Tuesday, March 14, 2023

इंदौर की रंगपंचमी 'गेर' का इतिहास और रंग परंपरा!

-  हेमंत पाल 

    होली के पांचवे दिन रंगपंचमी का त्योहार इंदौर में कुछ अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। इसमें परिवार, मोहल्ला या समाज ही नहीं, पूरा शहर, प्रशासन, पुलिस और नगर निगम भी शामिल होता है। इंदौर के लिए रंगपंचमी का मतलब है विशाल 'गेर' यानी उत्सव मनाने वालों का हुजूम! इसमें सार्वजनिक रूप से रंग-गुलाल खेला जाता है। हर साल इस 'गेर' में लाखों लोग शामिल होते हैं, इस साल भी अनुमान के मुताबिक करीब 5 लाख लोग इसमें शामिल हुए। शहर की इस ऐतिहासिक गेर में कई लोग अपने परिवार के साथ पहुंचे। 3 किलोमीटर से लंबी 'गेर' निकलने का सिलसिला सुबह से दोपहर 3 बजे के बाद तक चलता रहा। कॉलोनियों और गली-मोहल्लों में भी लोगों ने एक-दूसरे को रंग लगाया। वहीं सराफा बाजार और गोपाल मंदिर के आसपास भी लोग रंग खेलते नजर आए। 
    इंदौर में 'गेर' की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है। इस दिन होलकर राजवंश के लोग आम जनता के साथ होली खेलने के लिए महलों से बाहर निकलकर पूरे शहर का भ्रमण करते थे। होलकर राजघराने के लोग होली के पांचवे दिन रंगपंचमी पर बैलगाड़ियों में ढेरों फूल और रंग-गुलाल लेकर सड़क पर निकलते थे। रास्ते में उन्हें जो भी मिलता, उन्हें रंग लगा देते। इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था। यह परंपरा साल दर साल आगे बढ़ती रही। इस तरह की 'गेर' का उद्देश्य समाज में ऊंच-नीच की भावना मिटाकर आपस में मिलजुलकर इस पर्व को मनाना और आपस में भाईचारा बढ़ाना था। राजवंश खत्म होने के बाद भी ये परंपरा कायम रखी गई। अब शहर में यहां के नेता, समितियां और तमाम समाजसेवी और धार्मिक संस्थाएं मिलकर परंपरागत 'गेर' निकालती हैं। कोरोना के कारण 2020 और 2021 में आयोजन पर रोक लग गई थी। 2022 में ये नियमों में हुई, पर इस साल फिर फिर उसी जोश और उत्साह से पंचमी मनाई गई।   
     दो साल पहले इंदौर की इस रंगपंचमी 'गेर' को 'यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज' की लिस्ट में जगह दिलाने की कोशिश हुई थी। ये कोशिश इस साल फिर हुई है। इस कारण भी इसे लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल होने के लिए तीन शर्तें पूरी करना जरूरी है। पहली, इस तरह की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही हो! दूसरा, उसका संबंध विश्वस्तरीय हो और तीसरा यह कि विश्व प्रसिद्ध परंपरा (गेर) की शुरुआत कैसे हुई और क्या महत्व क्या है! रंगपंचमी की 'गेर' की लोकप्रियता का कारण यह है कि ये परंपरा 300 सालों से चली आ रही है। 100 साल पहले इसे सार्वजनिक और सामाजिक रूप से मनाने की शुरुआत हुई। करीब 3 से 5 लाख लोग इसमें शामिल होते हैं। इंदौर की रंगपंचमी 'गेर' विश्वभर में प्रसिद्ध उत्सवी विरासत है जिसमें सभी जाति-धर्म के लोग शामिल होते हैं और देश के कोने-कोने से पर्यटक यहां आते हैं। 
     शहर की रंगपंचमी 'गेर' से जुड़े कई किस्से सुनने में आते रहे हैं। एक किवदंती यह भी है कि शहर के पश्चिम क्षेत्र में 'गेर' 1955-56 से निकलना शुरू हुई थी। इससे पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते और एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते थे। 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केसरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग डालते थे।  यहां से रंगपंचमी पर 'गेर' खेलने का चलन शुरू हुआ। रंगू पहलवान अपनी दुकान के ओटले पर बैठे कर ये सब करते थे। इसके बाद इलाके के टोरी कार्नर वाले चौराहे पर रंग घोलकर एक दूसरे पर डालना शुरू हुआ और कहा जाता है कि वहां से इसने भव्य रूप ले लिया। 
रंग-गुलाल से सराबोर इलाका   
   दो साल के दुखद कोरोना काल के बाद इस बार पूरा शहर रंगों से सराबोर हो गया। सिर्फ राजबाड़ा की गेर में ही रंग नहीं उड़ा, पूरा शहर रंगों की मस्ती में छाया रहा। आज सुबह से ही लोगों का आकर्षण राजबाड़ा और आसपास का इलाका रहा। पूरे शहर से हजारों लोगों की भीड़ राजबाड़ा पहुंची और जमकर मस्ती की। गोराकुंड, सराफा, बड़े गणपति से लगाकर राजबाड़ा का पूरा आसमान रंग-गुलाल से भर गया। जमीन से लगाकर आसमान तक रंग-गुलाल नजर आए। गेर में बोरिंग मशीन से 100 फीट ऊपर तक गुलाल उड़ाया गया। चमकीले रंगों की बौछार की जा रही थी। पानी के टैंकरों से 100 फीट तक रंगों की बौछार से गेर में लोगों का स्वागत किया गया। गेर में ढोल, बैंड, ट्रेक्टर, ट्राली, बैनर, 2 डीजे की गाड़ियां, तीन टैंकर भी शामिल हुए।  
    आने वाले लोगों का उत्साह भी चरम पर था। जैसे-जैसे गेर आगे बढ़ रही है, लोगों का हुजूम बढ़ता जा रहा था। शहर में जगह-जगह पुलिस चेकिंग की जा रही है। खजराना मंदिर रोड पर कुछ संवेदनशील स्पॉट्स पर रैपिड एक्शन फोर्स तैनात की गई। फाग यात्रा में शामिल महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक दस्ता भी तैनात रहा। यात्रा में सबसे आगे भगवा ध्वज वाहिनी भी रहा। फाग यात्रा में अबीर, गुलाल व टेसू के फूलों का ही प्रयोग किया गया। यात्रा में भजन मंडलियां राधा कृष्ण के भजन व फाग गीत गाते हुए चलती रही। 
2 घंटे में रंगपंचमी का रंग धो दिया
      रंगपंचमी से सराबोर हुआ राजबाड़ा का 4 किलोमीटर का इलाका नगर निगम के 550 कर्मचारियों ने दो घंटे में साफ कर दिया। 2 बजे के बाद जब रंग खेलने वाले लौटे तो नगर निगम के सफाईकर्मी सड़क पर उतर आए। 4 बजे तक पूरा इलाका साफ हो गया। नगर निगम ने संदेश दिया कि लगातार 6 बार स्वच्छता में नंबर वन रहने वाले इंदौर के राजबाड़ा इलाके को रंगपंचमी के मौके पर भी कुछ घंटों में कैसे स्वच्छ किया जा सकता है। सफाई के लिए नगर निगम और मेयर पुष्यमित्र भार्गव ने पहले ही प्लान बनाया था। एक घंटे में ही राजवाड़ा की सड़क और गार्डन की बाउंड्री साफ कर दी। इसे देखकर ऐसा लगा मानो कुछ हुआ ही न हो।
      गेर के बाद निगम के करीब 550 कर्मचारियों की टीम सफाई की मशीनों के साथ मैदान में उतरी। गेर के कारण सड़कों पर फैले रंग-गुलाल, थैलियां, चप्पल-जूते, कपड़ों के टुकड़ों को साफ करने में सभी लग गए। कर्मचारियों ने अलग-अलग कोनों से मैदान संभाला और डेढ़ घंटे में सड़कें चकाचक कर दी।
इतना अमला और मशीनें लगी
    साफ-सफाई में 550 कर्मचारियों का अमला, 15 स्वीपिंग मशीन, 5 हाईप्रेशन जेट्स जुटे। 10 कचरा कलेक्शन वाहन, 10 से ज्यादा ट्रेक्टर भरकर जूते-चप्पल व अन्य कचरा भरकर ले जाया जा चुका हैं। पिछले साल से तीन से चार गुना कचरा ज्यादा है। केवल राजवाड़ा पर 8 से 10 टन कचरा हुआ है। वहीं नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर सिद्धार्थ जैन ने बताया कि राजवाड़ा और उसे जोड़ने वाले सभी रास्तों की सफाई की गई। हमने एक से डेढ़ घंटे में ही राजवाड़ा को साफ कर दिया है।
--------------------------------------------------------------------------------------------

No comments: