Wednesday, September 20, 2023

मध्यप्रदेश समेत 5 राज्यों के चुनाव होंगे या टलेंगे?

- हेमंत पाल 

   ध्य प्रदेश समेत देश के पांच राज्यों में अगले 3 महीने बाद चुनाव होने की रूपरेखा बना रही है। राजनीतिक पार्टियां भी उसी के मुताबिक अपनी रणनीतियां बनाने में लगे हैं। सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, इस बात में किसी को कोई शंका-कुशंका भी नहीं है। लेकिन, लाख टके का सवाल है कि यदि यह चुनाव आगे बढ़ गए तो क्या होगा! अभी किसी को इस बात का कयास तो नहीं है, पर यदि ऐसा हुआ तो? इसी 'तो' ने ही सवाल खड़े किए हैं।  क्या यह चुनाव समय पर होंगे, यह सवाल उठना इसलिए लाजिमी है कि केंद्र सरकार जिस तरह 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की बात को आगे बढ़ा रही है, उसे देखकर इस बात की संभावना नहीं है कि चुनाव समय पर होंगे। संभावना तो इस बात की भी व्यक्त की जा रही कि पांचों राज्यों के चुनाव अगले 6 महीने के लिए टाल दिया जाए। निश्चित रूप से इस अवधि में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा। 
    दरअसल, केंद्र की बीजेपी सरकार की मंशा भी यही है, कि जब राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगी और सामने सरकार नहीं होगी, तो जो संभावित एंटी इनकंबेंसी का माहौल बन रहा है वह भी ठंड पड़ जाएगा। कम से कम मध्य प्रदेश के सारे सर्वे के नतीजे अभी तक यही बता रहे हैं कि भाजपा के लिए जीत आसान नहीं है। यदि 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की स्थितियां बनती है, तो यह चुनाव अगले साल तक टल जाएंगे। ऐसी स्थिति में लोकसभा भंग करके पांच राज्यों के साथ चुनाव कराए जा सकते हैं।

     निश्चित रूप से इस सोच के पीछे बहुत बड़ा राजनीतिक फायदा साफ नजर आ रहा है। क्योंकि, जब मतदाता वोट डालने जाता है, तो वह दो मानसिकता से नहीं जाता। वह यह नहीं देखेगा कि मध्य प्रदेश की सरकार से हमारी नाराजी है, लेकिन केंद्र में हम मोदी की सरकार देखना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में वह केंद्र के समर्थन में मध्य प्रदेश में भी भाजपा को वोट दे सकता है। यह संभावना इसलिए प्रबल होती दिखाई दे रही है कि सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया, पर जिसका कोई एजेंडा सामने नहीं आया। 
     इसलिए यह कयास लगाए जा रहे हैं, कि सरकार चुनाव को लेकर संसद के इस विशेष सत्र में कोई बड़ी घोषणा कर सकती है। जरूरी हुआ तो इस आशय का प्रस्ताव रखकर उसे पारित भी करवाया जा सकता है। यदि इस संदर्भ में कोई संविधान संशोधन की जरुरत है, तो उसकी रूपरेखा भी बनाई जा सकती है। यदि संवैधानिक प्रावधान के तहत 'वन नेशन-वन इलेक्शन' की भूमिका बन गई, तो विपक्ष के सुप्रीम कोर्ट जाने की संभावनाएं भी क्षीण हो जाएगी। यह सिर्फ मध्य प्रदेश के संदर्भ में नहीं है, बाकी के चार राज्यों में भी यही स्थिति बन सकती है। सरकार ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के सुझाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित कर दी। यही वो इशारा है, जो बताता है कि केंद्र सरकार इसका मूड बना चुका है, बस उसके लिए ढांचा तैयार किया जा रहा है।  
     इस संबंध में विधि आयोग ने भी कहा है कि संविधान का मौजूदा ढांचा एक साथ चुनाव कराने के अनुकूल नहीं है। यदि 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का अंतिम रूप से फैसला होता है, तो  इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के संविधान में विभिन्न संशोधनों और लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में संशोधन की जरुरत होगी। लेकिन, विधि आयोग के मुताबिक, संवैधानिक संशोधनों की पुष्टि के लिए राज्य विधान सभाओं में भी 50 फीसदी वोटों की जरुरत होगी। विधि आयोग का सुझाव है कि संविधान में इस तरह से संशोधन करना होगा कि कोई भी ऐसी नई लोकसभा या विधानसभा जो बीच में बनी हो, वो सिर्फ बचे हुए शेष कार्यकाल के लिए गठित की जाएगी। 
      भारत में एक साथ चुनावों को लेकर और भी कई चुनौतियां हैं। विधानसभा ये चुनाव राज्य का विषय हैं, इसलिए इन्हें किसी भी स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता। फिलहाल इन चुनावों को राज्य का चुनाव आयोग नियंत्रित करता है। लेकिन, यदि लोकसभा के साथ विधानसभा के भी चुनाव होते हैं, तो इसके लिए एक और संवैधानिक संशोधन की जरुरत होगी। देश के लिए लोकसभा और राज्यों के लिए विधानसभा के एक साथ चुनाव को संभव करने के लिए, अनुच्छेद 83 (जो संसद के सदन की अवधि से संबंधित है), अनुच्छेद 85 (जो लोकसभा के विघटन से संबंधित है) और अनुच्छेद 172 (जो राज्य में विधानसभा की अवधि से संबंधित है) जैसे विभिन्न अनुच्छेदों में संवैधानिक बदलाव की जरुरत होगी। ये सब इतना आसान नहीं है कि चुटकी बजाते ही संभव हो! लेकिन, यदि केंद्र सरकार ने तय कर लिया तो मुश्किल भी नहीं!
     21वें विधि आयोग ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में भी कहा कि देश में जिस तरह का वातावरण है, उसे देखते हुए एक साथ चुनाव की जरुरत है। विधि आयोग के मुताबिक, देश को लगातार इलेक्शन मोड में रहने से रोकने के लिए यही अच्छा उपाय है। सैद्धांतिक रूप में यह एक अच्छा सुधार भी है। इसलिए नीति आयोग ने संवैधानिक विशेषज्ञों, चुनाव विशेषज्ञों, प्रबोध वर्ग, सरकारी अधिकारियों के साथ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक केंद्रीय समूह के गठन का सुझाव दिया है। इस समूह के लिए उचित कार्यान्वयन विवरण तैयार करने की भी आवश्यकता होगी, जिसमें संवैधानिक और वैधानिक संशोधनों का मसौदा तैयार करना शामिल होगा। ऐसी सारी स्थितियों को देखकर ये आशंका गलत नहीं है कि पांच राज्यों के टाले जा सकते हैं। पर, यह कब और कैसे होगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
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