(हेमंत पाल)
प्रदेश में अब राजनीति की नई पौध फिर से पनप सकेगी। पिछले दो दशकों से राजनीति की जो नर्सरी मुरझाने लगी थी, अब उसके फिर पनपने का संकेत मिल गया है। दो दशक बाद अब कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में वह माहौल फिर दिखाई देगा, जिससे एक पूरी पीढ़ी अनजान रही है। छात्रसंघ चुनाव को रोकने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके क्या दुष्परिणाम आँके गए और और फिर प्रत्यक्ष तरीके से छात्रसंघ चुनाव कराने की जरूरत क्यों महसूस हुई? इन सवालों पर चिंतन न भी किया जाए, तो यह सुखद संकेत है, कि प्रदेश सरकार ने इन चुनावों के लिए अपनी रजामंदी दे दी है।
अभी तक कॉलेजों में कक्षा के किसी पढ़ने वाले छात्र को मुखिया बना दिया जाता था। इसका नतीजा यह होता कि वह या तो वह अपनी पढ़ाई से पिछड़ जाता था, या अपने दायित्व का ठीक से निर्वाह नहीं कर पाता! सरकार और शिक्षक भी इस बात को समझ रहे थे, लेकिन इस दिशा में कुछ हो नहीं पा रहा था। जबकि, राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो राजनीति की जो नर्सरी कॉलेजों में पनप कर आगे जाकर प्रदेश में अपनी पहचान बनाती थी, वह पूरी तरह मुरझाकर सूख चुकी थी। लाख खामियों के बावजूद इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि छात्र संघ चुनाव राजनीति समझने की पहली सीढ़ी हैं। आज लोकसभा और प्रदेश की विधानसभा में ऐसे नेताओं की संख्या ज्यादा है, जो कभी न कभी छात्र राजनीति से जुड़े रहे थे।
छात्रसंघ चुनाव की प्रत्यक्ष प्रणाली राजनीति की वह पाठशाला है, जहाँ छात्रों को वे सारी प्रक्रियाएं जानने और समझने का मौका मिलता है, जो राजनीति के रीयल मंच पर घटित होती हैं। इसका राजनीतिक दलों को यह लाभ होता है, कि उन्हें कुछ ऐसे तपे तपाए छात्र नेता मिल जाते हैं, जो उनके लिए आधार का काम करते हैं। उनकी राजनीतिक योग्यता और नेतृत्व क्षमता का आकलन भी यहीं हो जाता है और आगे बढ़ने का मौका मिलता है। जब से छात्रसंघ चुनाव की प्रत्यक्ष प्रणाली पर रोक लगी थी, तब से राजनीति में प्रवेश का यह रास्ता पूरी तरह बंद ही हो गया था। क्योंकि, अब तक चल रही प्रणाली में जो छात्र अपनी कक्षा, कॉलेज या विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते थे, उनका मकसद राजनीति में जाना कतई नहीं होता था। ... ओर जो छात्र प्रत्यक्ष प्रणाली के जरिए इस मैदान में उतरते हैं, उनके जहन में कहीं न कहीं राजनीतिक उत्कंठा रहती है। अब, जबकि सरकार ने प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्रसंघ चुनाव का रास्ता खोल दिया है, यह उम्मीद की जाना चाहिए कि प्रदेश की राजनीति की उस सूख चुकी नर्सरी में फिर बहार आएगी और कुछ नए चेहरे अपनी आमद दर्ज कराएंगे।
(मप्र सरकार ने कॉलेजों में प्रत्यक्ष छात्रसंघ चुनाव को मंजूरी दी)
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