Saturday, March 18, 2023

बहनों को हजार रुपए देने के पीछे भी चुनावी रणनीति!

- हेमंत पाल

     सरकार ने प्रदेश में महिलाओं के लिए 'लाड़ली बहना योजना' लांच की। इसके लिए प्रदेश के बजट में भी राशि का प्रावधान किया गया। मुख्यमंत्री ने बेहद मार्मिक शब्दों में इस योजना और बहनों के प्रति अपनी भावनाओं का बखान किया। 5 मार्च को जब योजना की शुरुआत की गई, तो भाजपा ने इसे मिशन की तरह लिया और प्रदेशभर से महिलाओं को राजधानी लाया गया। मुख्यमंत्री ने घुटनों पर बैठकर 'बहनों' का स्वागत किया। लेकिन, वास्तव में यह जैसा दिखाई दे रहा है, वैसा नहीं है। देखने और सुनने में सरकार की यह योजना महिलाओं के प्रति सरकार की सहृदयता दिखाती है, पर असलियत में ये भाजपा की चुनावी रणनीति है!
      विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा समाज के हर वर्ग को प्रभावित करने की कोशिश में है और ये योजना भी उससे अलग नहीं है! मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। इनमें विधानसभा की 52 सीटें ऐसी हैं, जहां महिला वोटर पुरुषों से ज्यादा या करीब-करीब बराबरी पर है। आशय यह कि इन सीटों पर महिलाएं चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। इनमे से भी एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां महिला वोटरों की संख्या पुरुष वोटरों से ज्यादा है। ख़ास बात ये कि इनमें से अधिकांश सीटें आदिवासी बहुल इलाकों की है, जहां पिछले विधानसभा चुनाव (2018) में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ था। प्रदेश में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से 2018 में भाजपा ने सिर्फ 16 सीट जीती थीं। जबकि, 2013 में उसके खाते में 31 सीटें आई थीं। भाजपा इसी अंतर को पाटना चाहती है और इसीलिए बहनों को 'लाडली' बनाया गया।   
      आंकड़े बताते हैं कि भाजपा महिला प्रभाव वाले जिलों में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए विशेष रणनीति के तहत काम कर रही है। उसे लगता है, कि मुख्यमंत्री की 'लाडली बहना योजना' महिला वोटरों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में चुनाव की तस्वीर बदल सकती है। सत्ता के साथ भाजपा संगठन का भी मानना है, कि प्रदेश में महिलाओं को प्रभावित करने के साथ आदिवासियों को साधने में भी यह योजना असरदार साबित हो सकती है। भाजपा संगठन भी पिछले चुनाव की गलतियों को सुधारने में लगा है, जिस वजह से उसने किनारे पर आकर सत्ता खोई थी। बाद में सिंधिया के विद्रोह ने भाजपा को फिर सत्ता में ला दिया हो, पर इस बार भी पुराने हालात जीवित हैं। जानकारियों के मुताबिक संघ और पार्टी के चुनाव पूर्व सर्वे के नतीजे भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में अच्छी स्थिति नहीं बता रहे।  
     पिछले चुनाव में भाजपा सत्ता पाने के लिए जरूरी संख्या नहीं जुटा पाई थी। उसके पीछे सबसे बड़ी कमी आदिवासी सीटों पर भाजपा की हार को माना गया। इन आदिवासी सीटों में वो इलाके भी हैं, जहां महिला वोटरों की संख्या ज्यादा है। अलीराजपुर, झाबुआ, मंडला, बालाघाट और डिंडोरी ऐसे ही जिले हैं, जहां वोटरों ने भाजपा को नकार दिया था। पार्टी ने अपनी समीक्षा में इसका कारण सही उम्मीदवारों को टिकट न दिया जाना पाया था। लेकिन, यह भी निष्कर्ष निकाला कि महिला और आदिवासी वोटर उसके खाते से खिसक गए थे। यही वजह है कि अब महिला वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा 'लाड़ली बहना योजना' लाई, ताकि महिला वोटरों को साधा जा सके।   
महिलाएं साबित हुईं निर्णायक
   प्रदेश की जिन 52 सीटों पर महिला वोटर निर्णायक हैं, पिछले चुनाव में उनमें 29 सीटें कांग्रेस ने जीत ली थी। इनमें ज्यादातर सीटें आदिवासी इलाके की है। इसलिए समझा जा रहा है कि हजार रुपए महीना देने की 'लाडली बहना योजना' भाजपा को दोतरफा फ़ायदा देगी। महिला वोटर भी सधेंगी और आदिवासी सीटों पर भी भाजपा का प्रभुत्व बढ़ेगा। इसका सीधा फ़ायदा भाजपा को मिलेगा। बड़वानी, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, पेटलावद, सरदारपुर, कुक्षी, थांदला, सैलाना, मनावर, बड़वारा, शाहपुर, बिछिया, निवास, बैहर, बरघाट, डिंडोरी और जुन्नारदेव सीटों पर महिला वोटरों संख्या ज्यादा है। ये सभी आदिवासी इलाकों की सीट हैं। 2018 के विधानसभा के नतीजे बताते हैं कि यहां महिला वोटर्स ने कांग्रेस के पंजे को चुना था। चुनाव आयोग के अनुसार प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 39 लाख 87 हजार है। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 60 लाख 23 हजार बताई गई। लेकिन, कई जिले ऐसे हैं जहां महिला वोटरों का दबदबा है। 
बहुत कम अंतर वाली सीटें
   बड़े छोटे शहरी क्षेत्रों में इंदौर, छतरपुर, दमोह, छिंदवाड़ा, सागर, जबलपुर-उत्तर, नरसिंहपुर, नरसिंहगढ़, वारासिवनी, सिंगरौली, सिहोरा, मंडला, लखनादौन, चाचौड़ा और गुना ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां महिला और पुरुष वोटरों की संख्या में बहुत कम अंतर है। कुछ सीटों पर तो महिला वोटर पुरुषों की बराबरी पर है। लेकिन, इनमें भाजपा के पाले में आने वाली सीटें कम है, जिसके लिए भाजपा हर संभव कोशिश में है।
     इस योजना को चुनाव से पहले लांच करने, बजट में इसका प्रावधान करने और इसे इतना ज्यादा प्रचारित करने का कारण यही है कि भाजपा इसका पूरा लाभ लेना चाहती है। 'लाडली बहना योजना' को महिलाओं की जिंदगी बदलने के पुण्य कर्म की तरह पेश किया जा रहा है। पर, वास्तव में ये भाजपा को फिर सत्ता में लाने की रणनीति की एक कोशिश है। 
भाजपा के पास 'जयस' की काट नहीं  
    इसके बावजूद भाजपा के पास 'जयस' की काट नहीं है। इस आदिवासी संगठन ने प्रदेश की आदिवासी प्रभाव वाली सीटों के अलावा ऐसी सीटों पर भी चुनाव लड़ने का एलान किया जहां आदिवासी वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। प्रदेश की 230 में 80 सीटें ऐसी ही हैं, जो 'जयस' की नजर में हैं। यदि  आदिवासी संगठन कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ता है, तो भाजपा को सीधा नुकसान होगा! पर, यदि खुद के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ता है, तो उसे फ़ायदा कम, भाजपा को नुकसान ज्यादा हो सकता है। ऐसे में 'लाडली बहना योजना' कितनी कारगर साबित हो सकेगी, फ़िलहाल इसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता!    

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