Monday, September 21, 2020

सिंधियों के लिए अलग राज्य मांगकर लालवानी ने क्या खोया, क्या पाया!

 - हेमंत पाल

इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने छह महीने पहले लोकसभा में अलग सिंधी राज्य की मांग उठाई थी! उन्होंने सिंधी में अपनी बात रखी थी! लेकिन, कोरोना के हल्ले में और लॉक डाउन काल होने से बात बाहर भी नहीं आ सकी! अब छह महीने बाद जब उनका ये वीडियो सामने आया तो हंगामा हो गया! उनकी इस मांग के पक्ष में न तो भाजपा खड़ी हुई और न सिंधी समाज! क्योंकि, उनकी इस मांग का कोई तार्किक आधार नहीं था। उनके संसदीय क्षेत्र के सिंधी समुदाय ने ही इसका विरोध किया! क्योंकि, आज तक किसी सिंधी नेता ने ऐसी कोई बात नहीं की! अब लालवानी लीपा-पोती करने की कोशिश कर रहे हैं! लेकिन, जो तीर कमान से निकल गया, वो वापस आने से तो रहा! लालवानी से एक दिन पहले लोकसभा में ओडिसा के मयूरभंज के सांसद बिशेश्वर तुडू ने भी शून्यकाल में यही बात की थी! वास्तव में तो लालवानी ने बिशेश्वर तुडू की मांग को आगे बढ़ाया है, नया कुछ नया जोड़ा!  
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     सांसद शंकर लालवानी ने लोकसभा में पहली सिंधी में बोलकर कोई कीर्तिमान बनाया या नहीं, ये अलग बात है! लेकिन, उन्होंने अलग सिंधी राज्य की मांग उठाकर देश में बसे सिंधी समुदाय को नाराज जरूर कर दिया। लालवानी ने लोकसभा में ये मांग किसकी सलाह पर देश के सामने रखी, ये वही जानें! पर, देश के किसी बड़े सिंधी नेता के उनकी बात का समर्थन नहीं किया! कोई सिंधी संगठन भी उनके समर्थन में सामने नहीं आया! भाजपा ने भी उनकी इस मांग पर कान नहीं धरे! पार्टी के इस ठंडे रुख से स्पष्ट है कि भाजपा भी अपने सांसद के इस बयान से सहमत नहीं है! ये भी कहा जा रहा, कि पार्टी ने उन्हें लोकसभा में ऐसी मांग उठाने के लिए लताड़ भी लगाई! 'संघ' से जुड़े सूत्रों के मुताबिक नागपुर ने भी नाराजी व्यक्त की और भविष्य के लिए हिदायत भी दी। 
     लोकसभा में छह महीने पहले रखी गई भाजपा सांसद की इस बात को किसी भी नजरिए से तार्किक नहीं कहा जा सकता! पहली बात तो ये कि ऐसी कोई भी मांग संविधान की मूल भावना के विपरीत है। देश में सामाजिक आधार पर किसी राज्य का गठन नहीं किया जा सकता! देश में कहीं कोई सिंधी भाषी बहुल क्षेत्र भी नहीं है, जिसे राज्य बनाया जाए! ये भी आधार नहीं बनाया जा सकता कि इस समुदाय के साथ अन्य समाज के लोग कोई विभेद करते हैं! बल्कि, सिंधी लोग अन्य समाज के लोगों से इतने ज्यादा घुले-मिले हैं, कि कहीं कोई फर्क नजर नहीं आता। लेकिन, शंकर लालवानी ने बिना किसी ठोस आधार के लोकसभा में ये मांग उठाकर खुद सिंधियों के बीच भी अपनी किरकिरी जरूर करवा ली! उनकी मांग का संसदीय क्षेत्र इंदौर के सिंधी समुदाय का भी समर्थन नहीं मिला और न देश के सिंधी नेताओं या सिंधी संगठनों ने उनकी पीठ थपथपाई! बल्कि, उनकी इस बात ने भाजपा को ही सवालों में घेर दिया! यही कारण है कि पार्टी शंकर लालवानी की बात पर सब खामोश है!   
   लोकसभा चुनाव में शंकर लालवानी साढ़े पांच लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे। जबकि, इंदौर संसदीय क्षेत्र के 23.5 लाख मतदाताओं में सिंधी मतदाताओं की संख्या 83 हज़ार बताई जाती है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इंदौर के मतदाताओं ने लालवानी को एक सिंधी सांसद के रूप में नहीं, भाजपा के प्रतिनिधि की तरह जितवाया! लेकिन, उन्होंने एक समाज विशेष की मांग उठाकर एक बड़े वर्ग को नाराज कर दिया। कुछ समाज के लोगों ने तो खुलकर उनकी बात का विरोध भी किया। कांग्रेस ने भी उनके अलगाववादी रवैये की आलोचना की! सिंधी समाज ने भी शंकर लालवानी के पक्ष में हाथ नहीं उठाया, बल्कि खुलकर अपनी नाराजी व्यक्त की! सोशल मीडिया पर भी सिंधी समाज के लोगों ने उनकी आलोचना की। सिंधी समाज ने सोशल मीडिया जिस तरह से अपनी बात रखी, वो ज्यादा तार्किक लगती है।
     इंदौर के एक सिंधी नेता का कहना है कि हम सांसद शंकर लालवानी की अलग सिंधी राज्य की स्थापना का समर्थन नहीं करते! विभाजन के बाद जब हमारे बुजुर्ग पाकिस्तान छोड़कर आए थे, तब यहाँ की सरकार या जनता ने कभी ये नहीं कहा था कि सिंधी समाज को मत आने दो या कोई अलग स्थान पर इन्हें बसाया जाए! किसी ने कभी यह आपत्ति नहीं ली, कि सिंधी समाज के लोग हमारे मोहल्ले, शहर या प्रदेश में नहीं रहेंगे! बल्कि, देश की जनता ने तो हमें अपने साथ रहने के लिए हर संभव मदद की और प्यार, सम्मान दिया। आज हम शहर हो, प्रदेश हो या फिर पूरा देश हो हमारे समाज के लोग हर जगह बसे हैं। हर जगह हमारे बिज़नेस हैं। सभी धर्मों के लोग हमसे व्यापार का व्यवहार करते हैं। हमारे हर सुख, दुःख में खड़े रहते हैं तो फिर सांसद ने अलग राज्य की मांग क्यों की! यह भी कहा गया कि यह मांग तब जायज थी, जब हमारे समाज पर अत्याचार होते या जनता हमसे नफरत करती! हिंदुस्तान आकर हमने प्यार और सम्मान पाया! आज कोई भी सिंधीजन न तो कोई शहर छोड़ेगा न कोई प्रदेश छोड़ेगा। शंकर लालवानी ने सिंधी प्रदेश की जो मांग की, वो राजनीति से प्रेरित है। सांसद ने शायद यह सोचा होगा कि अगर यह मांग लोकसभा में करूंगा, तो पूरी दुनिया मे मेरा नाम होगा और समाज के लोग प्रभावित होंगे! जबकि, लालकृष्ण आडवाणी, राम जेठमलानी, सुरेश केसवानी या अन्य किसी सिंधी नेता ने आजतक यह मांग नहीं की।
  पाकिस्तान से विभाजन के समय हिंदुस्तान आकर बसे सिंधी समुदाय के लोगों की खराब हालत का मुद्दा लोकसभा में इसी साल 19 मार्च को भी उठा था। इसमें भी अलग सिंधी प्रदेश का गठन किए जाने की मांग की गई। ओड़ीसा की मयूरभंज सीट से भाजपा सांसद बिशेश्वर तुडू ने लोकसभा में शून्यकाल के दौरान यह मामला उठाते हुए कहा था कि सिंधु घाटी की मोहन जोदाड़ो सभ्यता से ताल्लुक रखने वाले इस समुदाय के लोग आज बदहाली का जीवन जी रहे हैं। विभाजन के समय पाकिस्तान के सिंध से ये लोग शरणार्थियों के रूप में भारत आए थे। सिंधी समुदाय के संरक्षण के लिए अलग सिंध प्रदेश का गठन करने के साथ ही सिंधी कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय सिंधी अकादमी, सिंधी टीवी और रेडियो चैनल शुरू करने की मांग भी की गई थी। साथ ही 26 जनवरी की परेड में सिंधी समुदाय की झांकी को भी शामिल किए जाने की मांग की। उन्होंने भगवान झूलेलाल के जन्मदिन पर अवकाश घोषित किए जाने की भी मांग की। इनमें कुछ मांगे तो ठीक कही जा सकती है, पर ज्यादातर मांगे वैसे ही अलगाववाद की पोषक थीं, जैसी शंकर लालवानी ने की है।
   इंदौर में सिंधियों बीच ये बात पहली बार 2015 में 28 अगस्त को दुबई के बिजनेसमैन और इंटरनेशनल सिंधी फोरम के राम बख्शानी ने उठाई थी। उन्होंने शहर के सिंधी समाज के प्रतिनिधियों के बीच इस मांग को खत्म होती सिंधी संस्कृति और भाषा को बचाने के लिए इसे जरुरी बताया था। बख्शानी ने कहा था कि वे सरकार तक अपनी बात भेज चुके हैं। उनका तर्क था कि 2013 में गुजरात में हुए इंटरनेशनल सिंधी सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें इस बारे में आश्वासन भी दिया था। अब वे उनका और केंद्र का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। तब बख्शानी ने कहा था कि सिंधियों को राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर के पास या गुजरात के कच्छ के पास जमीन दी जा सकती है। इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सिंधी भाषी है। इससे इन क्षेत्रों का विकास होगा। भाषा और संस्कृति संरक्षित हो सकेगी। बख्शानी ने यह भी कहा था कि सिंधी भाषियों को अब तक राजनीतिक तौर पर स्वीकार्यता नहीं मिली है। इस वजह से सिंधियों का राजनीतिक नेतृत्व नहीं पनपा। उन्होंने तब यह भी कहा था कि लालकृष्ण आडवाणी और आचार्य कृपलानी सिंधियों के नेता नहीं है, वे नेशनल लीडर हैं। किसी सिंधी नेता ने कुछ भी कहा हो, आज तो लोगों की नजर शंकर लालवानी हैं, जिन्होंने सिंधियों के लिए अलग राज्य माँगा है।  
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