- हेमंत पाल
वेब सीरीज के बारे में लोगों में आम धारणा है कि इनमें जमकर हिंसा, अश्लीलता और गाली-गलौच होती है। ये मनोरंजन का ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसमें सबकुछ जायज है। देखा जाए तो ये बात गलत भी नहीं है। 'ओटीटी' ने इसी के जरिए उन दर्शकों के बीच अपनी जगह बनाई, जो फिल्मों और टीवी सीरियलों से बोर हो गए थे। मनोरंजन के इस प्लेटफॉर्म ने हिंसा को इतना ज्यादा बढ़ावा दिया कि हॉलीवुड की एक्शन फ़िल्में भी उसके सामने फीकी पड़ गई! सेक्रेट गेम्स, अपहरण और 'पाताल लोक' जैसी सीरीज में जिस तरह गुंडागर्दी, गोलीबारी और पुलिसिया भाषा का इस्तेमाल किया गया, उसने मनोरंजन का नया ही आभामंडल रच दिया! फिल्मों और टीवी की दुनिया से आकर वेब सीरीज बनाने वाले किसी फिल्मकार ने सामाजिक या पारिवारिक कहानी कहने की हिम्मत तक नहीं की! क्योंकि, उन्हें डर था कि ये प्लेटफार्म शायद ऐसी कहानियों के लिए नहीं है! लेकिन, एमेजन प्राइम प्लेटफॉर्म पर भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित वेब सीरीज 'बंदिश बैंडिट' ने इस धारणा को खंडित कर दिया। ये सीरीज ठंडी हवा का वो झौंका है, जिसने ओटीटी पर नया दरवाजा खोल दिया। भारतीय शास्त्रीय गीत, संगीत पर आधारित ऐसी कहानी मनोरंजन दुनिया में लंबे समय बाद दिखाई दी। 'बंदिश बैंडिड' की असल धड़कन इसका संगीत पक्ष ही है।
'बंदिश बैंडिट' वो कहानी है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की कठिन साधना और इसके पीछे छुपी लगन को दर्शाती है! इस सीरीज का पहला सीजन संगीत की सनातन परंपरा और आज के कान फोडू संगीत के टकराव को सामने लाता है। ये राजस्थान की धरती पर रची गई शुद्ध भारतीय कहानी है, जो उन दर्शकों के लिए मनोरंजन की अच्छी खुराक है, जिन्हें हमेशा ये शिकायत रहती है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अच्छी कहानियां नहीं दिखाई देती। इस वेब सीरीज का कथानक ओटीटी पर अभी तक आए कंटेंट से बिल्कुल अलग है। इसमें ‘म्यूजिशियन’ और ‘इलेक्ट्रिशियन’ के फर्क के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को भी ईमानदारी से दिखाया गया है। संभवतः ये अपनी तरह की पहली ऐसी कहानी है, जो कभी फिल्मों में भी दिखाई नहीं दी! वास्तव में तो ये एक तरह का म्यूज़िकल ड्रामा है।
'बंदिश बैंडिट' की पटकथा रचने में जो मेहनत हुई है, वो नजर आती है। संगीत की दुनिया के दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े किरदारों के बीच प्रेम पनपने की कहानी और संगीत के एक विख्यात घराने को बचाने के संघर्ष को जिस तरह फिल्माया गया है, वो बेहद संतुलित और सधा हुआ है। कहा जाता है कि शब्द ब्रह्म है और सुरों की साधना ही वास्तव में परमेश्वर की साधना है! जबकि, बीते कुछ सालों में फिल्म संगीत शोर बनकर रह गया है। सालभर में इक्का-दुक्का ही कोई गीत ऐसा सुनाई देता है, जो गुनगुनाने का मन करता है! संगीत के शोर में बनने के इस दौर में 'बंदिश बैंडिड' की कहानी, कलाकारों का अभिनय और वेब सीरीज के गीत बेहद सुकून देते हैं।
इस वेब सीरीज का सबसे सशक्त पक्ष है, शंकर-एहसान-लॉय का सुमधुर संगीत जिसने इसकी कामयाबी में अहम भूमिका निभाई है। इसकी सफलता का बड़ा श्रेय ही इसका संगीत है। पक्के शास्त्रीय संगीत से पगे गीत देखने वाले को बाद में भी सुनने को मजबूर करते हैं। शास्त्रीय संगीत न समझने वालों को भी इसकी बंदिशें बांधकर रखती हैं। क्योंकि, इस संगीत में शोर नहीं, बल्कि दिल अंदर तक उतर जाने वाला सुकून हैं। कथानक के अनुरूप संगीत के शास्त्रीय पक्ष को बेहद खूबसूरती से उभारा भी गया है! इस सीरीज की एक ठुमरी तो जहन में लम्बे समय तक गूंजती रहती है। इसके अलावा राजस्थान का लोकगीत 'पधारो म्हारा देस' और अंत का विरह गीत बेहद संजीदा है। 'बंदिश बैंडिड' कहानी तो दर्शकों को बांधती ही है, इसके संगीत का माधुर्य भी नई उम्मीद जगाता है कि जिस संगीत को खत्म कर दिया गया, मौका मिले तो वो फिर लहलहा सकता है।
नसीरुद्दीन शाह ने संगीत सम्राट पंडित राधेमोहन राठौड़ के किरदार को जीवंतता दी है। सख्त व्यक्तित्व और शास्त्रीय संगीत के प्रति कठोर अनुशासन को उन्होंने जिया है। कथानक में जिस संगीत सम्राट की कल्पना की गई होगी, नसीरुद्दीन शाह उस पर खरे उतरे हैं। संगीत के एक घराने को अपने ही नाजायज बेटे से बचाने के लिए वे अपने पोते को खड़ा करते हैं! इस सबके बीच रॉक म्यूजिक और शास्त्रीय संगीत के बीच खींचतान में फंसा उनका पोता मुकाबले के लिए कैसे तैयार होता है, वो बांधे रखता है! मराठी के जाने-माने कलाकार अतुल कुलकर्णी ने भी नाजायज बेटे की भूमिका में प्रतिद्वंदी गायक की भूमिका में जान डाली है! इस वेब सीरीज को देखना किसी संगीत की खूबसूरत दुनिया से गुजरने जैसा अनुभव है। यदि इस तरह की कहानियों को वेब सीरीज को जगह मिलती रही, तो नया संजीदा दर्शक वर्ग तैयार होना तय है!
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