मध्यप्रदेश में अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा की घड़ी आ गई! चुनाव आयोग ने 27 सीटों पर उपचुनाव के अनुमानित समय का इशारा कर दिया! परीक्षा देने वाली दोनों पार्टियों ने भी कमर कसकर तैयारी कर ली! अब मतदाताओं के सामने चुनावी परीक्षा देकर नतीजे का इंतजार करना है। क्योंकि, ये सिर्फ उपचुनाव नहीं, सरकार के बचे रहने और गिरने का फैसला करने वाली परीक्षा है। लेकिन, उपचुनाव से पहले दोनों पार्टियों ने जो आंतरिक सर्वे करवाया है, वो दोनों पार्टियों की उम्मीद से अलग है! भाजपा को ज्योतिरादित्य सिंधिया में जो राजनीतिक एक्स-फैक्टर दिखाई दे रहा था, सर्वे में उसकी हवा निकल गई! उपचुनाव वाली अधिकांश सीटों पर सिंधिया समर्थकों की हालत खस्ता है। इसका फ़ायदा कांग्रेस की झोली में गिरना भी तय है। इस उपचुनाव में लोग कांग्रेस को नहीं जिताएंगे, बल्कि भाजपा के पक्ष में शायद वोट न दें! कमलनाथ-सरकार के दौरान कांग्रेस के मंत्रियों के व्यवहार से भी लोग खुश नहीं है। लेकिन, वे सिंधिया की राजनीतिक गद्दारी से कुछ ज्यादा ही नाराज हैं!
- हेमंत पाल
प्रदेश में उपचुनाव से पहले दोनों पार्टियों ने अपनी चुनावी तैयारी से पहले सर्वे के जरिए लोगों की मानसिकता को परखना और उसी के मुताबिक रणनीति बनाना जरुरी माना। दोनों पार्टियों ने अभी तक उपचुनाव वाली सीटों पर दो बार अलग-अलग सर्वे करवाए हैं। लेकिन, भाजपा को दोनों ही बार के सर्वे में निराशा हाथ लगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के कांग्रेस छोड़ने के समय जो उत्साह का माहौल बना था, वो सर्वे के अनुमानों से ठंडा पड़ गया। सर्वे के दोनों नतीजों ने बताया कि भाजपा को अनुमान से बहुत कम सीटें मिल रही है। मिलने वाली सीटों की संख्या इतनी भी नहीं है कि शिवराजसिंह की सरकार आसानी से सुरक्षित रहे! यदि भाजपा को अपनी सरकार बचाना है, तो उसे नई रणनीति पर विचार करना होगा। किसी चेहरे से चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती! भाजपा को ग्वालियर-चंबल इलाके की 16 सीटों से बहुत भरोसा था, पर सर्वे के मुताबिक ये भरोसा टूटता नजर आ रहा है। ऐसी स्थिति में कहीं ऐसा न हो कि पार्टी हार की आशंका वाली कुछ सीटों पर सिंधिया समर्थकों को टिकट न दे! ऐसी संभावनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता! क्योंकि, भाजपा के लिए पहली प्राथमिकता सरकार बचाना है।
रिसकर बाहर आई ख़बरें बताती है कि 27 सीटों के उपचुनाव को लेकर भाजपा द्वारा कराए दूसरे आंतरिक सर्वे में पिछले सर्वे के मुकाबले पार्टी की एक सीट और कम हो गई। इस सर्वे के नतीजे बताते हैं कि भाजपा को 27 सीटों में से 20 सीटों पर हार का सामना करना पड़ सकता है। जबकि, पहले हुए आंतरिक सर्वे में पार्टी को 19 सीटों पर हार की आशंका बताई गई थी। उपचुनाव वाली 27 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने दूसरा आंतरिक सर्वे 26 से 28 अगस्त के बीच कराया था। इस सर्वे की रिपोर्ट ने पार्टी को ज्यादा ही चिंता में डाल दिया। सामने आए अनुमान के मुताबिक पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से ग्वालियर-चंबल संभाग में जिस चमत्कार की उम्मीद की थी, वो धूमिल हो गई! स्थानीय लोगों को उन पूर्व विधायकों के प्रति भारी असंतोष है, जो कांग्रेस से भाजपा में आए थे और जिनकी वजह से उपचुनाव के हालात बने! ऐसी स्थिति में एक सुझाव ये भी आया है कि जहाँ बहुत ज्यादा विरोध है और पार्टी को हार साफ़ नजर आ रही है, वहाँ सिंधिया समर्थकों के टिकट काटकर भाजपा अपने पारंपरिक नेताओं को उम्मीदवार बनाएं।
ग्वालियर में भाजपा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को तोड़कर भाजपा में शामिल करने का जो सदस्यता अभियान चलाया था, उसके बेअसर होने की भी खबर है। क्योंकि, इससे कांग्रेस को कोई फर्क इसलिए नहीं पड़ा कि ये कार्यकर्ता कभी कांग्रेस में थे ही नहीं! कांग्रेस के ग्वालियर-चंबल इलाके के उपचुनाव के मीडिया प्रभारी केके मिश्रा बताते हैं कि भाजपा ने फर्जी सदस्यता अभियान चलाया! जिसकी असलियत बहुत जल्दी सामने आ गई! इस इलाके में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों वाली 16 सीटों पर भी विरोध लगातार बढ़ रहा है। सर्वे में 27 में से 23 सीटों पर स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच अंतरकलह का भी ज़िक्र किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि किसान, मजदूर और शिक्षक सरकार से खुश नहीं हैं। जो घोषणाएं की गई, उस दिशा में कोई काम नहीं किया गया!
आंतरिक सर्वे की दूसरी रिपोर्ट के बाद भाजपा अपने एजेंडे में भी बदलाव करने का विचार कर रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी ने संघ की सलाह पर फिर राम मंदिर को मुद्दा बनाकर मंदिर निर्माण रथयात्रा निकाले का विचार किया है। उपचुनाव से पहले संघ और हिंदू संगठनों को भी सक्रिय करने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन, कहा नहीं जा सकता कि ऐसे धार्मिक पाखंडों से लोग प्रभावित होंगे! क्योंकि, अब 1992 जैसे हालात नहीं है, जब लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से पूरे देश में राम मंदिर की लहर उठी थी! अब राम मंदिर का शिलान्यास भी हो गया और सभी को भरोसा है कि मंदिर भी बनेगा! इसलिए ऐसी रथयात्रा से मतदाता की मानसिकता बदलेगी, ऐसे आसार नहीं हैं। आज का आम मतदाता ऐसे मुद्दों से बहुत ज्यादा प्रभावित होगा, ऐसा नहीं लगता!
उधर, कांग्रेस की दूसरी आंतरिक सर्वे रिपोर्ट भी बहुत कुछ यही निष्कर्ष दर्शा रही है। कांग्रेस की आंतरिक सर्वे रिपोर्ट के अनुमानों के मुताबिक उसकी स्थिति काफी बेहतर है। सर्वे के मुताबिक पार्टी कितनी सीटें जीत सकती है, इस बात का तो पता नहीं चला! लेकिन, कांग्रेस के नेताओं में जो ख़ुशी ही, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे उम्मीद से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद है। कांग्रेस के नेता ये भी जानते हैं, कि उन्हें ये सफलता खुद के बूते पर नहीं मिलेगी! पार्टी की जीत के पीछे सबसे बड़ा हाथ भाजपा की हार का होगा! लोगों में सिंधिया समर्थकों के प्रति जो नाराजी है, वो हवा कांग्रेस के पक्ष में जाएगी! ग्वालियर-चंबल संभाग में सबसे ज्यादा 16 सीटों पर उपचुनाव होना है। भाजपा और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया को यहाँ अच्छी सफलता का भरोसा था, पर सबसे ज्यादा नुकसान का अंदेशा यहीं नजर आ रहा है।
इसके बाद 7 सीटें मालवा-निमाड़ में हैं जहाँ उपचुनाव होना है! यहाँ से सर्वे के जो पूर्वानुमान मिले, वो भी कांग्रेस को उत्साहित करने वाले हैं। पार्टी खुश इसलिए है कि सर्वे में कांग्रेस को बढ़त मिलने का पूरा अनुमान दर्शाया गया है। मालवा-निमाड़ की 4 सीटों पर कांग्रेस सीधे जीतती दिखाई दे रही है। निश्चित रूप से ये वही सीटें हैं, जहाँ सिंधिया समर्थकों ने विद्रोह किया है। सर्वे में 2 सीटों पर मुकाबला बताया गया है, जो निमाड़ की नेपानगर और मांधाता हो सकती हैं। यहाँ के जिन विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी, वे सिंधिया समर्थक नहीं हैं। जिस एक सीट पर कांग्रेस को अपनी साफ़ हार दिखाई दे रही है वो निश्चित रूप से आगर-मालवा की सीट होगी, जो भाजपा विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन से खाली हुई थी! लेकिन, कांग्रेस भी फूंक-फूंककर कदम रख रही और उम्मीदवारों के नाम फ़ाइनल करने की जल्दबाजी नहीं कर रही! अभी कांग्रेस के एक और सर्वे की बात सुनी जा रही है, उसके बाद ही शायद लिस्ट को अंतिम रूप दिया जाए! क्योंकि, ये अपनी तरह का सबसे बड़ा राजनीतिक संघर्ष है, जो मध्यप्रदेश में भविष्य की राजनीति की धारा तय करेगा!
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