Friday, June 30, 2023

सिनेमा भी रेल हादसों से मुक्त नहीं!

- हेमंत पाल

     ड़ीसा के बालासोर में पिछले दिनों हुए रेल हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हादसे ने चंद पलों के लिए जैसे जिंदगी को थाम लिया था। इसके बावजूद रेलों का सफर अनवरत जारी है। रेलें अभी भी रोज लाखों यात्रियों को गंतव्य पर पहुंचा रही थी। इसलिए कि रेल हमारे जीवन का हिस्सा बन गई! हादसों के बावजूद पहिये कभी थमते नहीं हैं। माना जाता है कि रेलों में रोज एक छोटा सा भारत सफर करता है। 16 अप्रैल 1853 को देश में जब पहली रेलगाड़ी चली थी, उसके बाद अब तक के 70 साल का सफर तय करते हुए भारतीय रेल सेवा दुनिया का चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा बन गई। रेल केवल पटरी पर ही नहीं दौड़ती, हिंदी फिल्मों मे भी यही रेल फिल्म की कहानी और अलग-अलग सिचुएशन का महत्वपूर्ण अंग बनकर दिखाई देती है। लेकिन, हिंदी फिल्मों में हादसों पर चंद फ़िल्में ही बनी। याद किया जाए तो 1980 में रवि चौपड़ा के निर्देशन में बनी 'द बर्निंग ट्रेन' अकेली फिल्म थी, जिसकी कहानी ट्रेन हादसे पर केंद्रित थी। उसके बाद आज 4 दशक बाद भी किसी निर्माता ने ट्रेन हादसे पर कभी फिल्म नहीं बनाई। जबकि, हॉलीवुड में इस विषय पर कई फ़िल्में बन चुकी हैं। अलबत्ता हिंदी फिल्मों में ट्रेन एक ऐसा रोचक माध्यम रहा, जिसे अकसर फिल्माया जाता रहा।       
      'द बर्निंग ट्रेन' में विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जितेंद्र, परवीन बाबी और डैनी जैसे कई बड़े कलाकारों ने काम किया था। फिल्म की कहानी पहली बार पटरी पर उतरने वाली सुपरफास्ट ट्रेन पर आधारित थी, जिसके पहले सफर में ही उसमें एक साजिश के तहत आग लग जाती है। इस हादसे के दौरान उसके ब्रेक भी फेल हो जाते हैं। ट्रेन में बैठे सैकड़ों यात्रियों की जान बचाने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, तब ट्रेन को सुरक्षित रोका जाता है। लेकिन, ये फिल्म बहुत ज्यादा पसंद नहीं की गई। उधर, हॉलीवुड में 1979 में आई 'डिज़ास्टर ऑन द कोस्टलर' एक अमेरिकन टीवी एक्शन ड्रामा फिल्म थी। इस फिल्म की कहानी दो पैसेंजर ट्रेन के बीच टक्कर पर आधारित थी। 
      2010 में आई फिल्म 'अनस्टॉपेबल' एक सच्चे हादसे पर बनी एक्सीडेंट फिल्म थी। इस एक्शन, थ्रिलर फिल्म का डायरेक्शन और प्रोडक्शन टोनी स्कॉट और डेंजल वाशिंगटन ने किया था। फिल्म में एक पटरी पर दौड़ती मालगाड़ी बताई गई थी। जिसे दो लोग रोकने की कोशिश करते हैं और अंत में उसे रोक लेते हैं। 1985 में आई 'रनअवे ट्रेन' अमेरिकन एक्शन थ्रिलर फिल्म थी, जो उन तीन लोगों की कहानी थी, जो एक ट्रेन में फंस जाते हैं। यह ट्रेन अलास्का की बर्फ में लगातार दौड़ती रहती है। इसे ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेट किया गया था। 2019 की फिल्म 'डीरेल्ड' थ्रिलर के साथ हॉरर फिल्म थी। फिल्म में एक्सीडेंट के बाद रेल नदी में गिर जाती है और यात्री डूबती ट्रेन में फंस जाते हैं। लेकिन, कहानी का असली ट्विस्ट ही पानी की गहराइयों में छिपा था। 
      सिनेमा के परदे पर रेल कई बार कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। चाहे आदित्य चोपड़ा की 'मोहब्बतें' का शुरूआती दृश्य हो या श्याम बेनेगल की कला फिल्म 'मम्मोह' में फरीदा जलाल की भारत से पाकिस्तान की मर्मस्पर्शी विदाई का रेल हर जगह मौजूद रही! दर्शकों के दिलों को धड़काने वाली फिल्मों में रेल और उसका प्लेटफार्म प्रेम, द्वेष, मिलन, रहस्य, रोमांच, अपराध, मिलन-जुदाई के साथ आंसू और मुस्कान जैसी भावनाओं को शिद्दत के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरता रहा है। भारत के विभाजन की त्रासदी को एमएस सथ्यू की फिल्म 'गर्म हवा' में बखूबी से दर्शाया गया था। अमिताभ बच्चन की फिल्म 'नास्तिक' में भी विभाजन की त्रासदी को दर्शाने के लिए ट्रेन को बतौर प्रतीक लिया गया, तो सनी देओल की फिल्म 'गदर : एक प्रेम कथा' में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण रेलवे प्लेटफार्म और चलती ट्रेन में हिंसा के दृश्यों ने दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी थी। जबकि, सलमान खान की 'बजरंगी भाईजान में इसी रेल ने दो पड़ौसी मुल्कों के संबंधों को दिखाया था। 
       1934 में आई 'तूफान मेल' में पहली बार चलती ट्रेन में स्टंट दृश्य फिल्माए थे। उस सदी के पांचवें दशक में जब नाडिया हंटर लेकर जब ट्रेन की छत पर खलनायकों को पीटती थी, तो सिनेमा हाल तालियों और सीटियो से गूंज जाता था। चलती ट्रेन में स्टंट और मारधाड़ के लिए दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' का रेल डकैती सीन जो इंदौर के पास पातालपानी में फिल्माया गया था, बहुत ही रोमांचक था। सलीम जावेद ने इस दृश्य को उलट-पुलटकर 'शोले' में शामिल किया था। बोनी कपूर के फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' में विदेशी स्टंट डायरेक्टर की मदद से चोरी का दृश्य फिल्माया गया था। लेकिन वह रोमांचक दृश्य भी फिल्म को सफल नहीं बना पाया। इसी तरह जंजीर, दीवार, दो भाई, सन आफ सरदार, विधाता और द ट्रेन में रेल का रोमांचक उपयोग किया गया था।
      रेल को शीर्षक बनाकर जो फिल्में बनी उनमें शम्मी कपूर और सुनील दत्त की पहली फिल्म रेल का डिब्बा और रेलवे प्लेटफार्म के अलावा द ट्रैन, ट्रैन टू पाकिस्तान, द बर्निंग ट्रेन, तूफान मेल, चेन्नई एक्सप्रेस, स्टेशन मास्टर और एक चालीस की लास्ट लोकल चर्चित हैं। ज्यादातर फिल्मों में रेल का डिब्बा नायक-नायिका की नोक-झोंक या सौम्य मिलन और फिर प्रेम के पनपने का कारण बनता रहा है। राजेंद्र कुमार की मेरे महबूब, जितेंद्र की मेरे हुजूर, राजेश खन्ना की 'आराधना' से लेकर शाहरुख खान की 'चमत्कार' और 'चेन्नई एक्सप्रेस' तक यह परंपरा लगभग सभी नायकों ने निभाई। 'पाकीजा' में ट्रैन का वह दृश्य यादगार बन पड़ा था जिसमें राजकुमार सोती हुई मीना कुमारी के खूबसूरत पैरों पर फिदा होकर कागज पर संदेश छोड़ जाते है 'आपके पांव देखे ... बहुत खूबसूरत हैं। इन्हें जमीन पर न रखिएगा, मैले हो जाएंगे!' इसी फिल्म के लोकप्रिय गीत चलते-चलते कोई मिल गया था के अंत में रेल की सीटी का बेहतरीन प्रयोग किया गया था। 
      जुदाई की त्रासदी से दर्शकों का दिल चीर देने वाले रेल दृश्यों में राज कपूर की 'तीसरी कसम' और कमल हसन की 'सदमा' भुलाए नहीं भूलते। इसी तरह 'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के अंतिम दृश्य में रेल से जा रहे शाहरुख से मिलने के लिए काजोल का हाथ छोड़ते हुए अमरीश पुरी का कहना 'जा सिमरन जी ले अपनी जिंदगी' भी फिल्मों का यादगार संवाद बन गया। कुछ फिल्में जिनकी कहानी को आगे बढ़ाने में रेल का योगदान अविस्मरणीय कहा जाएगा। हिंदी सिनेमा में मिलने और बिछड़ने के सिलसिले को आगे बढ़ाने में रेल की भूमिका नकारी नहीं जा सकती है। 'दो उस्ताद' में राज कपूर और शेख मुख्तार रेल के कारण एक-दूसरे बिछुड़ जाते हैं, तो 'हेरा-फेरी' में सलीम-जावेद ने इसी की नकल करके अमिताभ और विनोद खन्ना को मालगाडी के माध्यम से जुदा किया था। जहां तक रेल के यादगार दृश्यों का सवाल है तो 'किक' में सलमान खान का सामने से आती हुई ट्रेन को साइकिल से लांघने और 'गुलाम' में रुमाल हाथ में लेकर आमिर खान का रेल के सामने से गुजरने का दृश्य बरबस सामने आ जाता है।
      वैसे तो लगभग सभी कलाकारों ने रेल के डिब्बे में सफर करते मारधाड़, प्यार मोहब्बत या गाने की परम्परा को आगे बढ़ाया है। लेकिन, कुछ कलाकार ऐसे हैं जिन्हें रेल से ज्यादा ही प्यार था। देव आनंद भी ऐसे ही कलाकार थे। उन्होंने 'जब प्यार किसी से होता है' में 'जिया हो जिया ओ जिया कुछ बोल दो, सोलहवां साल में 'है अपना दिल तो आवारा' और काला बाजार में 'ऊपर वाला जानकर अनजान है' गाकर दर्शकों को गुदगुदाया था। जितेन्द्र ने 'मेरे हुजूर' में रूख से जरा नकाब हटाओ, राजेश खन्ना ने 'आराधना' में मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, 'आपकी कसम' में जिंदगी के सफर में और 'अजनबी' में हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले गाया है। 'अजनबी' में तो राजेश खन्ना स्टेशन मास्टर भी बने थे। शम्मी कपूर ने 'प्रोफेसर' में मैं चली मैं चली, फिल्म 'ब्वाय फ्रेंड' में  मुझको अपना बना लो और 'विधाता' में दिलीप कुमार के साथ रेल ड्राइवर बनकर हाथों की चंद लकीरों को पटरी पर दौड़ाया था।
      इस तरह के रेल वाले गीतों में 1941 की फिल्म 'डॉक्टर' का गीत आई आज बहार, 'दिल से' का मलाइका और शाहरुख का चल छैयां छैंया, फिल्म 'जागृति' का आओ बच्चां तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, फिल्म 'दोस्त' का गाड़ी बुला रही है, 'रफूचक्कर' का बाम्बे से बड़ौदा तक, 'शोले' का टेशन से गाड़ी जब छूट जाती है तो, 'हमराज' का नीले गगन के तले, 'जमाने को दिखाना है' का अरे होगा तुमसे प्यारा कौन, 'खूबसूरत' का इंजन की सीटी में म्हारो दिल डोले तो बेहद लोकप्रिय हुए! लेकिन। अशोक कुमार का 'आशीर्वाद' में गाया गीत रेल गाड़ी भारत का पहला रैप गीत माना जाता है। हिंदी फिल्मों में रेल की महत्ता को स्थापित करने वाली फिल्मों में छलिया, वीर जारा, बंटी और बबली, जब वी मेट, ये जवानी है दीवानी, इश्क़जादे, किक, गुंडे, टायलेट एक प्रेमकथा, कुछ कुछ होता है, जानी गद्दार, पति पत्नी और वो और चेन्नई एक्सप्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब इसी परम्परा को आगे बढाने के लिए रोहित शेट्टी 'पंजाब एक्सप्रेस' के माघ्यम से एक्शन, कामेडी और रोमांस का तड़का लेकर आने वाले हैं। फिल्मों से रेल का रिश्ता अटूट है और यह बना भी रहना चाहिए। पर, न तो कभी फिल्मों में रेल पटरी से उतरे और न रियल में। क्योंकि, ये दर्द बेहद दुखदायी होता है। 
---------------------------------------------------------------------------------------------

No comments: