Monday, June 10, 2024

इंदौर में जो हुआ वो अपने आपमें अनोखा!

    जब 'नोटा' बटन को ईवीएम में शामिल किया गया था, तब यह सोचा नहीं गया था कि किसी चुनाव में इसका ऐसा उपयोग भी होगा। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के मैदान छोड़ने पर अपने समर्थकों को 'नोटा' में वोट डालने की अपील की और फिर 2 लाख से ज्यादा वोट का नया रिकॉर्ड बन गया।
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- हेमंत पाल

    स बार के लोकसभा चुनाव में जो अजूबे हुए उनमें 'नोटा' में रिकॉर्ड वोट पड़ना भी एक है। यह कमाल इंदौर संसदीय क्षेत्र पर हुआ। लेकिन, इसी सीट पर भाजपा उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट भी मिले और वे देश में सबसे बड़े अंतर से जीतने वाले उम्मीदवार भी बने। एक शहर में एक ही चुनाव में दो ऐसे रिकॉर्ड बने, जो एक-दूसरे के विपरीत रहे। आशय यह कि सर्वाधिक स्वीकार्य भाजपा उम्मीदवार रहे। वे देश में सबसे ज्यादा अंतर से जीतने वाले नेता भी रहे। लेकिन, 'नोटा' में वोट देकर उन्हें सबसे ज्यादा मतदाताओं ने उन्हें अस्वीकार्य भी किया! पेंच सिर्फ इतना था कि भाजपा उम्मीदवार के सामने कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं था।       
      इंदौर के चुनाव नतीजे वास्तव में अनुमान से अलग नहीं रहे। जो समझा और सोचा गया, वही हुआ। इंदौर में कोई नहीं हारा। भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी को 12 लाख 26 हजार 751 वोट मिले और वे 11,75,092 वोटों के बड़े अंतर से जीते। जबकि, कांग्रेस की अपील पर 'नोटा' में 2,18,674 वोट पड़े, जो देश में एक रिकॉर्ड है। इंदौर ऐसा शहर रहा, जिसके मतदाताओं ने एक ही चुनाव में स्वीकारने और नकारने का रिकॉर्ड बनाया। भाजपा उम्मीदवार ने देश में सबसे ज्यादा वोट पाकर और सबसे बड़े अंतर से चुनाव जीता, तो यहीं सबसे ज्यादा वोट 'नोटा' में भी गिरे। इस तरह इंदौर में दो अलग-अलग तरह के रिकॉर्ड बने। ऐसी स्थिति में भाजपा देश में अपनी सबसे बड़ी जीत का जश्न मना रही है और कांग्रेस 'नोटा' में पड़े रिकॉर्ड वोटों का। तात्पर्य यह कि दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी उपलब्धियों से खुश हैं।          
     मतदान और नतीजों से पहले इंदौर संसदीय सीट का नतीजा क्या होगा, इससे कोई अनजान नहीं था। यही वजह है कि यहां न तो कोई उत्सुकता थी और न नतीजे का इंतजार। इस सीट पर कोई मुकाबला भी नहीं था। सारी उत्सुकता सिर्फ दो आंकड़ों को लेकर बची थी, जिसका बेहद दिलचस्प खुलासा हुआ। पहला तो यह कि भाजपा उम्मीदवार अपने निकटतम उम्मीदवार से कितने अंतर से चुनाव जीतते हैं। दूसरा, 'नोटा' के खाते में जाने वाले वोट कितने होंगे। कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों ही मामलों में इंदौर रिकॉर्ड बनाएगा जो सही भी रहा। रिकॉर्ड बनाना और कुछ नया करना इंदौर वासियों आदत रही है। स्वच्छता में सात बार अव्वल रहने वाला इंदौर अब राजनीतिक उलटफेर में भी देश में छाया हुआ है।          
    इस संसदीय क्षेत्र में इस बार जो हुआ, वो चुनाव इतिहास में अजूबा ही कहा जाएगा। यहां जिस दिन नाम वापसी का दिन था, उसी दिन कांग्रेस के उम्मीदवार ने अपना नाम वापस लेकर कांग्रेस पार्टी को मुकाबले से बाहर कर दिया। उन्होंने न सिर्फ चुनाव मैदान छोड़ा, बल्कि उसी समय प्रतिद्वंदी पार्टी भाजपा में शामिल भी हो गए। यह भी तो देश के चुनाव इतिहास में हुई अजीब घटना थी। इस पर कांग्रेस ने कोई नया प्रयोग नहीं किया और बजाए किसी निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने के एक तरह से समर्पण कर दिया। लेकिन, मतदाताओं से यह आह्वान जरूर किया कि वे यदि इन हालातों को लोकतंत्र के लिए सही नहीं मानते. तो ईवीएम मशीन का सबसे आखिरी वाला 'नोटा' का बटन दबाएं। इससे देश के सामने यह संदेश जाएगा कि जो हुआ वो ठीक नहीं था। कांग्रेस की इस अपील का अच्छा असर हुआ और 'नोटा' खिलखिला उठा।  
     सवाल उठता है कि इंदौर में 'नोटा' में सबसे ज्यादा वोट डालने वाला इलाका कौन सा था, तो निर्वाचन आयोग ने इसका हिसाब भी दे दिया। देखा गया कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में 'नोटा' को बंपर वोट मिले। इंदौर के विधानसभा क्षेत्र-5 में सबसे ज्यादा 53133 वोट मिले। खजराना और आजाद नगर भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र आते हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा वोट इंदौर विधानसभा क्षेत्र-1 में 31835 में 'नोटा' के खाते में गए। चंदन नगर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। विधानसभा क्षेत्र-2 में 21330 वोट, इंदौर क्षेत्र-3 में 23 618, इंदौर क्षेत्र-4 में 22956, राऊ में 28626, देपालपुर में 17771 और सांवेर में 19086 वोट मतदाताओं ने 'नोटा' को दिए।
    इस शहर ने चुनाव के इतिहास में अपना नाम अलग तरह से दर्ज कराया है। भले ही यह एक संभावना जताई जा रही थी, लेकिन जो हुआ उससे इंकार भी नहीं किया। यहां 25 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें से करीब साढे 15 लाख ने वोट डाले। तय था कि इसमें ज्यादातर वोट उस भाजपा उम्मीदवार के खाते में जाएंगे, जिसके सामने कोई मुकाबले में ही नहीं था। कांग्रेस ने 'नोटा' को अपने उम्मीदवार की तरह माना और अपील की थी, कि वे ईवीएम में 'नोटा' का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करें। इस वजह से उम्मीद की जा रही थी कि 'नोटा' में सर्वाधिक वोट का देश में दर्ज पुराना रिकॉर्ड टूटेगा, जो अभी तक बिहार की गोपालगंज संसदीय सीट के नाम पर दर्ज है। वहां 2019 में 'नोटा' के खाते में 61,550 वोट पड़े थे। अनुमान था कि इस बार इंदौर इस आंकड़े से बहुत आगे निकल सकता है। पर, जो हुआ वो उम्मीद से कहीं बहुत ज्यादा रहा।
    भाजपा उम्मीदवार ने पिछला चुनाव साढ़े 5 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। संभावना लगाई गई थी, कि इस बार वह करीब दुगना होगा। अनुमान सही निकला और वे 11 लाख से ज्यादा वोटो से जीते। इससे एक तरफ ईवीएम में 'नोटा' के बटन दबाने का रिकॉर्ड बना, दूसरी तरफ भाजपा उम्मीदवार की जीत का। कांग्रेस के रकीबुल हुसैन ने इसी चुनाव में असम की धुबरी संसदीय सीट से 10.12 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर दूसरी सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विदिशा से 8.21 लाख वोटों से जीत दर्ज की, जो तीसरा सबसे बड़ा अंतर रहा। इससे पहले, 2019 में सबसे ज्यादा अंतर से गुजरात की नवसार सीट से भाजपा के सीआर पाटिल जीते थे। उनकी जीत का अंतर 6.90 लाख वोट था। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां अब अपनी-अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। कांग्रेस को इस बात की ख़ुशी है कि मतदाताओं ने 'नोटा' में बटन दबाकर उसका साथ दिया और देश में 'नोटा' का रिकॉर्ड बना। भाजपा भी जीत की ख़ुशी तो मना ही रही है।
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