मध्य प्रदेश का अगला मुख्य सचिव कौन होगा, अब इस सवाल का काफी हद तक जवाब मिल गया है। डॉ राजेश राजौरा इस कतार में सबसे आगे खड़े हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है उनकी कार्यशैली और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के साथ उनके 20 साल पुराने संबंध, जो 2004 से सिंहस्थ के समय बने थे। आज ये दोनों अलग-अलग भूमिकाओं में प्रदेश की दो बड़ी कुर्सियों पर विराजित हैं।
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- हेमंत पाल
सरकार किसी भी पार्टी की हो और मुख्यमंत्री कोई भी हो, कुछ अफसर हमेशा चहेते बने रहते हैं। इसलिए नहीं कि उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता उनसे मेल खाती है। बल्कि, इसलिए उन्हें पसंद किया जाता है कि उनकी काम करने की शैली कुछ ऐसी होती है, जो हर मुख्यमंत्री को रास आती है। याद कीजिए जब मोहन यादव मुख्यमंत्री बने और उन्होंने जो पहली फाइल पर दस्तखत किए वो डॉ राजेश राजौरा ने उनके सामने रखी थी, जिसमें धर्मस्थलों से लाउडस्पीकर निकाले जाने संबंधी आदेश था। इससे पहले जब 2018 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनी, तब भी बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने सबसे पहले किसानों की कर्जमाफी संबंधित जो आदेश जारी किया, वो फाइल भी डॉ राजेश राजौरा ने ही उनके सामने रखी थी।
याद किया जाए तो 18 साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के भी वे चहेते अफसरों में एक थे। इन घटनाओं का जिक्र ही उनकी कार्यशैली दर्शाता है। मुख्यमंत्री डॉ यादव से भी उनके संबंधों का इतिहास 20 साल पुराना है। तब स्थितियां अलग थी, आज अलग है। किंतु कहीं न कहीं दोनों के बीच संबंधों का जो अंकुरण उस समय हुआ था, वो आज लहलहाता वृक्ष बन चुका है। अब वे मुख्यमंत्री के एसीएस बनाए गए हैं।
डॉ राजेश राजौरा को सभी परिस्थितियों में काम करने का अच्छा खासा अनुभव है। फिर वो उज्जैन का 2004 का सिंहस्थ हो (जब वे वहां कलेक्टर रहे) या आदिवासी जिला झाबुआ जहां वे जिला पंचायत के सीईओ रहे। फिर धार कलेक्टर के रूप में उन्होंने सफल कार्य किया, जिसकी आज भी चर्चा होती है। किसी कलेक्टर के लिए यह बड़ी उपलब्धि होती है कि उनके पद से हटने के बाद भी उनका जिक्र अच्छे संदर्भो में ज्यादा होता है। इंदौर जैसे बड़े जिले में बड़े ओहदे पर रहे डॉ राजेश राजौरा ने शहर में कई बड़े बदलाव किए। उन्होंने बरसों से रुके कई फैसलों को गति दी। इसमें एक एलआईजी और रिंग रोड के बीच का लिंक रोड भी है जो कई सालों से इसलिए नहीं बन पा रहा था कि रास्ते मे एक प्रभावशाली नेता कि बहन का मकान आ रहा था और उसे हटाना प्रशासन के लिए मुश्किल काम था। पर, अपने चातुर्य से डॉ राजौरा ने उसे हटवाया और आज ये लिंक रोड शहर के ट्रैफिक को आसान बना रहा है।
इसे संयोग ही माना जाना चाहिए कि 2004 में जब राजौरा उज्जैन कलेक्टर थे, तभी वहां सिंहस्थ का आयोजन हुआ था। उस सिंहस्थ की समिति में डॉ मोहन यादव भी शामिल थे। उस समय दोनों के संबंधों की बुनियाद पड़ी। तब न तो डॉ राजौरा को मालूम था और न डॉ यादव को कि एक दिन दोनों अलग-अलग भूमिकाओं में इस ऊंचाई पर मिलेंगे। दोनों के संबंधों की जो शुरुआत 20 साल पहले पड़ी थी, आज वो बीज वटवृक्ष बन गया। यही कारण है कि मुख्यमंत्री डॉ राजेश राजौरा को अपने विश्वस्त अफसरों में मानते हैं और इसलिए उन्होंने यह अवसर दिया।
यदि कोई अफसर अपने गृह प्रदेश में ही मुख्य सचिव की कुर्सी तक पहुंचे, तो उसके काम करने का तरीका और सोच दूसरे अफसरों से अलग होती है। क्योंकि, उस अफसर की प्रदेश के प्रति आत्मीयता और काम के प्रति ललक कुछ अलग ही होती है। यह शुभ संकेत है कि केएस शर्मा के बाद डॉ राजेश राजौरा भी मूलतः मध्य प्रदेश के ही रहने वाले हैं। केएस शर्मा का प्रदेश के मुख्य सचिव के रूप में कार्यकाल 31 जनवरी 1997 से 31 जुलाई 2001 तक रहा। वे होशंगाबाद के रहने वाले हैं। अब अगर राजौरा मुख्य सचिव बनते है तो वे केएस शर्मा के बाद दूसरे मुख्य सचिव होंगे जो मध्य प्रदेश के निवासी है। डॉ राजौरा मूलतः नीमच के रहने वाले हैं।
पेशे से डॉक्टर इस अफसर ने एम्स (दिल्ली) से एमबीबीएस किया है। यही वजह है कि स्वास्थ्य को लेकर उनमें अतिरिक्त सजगता है। उनकी काम करने की शैली का एक प्लस पॉइंट उनकी सहजता को भी गिना जा सकता है। वे जिस भी जिले में कलेक्टर रहे, उन्हें चाहने वालों की एक लंबी फौज खड़ी हो गई। क्योंकि, उन्होंने जनता और खुद के बीच कभी कोई सीमा रेखा नहीं खींची। उनके दफ्तर के दरवाजे कभी किसी के लिए बंद हुए हों, ऐसा न कभी दिखाई दिया और न सुना गया। उनकी एक खासियत यह भी है कि उनके चेहरे के भाव देखकर कभी उनके मन की बात को पढ़ना आसान नहीं है। शायद ही कभी किसी ने उन्हें गुस्से में देखा होगा। यही उनकी सहजता भी है। अपनी प्रशासनिक दक्षता से वे हमेशा सीढियां चढ़ते रहे और अब वे उन पायदान से एक कदम पीछे है जहां पहुंचना हर आईएएस अफसर का सपना होता है।
यहां उनका यह जिक्र इसलिए कि अपनी बेहतरीन प्रशासनिक कार्यशैली की वजह से 1990 बैच के इस आईएएस अधिकारी को अगला मुख्य सचिव बनाए जाने का रास्ता मंगलवार को साफ हो गया। नए फेरबदल में उन्हें वर्तमान दायित्वों के साथ मुख्यमंत्री का एडिशनल चीफ सेक्रेटरी नियुक्त किया गया है। समझा जाता है कि इस पद का दूसरा सिरा चीफ सेक्रेटरी की कुर्सी पर खुलता है। मुख्यमंत्री के एसीएस के साथ वे नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, जल संसाधन और नर्मदा घाटी विभाग के अपर मुख्य सचिव बने रहेंगे। संभव है कि राजौरा की नियुक्ति में क्षिप्रा शुद्धिकरण के मकसद से की गई हो? मंत्रालय में ये तीनों विभाग काफी भारी-भरकम माने जाते हैं।
वे मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के विश्वस्त अफसरों में माने जाते हैं। क्योंकि, सीएम ने उन्हें 22 दिसंबर को अपने गृहनगर उज्जैन संभाग का प्रभारी बनाया। उन्हें संभागीय स्तर पर विकास कार्यों की मॉनिटरिंग के लिए भी उज्जैन संभाग का प्रभारी बनाया गया है। सरकार के इन सारे फैसलों को देखते हुए समझा जा सकता है कि वे उनके प्रदेश के अगले चीफ सेक्रेटरी बनने में अब कोई अड़चन नहीं है। यही कह सकते है कि प्रदेश का अगला मुख्य सचिव वही अधिकारी बन सकता है, जो मुख्यमंत्री के काम करने के ढांचे में अपनी प्रशासनिक दक्षता से फिट बैठता हो। वह कुशल प्रशासक के साथ मुख्यमंत्री की प्राथमिकताओं के इशारे को भी समझता हो और डॉ राजेश राजौरा की कार्यशैली उन्हें इसमें सिद्धहस्त साबित करती है।
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