Tuesday, May 28, 2024

किस मज़बूरी में अक्षय बम ने चुनाव मैदान छोड़ा!

     इंदौर के कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय बम ने अपना चुनाव नामांकन वापस लेकर सियासी गलियारों को गरमा दिया। कोई समझ नहीं पाया कि आखिर ये क्या और क्यों हुआ? भाजपा के सामने अक्षय बम बेहद कमजोर उम्मीदवार थे, इसमें शक नहीं, पर वे इस तरह मैदान छोड़कर भाग जाएंगे इसका अंदाजा नहीं लगाया गया था। खास बात यह कि वे कांग्रेस से उम्मीदवारी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। इसके पीछे कोई तो ऐसा पेंच है जो अभी सामने नहीं आया!
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- हेमंत पाल

     इंदौर से लोकसभा के कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने मैदान छोड़ दिया। नाम वापसी के दिन कुछ घंटे पहले हुए उनके इस फैसले के साथ ही राजनीतिक भूचाल आ गया। वे भाजपा विधायक रमेश मेंदोला और अन्य भाजपा नेताओं के साथ निर्वाचन कार्यालय पहुंचे और चुनाव से हट गए। इस अप्रत्याशित घटना से कांग्रेस में सन्नाटा है। किसी नेता के पास कोई जवाब नहीं, कि इसके पीछे क्या कारण हैं, ऐसा क्यों हुआ? खुद अक्षय बम ने भी अपने इस फैसले को लेकर कोई बयान नहीं दिया कि कांग्रेस से उनका मोहभंग क्यों हुआ! भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय की 'एक्स' पर की गई पोस्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे कांग्रेस से पल्ला छुड़ाकर भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं।   
   इस बार के लोकसभा चुनाव में जिस तरह की चौंकाने वाली घटनाएं घट रही है, उसमें ये सबसे अनोखी है। खजुराहो में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन परचा रद्द होना। क्योंकि, उन्होंने नामांकन ने दस्तखत नहीं किए थे। सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार का परचा रद्द होना और भाजपा को छोड़कर सभी अन्य उम्मीदवारों का नाम वापस ले लेना। ... और अब इंदौर से कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार का मैदान ही छोड़ देना, स्वाभाविक नहीं है। ये तीनों घटनाएं सोची-समझी और पहले से बनाई गई राजनीतिक पटकथा का हिस्सा लगती है। मध्य प्रदेश में खजुराहो के बाद इंदौर दूसरी लोकसभा सीट है, जहां अब 'इंडिया' गठबंधन का कोई उम्मीदवार भाजपा के सामने मुकाबले में नहीं है।
    अब सवाल उठ रहे हैं कि यदि इंदौर के कांग्रेसी उम्मीदवार अक्षय बम को चुनाव नहीं लड़ना था, तो उन्होंने महीनेभर सघन चुनाव प्रचार क्यों किया? चुनावी सभाएं क्यों की और पूरे प्रचार तंत्र पर बड़ी धनराशि क्यों खर्च की? इन सवालों का यही जवाब नजर आता है, कि जो हालात बने वो उनकी उम्मीदवारी के बाद ही सामने आए। इस वजह से उन्होंने मैदान से हटना बेहतर समझा। जो ख़बरें चर्चा में हैं उनके मंतव्य को समझा जाए और सीधे शब्दों में कहा जाए तो कांग्रेस का असहयोग और भाजपा के दबाव ने ही उन्हें मैदान से हटने के लिए मजबूर किया होगा।
    उनकी गिनती कांग्रेस के पैसे वाले उम्मीदवारों में जा रही थी। उनकी 14 लाख की घड़ी पहनने की खबर भी चर्चा में आई। इस सबके बावजूद शुरू से ही वे चुनाव जीत सकने की संभावनाओं से बहुत दूर थे। 1989 में इंदौर संसदीय सीट से सुमित्रा महाजन के चुनाव जीतने के बाद से यहां कांग्रेस का लगातार पतन होता गया। वे यहां से 8 बार चुनाव जीतीं। पिछली बार (2019) के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शंकर लालवानी को मौका दिया और वे साढ़े 5 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते। इस बार भी पार्टी ने शंकर लालवानी को ही उम्मीदवार बनाया। उनके सामने कांग्रेस के अक्षय बम बहुत हल्के उम्मीदवार लग रहे थे। यह उम्मीद भी नहीं की जा रही थी कि वे पिछली लीड को भी कम कर सकेंगे। अक्षय बम को टिकट देने का एक कारण यह भी देखा गया कि यहां से कोई कांग्रेसी नेता चुनाव लड़ने के लिए आगे भी नहीं आया। इसका आशय यही है कि अक्षय बम एक निश्चित्त हार के लिए मैदान में उतरे थे। अक्षय ने विधानसभा चुनाव में भी क्षेत्र-4 से टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें नहीं देकर राजा मांधवानी को कांग्रेस ने उमीदवार बनाया था। आज अक्षय बम की तरह वे भी भाजपा में शामिल हो गए।   
    अक्षय बम ने कांग्रेस क्यों छोड़ी और भारतीय जनता पार्टी क्यों ज्वाइन की, इसे लेकर जो खबरें सामने आई उसके मुताबिक कांग्रेस की तरफ से अक्षय बम को चुनाव के लिए कोई सहयोग नहीं मिल रहा था। न तो कोई स्टार प्रचारक उनके प्रचार के लिए इंदौर भेजा जा रहा था और न संगठन ने इसकी कोई तैयारी की। इसके अलावा उन्हें चुनाव के लिए कोई आर्थिक सहयोग भी नहीं दिया गया। सारा खर्च उन्हें ही करना था। यह भी पता चला कि स्थानीय नेता चुनाव का अधिकांश खर्च अक्षय बम से लेकर खुद अपने हाथ से करना चाहते थे, इसे लेकर उन्होंने विरोध भी जताया था। बताया गया कि बूथ के खर्च को लेकर कुछ नेताओं से उनके मतभेद भी हुए।   
    जब कांग्रेस उम्मीदवार की अपनी पार्टी से नाराजगी उभरने लगी तो भाजपा ने इसे मौके के रूप में लिया और उन्हें भाजपा में शामिल करने का दांव खेला। बताते हैं कि अक्षय बम को कांग्रेस की उम्मीदवारी से हटकर भाजपा में शामिल करने की रणनीति एक होटल में बनाई गई। भाजपा नेताओं ने उन्हें हर तरह के सहयोग देने का भरोसा दिलाया। शर्तें यह रखी कि वे चुनाव मैदान से हट जाएं। जिस तरह के हालात बने थे और जीत की कोई संभावना कहीं नजर नहीं आ रही थी, तो अक्षय बम के लिए यही ठीक था कि वे उम्मीदवारी छोड़ दें और वही हुआ भी। बताया जा रहा है कि इससे पहले भाजपा के सभी बड़े नेताओं से सहमति ली गई। उसके बाद यह तय किया गया कि उन्हें उम्मीदवारी से हटाने के बाद भाजपा में शामिल कर लिया जाए। 
     समझा जा सकता है कि इंदौर में अब भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं है। वैसे तो अक्षय बम को चुनौती माना ही नहीं जा रहा था। लेकिन, आज मैदान छोड़कर उन्होंने पिछली लीड कम करने की कांग्रेस की उम्मीदों को भी पलीता जरूर लगा दिया। कांग्रेस उम्मीदवार के भाजपा में जाने के बाद इसे पार्टी के लिए बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि, इसकी भनक कांग्रेस में किसी को नहीं लगी। कांग्रेस का कोई नेता इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया भी नहीं दे रहा। सिर्फ कांग्रेस के मीडिया से जुड़े केके मिश्रा ने जरूर 'एक्स' पर अपनी नाराजगी भरी टिप्पणी जरूर की। उन्होंने बेहद तीखे शब्द लिखे 'अक्षय बम, तुम तो 'फुस्सी बम' निकले, तुमसे अच्छी तो वैश्यायें हैं, जो अपने प्रोफेशन के प्रति ईमानदार होती हैं, कितने में बिके हो? वक्त हमेशा बदलता है, जिस कारण बिके हो,वही कारण हमेशा कायम रहेगा और वही तुम्हें भविष्य में शिकंजे में भी लेगा!
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