शिवराज सरकार ने पिछले साल बड़ी धूमधाम से जनता को ख़ुशी देने के लिए 'आनंद विभाग' के गठन की घोषणा की थी। पहले इस कांसेप्ट को 'आनंद मंत्रालय' कहा गया था। लेकिन, भारी उहापोह के बाद बना 'आनंद संस्थान।' लेकिन, सालभर बाद भी सरकार तय नहीं कर सकी कि ये संस्थान लोगों को ख़ुशी कैसे देगा? भूटान की तर्ज पर जनता का 'हैप्पीनेस इंडेक्स' तैयार करने की भी बात कही गई थी। पर, न तो इस तरह का कोई काम हो पाया न संस्थान ने कोई आधारभूत योजना तैयार की। सरकार ने 'हैप्पीनेस इंडेक्स' के लिए आईआईटी खड़गपुर से करार जरूर कर लिया! अब सर्वें के जरिए ये इंडेक्स बनाया जाएगा। वास्तव में भौतिक समृद्धि महज सुविधा है, ख़ुशी नहीं। इससे आंतरिक खुशी और शांति नहीं मिलती। सरकार को यदि मानसिक ख़ुशी का अहसास कराना है तो उसे जनता के लिए रचनात्मक विकास करना होगा। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा, जिससे लोगों को वास्तविक आनंद की अनुभूति हो। गुदगुदाने से भी हँसी आती है, ख़ुशी नहीं होती। ऐसे में 'आनंद संस्थान' की सफलता पर अभी तो सवालिया निशान ही है।
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- हेमंत पाल
सरकार ने उत्साह में 'आनंद संस्थान' का गठन जरूर कर लिया गया, पर अब तक ये तय नहीं किया जा सका कि आखिर अभावग्रस्त, दुखी, परेशान और भविष्य की चिंता से ग्रस्त जनता को आनंदित कैसे किया जाए? कैसे 'हैप्पीनेस इंडेक्स' का निर्धारण होगा और उसे मापा कैसे जाए! जब कुछ नहीं सुझा तो अफसरों को अमेरिका, भूटान और संयुक्त राष्ट्र के 'हैप्पीनेस इंडेक्स' मापने के तरीकों का अध्ययन करने भेज दिया। पर, ये नहीं सोचा गया कि इन देशों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बहुत फर्क है। इनके फॉर्मूले से मध्यप्रदेश के हैप्पीनेस इंडेक्स का निर्धारण कैसे होगा? इन देशों का जीवन स्तर और मध्यप्रदेश के लोगों की जीवन शैली, संस्कृति और जीवन स्तर में जमीन-आसमान का फर्क है। आश्चर्य की बात तो ये कि जब मख्यमंत्री ने जीवन को आनंदित बनाने वाले इस सरकारी प्रपंच की घोषणा की थी, तब सरकार के पास चार पन्ने का कोई आइडिया तक नहीं था। सामने सिर्फ भूटान का फार्मूला था, जो प्रदेश जीवन शैली से साम्य नहीं रखता!
दुनिया में कई जगह लोगों के जीवन में खुशहाली लाने का काम हो रहा है। लेकिन, खुशहाली लाने के लिए सबसे पहले सरकार को अपनी जिम्मेदारियां निभाना होती है। वो सारे प्रयास करना होते हैं, जिससे लोगों की व्यक्तिगत मुसीबतें ख़त्म हों और वे खुश हों! जबकि, आज मध्यप्रदेश में हर आदमी महंगाई, भ्रष्टाचार, महंगी बिजली, पानी, सिर पर छत, व्यवसाय, नौकरी, अफसरों की अकड़ और अब जीएसटी से पीड़ित है। ऐसे में कैसे संभव है कि सरकारी गुदगुदी से कोई खुलकर हँस सकेगा? सरकार का 'आनंद संस्थान' बनाने का ये प्रयोग वास्तव में शहरों में चलने वाले 'लाफिंग क्लब' जैसा है! सुबह साथ घूमने वाले लोग अपना तनाव दूर करने के लिए एक साथ गोला बनाकर खड़े होते हैं और बेवजह हंस लेते हैं! सरकार को लगा होगा कि वो भी लोगों को ऐसे ही हंसने के लिए मजबूर कर सकती है! जिनके जीवन में तनाव, अभाव और हर वक़्त भविष्य की चिंता हो, उन्हें अंतर्मन की ख़ुशी देने में बरसों लग जाएंगे! अपने प्रयोग की कथित सफलता का जश्न मनाने और वाहवाही के लिए सरकार कुछ समय बाद आंकड़ें दिखा दे, पर वो सच नहीं होगा!
मध्यप्रदेश वह राज्य है जहां औसतन हर रोज छह किसान ख़ुदकुशी करते हैं। 60 युवतियों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज होती हैं। 13 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार होती हैं। पांच साल की उम्र तक के जीवित प्रति हजार में से 379 बच्चे रोज काल के गाल में समा जाते हैं। 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। ऐसे हालातों में सरकार जनता के आनंद का इंतजाम करने में लगी है। सवाल है कि क्या यह ये प्रयोग वाकई दुखी लोगों के जीवन को आनंदित कर पाएगा या सिर्फ सरकार के प्रचार का माध्यम बनकर रह जाएगा। इससे पहले भूटान के अलावा वेनेजुएला, यूएई में भी ये प्रयोग हो चुके हैं। वर्ष 2016 की 'वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट' के मुताबिक डेनमार्क सबसे खुशहाल देश है। भूटान भी अपने हैप्पीनेस मंत्रालय के कारण चर्चा में रहा। अपने 'आनंद संस्थान' को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का कहना है कि प्रदेश की जनता के चेहरे मुस्कुराते रहें। जिंदगी बोझ नहीं, वरदान लगे। इसके लिए आनंद संस्थान गठित किया गया है।
'आनंद संस्थान' ने हज़ारों आनंदकों का पंजीयन कर लिया है। 'आनंदक' यानी वे लोग जो सेवाभाव से लोगों खुश रखने का काम करेंगे! कहा गया है कि ये सभी स्व-प्रेरणा से बने हैं। लेकिन, सालभर में इस संस्थान ने क्या किया, इस सवाल का ठोस जवाब अभी तक सामने नहीं आया! दावा जरूर किया गया कि एक सालभर में आनंद देने वाली कई गतिविधियां संचालित की गई! सात हजार स्थानों में 'आनंद उत्सव' मनाया गया। सरकार का मानना है कि लोक संगीत, नृत्य, गायन, भजन-कीर्तन, नाटक तथा खेलकूद जीवन की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। इसी आधार पर सरकार ने 'आनंद उत्सव' की कल्पना की है। इसके तहत पंचायत स्तर पर सभी आयु ग्रामीणों के लिए खेल तथा सांस्कृतिक आयोजन किए गए। जबकि, असलियत ये है कि ये सिर्फ सरकारी पाखंड था। पंचायतों और स्कूलों में हल्के-फुल्के कार्यक्रम किए गए, जिन्हें 'आनंद उत्सव' नाम दिया गया।
'आनंद संस्थान' के गठन के सालभर बाद पिछले दिनों पहली बार संस्थान के बोर्ड की बैठक हुई तो उपलब्धियों के लिए एक-दूसरे की पीठ थपथपाई गई। कहा गया कि सालभर के दौरान आनंदोत्सव, सरकारी कर्मचारियों के बीच सामंजस्य और आनंद क्लब का गठन इस प्रयोग की उपलब्धियां हैं। मुद्दा ये है कि 'आनंद संस्थान' क्या खुद की उपलब्धियों पर ख़ुशी मनाने लिए गठित हुआ था या जनता ख़ुशी देने के लिए? बैठक में कहा गया कि 'हैप्पीनेस इंडेक्स' तैयार होने पर प्रदेश में बदलाव नजर आएगा। यानी लोग ख़ुशी से झूमने लगेंगे। लेकिन, अभी तो वो फार्मूला ही नहीं बना जो लोगों की ख़ुशी मापने का मीटर होगा! ख़ुशी का पैमाना तय होने के बाद सर्वे होगा! इस पूरे काम में करीब सालभर का वक़्त लगेगा। तय है कि तब तक लोगों के दुःख और ज्यादा बढ़ जाएंगे। जबकि, सरकार तो आज भी नए-नए शिगूफे करके जनता के जीवन में खुशहाली का दावा कर रही है! लेकिन, ऐसा कुछ कहीं दिखाई नहीं दे रहा। उधर, विपक्ष का आरोप है कि ये सारा प्रपंच सिर्फ मुख्यमंत्री की ब्रांडिग के लिए बनाया गया है। इसकी उपलब्धि भी सरकार ही समझेगी और जश्न भी मना लेगी।
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