Monday, April 18, 2022

साहिर के गीतों की अपनी अलग ही दास्तान!


- हेमंत पाल
 
   मतौर पर फिल्मों में कहानी को आगे बढ़ाने के लिए कहानी के आधार पर गीत रचे जाते हैं। लेकिन, कुछ फिल्मी गीत ऐसे भी हुए जो खुद अपने आप में कहानी बन गए! फिल्मी दुनिया का दस्तूर है कि यहां गीत संगीत में अक्सर संगीतकारों की ही चलती है। कुछ गीतकारों को यह गवारा नहीं होता और न वे संगीतकार की इस परंपरा का पालन ही करते हैं। वे फिल्म की सिचुएशन और कहानी को ध्यान में रखकर गीत लिखते हैं, जिसे संगीत में ढालना संगीतकारों को कई बार मुश्किल काम लगता है। ऐसे गीतकारों में साहिर लुधियानवी भी थे, जिनकी पहले से लिखी नज्मों को फिल्मों में शामिल करना फिल्मकारों के लिए गर्व का विषय होता था। साहिर वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होने के साथ बागी किस्म के शायर थे। उनकी नज्मों में मौजूदा हालात का ज्यादा जिक्र होता था। रेड लाइट एरिया की दुर्दशा से परेशान होकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को निशाना बनाते हुए एक नज़्म लिखी थी 'जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं'! इस नज़्म को कई फिल्मकारों ने पसंद तो किया, लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि इसका उपयोग कर सके। आखिर सच्चाई को बेपर्दा करने के लिए आमादा गुरुदत्त ने इसे 'प्यासा' में शामिल किया, जो सिचुएशन पर इतनी फिट बैठी थी, कि जवाहर लाल नेहरू वाला प्रसंग गौण हो गया था।
   शायराना मिजाज वाले साहिर रूमानी भी थे। उनके रोमांस का अंदाज भी निराला था। प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम के साथ उनके रोमांस के चर्चे खूब चर्चित हुए। लेकिन, यह रोमांस किसी फिल्मी अंदाज वाला प्रेम नहीं था। इस प्रेम में वाचालता के बजाए खामोशी का अंश ज्यादा था। कई बार तो बादल घुमड़ घुमड़कर बिन बरसे चले जाते थे! लम्बी बहस और झगड़े के बाद दोनों एक-दूसरे से मुंह फेरकर भी बैठ जाते थे। साहिर रोने-धोने में यकीन नहीं रखते थे। वे अमृता प्रीतम से संबंध बिगड़ने पर उसे सुधारने के बजाए संबंध तोड़ देने तक पर आमदा हो जाते थे। ऐसा कई बार हुआ। कई बार उनके बीच अबोला हुआ महीनों तक एक दूसरे से दूर रहे, लेकिन फिर एक हो गए।  कहा जाता है ऐसे ही किसी मौके पर साहिर ने अमृता प्रीतम को सुनाते हुए एक नज़्म लिखी थी 'वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।' लेकिन, साथ छोड़ने के बजाए अजनबी बनकर एक-दूसरे के सामने से गुजरने की उनकी भावना को इसके साथ जोड़ते हुए साहिर ने इसकी शुरूआत 'चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों' जैसी पंक्तियों से की थी। 
    जिन दिनों बीआर चोपड़ा 'गुमराह' पर काम कर रहे थे, उन दिनों प्रेम त्रिकोण पर कई फिल्में बन रही थी। इन सभी फिल्मों में एक ट्रेंड आम था कि एक प्रेमिका और दो प्रेमी जो आमतौर पर एक-दूसरे के दोस्त या परिचित होते थे। किसी पार्टी में एक साथ मिलते थे और इस सिचुएशन पर एक गीत होता था। इसमें वे अपनी अपनी भावनाओं को गीतों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाते थे। ऐसी ही भावनाओं को दर्शकों ने 'संगम' के गीत हर दिल जो प्यार करेगा और 'दिल ने फिर याद किया' के शीर्षक गीत में खूब पसंद किया। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए बीआर चोपड़ा ने भी 'गुमराह' में 'चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों' को फिल्म के दो प्रेमियों अशोक कुमार और सुनील दत्त के साथ नायिका माला सिन्हा पर फिल्माने का विचार किया था।
   गीत की सिचुएशन एक पार्टी गीत के रूप में ही कल्पना की गई थी। जिसकी शुरुआत नायिका माला सिन्हा से होती है, जो इशारों-इशारों में अपने प्रेमी सुनील दत्त को आगाह करती कि 'न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज नजरों से न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नजरों से।' इन भावनाओं को व्यक्त करने के पीछे उसका डर यही है कि उसके पति अशोक कुमार की नजरें बहुत तेज है, जो किसी भी पल किसी भी हरकत से उसके अपने प्रेमी सुनील दत्त के साथ प्रेम संबंधों को पकड़ सकती है। सुनील दत्त जिन्होंने इस फिल्म में दिलफेंक प्रेमी के बजाए अपनी विवाहित प्रेमिका को दर्द देने वाले इंसान की भूमिका की थी। यह भूमिका ग्रे-शेड लिए थी। क्योंकि, वे एक विवाहित महिला के कदमों को बहकाने की कोशिश कर रहे थे। यह जानते हुए कि उनकी प्रेमिका अब पराई हो चुकी है। फिर भी वह उसे गुजरे पलों की मीठी यादों के जाल में फंसाने के लिए कहता है 'तुम्हें भी कोई उलझन रोकती होगी पेशकदमी से मुझे भी लोग कहते हैं कि यह जलवे पराए हैं।' फिल्म के कथानक के ताने-बाने को बीआर चोपड़ा ने कुछ ऐसे अंदाज में बुना था कि दर्शकों को तो नायिका और उसकी पूर्व प्रेमी के संबंधों के साथ उसके पति को उनके प्रेम संबंधों की जानकारी होती है। 
     परदे पर इन संबंधों को प्रस्तुत करने वाले किरदारों को इन संबंधों की जानकारी न होने का भ्रम भी रहता है। अपनी पत्नी और उसके प्रेमी के संबंधों की जानकारी होकर अनजान बनने की भूमिका में जान डालते हुए अशोक कुमार जब कहते हैं कि 'वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।' एक तरह से इन पंक्तियों के दो अर्थ निकलते है। एक अर्थ तो खुद अशोक कुमार के लिए है, जो कहते हैं कि ऐसी पत्नी से निबाह मुश्किल है, इसलिए इस संबंध को मजबूरी मे ढोने बजाए छोड़ना बेहतर है। लेकिन, दूसरी तरफ वे अपनी पत्नी और उसके प्रेमी को आगाह भी करते हैं कि उनका प्रेम गुजरे जमाने की बात है। आज की हकीकत यह है कि सुनील दत्त की प्रेमिका माला सिन्हा अब उनकी पत्नी है, इसलिए उनके ताल्लुक नाजायज हैं। इसे आगे बढ़ाने के बजाए उस पर अंकुश लगाना ही बेहतर होगा।
   गीत की सिचुएशन और गायकी को देखते हुए पहले यह तय हुआ था कि माला सिन्हा वाली पंक्तियों को आशा भोंसले, सुनील दत्त वाले अंतरे को महेन्द्र कपूर और अशोक कुमार वाले हिस्से को मोहम्मद रफी आवाज देंगे। महेन्द्र कपूर इस निर्णय से बेहद खुश थे, कि उन्हें अपने गुरु मोहम्मद रफी के साथ गाने का मौका मिल रहा है। लेकिन, इससे उलट मोहम्मद रफी यह सोचकर परेशान थे, कि अपने गुरु के सामने गाते हुए महेन्द्र कपूर पर भारी दबाव होगा जिसका असर उनकी गायकी पर पड़ सकता है। लेकिन, संयोग से इस कश्मकश का रास्ता खुद-ब-खुद निकल आया। फिल्म के सहायक निर्देशक बीआर चोपड़ा के छोटे भाई यश चोपड़ा को जब इस सिचुएशन और गीत की जानकारी मिली, तो वे थोड़ा हैरान हुए। इसका कारण यह था कि बीआर चोपड़ा इस फिल्म के साथ दर्शकों को यह संदेश देना चाहते थे कि विवाहित नारी के लिए उसका पति और उसका घर ही सब कुछ होता है। यदि पूर्व प्रेमी के साथ बिताए पलों और उसके बहकावे में अपनी गृहस्थी को कोई नारी दांव पर लगा देती है, तो उसे समाज में अच्छा नहीं माना जाता।
     विवाह के बाद नारी के जीवन में एक लक्ष्मण रेखा खिंच जाती है, जिसे पार करना उतनी ही बड़ी भूल माना जाता है जितनी बड़ी भूल माता-सीता ने लक्ष्मण रेखा पारकर रावण के हाथों अपहृत होकर की थी। जैसा कि गीत की सिचुएशन में अशोक कुमार पर ताल्लुक बोझ बन जाए, तो उसे छोडना अच्छा वाली पंक्तियां फिल्माई जाने वाली थी, जिससे यश चोपड़ा ने यह आशंका प्रकट की थी कि इसे सुनकर दर्शक यह अंदाज लगा लेंगे कि फिल्म के आखिर में अशोक कुमार बलिदान देते हुए माला सिन्हा का हाथ सुनील दत्त को सौंप देंगे, जो कि फिल्म की मूल भावना से एकदम विपरीत स्थिति थी। इससे भारतीय संस्कृति के विपरीत मानकर दर्शक ठुकरा सकते थे जिससे न तो दर्शकों तक विवाहित नारी के घर की लक्ष्मण रेखा वाला संदेश दर्शकों तक पहुंच पाता और न फिल्म सफल हो पाती।
   इस गीत को लेकर दोनों भाईयों और अख्तर उल इमान के बीच लम्बी चर्चा हुई। अंत में यह तय किया गया कि बजाए इसे माला सिन्हा, अशोक कुमार और सुनील दत्त तीनों पर फिल्माने के बजाए केवल सुनील दत्त पर फिल्माया जाए! इससे दर्शकों को यह अहसास होता रहे कि यह केवल पूर्व प्रेमी और प्रेमिका के बीच इशारों-इशारों में भावनाओं का आदान प्रदान हो रहा है। जैसा कि निर्माता ने दर्शकों के मन मस्तिष्क में छबि रची थी, उसके अनुरूप नायिका का पति उनके संबंधों से अभी भी अनजान है। निर्माता-निर्देशक के बीच यह चर्चा कामयाब रही और यह गीत भी उतना ही कामयाब रहा और दर्शक यह स्वीकारते रहे कि अपने पति और उसके प्रेमी के पूर्व संबंधों को लेकर नायिका का पति गुमराह हो रहा है।
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