Thursday, June 17, 2021

मुलाकातों के दौर में सत्ता परिवर्तन के कयासों की रिसन!

    राजधानी भोपाल में पिछले दिनों अच्छी खासी राजनीतिक हलचल रही। भाजपा की राजनीति को उंगलियों पर नचाने वाले कई बड़े नेता भोपाल पहुंचे और यहाँ प्रदेश के नेताओं से मेल-मुलाकात की। बिना किसी संदर्भ और प्रसंग के होने वाली इन मुलाकातों को लेकर कई तरह के कयास लगाए गए! उनमें से एक यह भी था कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को बदला जा रहा है! राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। लेकिन, मध्यप्रदेश में अभी सत्ता परिवर्तन के लिए सही वक़्त नहीं आया! भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल आने के बाद अफवाहों की धुंध लम्बे समय तक बनी रही। पर, न तो ऐसा कुछ हुआ और न होना था। लेकिन, सोशल मीडिया पर गुणा-भाग लगाने वालों ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला जरूर जाएगा, पर अभी सही वक़्त नहीं आया!      
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- हेमंत पाल 

   राजनीति की अपनी एक धारा है। ये धारा जरा भी बदली तो कयास लगाने वालों के कान खड़े हो जाते हैं। उनके अनुमानों के घोड़े दिमाग के अस्तबल से कूदकर नए-नए समीकरण गढ़ने लगते हैं। कुछ ऐसा ही पिछले दिनों भोपाल में देखने में आया। पश्चिम बंगाल चुनाव में कई महीनों से व्यस्त चल रहे भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भोपाल पहुंचे तो यहाँ मंत्रियों और नेताओं से मिले, जो औपचारिक मुलाकातें थी। इसी के आसपास राज्यसभा सदस्य और प्रदेश में सत्ता बदल के सूत्रधार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी भोपाल पहुंचे और मुख्यमंत्री समेत प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा समेत कई नेताओं से मिले। इन दो नेताओं के राजधानी आने से कयास लगाने वालों को मौका मिल गया और वे स्वाभाविक मेलजोल के पीछे कारण खोजने में लगे। मीडिया भी पूरे दमखम से सक्रिय हो गया। जबकि, न तो कुछ होना था और न हुआ! किसी के हाथ में नेताओं के बीच बातचीत का कोई सिरा नहीं था! लेकिन, फिर भी सारे अनुमान लगाए गए। इसमें सबसे सशक्त था, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को बदला जाना! पर, कोई ये नहीं बता पाया कि अभी ऐसा करना क्यों जरूरी है! कोरोना संक्रमण के इस दौर में जब सरकार पूरे दमखम से काम कर रही है, उसे बदले जाने का आधार क्या है! दरअसल, ये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर किया गया मीडिया ट्रायल था, और कुछ नहीं!
     फोटो मूक होते हैं, कुछ बोलते नहीं! लेकिन, कयासबाजों ने फोटो के भी मतलब निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी! ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने अपने घर भोजन पर बुलाया था, उनकी परोसगारी का फोटो देखकर कई तरह अनुमान लगाए गए। इनमें कुछ कयास थे, सिंधिया का मुख्यमंत्री या पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनना। वीडी शर्मा और सिंधिया के बीच की बातचीत औपचारिक थी, जिसमें सिंधिया समर्थक किसी मंत्री को आमंत्रित नहीं किया गया, इसे लेकर भी टिप्पणियां की गई! जबकि, मेजबान का अधिकार है, कि वो किसे भोजन पर आमंत्रित करे! जब एक ही पार्टी के दो राजनेता अकेले में मिलते हैं, तो निश्चित है कि उनकी बातचीत में राजनीतिक वार्तालाप तो होगा ही, पर वो मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर हो ये जरूरी तो नहीं! लेकिन, जिस तरह मीडिया और सोशल मीडिया पर ख़बरों का बाजार गर्म रहा, ऐसा लगने लगा कि भाजपा नेतृत्व के सामने मध्यप्रदेश का राजनीतिक संकट उबर आया हो, जिसका तत्काल निराकरण किया जाना है! जबकि, ऐसा कुछ नहीं था। देखा जाए तो मध्यप्रदेश में फिलहाल ऐसी कोई पैचीदगी नहीं है, जितनी उसके सामने उत्तर प्रदेश सरकार को लेकर है।   
   इन राजनीतिक अटकलों को प्रदेश सह प्रभारी शिव प्रकाश के भोपाल दौरे से भी बल मिला। लेकिन, जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और संघ को इस मामले में दखल देना पड़ा। बताते हैं कि सभी नेताओं को हिदायत दी गई कि मेल-मुलाकातों को इतना प्रचारित न किया जाए कि उनसे अफवाहों का धुँआ निकलने लगे। ये हिदायत इसलिए दी गई कि सरकार और संगठन को लेकर कुछ नेता और कार्यकर्ताओं का एक बड़ा गुट नाखुश है। इस राजनीतिक सक्रियता को इसी नजरिए से देखा गया था। अब सत्ता-संगठन के बीच तालमेल की कोशिश की जाने लगी है। वास्तव में मेल मुलाकात की शुरुआत वीडी शर्मा, सुहास भगत और हितानंद शर्मा ने दिल्ली में प्रहलाद पटेल के घर पहुंचकर ही की थी। यह सब ऐसे समय में हुआ जब प्रदेश में एक लोकसभा व तीन विधानसभा सीटों के साथ नगरीय निकाय चुनाव होना है।
     ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल आने को लेकर कयास कुछ ज्यादा ही लगाए गए। वे मुख्यमंत्री से मिले तो निगम-मंडलों में उनके समर्थकों को एडजस्ट किए जाने की संभावनाएं तलाशी जाने लगी। जबकि, इस मुलाकात की ऐसी कोई खबर भी छनकर शायद बाहर नहीं आई कि एजेंडा क्या था! ये मुलाकात इतनी सहज और स्वाभाविक थी, कि न तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसे लेकर कोई ट्वीट किया और न इस न इस बारे में कोई बात ही की। ज्योतिरादित्य ने भी मुलाकात पर कोई ट्वीट नहीं किया। राजनीति को अनुमान के आधार पर विश्लेषित करने वालों ने जितनी संभावनाएं आंक रखी थी, ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दिया। क्योंकि, ऐसा कुछ होना भी नहीं था। अफवाहों के इस गुब्बारे की बाद में कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा ने ये कहकर हवा निकाल दी, कि जो समझा जा रहा है, ऐसा कुछ नहीं है। कैलाश विजयवर्गीय ने प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को बकवास बताते हुए कहा कि राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं और रहेंगे। मीडिया कोई भी कहानी बना दे, उसमें कोई दम नहीं है। नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें बकवास है। ये सामान्य मुलाकातें हैं, इन्हें राजनीतिक रंग देना उचित नहीं है। कोविड के मौजूदा दौर में काम कम है, तो एक-दूसरे से मिलकर अपने संबंध मधुर कर रहे हैं। जबकि, नरोत्तम मिश्रा ने इसे व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी की देन बताते हुए तंज कसा और कहा कि इस यूनिवर्सिटी का वाईस चांसलर बनने के लिए किसी योग्यता की जरूरत नहीं होती।  
   अब सारी संभावनाओं का निष्कर्ष यह है कि यदि फिलहाल मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के आसार नहीं हैं, तो फिर कब? क्या अगला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही पार्टी लड़ेगी! देखा जाए तो इस बात के आसार कम हैं! शिवराज सिंह को चुनाव से पहले बदला तो जाएगा, पर अभी सही समय नहीं आया! नेताओं की मेल-मुलाकातों के पीछे भले ही सत्ता परिवर्तन कोई संदर्भ न हो, किंतु भाजपा के बड़े नेता इस संभावना को अच्छी तरह भांप तो रहे हैं। क्योंकि, दमोह उपचुनाव में भाजपा की हार एक बड़ा राजनीतिक हादसा है। सारे संसाधन और ताकत लगाकर भी भाजपा अपने पाले में आए राहुल लोधी को जितवा नहीं सकी। अब सारा दारोमदार निकाय चुनाव पर है कि इसमें भाजपा का प्रदर्शन कैसा रहता है। जिसकी बहुत ज्यादा उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती कि कोरोना काल में लोग जितना परेशान हुए हैं, वो सारा गुस्सा सरकार पर ही निकलेगा! 
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