Tuesday, April 5, 2022

70 पार बीजेपी नेताओं और नेता पुत्रों को टिकट नहीं!

- हेमंत पाल

     मध्य प्रदेश में अगले साल (2023) होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा बहुत कुछ बदला हुआ दिखाई दे, तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। एक तो 70 पार के नेताओं को पार्टी टिकट नहीं देगी, इसलिए वे चुनाव मैदान में दिखाई नहीं देंगे! दूसरा, नेताओं को बेटों को चुनाव मैदान में नहीं उतारा जाएगा। क्योंकि, नरेंद्र मोदी ने इस बात के स्पष्ट संकेत दे दिए कि पार्टी अब वंशवादी राजनीति को बढ़ावा देना नहीं चाहती। इन दो फार्मूलों के बाद कई सीटें खाली हो जाएगी और चुनाव में नए चेहरे दिखाई देंगे। यह भी संभव है कि पार्टी कुछ नेताओं के विधायक बेटों की भी छुट्टी कर दे।  
     भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने अगले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से कुछ फार्मूले तय करना शुरू कर दिए। पार्टी को ये निर्देश दिल्ली दरबार से मिले हैं और इन पर सख्ती से अमल लाया जाएगा। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से भी ये स्पष्ट हो गया कि अब देश की राजनीति में 70 से ज्यादा उम्र के नेता तेजी से घट रहे हैं। 5 राज्यों की 690 विधानसभा सीटों के परिणामों में 70 से ज्यादा उम्र वाले सिर्फ 19 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। पार्टी के कई ऐसे नेता हैं जो 70 प्लस वाले फॉर्मूले में फिट नहीं बैठ रहे। उन्हें अगले चुनाव का टिकट मिलने में परेशानी आ सकती है और इन्हें चुनाव मैदान में उतारने से पार्टी परहेज कर सकती है। 2023 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, दो कैबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव और बिसाहूलाल सिंह और पार्टी के 13-14 विधायक 70 वर्ष की उम्र पूरी कर लेंगे। इसलिए इन्हें टिकट नहीं दिया जाना तय है। ये दोनों शिवराज सरकार की कैबिनेट में उम्रदराज मंत्री हैं। ये आगामी चुनाव में उतरने के लिए टिकट की मांग कर सकते हैं।
   भाजपा में कई ऐसे नेता हैं, जो पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे या उन्हें टिकट नहीं मिला। लेकिन, फिर भी अगले चुनाव में दावेदारी के लिए अपने इलाकों में सक्रिय हैं। इनमें उमाशंकर गुप्ता, रामकृष्ण कुसमारिया, हिम्मत कोठारी और रुस्तम सिंह भी अपने दावे ठोंक सकते हैं। जबकि, विधानसभा चुनाव तक इन सभी की उम्र 70 पार हो जाएगी। पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने यही फार्मूला लागू किया था और इसके अच्छे नतीजे भी सामने आए। यही कारण है कि अब मप्र के नेताओं को चुनावी मैदान से बाहर किए जाने का डर सताने लगा। पार्टी इन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य बता सकती है। इसलिए भी कि 2018 के चुनाव में बूढ़े नेताओं में 9 में से 4 ही चुनाव जीते थे।
वंशवाद रोकने की भी पहल
    भाजपा 70 प्लस के नेताओं के अलावा नेता पुत्रों को भी चुनाव मैदान से किनारे करना चाहती है। उत्तर प्रदेश में भी पार्टी ने यही किया। नरेंद्र मोदी ने भी इस बात के संकेत दिए थे कि नेताओं के टिकट मैंने काटे थे। मोदी के पार्टी में परिवारवाद को लेकर अपना रुख स्पष्ट करने के बाद राजनीति के गलियारों में खलबली है। कारण कि भाजपा में वंशवाद की बेल काफी लंबी है। मध्यप्रदेश में तो ऐसे कई नाम हैं। लेकिन, यदि मोदी फॉर्मूला सही ढंग से लागू किया गया, तो भाजपा के कई बड़े नेताओं और कई नेताओं के बेटों का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग सकता है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय को भी उत्तराधिकारी माना रहा, वो भी इस दायरे में आ जाएं।  
    मोदी के इस फार्मूले को लेकर पार्टी में विरोध भी है, पर कोई जुबान खोलने की हिम्मत नहीं कर रहा। कोई हिम्मत कर भी नहीं सकता। वास्तव में ये फार्मूला लागू करने का मकसद पार्टी के उन नए चेहरों को मौका देना और आगे लाना है जो  बड़े नेताओं के आभामंडल और उनके परिवार के कारण उभर नहीं पाते! जब 70 पार नेता हटेंगे और पार्टी को नेता पुत्रों से मुक्ति मिलेगी, तो नए चेहरों की नेतृत्व क्षमता सामने आएगी।
    भाजपा इस मसले पर कितनी सख्त है, इसका पता इस बात से लगता है कि केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को पार्टी ने उत्तर प्रदेश में टिकट तो दिया, वे सर्वाधिक वोटों से जीते भी पर उसे मंत्री नहीं बनाया गया! अब यही सख्ती मध्यप्रदेश के 2023 विधानसभा चुनाव में भी की जाएगी, क्योंकि, यहाँ नेता पुत्रों की बाढ़ आई हुई है और दो दर्जन से ज्यादा बड़े नेताओं के बेटे टिकट के लिए लाइन लगाकर खड़े हैं। लेकिन, यदि मोदी फॉर्मूले को सही ढंग से लागू क्या गया तो इन सभी की दावेदारी को पार्टी किनारे कर सकती है। अभी ऐसे और भी कई टिकट फॉर्मूले सामने आने वाले हैं, इंतजार कीजिए।  
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