Thursday, June 17, 2021

जंगल के साथ परदे से भी जानवर गुम!

- हेमंत पाल
    
    किसी भी फिल्म की जान उसके नायक और नायिका होते हैं। कथानक के केंद्र बिंदु में यही दो चरित्र छाए रहते हैं। दर्शक भी फिल्म के बारे कोई अनुमान लगाने से पहले उसके नायक और नायिका पर नजर डालता है। लेकिन, कुछ ऐसे अपवाद भी होते हैं, जिनमें नायक, नायिका हाशिए पर चले जाते हैं और फिल्म का तीसरा चरित्र उभरकर सामने आता है। ये तीसरा चरित्र कोई जानवर भी हो सकता है। लेकिन, ऐसी फिल्मों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकने वाली है। इनमें कुछ ऐसी फ़िल्में भी हैं, जिनमें जानवर की भूमिका को इतना सशक्त बनाया गया कि वो नायक पर भारी पड़ गया। कई बार ये जानवर अपनी मौजूदगी से ऐसी छाप छोड़ जाते हैं कि उनका अभिनय सब पर भारी पड़ता है। ऐसी कई फिल्में हैं, जो सिर्फ जानवरों के कारण पसंद की गई और उन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया। लेकिन, जीवन की भागदौड़ में पता भी नहीं चला कि कब जानवर फिल्मों से गायब हो गए।
    जानवरों का हिंदी फिल्मों में इस्तेमाल का इतिहास बहुत पुराना है। पहली फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' के कई दृश्यों में भी जानवर नजर आए थे। जानवर और इंसान एक-दूसरे के पूरक हैं, इसलिए वे लंबे समय तक परदे पर अपनी मौजूदगी बताते रहे। 30 और 40 के दशक में नाडिया की फिल्मों में जानवर सबसे ज्यादा दिखाई दिए! फिल्मों में जानवरों की भूमिकाओं में भी अंतर दिखा। धर्मेंद्र की 'कर्त्तव्य' जैसी कुछ फ़िल्में छोड़ दी जाए, तो ज्यादातर फिल्मों में इनका हिंसक रूप दिखाई नहीं दिखा। गाय और गौरी, हाथी मेरे साथी, रानी और जानी, धरम वीर, खून भरी मांग, मर्द, तेरी मेहरबानियां, दूध का कर्ज़, कुली और 'अजूबा' जैसी फिल्मों में जानवरों को इंसान का दोस्त या मददगार ही बताया गया। अक्षय कुमार की 'इंटरटेनमेंट' में तो जानवर की भूमिका अहम थी। सुंदरबन के बाघों पर बनी फिल्म 'रोर' को भी इसी लिस्ट में जोड़ा जा सकता है। लम्बे अरसे बाद इंसान और जानवर के बीच संघर्ष को लेकर 'शेरनी' फिल्म आई। इसमें वन अधिकारी विद्या बालन एक खतरनाक बाघिन को पकड़ने वाली टीम का नेतृत्व करती है। बाघिन खतरनाक है, पर विद्या बालन उसे जीवित पकड़ना चाहती है। वास्तव में ये इंसान और जानवर के बीच संवेदना का रिश्ता है, जिसे फिल्म में उभारा गया।  
      जानवर बरसों से हिंदी फिल्मों का असरदार हिस्सा रहे हैं। लेकिन, पिछले दो दशकों में ऐसी फिल्मों की संख्या में कमी आ गई। इसका कारण व्यावसायिक या दर्शकों की बदलती रूचि ही नहीं, मनुष्य और प्रकृति के कमजोर पड़ते रिश्तों का भी प्रमाण है। फिल्मों में जानवरों की मौजूदगी कम या लगभग ख़त्म होने के पीछे एक बड़ा कारण सरकार के 'वन्य जीव कानूनों' का कड़ा होना भी है। कोई फिल्म निर्माता बेवजह कानूनी उलझनों में पड़ना नहीं चाहता। लेकिन, जिस तरह हॉलीवुड में तकनीकों का इस्तेमाल करके इंसान और जानवर के संबंधों पर फिल्म बनाई जाती है, ऐसे प्रयोग भारतीय फिल्मकारों ने नहीं किए। दिलीप कुमार की फिल्म 'नया दौर' में जानवर और मशीन के बीच फंसे इंसान के द्वन्द को दिखाया गया था। अंत में जीत जानवर की होती है, पर आज वो स्थिति नहीं है। जैसे-जैसे मशीनों पर हमारी निर्भरता बढ़ी, जानवरों से हमारी दूरी बढ़ती गई। इस बात से इंकार नहीं कि तकनीकी तौर पर सिनेमा पहले से बेहतर हुआ है। पर, क्या इसका ये मतलब निकाला जाए कि अब जानवरों को परदे पर दिखाने की जरूरत ही ख़त्म हो गई! अब इसके लिए एनीमेशन और दूसरी तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है। तकनीक के अलावा वैचारिक रूप से परिपक्व होते सिनेमा में अब जानवरों के साथ जंगल के लिए भी जगह नहीं बची! जबकि, जानवरों पर बनी फिल्मों को पसंद करने वालों की कमी नहीं है! 
       डिज्नी की फिल्म 'जंगल बुक' ने रिलीज के शुरुआती तीन दिन में बॉक्स ऑफिस पर 40.19 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की! ये भारत में प्रदर्शित किसी भी हॉलीवुड फिल्म की कमाई का रिकॉर्ड है। इस फिल्म में इंसान के साथ जानवर भी मुख्य भूमिका में है। जानवर और इंसान के आपसी रिश्तों पर 2012 में बनी आंग ली की फिल्म 'लाइफ ऑफ पाई' ने भी हमारे यहाँ अच्छी कमाई की। ये एक लड़के और बाघ के रिश्ते की कहानी थी। फिल्म फैंटेसी ड्रामा थी और बाघ भी असली नहीं था। इसे सीजीआई (कंप्यूटर ग्राफिक इमेज) तकनीक से बनाया गया था। इसके बावजूद सब कुछ असली जैसा लगा। ख़ास बात ये कि हॉलीवुड की ये दोनों फ़िल्में भारत पर केंद्रित इंसान और जानवर के रिश्तों पर बनी थी। लेकिन, दुनिया में सबसे ज्यादा फ़िल्में बनाने वाले भारत में फिल्मों से जानवर और जंगल दोनों गायब हो रहे हैं।      फिल्मों में जानवरों का किस तरह इस्तेमाल हुआ इसके कई उदाहरण हैं। 'हाथी मेरे साथी' में अभिनेता राजेश खन्ना और तनुजा मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में हाथी और इंसान के बीच की दोस्ती को दिखाया गया है। रामू नाम के इस हाथी के किरदार को परदे पर दर्शकों ने बहुत पसंद किया। हाथी अपने मालिक को बचाने के लिए अपनी जान तक दे देता है। 'कुली' में अमिताभ बच्चन का डायलॉग था 'बचपन से सिर पर अल्लाह का हाथ है, अल्लाह रक्खा मेरे साथ है।' दरअसल, अल्लाह रक्खा एक बाज होता है, जो हमेशा अमिताभ का साथ देता है। फिल्म के पोस्टर में भी ये बाज था। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसका किरदार कितना अहम था। 'मैंने प्यार किया' का गाना 'कबूतर जा जा' में भाग्यश्री अपनी चिट्ठी कबूतर से सलमान खान तक पहुंचाने को कहती हैं। क्लाइमैक्स में यह कबूतर विलन पर हमला भी करता है। फिल्म 'कट्टी-बट्टी' में इमरान खान और कंगना के रोमांस से ज्यादा केमिस्ट्री तो इमरान और उसके पालतू कछुए की देखने को मिलती है! इसके अलावा फिल्मों में नाग-नागिनों पर भी कई फ़िल्में बनी। 'नागिन' और 'नगीना' जैसी फिल्मों में तो इंसानों से ज्यादा सांप ही छाए रहे। 'मैं प्रेम की दीवानी हूं' में करीना कपूर और रितिक रोशन के अलावा एक तोता और कुत्ते का भी अहम रोल है। 
     'शोले' में बसंती के तांगे की घोड़ी धन्नो भी भुलाने वाला कैरेक्टर नहीं है। इस फ़िल्म में तांगा दौड़ का काफी लंबा सीन है। 'एंटरटेनमेंट' फिल्म का तो नाम ही कुत्ते के नाम पर पड़ा। फिल्म में कुत्ते का नाम 'एंटरटेनमेंट' हैं कहानी कुत्ते के इर्द-गिर्द घूमती है। इसलिए कि वो करोड़ो की दौलत का वारिस होता है। 'हम आपके हैं कौन' में यदि कुत्ता टफी न होता, तो फिल्म का एंड सुखद न होता। सलमान खान और माधुरी दीक्षित की शादी कराने में इसी कुत्ते का योगदान था। फिल्म 'दिल धड़कने दो' में प्लूटो एक कुत्ता है, जो फिल्म की कहानी भी सुनाता है। प्लूटो को आमिर खान ने आवाज दी। 'मां' फिल्म में जितेंद्र और जया प्रदा मुख्य भूमिका में थे। जयाप्रदा को कुछ लोग मार देते हैं और वो आत्मा बन जाती हैं। उन्हें केवल उनके घर का कुत्ता देख पाता है, जो जयाप्रदा के साथ मिलकर बदला लेता है। 'नगीना' में श्रीदेवी के अभिनय को कौन भूल सकता है। फिल्म में श्रीदेवी नागिन के किरदार में होती है, जो अपना बदला लेती हैं। 'आंखे' में गोविंदा और चंकी पांडे मुख्य रोल में थे। गोविंदा और चंकी के बाद जो कैरेक्टर अहम था वो था एक बंदर का। उस बंदर ने फिल्म में जो धमाल मचाया था वो देखते ही बनता था। 'दूध का कर्ज' में जैकी श्रॉफ और नीलम कोठारी की भूमिकाएं थी. इस फिल्म में एक सांप अहम किरदार में था। गंगू को चोरी के झूठे आरोप में फंसा कर मार दिया जाता है। गंगू के परिवार में एक सांप भी रहता है। पार्वती (गंगू की पत्नी) उस सांप को अपना दूध पिलाती है और सालों बाद वो सांप अपने दूध का कर्ज अदा कर गंगू की हत्या का बदला लेता है! 'तेरी मेहरबानियां' में जैकी श्रॉफ नायक थे, जिसके साथ मोती नाम का एक कुत्ता हमेशा साथ रहता है। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती बताई गई। कुछ लोग जैकी श्रॉफ की हत्या कर देते हैं, जो मोती देख लेता है। वो अपने मालिक की हत्या का बदला लेते हुए सभी हत्यारों को मार देता है। 
    हिंदी के मुकाबले तमिल फिल्मों में जानवरों का सबसे ज्यादा उपयोग किया गया है। हिंदी में डब की गई दक्षिण भारतीय फिल्मों की हमेशा मांग रही है। एक्शन और जानवरों पर फिल्माए गए फिल्मों के लिए यह मांग और भी ज्यादा है। नेल्सन वेंकटेशन की फिल्म 'मॉन्स्टर' को बहुत पसंद किया। इसमें एक चूहे की मुख्य भूमिका है। 'मॉन्स्टर' कम बजट की फिल्म है, इसके बावजूद इसने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की। जीवा अभिनीत 'गोरिल्ला' को असली चिम्पांजी पर फिल्माया गया था। जीवा के मुताबिक जानवरों के साथ काम करना आसान नहीं होता। लेकिन, कुत्ते और हाथियों वाले फिल्मों की मांग ज्यादा है। अशोक सेलवन की फिल्म 'जैक' और योगी बाबू की 'गोरखा' दो ऐसी फिल्में हैं, जिनमें कुत्ते अहम भूमिकाओं में हैं। जबकि, 'कुमकी-2' और 'राजा भीमा' की कहानी हाथियों पर केंद्रित है। 
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