- हेमंत पाल
देश में हाल ही में दो ऐसी घटनाएं हुई, जिस पर लोगों का ध्यान कम ही गया होगा। ये घटनाएं थीं, दो भाजपा शासित राज्यों में पुलिस प्रमुखों का अपने पदों से हटना। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को कथित प्रशासनिक अकर्मण्यता के कारण हटाया गया और कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक ने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर पद से इस्तीफ़ा दे दिया। दोनों घटनाओं का मूल चरित्र अलग-अलग है, पर उसके गर्भ में दोनों राज्यों की सरकारें ही हैं, जिन्होंने ये स्थितियां निर्मित की! मुद्दे की बात यह कि दोनों राज्यों मेंएक ही पार्टी की सरकारें हैं, जिन्होंने निश्चित रूप से इन पुलिस प्रमुखों पर इतना ज्यादा दबाव डाला होगा कि वे मजबूर हो गए। कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक पी रवीन्द्रनाथ ने तो अपने इस्तीफे में सरकार पर भ्रष्टाचार के साफ़ आरोप लगाए। जबकि, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जिस तरफ के आरोप लगाकर हटाया गया, वो किसी के गले नहीं उतर रहा।
हर सरकार के मुखिया की कोशिश होती है कि ब्यूरोक्रेट की नकेल उसके हाथ में रहे! ज्यादातर अधिकारी सरकार के दबाव में आ जाते हैं, तो चंद ऐसे भी होते हैं, जो अपना जमीर बेचने को तैयार नहीं होते! ऐसी कई घटनाएं हैं, जब किसी अधिकारी ने सरकार के अवांछित कामकाज से इंकार किया और सरकार भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकी! लेकिन, ऐसे अधिकारियों की भी कमी नहीं है, जो सरकार की उंगलियों की कठपुतली बन जाते हैं। कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशकों के साथ जो सुलूक हुआ वो ब्यूरोक्रेसी और पॉलिटिक्स में बढ़ती कटुता और कुछ अधिकारियों का सरकार से बेजा काम के लिए सामंजस्य न बैठा पाने की घटनाएं है।
कर्नाटक में पुलिस महानिदेशक पी रवीन्द्रनाथ ने सरकार को एक लेटर लिखा था कि जाली जाति प्रमाण पत्र मामले में शामिल कुछ लोग उन पर दबाव बना रहे हैं। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। लेकिन, इस लेटर के बाद उनका तबादला पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) के पद पर कर दिया गया। इसके बाद पुलिस महानिदेशक ने इस्तीफा दे दिया। रवींद्रनाथ ने एक दिन पहले कहा था कि वे मुख्य सचिव पी रवि कुमार से मुलाकात के बाद इस्तीफा दे देंगे। कर्नाटक के इस सीनियर आईपीएस अधिकारी ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए अपना इस्तीफा दिया है। उनका कहना है कि उनका मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा था। 1989 बैच के इस अधिकारी को इस्तीफा देने और उसे वापस लेने के लिए भी जाना जाता रहा है। उन्होंने 2008, 2014 और 2020 में भी अपने पद से इस्तीफा दिया, फिर वापस ले लिया था। लेकिन, इस बार उनका रुख क्या होता है, ये देखना होगा!
इस घटना के बाद कर्नाटक में राजनीति शुरू हो गई। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने आरोप लगाया कि सरकार में भ्रष्टाचार के कारण आईपीएस अधिकारी पी रवींद्रनाथ ने इस्तीफा दिया है। फिलहाल अब इस मुद्दे पर नए सिरे से राजनीति गर्माने लगी हैं। सरकार का बचाव करते हुए कर्नाटक के मंत्री शिवराम हेब्बार ने कहा कि इस तरह के इस्तीफे हर सरकार के कार्यकाल के दौरान होते हैं। ऐसा नहीं कि सिर्फ भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान ऐसा देखने को मिल रहा है। पी रवींद्रनाथ का कहना है कि वे दबाव में ऐसा कर रहे हैं। लेकिन, कभी-कभी कुछ अलग आंतरिक मामले होते हैं। मुझे नहीं पता कि उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया। वरिष्ठ अधिकारी अपना फैसला खुद लेते हैं, उसमें सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता। कोई काम करने वाला हमेशा किसी न किसी तरह के दबाव में रहेगा। मैं एक मंत्री हूं, और मैं बहुत दबाव में हूं! लेकिन, इस्तीफा इसका समाधान नहीं है।
बताते हैं कि भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री और सांसद रेणुकाचार्य ने अपनी बेटी के लिए 'बेडा जंगम' जाति का जाली प्रमाण पत्र बनवा लिया था। जबकि, वे इस जाति का प्रमाण पत्र हासिल करने के पात्र नहीं हैं। ये मामला इतना चर्चित हुआ था कि विधानसभा में भी उठा। पुलिस को मामले जांच करना था, पर पुलिस महानिदेशक पी रवींद्रनाथ पर इतना दबाव डाला गया कि उन्होंने पद से ही इस्तीफ़ा दे दिया। अब इस मामले पर कांग्रेस राजनीति शुरू कर दी, जो उनके लिए राजनीतिक फायदे का मुद्दा है। कांग्रेस नेता सिद्धरमैया का आरोप है कि पुलिस महानिदेशक को उन लोगों की जांच करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिन्होंने जाली प्रमाण पत्र बनवाए थे। पुलिस मुखिया के मुताबिक, उन्होंने कुछ प्रभावी नेताओं की जांच की और इसलिए सरकार ने उनका तबादला कर दिया जो सही नहीं है।
दूसरा मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद से हटा दिया। उन्हें हटाए जाने का जो कारण बताए गए वो शासकीय कार्यों की अवहेलना करने, विभागीय कार्यों में रुचि न लेने और काम में लापरवाही बरतने का है। मुकुल गोयल को अब महानिदेशक नागरिक सुरक्षा के पद पर भेजा गया है। जो कारण बताकर मुकुल गोयल को हटाया गया, वो सरकारी कामकाज को समझने वाले किसी व्यक्ति को शायद ही उचित लगें। क्योंकि, राज्य के पुलिस मुखिया के पद पर जब नियुक्ति की जाती है, तो सरकार उसका पिछला रिकॉर्ड देखती है! पैनल जैसी कई शासकीय औपचारिकताओं के अलावा उस अधिकारी की कार्यकुशलता, फैसले लेने का तरीका और विपरीत परिस्थितियों में काम करने की महारथ को भी परखा जाता है! जब मुकुल गोयल को ये पद सौंपा गया था, तब भी यही सब हुआ ही होगा! उन्हें इस पद पर हुए करीब एक साल हो गया! अचानक सरकार को उनमें ऐसी क्या खामी नजर आई कि उन्हें नाकारा बताते हुए हटा दिया गया!
पिछले साल 2 जुलाई को ही मुकुल गोयल ने पुलिस महानिदेशक का पद संभाला था। वे 1987 बैच के आईपीएस अफसर हैं। इससे पहले वह केंद्र में बीएसएफ में अपर पुलिस महानिदेशक (ऑपरेशंस) के पद पर थे। उनके कार्यकाल में ही राज्य में विधानसभा चुनाव हुए और लगा नहीं कि कहीं कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी हो! निश्चित रूप से उन्हें हटाए जाने के पीछे कोई बड़ा राजनीतिक कारण या दबाव रहा होगा! क्योंकि, इस तरह के बड़े पदों पर अधिकारी राजनीतिक फायदे-नुकसान देखकर ही पदस्थ किए जाते हैं और यदि उन्हें बीच कार्यकाल में हटाया जाता है, तो उसका कारण भी राजनीतिक ही होता है! उत्तर प्रदेश में ऐसे क्या हालात बने कि पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को हटाया गया, ये राज शायद ही खुले! क्योंकि, हटने वाला अधिकारी सर्विस प्रोटोकॉल के कारण बताएगा नहीं और सरकार के जवाबदेह असल बात से कन्नी काटेंगे! लेकिन, कोई न कोई ऐसा कारण जरूर होगा जो मुकुल गोयल को हटाने की गर्भ में हैं।
ऐसा भी नहीं कि मुकुल गोयल दूध के धुले या बेहद ईमानदार अधिकारी हों! वे पहले भी कई बार विवादों में घिर चुके। उनके कार्यकाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जब उनकी कार्यप्रणाली पर उंगलिया उठी थी। 2000 में मुकुल गोयल को भाजपा के पूर्व विधायक निर्भय पाल की हत्या के मामले में सहारनपुर के एसएसपी पद से सस्पेंड कर दिया गया था। आरोप लगा था कि निर्भय पाल ने जान-माल पर खतरे का अंदेशा बताते हुए पुलिस से मदद मांगी थी। लेकिन, समय पर पुलिस नहीं पहुंची। 2005-06 में कथित पुलिस भर्ती घोटाले में 25 आईपीएस अधिकारियों के नाम सामने आए थे, उनमें एक मुकुल गोयल भी थे। यदि ये मामले सही हैं तो फिर मुकुल गोयल को पुलिस मुखिया बनाया ही क्यों गया!
अब जबकि उन्हें महानिदेशक पद से हटा दिया गया, तो इसके पीछे छोटे-छोटे कारण खोजे जा रहे हैं। कहा गया कि लखनऊ में एक पुलिस इंस्पेक्टर को हटाने को मुकुल गोयल ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। फिर भी वे उस इंस्पेक्टर हटवा नहीं पाए थे। यह मामला मुख्यमंत्री तक भी पहुंचा। मुख्यमंत्री ने नाराजगी व्यक्त करते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तक में कहा था कि जिलों में थानेदारों की तैनाती के लिए मुख्यालय स्तर से दबाव न बनाया जाए। बताते हैं कि इस घटना के बाद मुख्यमंत्री ने कई महत्वपूर्ण बैठकों में डीजीपी गोयल को नहीं बुलाया। इसके अलावा ललितपुर के एक थाने में दुष्कर्म पीड़िता के साथ थानेदार द्वारा दुष्कर्म, चंदौली में पुलिस की दबिश में कथित पिटाई से युवती की मौत, प्रयागराज में अपराध की घटनाएं और पश्चिमी यूपी में लूट की घटनाएं मुकुल गोयल को हटाए जाने की प्रमुख वजह हैं। लेकिन, क्या इस स्तर के अधिकारी क्या ऐसे छोटे मामलों में अकर्मण्यता का आरोप लगाकर हटाए जाते हैं, ये बात कुछ हजम होने वाली नहीं है!
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