- हेमंत पाल
कई साल पहले कोलकाता से निकलने वाली एक समाचार पत्रिका ने एक बड़ी कवर स्टोरी की थी, जिसका शीर्षक था 'सबसे सुंदर कौन?' इस स्टोरी के लिए पत्रिका ने फ़िल्मी दुनिया के कई नए-पुराने लोगों से बातचीत की गई! इसके अलावा फिल्मों के जानकारों के भी इंटरव्यू लिए। सबसे एक ही सवाल किया था कि फ़िल्मी दुनिया में अब तक की सबसे सुंदर अभिनेत्री कौन है! कई नाम सामने आए, पर ज्यादातर का का निष्कर्ष था कि हिंदी फिल्मों की अब तक की सबसे खूबसूरत हीरोइन सिर्फ मधुबाला है! सौ सालों से ज्यादा पुरानी हो चुकी फ़िल्मी दुनिया में यह अजब बात है कि आज भी मधुबाला को ही परदे की सबसे सुंदर हीरोइन माना जाता है। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने से आजतक इस अभिनेत्री की खूबसूरती को कोई टक्कर नहीं दे सका।
इस बीच परदे पर कई खूबसूरत चेहरे दिखाई दिए, पर मधुबाला जैसा कालजयी कोई नहीं रहा! नरगिस, नूतन, वहीदा रहमान से लगाकर माधुरी दीक्षित, मीनाक्षी शेषाद्री और श्रीदेवी के अलावा ऐश्वर्या राय जैसी भी सामने आई जिन्हें सुंदरता के मापदंडों पर खरा पाया गया। लेकिन, फिर भी जो नाक-नक्श और चेहरे की भाव-भंगिमाएं मधुबाला में थी, वो किसी और में नहीं देखी गई।
अभिनय में तो मधुबाला को महारत हासिल थी ही, उनकी खूबसूरती का भी कोई मुकाबला नहीं था। आज जब भी फिल्मों की खूबसूरत अभिनेत्रियों का जिक्र आता है, तो बात मधुबाला पर आकर ही ठहर जाती है। 50 के दशक की इस दिलकश हीरोइन को सौ सालों में भी कोई अभिनेत्री मात नहीं दे सकी। उनकी सादगी, उनकी मुस्कान और वो गहरी आंखें। वाकई उनके चेहरे ऐसी खूबसूरत थीं, जिसे किसी श्रृंगार की जरूरत महसूस नहीं गई। मीना कुमार की तरह मधुबाला को भी हिंदी सिनेमा की ट्रेजडी क्वीन कहा जाता रहा। उनकी असल जिंदगी भी इससे अलग नहीं रही। बहुत कम उम्र में दिल की बीमारी के चलते मधुबाला दुनिया से विदा हो गई।
मधुबाला सिर्फ खूबसूरती के लिए ही नहीं, अपनी स्टाइल के लिए काफी मशहूर रही। वैसे तो वे 50 के दशक की अभिनेत्री थी। लेकिन, उनका फैशन सेंस आज भी याद किया जाता है। इस अभिनेत्री ने 'मुग़ल-ए-आज़म' में माथे पर बड़ा सा मोतियों का लटकन वाला मांग टीका और बड़ी सी नथ को पहना था ,वो आज के फैशन से बाहर नहीं हुआ। इस फिल्म में दर्शक मधुबाला के अभिनय से ज्यादा खूबसूरती पर फिदा हुए थे। फिल्म में उन्होंने अनारकली का किरदार निभाया था। आज भी कोई सोच नहीं सकता कि मधुबाला के सिवाय कोई और अभिनेत्री इस किरदार को निभा सकती है।
मधुबाला के बाद यदि किसी को परदे पर सबसे खूबसूरत माना जाता है, तो वे थी नूतन। मधुबाला यदि दिलकश खूबसूरती की मालकिन थी, तो नूतन के पास नैसर्गिक सुंदरता थी। 'बंदिनी' और 'सरस्वतीचंद्र; में नूतन की नैसर्गिक सुंदरता को बखूबी पहचाना गया था। 'मिस इंडिया' का खिताब जीतने वाली वे पहली अभिनेत्री थी। 1955 में आई फिल्म 'सीमा' में अपने अभिनय के लिए नूतन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवॉर्ड भी मिला था। 1963 की 'बंदिनी' में अपने जीवंत अभिनय के लिए नूतन को फिर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। नूतन को 1974 में सरकार ने देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान पद्मश्री से नवाजा था।
मशहूर अभिनेत्री शोभना समर्थ की बेटी नूतन को अभिनय तो विरासत में मिला था। मां अभिनेत्री थीं, फिर भी इन्हें अपनी जगह बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। क्योंकि, उस दौर में गठीले बदन की गोरी हीरोइनों को पसंद किया जाता था। दुबली और सांवली लड़कियों को कोई काम नहीं देता था। नूतन को भी उनके लुक के कारण कई बार ताने मिले। बचपन में नूतन खुद ही अपने आप को दुनिया की सबसे बदसूरत लड़की समझने लगी थी। नूतन को देखकर मां शोभना को लगता था कि वो फिल्मों के लायक नहीं है। लेकिन, एक समय ऐसा आया जब उन्हें नैसर्गिक सुंदरता ख़बसूरती की मिसाल समझा गया।
परदे की खूबसूरत अभिनेत्रियों में वनमाला को भी गिना जाता है। पर, वे ज्यादा समय तक ही फिल्मों में नहीं रहीं। वे रॉयल फैमिली की थीं। उनके पिता पिता कर्नल रायबहादुर बापूराव पवार अंग्रेज राज में शिवपुरी के कलेक्टर थे। लेकिन, वे बेहद सख्त थे। 1940 में उनकी पहली मराठी फिल्म 'पांडव' आई। इसके बाद सोहराब मोदी ने इन्हें 'सिकंदर' की हीरोइन बनाया। यह फिल्म ब्लॉकबस्टर रही और वनमाला रातों रात स्टार बन गईं। पृथ्वीराज और सोहराब जैसे बड़े कलाकार होने के बावजूद वनमाला की खूबसूरती से दर्शकों का ध्यान खींचा था। लेकिन, जब ये फिल्म ग्वालियर के रीगल सिनेमाघर में आई तो पिता वनमाला को देखकर गुस्से में आग बबूला हो गए। उन्होंने सिनेमाघर के स्क्रीन पर ही गोलियां दाग दी। जिससे वहां अफरा-तफरी मच गई। इसके बाद परिवार ने भी वनमाला से रिश्ते तोड़ लिए। उनकी कई अच्छी फिल्में आईं, लेकिन परिवार की नाराजी उन्हें हमेशा खलती रही। वनमाला ने पिता से सुलह करना चाहा, तो उन्होंने शर्त रख दी कि घर आना है, तो फिल्मों से दूरी बनानी पड़ेगी। वनमाला मुंबई से ग्वालियर आ गई। पिता की जिद पर वापस तो आईं, पर दुनिया का मोह छोड़ दिया। वनमाला कुछ दिन बाद वृंदावन के एक आश्रम चली गई और जीवनभर साध्वी बनी रही।
परदे की सुंदर अभिनेत्रियों में वहीदा रहमान को भी सिनेमा की नेचुरल ब्यूटी मामाना गया। उनकी पहली फिल्म 'प्यासा' से ही दर्शकों में उनमें अभिनय की संभावनाएं देखी थी। अपने दौर में वहीदा में एक अजब सा आकर्षण रहा। आज भी उनका अंदाज, उनकी सादगी मन मोहिनी है। उनकी गिनती 70 के दशक की खूबसूरत अभिनेत्रियों में होती है। उन्होंने अपने अभिनय करियर में कई हिट फिल्में दी। गाइड, प्यासा, कागज के फूल और 'नीलकमल' उनकी सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली हिट फिल्में हैं। वहीदा रहमान का फिल्मी करियर तो सुर्खियों में रहा, उनकी निजी जिंदगी भी काफी चर्चा में रही। उनका नाम एक्टर डायरेक्टर गुरु दत्त के साथ जुड़ा, लेकिन बात शादी तक नहीं पहुंच सकी। इसके बाद एक्ट्रेस की जिंदगी में कमलजीत आए, जिनसे बाद में उनकी शादी हुई। वहीदा रहमान ने शादी के बाद भी एक्टिंग जारी रखी। लेकिन, उनकी सक्रियता कम होती गई। 1991 में अनिल कपूर और श्रीदेवी की फिल्म 'लम्हे' के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए अभिनय से ब्रेक लिया। इसके बाद वे ओम जय जगदीश, रंग दे बसंती और 'दिल्ली 6' जैसी फिल्मों में मां की भूमिका में नजर आईं। तीन फिल्मफेयर और एक नेशनल अवॉर्ड जीत चुकीं वहीदा रहमान को 1972 में पद्मश्री और 2011 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
सिनेमा की 60 से 80 के दशक तक कई बड़ी फिल्मों में नजर आई नरगिस को भी खूबसूरत अभिनेत्रियों में गिना जाता है। सादगी और सुंदरता के कारण उन्हें 'लेडी इन व्हाइट' कहा जाता था। उनकी खूबसूरती को निर्धारित पैमाने से नहीं परखा जा सकता। लेकिन, उनके चेहरे में एक अजब सी कशिश थी, जो उस दौर की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में उनकी बेमिसाल सुंदरता को दर्शाती थी। वे हिंदी फिल्मों की पहली अभिनेत्री थी जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। इसके अलावा वे राज्यसभा में मनोनीत होने वाली भी पहली फ़िल्मी हस्ती थीं। वे अपने जमाने में गजब की खूबसूरत और चार्मिंग पर्सनालिटी थी। वे करीब तीन दशक तक परदे पर सक्रिय रहीं। उन्हें दमदार एक्टिंग के साथ खूबसूरती के लिए भी पहचाना जाता था। नरगिस ने कई हिट फिल्में दी, जिनमें मदर इंडिया, श्री 420, चोरी-चोरी, अंदाज, आवारा, बरसात और आग समेत कई फिल्में शामिल हैं। उन्हें पहली बार बतौर हीरोइन 1942 में आई फिल्म 'तमन्ना' में देखा गया था। नरगिस अपने अभिनय के साथ खूबसूरती और लव लाइफ को लेकर भी चर्चा में रही। इस अभिनेत्री ने शादी तो सुनील दत्त से की। पर, सच्चाई यह थी कि राज कपूर और नरगिस की प्रेम कथाएं किसी से छुपी नहीं रही।
फिल्मों में सुंदरता के किस्से यहीं खत्म नहीं होते। हर दशक में कोई न कोई सुंदर हीरोइन परदे पर आई जिसके नाम के चर्चे हुए। 80 के दशक में स्मिता पाटिल को नूतन का प्रतिरूप माना गया था। पर, वे बहुत कम उम्र में दुनिया से चली गई। दुबली-पतली और सांवली स्मिता पाटिल ने 80 से ज्यादा हिंदी, बंगाली, मराठी, गुजराती, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में काम किया। इससे पहले दिव्या भारती की सुंदरता को भी पसंद किया गया। मधुबाला के बाद जिस एक्ट्रेस की खूबसूरती ने दर्शकों और सिनेमा की दुनिया को दीवाना बनाया वो दिव्या भारती ही थीं। पर, अफसोस कि वे एक हादसे का शिकार होकर चल बसी। मौसमी चटर्जी ने भी हिंदी के साथ ही बंगाली फिल्मों में भी खूब काम किया। 70 के दशक में वे सबसे महंगी अभिनेत्रियों में थीं।
परदे पर मौसमी की मुस्कान की दीवानगी दर्शकों के सिर चढ़कर बोलती थी। इसके बाद मीनाक्षी शेषाद्री ने हिंदी, तमिल और तेलुगू फिल्मों में अपनी धाक जमाई। हीरो से शुरू हुआ उनका करियर मेरी जंग, शहंशाह, घायल और 'दामिनी' जैसी सुपरहिट फिल्मों से आगे बढ़ा। मीनाक्षी शेषाद्री ने 17 साल में 'ईव्स वीकली मिस इंडिया' का ताज जीता था। 1981 में टोक्यो में मिस इंटरनेशनल प्रतियोगिता में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया था। फिर सोनाली बेंद्रे की खूबसूरती और सादगी को भी सराहा गया। अभी सुंदरता की परख का ये सिलसिला समाप्त नहीं हुआ है। जब तक फ़िल्में हैं हीरोइनों में खूबसूरती का मुकाबला चलता रहेगा, पर अभी तो सबसे सुंदर चेहरा मधुबाला को ही माना गया है।
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