Thursday, June 6, 2024

भाजपा के लिए सबक है लोकसभा चुनाव की ये हार!

   लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को सबक दिया कि अति आत्मविश्वास किसी के लिए भी घातक होता है। देश को दस साल पहले 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी को पूर्ण बहुमत भी नहीं दिला सके। उनके 'मोदी की गारंटी' का नारा भी चुनाव में बेअसर रहा। भाजपा को इन चुनाव ने यह भी सिखाया कि पार्टी के अंदर भी लोकतंत्र होना जरूरी है। अभी तक सिर्फ दो नेता पार्टी के फैसले करते रहे हैं, लेकिन इन चुनाव के नतीजों के बाद शायद उनका रवैया बदले!


- हेमंत पाल

    लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए। ये नतीजे भाजपा के दावों और एग्जिट पोल के अनुमानों के विपरीत कहे जाएंगे। भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया था। लेकिन, यह नारा भाजपा को स्पष्ट बहुमत से पहले ही अटक गया। भाजपा ढाई सौ तक भी नहीं पहुंच पाई और 241 पर रुक गई। पिछली बार भाजपा ने अकेले ही 303 सीटें जीती थी, इस बार वह उससे बहुत पीछे रुक गई। केंद्र में तीसरी बार एनडीए सरकार जरूर बनने के आसार हैं, पर भाजपा उसमें अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में पिछड़ गई। सबसे ज्यादा नुकसान उसे उतर प्रदेश और महाराष्ट्र में हुआ। पहले के अनुमानों में महाराष्ट्र में भाजपा को नुकसान बताया गया था, पर उत्तर प्रदेश के नतीजे चौंकाने वाले ही कहे जाएंगे। अब ये हार किसकी है नरेंद्र मोदी की या योगी की, इस पर भाजपा में घमासान होना है। महाराष्ट्र में तो जनता ने अपना फैसला दे दिया कि असली शिवसेना उद्धव ठाकरे की और असली एनसीपी वही है जिसके नेता शरद पवार हैं। इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों को तोड़कर भाजपा ने वहां शिवसेना के शिंदे गुट की सरकार बनवा दी थी। इस फैसले को महाराष्ट्र जनता ने नकार दिया।  
     देशभर के मतदाताओं ने इंडिया गठबंधन को 234 सीट जिताकर एग्जिट पोल के अनुमानों को गलत साबित कर दिया। यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है कि मतदान के अंतिम चरण के ख़त्म होते ही सारे न्यूज़ चैनलों ने एक तरफ़ा एनडीए को 370 से ज्यादा सीटों पर जीतने का दावा किया था। एक बारगी लगा भी, कि क्या वास्तव में ऐसा होगा! क्योंकि, जमीनी हकीकत इसका इशारा नहीं कर रही थी। एग्जिट पोल के अनुमानों का आधार वोट देकर निकलने वाले मतदाता होते हैं। उनसे जो फीडबैक मिला, उसे न्यूज़ चैनलों ने सही मान लिया। जबकि, सच्चाई यह है कि लोग अपने परिवार में भी नहीं बताते कि उन्होंने किसे वोट दिया, तो वे न्यूज़ चैनलों को क्यों बताएंगे! यही वजह है कि एक बार फिर एग्जिट पोल की पोल खुल गई। उन्होंने तीन दिन तक जो हवा बनाई, उस गुब्बारे को फटने में देर नहीं लगी।
     इस बार का चुनाव कई बातों के लिए एक सबक भी माना जाएगा। पहला सबक तो यह कि अति आत्मविश्वास किसी भी पार्टी के लिए आत्मघाती साबित होता है, जो भाजपा के मामले में सामने आ गया। भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में 'मोदी की गारंटी' को ज्यादा ही प्रचारित किया। भाजपा के नेता समझ नहीं पाए कि उनकी इस बात का जनता पर क्या असर हो रहा है। जनता ने इस गारंटी को गंभीरता से नहीं लिया। याद किया जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में चुनाव में 'इंडिया शाइनिंग' नारा दिया गया था, जिसे जनता ने नहीं स्वीकारा था। वही हश्र 'मोदी की गारंटी' का हुआ। आज का मतदाता इतना नासमझ नहीं है कि उसे नारों और जुमलों की बाजीगरी में भरमाया जा सके।      
   दूसरा सबक एग्जिट पोल को लेकर है। नतीजों को लेकर न्यूज़ चैनलों के अनुमान पूरी तरह प्रायोजित दिखाई दिए। कहीं से नहीं लगा कि इनमें कुछ सच्चाई है। जिस तरह से इंडिया गठबंधन को मुकाबले से बाहर समझा और समझाया गया, वह किसी के गले नहीं उतरा। उसकी वास्तविकता भी सामने आ गई। जनता के मन में क्या था और क्या दिखाया गया, यह नतीजों ने दिखा दिया। यह पहली बार नहीं है, जब इस तरीके से एग्जिट पोल की असफलता सामने आई। ऐसे अनुमान पहले भी कई बार ध्वस्त हो चुके हैं। अब ये न्यूज़ चैनलों के लिए आत्मचिंतन का विषय है, कि वे सत्ता से प्रभावित होकर चुनाव के दौर में अपना अनुमान न लगाएं। क्योंकि, ऐसे अनुमान ज्यादा दिन छुपते नहीं और बहुत जल्द सामने आ जाते हैं।  
     अब सरकार तो एनडीए की ही बनेगी या नहीं, अभी इस बात का दावा नहीं किया जा सकता। क्योंकि, संख्यात्मक रूप से एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत जरूर है, पर जोड़तोड़ की संभावना अभी जिंदा है। इंडिया गठबंधन विपक्ष में बैठा तो कई सालों बाद संसद में विपक्ष ताकतवर होगा। इतना कि वह मोदी की तीसरी बार की सरकार को चैन नहीं लेने देगा। भाजपा की मोदी सरकार के सामने खतरा इस बात का भी है कि उसके पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, इसलिए उसे उसके सहयोगी दल भी गरियाने से नहीं चूकेंगे। पिछली दो बार की सरकारों में भाजपा का रवैया यही देखने में मिलता रहा। इस बार भाजपा को कम सीटें मिली, तो उसे भी सरकार में हावी होने का दंभ छोड़ना होगा। यदि केंद्र में एनडीए की सरकार बनती है, तो आशय यह कि इस बार नरेंद्र मोदी को वास्तविक गठबंधन की सरकार चलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।      
    भाजपा को स्पष्ट बहुत न मिलने का खामियाजा पार्टी के अंदर भी उठाना पड़ सकता है। इसलिए कि अभी तक भाजपा की हर जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी और अमित शाह को दिया जाता रहा है। अब, जबकि स्थिति विपरीत है, तो उन्हें भाजपा की हार का विरोध भी सहना होगा। ऐसी स्थिति में एक बड़ा खतरा भाजपा के अंदर से दिखाई दे रहा है, जो इस बात का संकेत देता है कि भाजपा के अंदर खदबदाता लावा भी बाहर निकल सकता। क्योंकि, अभी तक कई बड़े और पुराने नेता पार्टी में अपनी बात कहने में संकोच करते थे या उनकी बात को दबा दिया जाता रहा। लेकिन, अब शायद वे खुलकर बोलेंगे। भाजपा में ऐसे कई नेता हैं जो कई बार मोदी और शाह के फैसलों से सहमत नहीं होते, पर वे विरोध करने का साहस नहीं कर पाते थे, अब देखना है कि उनका रवैया क्या होता है।    
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