देश में कुछ महीनों से पुराने मंदिरों और धार्मिक स्थलों को संवारने का काम शुरू हो गया। ये सिर्फ जीर्णोद्धार तक सीमित नहीं है, बल्कि इन्हें धार्मिक पर्यटन स्थल की तरह विकसित किया जा रहा है। देश के सात-आठ राज्यों में 21 धार्मिक कॉरिडोर और देवलोक बनाए जा रहे हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन के महाकाल लोक, ओंकारेश्वर के अद्वैत धाम और सोमनाथ मंदिर कॉरिडोर का काम पूरा भी हो गया। इनमें सबसे बड़ा आयोजन अयोध्या में भगवान श्रीराम की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा का है जो जनवरी में होगा। ये सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक प्रतिबद्धता भी नजर आती है। मामला धर्म से जुड़ा है, इसलिए राजनीतिक पार्टियां भी इन पर टिप्पणी करने से बचती हैं।
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- हेमंत पाल
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- हेमंत पाल
दो साल लगातार चुनाव वाले हैं। इस साल पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव के बाद अगले साल लोकसभा चुनाव होना है। ये चुनाव किसी भी मुद्दे पर लड़े जाएं, पर धर्म को आधार बनाकर भी मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। इसलिए कि धर्म ऐसा मसला है, जिससे किसी मतदाता को इंकार नहीं होता! यही कारण है, कि असहमत होते हुए भी कोई भी राजनीतिक पार्टी धर्म से जुड़े मामलों का विरोध नहीं कर पाती। इसी का नतीजा है कि कई राज्यों में सरकारें धार्मिक कॉरिडोर और मंदिर परिसर में 'लोक' बनाने में जुटी हैं। इस चुनावी गणित को इस तरह समझा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले 35,000 करोड़ रुपए के लोक और कॉरिडोर बनकर तैयार जाएंगे। देशभर में 21 धार्मिक कॉरिडोर बनाने की तैयारी है, इसमें 11 मध्यप्रदेश में, 3 राजस्थान में, 3 उत्तर प्रदेश और बाकी महाराष्ट्र और बिहार में बन रहे हैं। सभी धार्मिक कॉरिडोर को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पूरा करने का लक्ष्य यही सोचकर तय किया गया, कि इसके राजनीतिक फायदे लिए जाएं। लोकसभा चुनाव से पहले सबसे बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में अयोध्या के श्रीराम मंदिर में भगवान की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा जनवरी में तो होना ही है।
बीते दो-ढाई साल में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन का महाकाल लोक, ओंकारेश्वर में अद्वैत धाम और सोमनाथ मंदिर कॉरिडोर बन चुके। बिहार में उच्चैठ भगवती स्थान से महिषी तारास्थान को जोड़ने का काम शुरू हो गया। राजस्थान सरकार भी गोविंद देव मंदिर और तीर्थराज पुष्कर के विकास पर करोड़ों खर्च कर रही है। उत्तर प्रदेश में भी मथुरा-वृंदावन कॉरिडोर का काम शुरू हो गया। उधर, अयोध्या का राम मंदिर अगले साल के शुरू में बनकर तैयार हो जाएगा। असम के गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर परिसर को भी विकसित किया जाने लगा। जबकि, मध्यप्रदेश सरकार तो पूरी तरह धार्मिक हो गई। मुख्यमंत्री ने चित्रकूट में वनवासी राम पथ, ओरछा में रामराजा लोक, दतिया में पीतांबरा पीठ कॉरिडोर, इंदौर में अहिल्याबाई लोक, महू के नजदीक जानापाव में परशुराम लोक बनाने की घोषणा कर दी। उधर, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में महालक्ष्मी परिसर में कॉरिडोर और नासिक से त्र्यंबकेश्वर तक कॉरिडोर बनना भी शुरू हो गए।
उत्तर भारत के कई राज्यों में तो राजनीति को भगवान के मंदिरों से साधने की कोशिश काफी पहले शुरू हो गई। जिन पुराने मंदिरों के आसपास जमीन खाली थी, वहां अब 'लोक' बनाए जाने लगे। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी से हुई थी, जहां बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर बना और चर्चित हुआ। इसके बाद उज्जैन में महाकाल लोक का निर्माण शुरू हुआ। ये दोनों प्रयोग जब धार्मिक आस्था और राजस्व की दृष्टि से सफल हुए, तो इस प्रयोग को आगे बढ़ाया गया। इससे इंकार नहीं कि जहां भी धार्मिक नव निर्माण हुआ शहर की अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव आया। उज्जैन में पहले महाकाल के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु एक दिन में वापस लौट जाते थे, पर अब वे दो या तीन दिन रुकते हैं। यही कारण है कि मध्यप्रदेश सरकार ने 11 लोक बनाने का ऐलान किया। इसे राजनीतिक दृष्टि से भी सफल मानते हुए इसे चुनाव में भी भुनाया गया।
उत्तर भारत के कई राज्यों में तो राजनीति को भगवान के मंदिरों से साधने की कोशिश काफी पहले शुरू हो गई। जिन पुराने मंदिरों के आसपास जमीन खाली थी, वहां अब 'लोक' बनाए जाने लगे। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी से हुई थी, जहां बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर बना और चर्चित हुआ। इसके बाद उज्जैन में महाकाल लोक का निर्माण शुरू हुआ। ये दोनों प्रयोग जब धार्मिक आस्था और राजस्व की दृष्टि से सफल हुए, तो इस प्रयोग को आगे बढ़ाया गया। इससे इंकार नहीं कि जहां भी धार्मिक नव निर्माण हुआ शहर की अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव आया। उज्जैन में पहले महाकाल के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु एक दिन में वापस लौट जाते थे, पर अब वे दो या तीन दिन रुकते हैं। यही कारण है कि मध्यप्रदेश सरकार ने 11 लोक बनाने का ऐलान किया। इसे राजनीतिक दृष्टि से भी सफल मानते हुए इसे चुनाव में भी भुनाया गया।
सवाल उठता है कि आखिर इन धार्मिक लोक की जरुरत क्यों पड़ी! अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था कि आखिर इस तरह के धार्मिक 'लोक' की उम्मीद किसे और क्यों है! इसका जवाब भी सकारात्मक रूप में सामने आया। 'काशी विश्वनाथ कॉरिडोर' और 'महाकाल लोक' के लोकार्पण के बाद इन दोनों धार्मिक शहरों में जिस तरह श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ी और हर क्षेत्र में राजस्व बढ़ा, उससे 'लोक' की सार्थकता साबित हो गई! रोजगार के स्थानीय अवसर बढ़ने के साथ यहां होटल, खानपान समेत दूसरा कारोबार भी बढ़ा। राजस्व बढ़ने के साथ भविष्य के लिए भी नई संभावनाओं का जन्म हुआ। शुरू में इसे धार्मिक प्रोपोगंडा बताया गया, पर जनता ने जिस तरह स्वीकारोक्ति दी, उससे इस बात की सार्थकता नजर आने लगी। उज्जैन में महाकाल लोक बनने के बाद शहर में बहुत बदलाव आया। साफ-सफाई ज्यादा दिखाई देने लगी। नए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनने लगे, आस-पास के जिलों में भी रंगत बदलने लगी। इसका असर इंदौर और देवास तक नजर आया। उज्जैन आकर महाकाल लोक में रमने वाले देवास में चामुंडा माता, नलखेड़ा में बगलामुखी, इंदौर में खजराना गणेश और अन्नपूर्णा मंदिर के दर्शन के लिए भी आने लगे।
'लोक' की राजनीति का असर
मध्य प्रदेश में अब 'लोक' की राजनीति का असर भी अब दिखने लगा। अभी तक भाजपा पर मंदिरों की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन, अब कांग्रेस के नेता भी अपनी धार्मिक आस्था नहीं छुपाते! दिग्विजय सिंह ने तो 5 साल पहले नर्मदा परिक्रमा करके अपनी आस्था को साबित भी किया। जबकि, कमलनाथ ने अपने इलाके में 101 फीट की हनुमान प्रतिमा बनवाई। वे अपने आपको हनुमान भक्त बताने में भी नहीं झिझकते! यहां तक कि पार्टी के प्रदेश कार्यालय में उन्होंने हनुमान जयंती मनाने में भी संकोच नहीं किया। उन्होंने कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री की कथा और पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव पुराण करवाकर जता दिया कि धार्मिकता में वे किसी से कम नहीं है। कांग्रेस भी इन देव लोकों का विरोध नहीं कर रही।
'लोक' की राजनीति का असर
मध्य प्रदेश में अब 'लोक' की राजनीति का असर भी अब दिखने लगा। अभी तक भाजपा पर मंदिरों की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन, अब कांग्रेस के नेता भी अपनी धार्मिक आस्था नहीं छुपाते! दिग्विजय सिंह ने तो 5 साल पहले नर्मदा परिक्रमा करके अपनी आस्था को साबित भी किया। जबकि, कमलनाथ ने अपने इलाके में 101 फीट की हनुमान प्रतिमा बनवाई। वे अपने आपको हनुमान भक्त बताने में भी नहीं झिझकते! यहां तक कि पार्टी के प्रदेश कार्यालय में उन्होंने हनुमान जयंती मनाने में भी संकोच नहीं किया। उन्होंने कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री की कथा और पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव पुराण करवाकर जता दिया कि धार्मिकता में वे किसी से कम नहीं है। कांग्रेस भी इन देव लोकों का विरोध नहीं कर रही।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साल भर में 'महाकाल लोक' की तरह जिस तरह दूसरे देव लोक बनाने की घोषणा की। इन सभी देव लोकों के निर्माण पर 3,500 करोड़ से अधिक की लागत आएगी। 850 करोड़ में महाकाल लोक के पहले चरण के लोकार्पण के बाद इसके दूसरे और तीसरे चरण का काम शुरू हो गया। हाल ही में ओंकारेश्वर में सरकार ने 2,200 करोड़ की महत्वाकांक्षी परियोजना 'एकात्म धाम' को पूरा किया, जहां जगतगुरु शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा निर्मित की गई। सागर में स्थित रविदास मंदिर धाम में 100 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। इसके शिलान्यास कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए थे। वहीं दतिया के विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक सिद्धपीठ पीताम्बरा पीठ में 'पीतांबरा माई लोक' बनाया जाएगा। इसके अलावा इंदौर में देवी अहिल्याबाई की स्मृति को जीवंत रखने के लिए 'अहिल्या लोक' की भी मुख्यमंत्री घोषणा कर चुके हैं। इंदौर के नजदीक जानापाव में 'परशुराम लोक' बनाया जाएगा, जिसे भगवान परशुराम की जन्मस्थली कहा जाता है।
शनि धाम विकसित होगा
मुरैना जिले के ऐंती पर्वत पर विश्व प्रसिद्ध शनि धाम के भी विकास का खाका खींचा जाने लगा। यहां त्रेतायुगीन शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनिदेव की प्रतिमा के प्रति श्रद्धालुओं की विशेष आस्था है। मान्यता है, कि यह प्रतिमा आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित हुई है। शिरडी के नजदीक शिंगणापुर की शनि शिला भी इसी शनि पर्वत से ले जाई गई। यहां शनि धाम की 6.5 किमी की परिक्रमा में चंबल अंचल के 30 महापुरुषों और संत-महात्माओं की प्रतिमाएं स्थापित करने के साथ ही शनि कुंड बनाया जाएगा। सैलानियों के ठहरने के लिए यहां धर्मशाला, मंदिर परिसर में सोलर लाइट, प्रशासनिक भवन, शनि परिक्रमा में शिव पर्वत का निर्माण जैसे कई काम होंगे। भिंड जिले के हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम में भी हनुमान लोक बनाने की मंजूरी मुख्यमंत्री ने दी। इन हनुमान जी को डॉ हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है, कि यहां दर्शन करने से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। भिंड जिले के इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। छिंदवाड़ा के सौंसर के जामसांवली में हनुमान जी की लेटी प्रतिमा है, वहां भी हनुमान लोक बनाने की घोषणा की गई।
शनि धाम विकसित होगा
मुरैना जिले के ऐंती पर्वत पर विश्व प्रसिद्ध शनि धाम के भी विकास का खाका खींचा जाने लगा। यहां त्रेतायुगीन शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनिदेव की प्रतिमा के प्रति श्रद्धालुओं की विशेष आस्था है। मान्यता है, कि यह प्रतिमा आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित हुई है। शिरडी के नजदीक शिंगणापुर की शनि शिला भी इसी शनि पर्वत से ले जाई गई। यहां शनि धाम की 6.5 किमी की परिक्रमा में चंबल अंचल के 30 महापुरुषों और संत-महात्माओं की प्रतिमाएं स्थापित करने के साथ ही शनि कुंड बनाया जाएगा। सैलानियों के ठहरने के लिए यहां धर्मशाला, मंदिर परिसर में सोलर लाइट, प्रशासनिक भवन, शनि परिक्रमा में शिव पर्वत का निर्माण जैसे कई काम होंगे। भिंड जिले के हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम में भी हनुमान लोक बनाने की मंजूरी मुख्यमंत्री ने दी। इन हनुमान जी को डॉ हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है, कि यहां दर्शन करने से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। भिंड जिले के इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। छिंदवाड़ा के सौंसर के जामसांवली में हनुमान जी की लेटी प्रतिमा है, वहां भी हनुमान लोक बनाने की घोषणा की गई।
पन्ना को हीरे की खानों के लिए जाना जाता है। यहां मुख्यमंत्री ने 'जुगल किशोर सरकार लोक' बनाने की घोषणा की। इससे पहले मुख्यमंत्री ने ओरछा के विश्व प्रसिद्ध राम मंदिर में रामराजा लोक और चित्रकूट में वनवासी लोक की घोषणा की थी। इन लोकों के निर्माण में कितना खर्च आएगा इसे लेकर सरकारी स्तर पर आकलन किया जा रहा है। फिलहाल सलकनपुर स्थित विजयासन देवी धाम में 'देवी लोक' का निर्माण प्रारंभ हो गया। देवी लोक में देवी के नौ रूपों और 64 योगिनी को शास्त्रों में वर्णित कथाओं के साथ आकर्षक रूप में प्रदर्शित करने की योजना है। साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अनेक निर्माण एवं विकास के कार्य कराए जा रहे हैं। देवी लोक के निर्माण पर 200 करोड़ रुपए से अधिक की राशि के खर्च का अनुमान है। विकास एवं निर्माण कार्यों के भूमि पूजन के बाद करीब 40 करोड़ रुपए में प्रवेश द्वार, शिव मंदिर का पाथ-वे निर्माण, मेला ग्राउंड पर भव्य दीपस्तंभ एवं 102 दुकानें बन चुकी है।
पांच धार्मिक स्थलों का कायाकल्प
अभी तक देश में 5 धर्मस्थलों का कायाकल्प हो चुका। इन पर 3347 करोड़ रुपए की लागत आई। उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ के 55 हजार वर्ग मीटर में बने कॉरिडोर पर 900 करोड़ खर्च किए गए। गुजरात में सोमनाथ मंदिर का कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया। इस 1.48 किमी लंबे कॉरिडोर पर 47 करोड़ खर्च हुए हैं। उज्जैन के महाकाल लोक की 1100 करोड़ की परियोजना में महाकाल मंदिर परिसर को 2.82 हेक्टेयर से बढ़ाकर 47 हेक्टेयर किया गया है। पहले चरण के लोकार्पण के बाद यहां दूसरे चरण का काम चल रहा है। ओंकारेश्वर में नर्मदा के किनारे आदि शंकराचार्य के बाल स्वरुप की 100 फ़ीट की प्रतिमा का अनावरण किया गया, जिस पर 2200 करोड़ का खर्च आया। अब यहां अद्वैत धाम का काम चल रहा है। जबकि, तेलंगाना के ययाद्री मंदिर परिसर का 1300 करोड़ में विकास किया गया। भगवान नृसिंह के इस मंदिर के गर्भगृह में 125 किलो सोने का उपयोग किया गया।
पांच धार्मिक स्थलों का कायाकल्प
अभी तक देश में 5 धर्मस्थलों का कायाकल्प हो चुका। इन पर 3347 करोड़ रुपए की लागत आई। उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ के 55 हजार वर्ग मीटर में बने कॉरिडोर पर 900 करोड़ खर्च किए गए। गुजरात में सोमनाथ मंदिर का कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया। इस 1.48 किमी लंबे कॉरिडोर पर 47 करोड़ खर्च हुए हैं। उज्जैन के महाकाल लोक की 1100 करोड़ की परियोजना में महाकाल मंदिर परिसर को 2.82 हेक्टेयर से बढ़ाकर 47 हेक्टेयर किया गया है। पहले चरण के लोकार्पण के बाद यहां दूसरे चरण का काम चल रहा है। ओंकारेश्वर में नर्मदा के किनारे आदि शंकराचार्य के बाल स्वरुप की 100 फ़ीट की प्रतिमा का अनावरण किया गया, जिस पर 2200 करोड़ का खर्च आया। अब यहां अद्वैत धाम का काम चल रहा है। जबकि, तेलंगाना के ययाद्री मंदिर परिसर का 1300 करोड़ में विकास किया गया। भगवान नृसिंह के इस मंदिर के गर्भगृह में 125 किलो सोने का उपयोग किया गया।
द्वारका में देवभूमि कॉरिडोर
वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन में महाकाल लोक और मथुरा कॉरिडोर के बाद अब केंद्र सरकार गुजरात के द्वारका में देवभूमि कॉरिडोर बना रही है। यहां पश्चिम भारत का वृहद आध्यात्मिक केंद्र बनाने की तैयारी है। इस धार्मिक प्रोजेक्ट से न द्वारका की सूरत बदलेगी, बल्कि शिवराजपुर समुद्री इलाके का भी विकास किया जाएगा। महाकाल की तर्ज पर द्वारका के मंदिर भी आपस में जुड़ेंगे। इसके लिए द्वारका-पोरबंदर-सोमनाथ लिंक प्रोजेक्ट भी शुरू करने की योजना है। पोरबंदर को सुदामा की जन्मस्थली माना जाता है और धारणा है कि सोमनाथ के नजदीक श्रीकृष्ण ने देह त्यागी थी। द्वारका से 13 किमी दूर शिवराजपुर बीच व 23 किमी दूर ओखा के समुद्र किनारे की सूरत बदलने की योजना है। महाकाल लोक की ही तरह द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर से लेकर बेट द्वारका और ज्योतिर्लिंग नागेश्वर तक सभी मंदिरों को आपस में जोड़ा जाएगा। इनमें द्वारकाधीश मंदिर, रुक्मिणी-बलराम मंदिर, सांवलियाजी मंदिर, गोवर्धननाथ मंदिर, महाप्रभु बैठक, वासुदेव, हनुमान मंदिर से लेकर नारायण मंदिर तक शामिल हैं। लेकिन, ये योजना काफी बड़ी है और इसके पूरा होने में भी समय लगेगा।
कांग्रेस भी हिंदू हार्डकोर की राह पर
विधानसभा चुनाव की वजह से मध्य प्रदेश में मंदिर राजनीति दोनों तरफ है। भाजपा की हार्ड कोर हिंदुत्व वाली छवि नई नहीं है। अब पार्टी मंदिरों के लोक के जरिए अपना वोट बैंक मजबूत करने में लगी है। जबकि, प्रतिद्वंदी कांग्रेस ने भी हिंदुत्व का झंडा उठा लिया। वैसे ये संकेत कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ ही सामने आने लगे थे। सियासी हलचल की बात करें, तो विधानसभा चुनाव से पहले ही शिवराज सरकार के मंत्री और विधायक अपने इलाकों में धार्मिक कथाएं करवाते रहे। अपनी हिंदुत्व वाली छवि बनाने के लिए उन्होंने लाखों रुपए खर्च किए। सिर्फ भाजपा ही नहीं कांग्रेस के नेता भी कथा, पुराण और रुद्राभिषेक में पीछे नहीं हैं। पिछले 6 महीने में मध्य प्रदेश में 600 से ज्यादा धार्मिक कथाएं हो चुकी। कुछ बाबाओं का मध्य प्रदेश की कई सीटों पर खासा प्रभाव है। बताया जा रहा कि बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, कुबेरेश्वर धाम के प्रदीप मिश्रा और पंडोखर सरकार का प्रदेश की 89 विधानसभा क्षेत्रों पर खासा प्रभाव है। इसके अलावा दोनों पार्टियों के नेता प्रदेश के बाबाओं के जरिए हिंदू वोट बैंक को मजबूत कर रहे हैं।
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वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन में महाकाल लोक और मथुरा कॉरिडोर के बाद अब केंद्र सरकार गुजरात के द्वारका में देवभूमि कॉरिडोर बना रही है। यहां पश्चिम भारत का वृहद आध्यात्मिक केंद्र बनाने की तैयारी है। इस धार्मिक प्रोजेक्ट से न द्वारका की सूरत बदलेगी, बल्कि शिवराजपुर समुद्री इलाके का भी विकास किया जाएगा। महाकाल की तर्ज पर द्वारका के मंदिर भी आपस में जुड़ेंगे। इसके लिए द्वारका-पोरबंदर-सोमनाथ लिंक प्रोजेक्ट भी शुरू करने की योजना है। पोरबंदर को सुदामा की जन्मस्थली माना जाता है और धारणा है कि सोमनाथ के नजदीक श्रीकृष्ण ने देह त्यागी थी। द्वारका से 13 किमी दूर शिवराजपुर बीच व 23 किमी दूर ओखा के समुद्र किनारे की सूरत बदलने की योजना है। महाकाल लोक की ही तरह द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर से लेकर बेट द्वारका और ज्योतिर्लिंग नागेश्वर तक सभी मंदिरों को आपस में जोड़ा जाएगा। इनमें द्वारकाधीश मंदिर, रुक्मिणी-बलराम मंदिर, सांवलियाजी मंदिर, गोवर्धननाथ मंदिर, महाप्रभु बैठक, वासुदेव, हनुमान मंदिर से लेकर नारायण मंदिर तक शामिल हैं। लेकिन, ये योजना काफी बड़ी है और इसके पूरा होने में भी समय लगेगा।
कांग्रेस भी हिंदू हार्डकोर की राह पर
विधानसभा चुनाव की वजह से मध्य प्रदेश में मंदिर राजनीति दोनों तरफ है। भाजपा की हार्ड कोर हिंदुत्व वाली छवि नई नहीं है। अब पार्टी मंदिरों के लोक के जरिए अपना वोट बैंक मजबूत करने में लगी है। जबकि, प्रतिद्वंदी कांग्रेस ने भी हिंदुत्व का झंडा उठा लिया। वैसे ये संकेत कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ ही सामने आने लगे थे। सियासी हलचल की बात करें, तो विधानसभा चुनाव से पहले ही शिवराज सरकार के मंत्री और विधायक अपने इलाकों में धार्मिक कथाएं करवाते रहे। अपनी हिंदुत्व वाली छवि बनाने के लिए उन्होंने लाखों रुपए खर्च किए। सिर्फ भाजपा ही नहीं कांग्रेस के नेता भी कथा, पुराण और रुद्राभिषेक में पीछे नहीं हैं। पिछले 6 महीने में मध्य प्रदेश में 600 से ज्यादा धार्मिक कथाएं हो चुकी। कुछ बाबाओं का मध्य प्रदेश की कई सीटों पर खासा प्रभाव है। बताया जा रहा कि बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, कुबेरेश्वर धाम के प्रदीप मिश्रा और पंडोखर सरकार का प्रदेश की 89 विधानसभा क्षेत्रों पर खासा प्रभाव है। इसके अलावा दोनों पार्टियों के नेता प्रदेश के बाबाओं के जरिए हिंदू वोट बैंक को मजबूत कर रहे हैं।
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