शादी कर ली। नाडिया सर्कस में भी जाबांजी के करतब दिखा चुकी थीं। इसलिए फिल्मी पर्दे पर इन्हें दिखाना उनके बायें हाथ का खेल था। अपनी फिल्मों में वे ऊंचाई से छलांग लगाती, चलती ट्रेन के ऊपर फाइट करती और मर्दों से दो-दो हाथ होने में पीछे नहीं हटती। उस दौर में किसी महिला अभिनेत्री का ऐसा करना असाधारण काम था।
देखा गया कि किसी हीरो या हीरोइन से प्रभावित होकर उसके जैसा बनने के कई प्रयास हुए। लेकिन, किसी हीरोइन ने कभी नादिया से प्रभावित होकर खुद को उनकी तरह ढाला हो, ऐसा कभी नहीं लगा! इंडस्ट्री में कई ऐसी नायिकाएं हैं, जिन्होंने यदा-कदा ऐसी फिल्मों में काम जरूर किया। जब हीरोइनों ने प्रेमिका की भूमिका से किनारा किया, तो वे कठोर किरदार में सामने आईं। कुछ ऐसी फिल्में बनीं जिसमें लेडी डॉन, गैंगस्टर या डकैत की भूमिकाओं को भी सशक्त अंदाज में पेश किया। नाडिया की तरह ही उनसे मिलते-जुलते नाम वाली नादिरा ने अपनी पहली ही फिल्म 'आन' में हंटर थाम लिया था। यह बात अलग है कि उनका हंटर मजलूमों की हिफाजत के लिए नहीं चला, बल्कि एक मगरूर राजकुमारी की अकड़ दिखाने के लिए मजलूमों पर ही चला था। बाद में नायक दिलीप कुमार उसे सबक सिखाता है। 'धरमवीर' में जीनत ने भी इसी अंदाज में हंटर थामा था। मनमोहन देसाई ने जीनत का यह रूप राजकुमार फिल्म की मगरूर राजकुमारी साधना की स्टाइल में रचा था। क्योंकि, अपने सीधे-साधे गंवार पति को छोटे भाई के हंटरों से बचाने के लिए माला सिन्हा ने 'बहुरानी' में तो हेमामालिनी ने 'ज्योति' में हंटर थामा था। जालिम पति को सबक सिखाने के लिए रेखा भी खून भरी मांग में हंटर थाम चुकी हैं।
प्रियंका चौपड़ा ने अपनी पहचान से अलग द्रोण, डॉन, डॉन-2, जय गंगाजल और 'मैरी कॉम' में एक्शन किया। दीपिका पादुकोण ने लफंगे परिंदे और 'बाजीराव मस्तानी' में एक्शन के साथ तलवारबाजी भी की। कंगना रनौत को हमेशा ऐसी फिल्मों में काम करने का शौक रहा जिसमें एक्शन हो। रंगून, रिवाल्वर रानी, मणिकर्णिका और धाकड़ ऐसी ही फ़िल्में रहीं। ऐश्वर्या राय जैसी सुंदरी ने भी जोश, खाकी, धूम-2 और 'जोधा अकबर' में तलवार चलाई। जबकि, कैटरीना कैफ ने एक था टाइगर, बैंग-बैंग और 'धूम-3' में नायक के साथ एक्शन किए! बिपाशा बसु ने अजनबी, धूम 2 और 'रेस' में कुछ ऐसे ही किरदार निभाए। शिल्पा शेट्टी जैसी हीरोइन ने भी 'दस' में सीक्रेट एजेंट का रोल किया था। अनुष्का शर्मा ने 'एनएच-10' और 'सुल्तान' में उनकी शुरुआती फिल्मों से अलग काम किया। माधुरी दीक्षित ने ज्यादातर फिल्मों में कमसिन नायिका की भूमिका की है, पर 'गुलाब गैंग' में उन्होंने भी डंडे चलाए। नई एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया भी 'बाहुबली' में एक्शन अवतार में दिखाई दी।
साल 1999 में आई फिल्म ‘गॉड मदर’ गुजरात के पोरबंदर में माफिया राज चलाने वाली डॉन से नेता बनी संतोकबेन जडेजा के जीवन से प्रेरित थी। फिल्म में यह भूमिका शबाना आजमी ने निभाई। 'गोलियों की रासलीला रामलीला' में सुप्रिया पाठक का किरदार दबंगता से भरा था। जबकि, 2022 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में आलिया भट्ट ने भी कोठे की ऐसी मालकिन की भूमिका निभाई, जो किसी हंटरवाली से कम नहीं है। ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ फिल्म एस हुसैन जैदी की पुस्तक 'माफिया क्वींस ऑफ़ मुंबई' पर बनाई है। इसमें गंगूबाई हरजीवनदास उर्फ गंगूबाई कोठेवाली की कहानी है।
याद किया जाए तो हेमा मालिनी ने 'सीता और गीता' में डबल रोल निभाया था। एक सीधे किरदार के साथ दूसरा रोल हंटरवाली का था। श्रीदेवी का 'चालबाज' वाला किरदार भी इससे काम नहीं था। रिचा चड्ढा का फिल्म 'फुकरे' में भोली पंजाबन का किरदार निभाया था। नेहा धूपिया ने 2010 में आई फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ में मुन्नी गैंगस्टर का किरदार निभाया था। श्रद्धा कपूर की फिल्म 'हसीना पारकर' अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की बहन पर आधारित थी। फिल्म 'सुपारी' में नंदिता दास डॉन के किरदार में दिखाई दी थी। जबकि, शेखर कपूर निर्देशित फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में सीमा विश्वास ने डकैत फूलन देवी का किरदार निभाया। प्रतिमा काजमी ने 'वैसा भी होता है पार्ट 2' में गंगू ताई का किरदार निभाया था। ईशा कोपिकर ने फिल्म 'शबरी' में मुंबई की पहली क्राइम लेडी का किरदार निभाया था।
सिनेमा में सशक्त महिला के किरदार को लेकर हर फिल्मकार का अपना अलग नजरिया होता है। लेकिन, ऐसी फिल्मों के कथानक की सबसे बड़ी ताकत होती है कमजोर समझी जाने वाली औरत को नए रूप में देखना। फिल्म 'आंधी' में सुचित्रा सेन को हंटर चलाते नहीं दिखा गया, पर उनका विल पावर स्ट्रांग होता है। पितृसत्तात्मक समाज में सत्ता में होते हुए भी वे अपने दम पर आगे बढ़ती हैं। लेकिन, उस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए इस किरदार को बहुत सारे त्याग करने पड़ते हैं। जिस दायरे में ऐसी फिल्में बनी, उसमें दर्शकों ने कई महिला केंद्रित किरदार देखे! लेकिन, अब यह सामान्य बात हो गई।
सिर्फ हिंदी फिल्मों में ही नहीं, दूसरी भाषाओं की फिल्मों में भी नायिका को ऐसे किरदार निभाते देखा गया। भोजपुरी सिनेमा की सुपरस्टार कही जाने वाली अभिनेत्री पाखी हेगड़े ने भी 'हंटरवाली' में कुछ उस तरह का रोल किया जैसा 'शहंशाह' में अमिताभ ने किया था। इससे पहले पाखी ने 'औलाद' और 'दाग' में भी एक्शन रोल किए थे। फिल्मो के कथानक में जिस तरह से नए प्रयोग हो रहे और महिला सशक्तिकरण का दौर है, ऐसी फ़िल्में फिर बने तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए! नए ज़माने की नायिकाएं भले ही हंटर न चलाएं, पर यदि वे किसी को तमाचा भी मारेंगी तो हॉल में बैठे दर्शक तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाएंगे!
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