Sunday, September 22, 2024

अक्षय कुमार के बुरे दिन, पर इतने बुरे कैसे!

- हेमंत पाल

   जब किसी कलाकार की फ़िल्में लगातार फ्लॉप होती हैं, तो उसका आत्मविश्वास डोलना स्वाभाविक है। अक्षय कुमार के साथ इन दिनों यही हो रहा है। पिछले दो-तीन साल से उनकी फ़िल्में नहीं चल रही। इनमें कई ऐसी फ़िल्में भी हैं, जो साउथ का रीमेक हैं और वहां हिट हुई, पर हिंदी में नहीं चली। अक्षय कुमार के करियर के शुरुआती दौर में उनकी एक के बाद एक 16 फिल्में फ्लॉप हुई थीं। अब वही स्थिति फिर आ गई। लेकिन, अक्षय के पास फिल्मों  नहीं। आज भी उनके पास कई फ़िल्में हैं।  
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    हर व्यक्ति के जीवन में अच्छा वक़्त भी आता है और बुरा भी। अपनी मेहनत से लोग बुरे वक़्त से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन, खिलाड़ियों और कलाकारों के जीवन में आने वाला बुरा वक़्त उन्हें अंदर तक तोड़ देता है। यदि फिल्म कलाकारों का जिक्र किया जाए, तो उनकी फिल्मों का फ्लॉप होना बेहद दुखदायी होता है। ऐसा भी नहीं कि कलाकारों के जीवन में कभी आएगा ही नहीं! फिर, वे कितने भी लोकप्रिय क्यों न हों, दर्शक उनकी हर फिल्म पसंद नहीं करते। दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, मीना कुमारी और माधुरी दीक्षित जैसे कलाकार भी इस दौर से गुजरे हैं। आज के दौर के सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख़ खान की भी कई फ़िल्में फ्लॉप हुई। यही इन दिनों अक्षय कुमार के साथ हो रहा है। जबकि, एक समय था जब अक्षय कुमार का जलवा था और उनकी हर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाती थी। उनकी एक्शन देखकर ही उन्हें 'खिलाड़ी कुमार' नाम दिया गया। लेकिन, अब वो वक़्त नहीं रहा।  
    अपने डांस और एक्शन से दर्शकों के दिलों पर राज वाले इस कलाकार ने अपने करियर में कई हिट फ़िल्में दी। लेकिन, अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उनकी फ़िल्में दर्शकों की पसंद से बाहर हो गई। याद किया जाए तो कोरोना काल के बाद उनकी किसी फिल्म को अच्छी सफलता नहीं मिली। बड़े बजट की कई फ़िल्में बुरी तरह फ्लॉप हुई। इस दौरान सिर्फ 'ओएमजी-2' और 'स्त्री-2' ही चली, पर इन दोनों फिल्मों केंद्रीय भूमिका में अक्षय नहीं हैं। दर्शकों को वो वक्त भी याद है जब अक्षय कुमार का बॉक्स ऑफिस पर दबदबा बना रहता था। मगर अब शायद इस एक्टर को नजर लग गई। उनकी अच्छी फ़िल्में भी दर्शकों को प्रभावित नहीं कर रही। 
    अक्षय कुमार के लिए प्रोफेशनली सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही हैं। 'सरफिरा' को तो बहुत ख़राब रिस्पॉन्स मिला। इसके पहले बड़े मियां छोटे मियां, सम्राट पृथ्वीराज, मिशन रानीगंज, सेल्फी, राम-सेतु सभी फिल्में फ्लॉप रहीं। 2022 के बाद से उन्होंने सिर्फ एक हिट फिल्म 'ओएमजी-2' दी। लेकिन, वो दरअसल उनकी फिल्म नहीं थी। अक्षय की भूमिका को समझने वालों का कहना है कि वे कॉमेडी फिल्मों के जरिए वापस लौट सकते हैं। अक्षय को अपना करियर बचाने के लिए कॉमेडी फिल्मों की जरूरत है। अगले साल उनके पास वेलकम टू जंगल, हाउसफुल-5 और 'हेरा-फेरी-3' जैसे प्रोजेक्ट्स हैं। ये सीक्वल फ़िल्में हैं और इनकी पिछली फिल्मों का वे अहम हिस्सा रहे हैं। कॉमेडी में तो अक्षय कुमार माहिर हैं ही, ये फ़िल्में कमर्शियल और इंटरटेनर भी हैं। 
    आश्चर्य इस बात का कि अक्षय की कई ऐसी फिल्में फ्लॉप हुई, जिनका कंटेंट अच्छा था। उनकी मिशन रानीगंज, सरफिरा अच्छी फिल्म है, पर नहीं चल सकी। यह भी संभव है कि दर्शक उनकी फिल्मों के एक जैसे कंटेंट से थक गए हों। हाल ही में आई उनकी फिल्म 'सरफिरा' तो सूर्या की तमिल फिल्म 'सोरारई पोटरु' का हिंदी रीमेक है, जिसके लिए एक्टर को तो नेशनल अवॉर्ड भी मिला। मगर अक्षय कुमार की 100 करोड़ के बजट में बनी यह फिल्म अपनी लागत भी नहीं निकाल सकी। सीधा सा मतलब है कि दर्शकों ने अक्षय को रिएक्ट कर दिया। अक्षय कुमार अपनी सक्सेस का क्रेडिट अपने अनुशासन और काम के प्रति लगन को देते हैं। वह एक टाइम टेबल फॉलो करते हैं। और मानसिक-शारीरिक रूप से फिट रहने पर जोर देते हैं।
   अक्षय कुमार की लगातार कई फिल्में फ्लॉप हुई, जिसे लेकर कई तरह के कयास लगाए गए। लेकिन, अक्षय के साथ कई फिल्में बना चुके डायरेक्टर अनीस बज्मी का सोच कुछ अलग है। उन्होंने एक इंटरव्यू में अक्षय कुमार की तारीफ करते हुए कहा कि वे बहुत ही टैलेंटेड एक्टर हैं। जो उनके साथ हो रहा, वो हर कलाकार के साथ होता है। कभी फिल्में चलती हैं कभी नहीं। वे डांस कर सकते हैं, कॉमेडी कर सकते हैं, एक्शन में भी उनका कोई जोड़ नहीं। कहने का आशय यह कि वे कंप्लीट एक्टर हैं। लगता है कि अक्षय कई बार गलत लोगों को चुन लेते हैं, जो उनके टैलेंट का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते और न उनके टैलेंट के साथ न्याय कर पाते हैं। अनीस बज्मी ने अक्षय कुमार के साथ सिंह इज किंग, वेलकम और ‘थैंक्यू’ जैसी फ़िल्में बनाई। उन्होंने इस कलाकार के टैलेंट का पूरा इस्तेमाल किया। यही कारण है कि इन फिल्मों को दर्शकों ने पसंद किया। 
   अक्षय के साथ भी वही हो रहा, जो अमूमन हर कलाकार के साथ होता है या हुआ है। हिट और फ्लॉप का दौर सभी के साथ चलता है। अक्षय उससे अलहदा नहीं रहे। उनका करियर हमेशा ट्रैक से चढ़ता-उतरता रहा। किंतु, कई बार उनके कुछ फैसले उन्हीं के खिलाफ चले जाते हैं। ऐसे में नुकसान खुद उन्हें उठाना पड़ा। वे कई ऐसी फ़िल्में कर लेते हैं, जो उन्हें नहीं करना था। यही वजह है कि उनकी फ़िल्में फ्लॉप हो रही है। फ्लॉप के इस दौर में भी अक्षय कुमार के पास फ़िलहाल करीब 10 फिल्में हैं। इनमें सिंघम अगेन, स्काई फोर्स, वेलकम टू द जंगल, कन्नप्पा, शंकरा और 'हेरा फेरी-3' जैसी फिल्में हैं। इसके अलावा एक मराठी फिल्म भी है। अक्षय कुमार अच्छी कॉमेडी करते हैं, एक्शन में भी कम नहीं हैं, रोमांस भी करते हैं और पेट्रियोटिक भूमिकाओं में भी दिखाई देते हैं। अब बॉक्स ऑफिस पर उनका असर दमदार नहीं रहा। बड़े मियां छोटे मियां, मिशन रानीगंज, रामसेतु, सम्राट पृथ्वीराज, बच्चन पांडे और 'सरफिरा' जैसी फिल्में इतनी बुरी नहीं थी कि फ्लॉप हो, पर हो गई। फ्लॉप की लम्बी कतार के बावजूद अक्षय कुमार के पास काम की कमी नहीं। क्या कारण है कि लगातार फ्लॉप के बाद भी अक्षय के पास फिल्मों की लाइन लगी है! इसके पीछे भी कुछ खास कारण गिनाए जा सकते हैं।  
    अक्षय की कई फ़िल्में सीक्वल हैं। यानी उसी नाम से पहले फिल्म आ चुकी है और उसकी अगली कहानी पर फिर फिल्म आ रही है। यदि वे पिछली फिल्म में लीड रोल में थे, तो तय है कि अगली में भी होंगे। ऐसी स्थिति में कलाकार को बदला नहीं जा सकता। अभी अक्षय के पास जो फ़िल्में हैं उनमें 4-5 तो सीक्वल हैं। इनमें हेराफेरी-3, वेलकम टू द जंगल और सिंघम अगेन जैसी फ़िल्में है। आज के दौर में भी एक्शन फिल्मों को पसंद करने वालों की कमी नहीं है। यदि किसी से एक्शन हीरो की बात जाए तो निश्चित रूप से अक्षय का ही नाम आएगा। इसके अलावा दर्शक रितिक रोशन, टाइगर श्रॉफ और सलमान का नाम लेंगे। लोग यह भी जानते हैं कि अक्षय कई एक्शन सीन खुद करते हैं। वे बॉडी डबल का इस्तेमाल नहीं करते। वे मार्शल आर्ट में भी पारंगत हैं। ये भी कारण है कि फ्लॉप होकर भी उनके पास फिल्मों की कमी नहीं है।  
     अपनी असफलता के बारे में अक्षय कुमार का कहना है कि इस असफलता का भी सकारात्मक पहलू देखना और सीखना होगा। क्योंकि, हर असफलता आपको सफलता के मायने सिखाती है और इसके लिए आपकी भूख को और भी बढ़ाती है। सौभाग्य से मैंने अपने करियर में पहले ही इससे निपटना सीख लिया था। यह आपको दुख पहुंचाता और इफेक्ट भी करता है, लेकिन इससे फिल्म की किस्मत नहीं बदलेगी। अक्षय कुमार ने आगे कहा कि अब ये आपके कंट्रोल में नहीं है। आपके बस में तो बस यही है कि आप कड़ी मेहनत करें। खुद को और सुधारें और अगली फिल्म के लिए खुद को झोंक दें। अपना सब कुछ दे दें। मैं ऐसे ही अपनी एनर्जी को इन्वेस्ट करता हूं और अगली फिल्म के लिए आगे बढ़ता हूं। मैं अपनी ताकत सही जगह पर लगाता हूं, जहां इसके सही मायने हैं। कोविड-19 के बाद आए दर्शक अब सब फिल्में नहीं देखते। वे ज्यादा सिलेक्टिव हो गए हैं। अब मैं कंटेंट को लेकर और ज्यादा सतर्क हो गया हूं। अब ये देखना पड़ता है कि अगर ये करूंगा तो क्या दर्शक थिएटर आएंगे या नहीं। वह दर्शकों को सिर्फ एंटरटेन न करे, बल्कि दर्शकों से गहराई से भी जुड़े।
     अक्षय की एक खासियत है कि वे कभी टूटे नहीं है। इस वजह है कि उनकी फ़िल्में पहली बार फ्लॉप नहीं हो रही। पहले भी ऐसा दौर आ चुका है, जब उनकी कई फिल्में फ्लॉप हुई। उनकी सिर्फ अकेले नायक वाली फ़िल्में ही नहीं, ऐसी फ़िल्में भी नहीं चल रही जो मल्टी स्टारर हैं। अक्षय ने अपनी फ्लॉप वाली छवि को पहले भी तोड़ा और उनकी फ़िल्में हिट हुई है। अक्षय अकसर प्रयोगात्मक फ़िल्में करते रहे हैं, जो सामान्य से अलग होती है। लेकिन, फिर भी ऐसी फ़िल्में करते रहते हैं। अतरंगी रे, तीस मार खां और 'पृथ्वीराज' जैसी फिल्में ऐसी। 'ओएमजी 2' को भी प्रयोगात्मक दौर की फिल्मों में गिना सकता है। ऐसी फिल्मों को स्वीकारने की जिद भी कई बार अक्षय की नाकामयाबी का कारण बनी। 
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ये फ़िल्में 'स्त्री-2' के हिट होने की पायदान बनी

- हेमंत पाल 

     जब भी कोई फिल्म बनती है, उसके फिल्मकारों की चाह होती है कि उनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़े। कुछ फ़िल्में ये कारनामा कर भी देती हैं। लेकिन, हर फिल्मकार की चाह पूरी नहीं होती। कई बार तो अप्रत्याशित रूप कुछ ऐसी फ़िल्में जरूर प्रदर्शित होती हैं, जो सफलता का रिकॉर्ड बनाकर चौंका देती है। फिल्म इतिहास में ऐसी कई फ़िल्में हैं, जो दर्शकों की पसंद पर खरी उतरी, पर उनकी संख्या सीमित है। यह बात आज के संदर्भ में की जाए तो 'स्त्री-2' ने वास्तव में चौंकाने वाला काम किया। इस फिल्म ने बिना बड़े सितारों, बिना एक्शन और बगैर धमाकेदार कहानी के कमाई का जो रिकॉर्ड बनाया वो अद्भुत ही कहा जाएगा। जब पठान, जवान, गदर-2' और 'एनिमल' ने 500 करोड़ का आंकड़ा पार किया, तो लगा था कि कुछ सालों तक ये रिकॉर्ड शायद ही कोई फिल्म तोड़ सकेगी। लेकिन, 'स्त्री-2' ने इससे आगे छलांग लगा ली।
    तेलुगू में बनी 'बाहुबली-2' ने 2017 में 511 करोड़ रुपए  की कमाई करके सबसे बड़ी हिंदी फिल्म का गौरव बनाया था। इस रिकॉर्ड को तोड़ने में 6 साल लगे। शाहरुख खान की फिल्म 'पठान' ने ये रिकॉर्ड तोड़ा। इसके बाद उनकी अगली फिल्म 'जवान' ने भी सबसे बड़ी हिंदी फिल्म होने का रिकॉर्ड बनाया। इसके बाद दो और धमाके 'गदर 2' और 'एनिमल' ने किए और हिंदी में 500 करोड़ का आंकड़ा पार किया। मगर 'स्त्री-2' ने सबको पीछे छोड़ दिया। एक बात यह भी कि 'जवान' ने 584 करोड़ कमाने में 5 सप्ताह का समय लिया। लेकिन, 'स्त्री-2' को 586 करोड़ तक पहुंचने में सिर्फ 34 लगे। अभी तक कोई भी हिंदी फिल्म भारत में 600 करोड़ का कलेक्शन नहीं कर पाई है। मगर, 'स्त्री-2' यह कमाल कर लेगी। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बड़ी कमाई की गारंटी एक्शन-ड्रामा फिल्मों को माना जाता रहा है। 500 करोड़ कमाने वाली फिल्में पठान, जवान, गदर-2 और 'एनिमल' थी और ये सभी एक्शन फ़िल्में रहीं। लेकिन, अब एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म 'स्त्री 2' ने ऊंचाई हासिल की और 600 करोड़ पार करने के मुहाने पर है। 
     इस फिल्म ने वर्ल्ड वाइड 798.75 करोड़ रुपए का कलेक्शन कर लिया। सच ये भी है कि यह फिल्म 50 करोड़ के बजट में बनी है। फिल्म के कलाकार राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर इतने बड़े सितारे भी नहीं हैं कि कोई उनकी वजह से फिल्म देखने जाए। 'स्त्री-2' हिंदी की नंबर वन फिल्म बन गई, जिसने शाहरुख़ की 'जवान' के साथ सलमान खान की 'टाइगर' को भी मात दे दी। कहा जाता है कि दुनिया में स्त्री चाहे तो कुछ भी कर सकती है। उसके सामने कई बड़े-बड़े दिग्गज धराशाई हो जाते हैं। यह बात फिल्मों की सफलता पर भी लागू होती है। 'स्त्री-2' ने भी यही चमत्कार किया। यह हिंदी की ऑल टाइम हिट फिल्म बन गई। मध्यप्रदेश के संदर्भ में इस फिल्म का महत्व यह है कि इसके पहले पार्ट 'स्त्री' की शूटिंग भी चंदेरी में हुई थी और दूसरा पार्ट 'स्त्री-2' भी यहीं बना। 
      हिंदी फिल्मों में कमाई वाली हिट फिल्मों में आमिर खान की 'गजनी' पहली ऐसी फिल्म थी, जिसने 100 करोड़ की कमाई की। जबकि, पहली हिट फिल्म का जिक्र किया जाए, तो 1969 में आई राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की 'आराधना' पहली ऐसी फिल्म थी, जो 100 दिनों तक सिनेमाघरों में चली। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त किए थे। इससे पहले साल 1965 में आई 'वक्त' को भी हिट फिल्मों में गिना जाता है। फिल्म का बजट 1 करोड़ रुपए था, जबकि बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने 6 करोड़ का वर्ल्डवाइड कलेक्शन किया था। 1949 में आई फिल्म 'महल' ने भी कामयाबी के झंडे गाड़े थे। अशोक कुमार और मधुबाला की इस फिल्म को पहली हॉरर फिल्म कहा जाता है। 'अंदाज' को दिलीप कुमार की सुपरहिट फिल्मों में गिना जाता है। फिल्म में राज कपूर, नरगिस और दिलीप कुमार थे। लेकिन, इसके बाद राज कपूर और दिलीप कुमार ने कभी साथ काम नहीं किया। भारत भूषण और मीना कुमारी अभिनीत फिल्म 'बैजू बावरा' अपने जमाने में सुपरहिट थी। 
     हिट फिल्मों की फेहरिस्त में दिलीप कुमार की 'देवदास' भी है। इस ट्रैजिक लव स्टोरी ने रिलीज होने के साथ ही बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया था। देव आनंद को रातों रात सितारा बनाने वाली फिल्म 'सीआईडी' को भी नहीं भुलाया जा सकता। प्रेम त्रिकोण पर आधारित हिट फिल्म 'संगम' विदेशी धरती पर शूट की जाने वाली पहली हिंदी फिल्म थी। ये उस वक्त की सबसे लंबी फिल्म भी थी, क्योंकि इसकी लंबाई 230 मिनट यानी करीब चार घंटे थी। फिल्म इतिहास में 'मदर इंडिया' का नाम इज्जत के साथ लिया जाता है। एक सशक्त मां के किरदार में नरगिस ने इस किरदार को अमर कर दिया था। इस फिल्म के दौरान ही सुनील दत्त और नरगिस में प्रेम हुआ था। खास बात ये कि इस फिल्म की कोई नक़ल नहीं कर सका।
    इसी तरह गुरुदत्त की अमर फिल्म 'प्यासा' भी ट्रैजिक लव स्टोरी थी। इसे यथार्थवादी सिनेमा में मील का पत्थर कहा जाता है। इसे दुनिया की श्रेष्ठ फिल्मों का तमगा हासिल है। 'मुगले आजम' भी अपने समय काल की सबसे महंगी और सुपरहिट साबित हुई थी। दिलीप कुमार को सुपरस्टार बनाने वाली इस फिल्म को पूरा करने में 16 साल लगे थे। 'नया दौर' फिल्म में भी दिलीप कुमार ने अपने रोल से देशभर में जोश जगा दिया था। राज कपूर को सुपरहिट बनाने वाली फिल्म 'आवारा' ने देश और विदेश में भी धूम मचाई थी। राज कपूर और नरगिस की ही सुपरहिट फिल्म 'श्री 420' भी हिट और यादगार फिल्मों में है। इस फिल्म के एक गाने में ऋषि कपूर पहली बार स्क्रीन पर दिखाई दिए थे।
    मनोज कुमार को देशभक्त की तरह स्थापित करने वाली फिल्म 'उपकार' 1967 में आई थी। इस फिल्म ने छह फिल्मफेयर और तीन नेशनल अवार्ड जीते। कहते हैं कि उस वक्त के पीएम लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर मनोज कुमार ने ये फिल्म बनाई थी। इसी तरह अमिताभ बच्चन को स्थापित करने वाली फिल्म थी 'जंजीर' जिसके जरिए अमिताभ को एंग्री यंग मैन का तमगा मिला था। ऋषि कपूर के डेब्यू और उन्हें पहली ही फिल्म के जरिए सुपर स्टार बनाने फिल्म का श्रेय 'बॉबी' को दिया जाता है। इस फिल्म के दौरान ही डिंपल कपाड़िया ने राजेश खन्ना से शादी कर ली थी। इस फिल्म की सफलता ने नया रिकॉर्ड बनाया था। राजश्री को अलग तरह की फिल्मों के लिए याद किया जाता है। 'मैने प्यार किया' ऐसी ही फिल्म थी जिसने मारधाड़ की फिल्मों से ऊब चुके दर्शकों को ये प्रेम कहानी परोसी, जिसने सफलता के झंडे गाड़े थे। इस फिल्म से दर्शकों ने सलमान खान को पहचाना था। राजश्री की ही 'हम आपके हैं कौन' सौ करोड़ कमाने वाली देश की पहली फिल्म बनी थी। माधुरी दीक्षित और सलमान खान की ये फिल्म आज भी पसंद की जाती है। 
    रेखा को सुपरस्टार बनाने वाली फिल्म 'उमराव जान' ने उन्हें पहला नेशनल अवॉर्ड दिलाया। ये फिल्म रेखा ने अपनी मां के कहने पर की थी और इसके लिए कोई फीस भी नहीं ली। इसी तरह 'कटी पतंग' वो फिल्म थी जिसने राजेश खन्ना को सुपरस्टार बनाया। इस फिल्म में विधवा का रोल निभाने के लिए कई अभिनेत्रियों ने इनकार कर दिया था, तब आशा पारेख को फाइनल किया गया। उन्हें इसी उस साल फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड भी मिला। अलग तरह की फिल्मों में ऋषि कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरे की फिल्म 'प्रेम रोग' को गिना जाता है, जो अपने समय की हिट फिल्मों में एक थी। अलग जॉनर कॉमेडी ने कई सुपरहिट फ़िल्में दी। ऐसी कॉमेडी फिल्मों में 'गोलमाल' का नाम सबसे ऊपर है। अमोल पालेकर और उत्पल दत्त की जबरदस्त कॉमेडी के चलते ये फिल्म कालजयी बन गई।
    'ज्वेल थीफ' की कहानी बेहद रोमांचक थी। देव आनंद की एक्टिंग वाली इस सनसनीखेज कहानी ने सिनेमाघरों में रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। फिल्म ने देव आनंद की लोकप्रियता दोगुनी कर दी थी। देश की पहली डार्क कॉमेडी फिल्म का तमगा 'जाने भी दो यारो' को दिया जाता है। फिल्म का बजट इतना कम था कि नसीरुद्दीन शाह अपने घर से कैमरा और अपने कपड़े लेकर आते थे। फिल्म में अनुपम खेर का भी रोल था जो रिलीज से पहले पूरी तरह कट गया था। हिंदी फिल्मों की हिट फिल्मों का जिक्र हो और 'शोले' का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता। इसे सबसे बड़ी सुपरहिट फिल्म कहा जाता है, जिसने इसमें शामिल हर कलाकार को कालजयी बना दिया। फिल्म में अमिताभ-धर्मेंद्र की जोड़ी ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था और गब्बर सिंह के किरदार में अमजद खान अमर हो गए।
     देव आनंद और वहीदा रहमान के लीड रोल वाली फिल्म 'गाइड' अपनी कहानी और गानों के चलते हिट हुई थी। राजेश खन्ना की सबसे संजीदगी भरी अदाकारी के लिए याद की जाने वाली फिल्म 'आनंद' ने उस वक्त कामयाबी के रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। इसमें अमिताभ बच्चन ने डॉक्टर किरदार निभाया था। अमिताभ की ही 'अमर अकबर एंथोनी' बचपन में बिछड़े भाइयों की कहानी थी, जिसने सफलता के रिकॉर्ड तोड़े थे। डायरेक्टर मनमोहन देसाई ने अखबार में छपी एक खबर को आधार बनाकर इस फिल्म को बनाया था। अनिल कपूर की सुपरहिट फिल्मों में से एक 'तेजाब' ने माधुरी दीक्षित को बतौर एक्ट्रेस स्थापित किया था। अनिल कपूर की ही 'मिस्टर इंडिया' को सुपरहिट कहा जाता है। गायब होने वाला हीरो और एक दमदार विलेन मोगैंबो ने हिंदी सिनेमा को एक संजीवनी दी थी। तात्पर्य यह कि 'स्त्री-2' ने यदि आज बॉक्स ऑफिस पर कमाई का नया रिकॉर्ड बनाया है, तो उसकी सीढ़ियां ये फ़िल्में बनी।  
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Tuesday, September 3, 2024

अब फ़िल्मी भूत डराते नहीं, हंसाने ज्यादा लगे

     हमारे जीवन में जन्म, मृत्यु, भगवान और पुनर्जन्म को लेकर आस्थाएं काफी गहरी है। इसी के साथ भूत, प्रेत और आत्माओं को लेकर भी कई तरह के किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। हमें उनसे डर भी लगता है और उत्सुकता भी बनी रहती है। इन भूतों और आत्माओं को दूर भगाने के अलग-अलग उपाय भी समाज ने अपने अनुरूप निकाले! यही कारण है कि इसका प्रभाव फिल्मों पर भी आया और इन पर फ़िल्में बनी। जब इन विषयों पर फ़िल्में बनना शुरू हुई, तो दर्शक उत्सुकता के साथ रोमांचक अनुभव के लिए इन्हें देखने लगे। इन फिल्मों में भूतों और आत्माओं की मौजूदगी के लिए कोई तर्क नहीं देना पड़ते हैं।
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- हेमंत पाल

     ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से फ़िल्मी परदे पर भूत-प्रेत और आत्माओं को दिखाया जाता रहा। कभी इनमें भटकती अतृप्त आत्माओं के किस्से जोड़ दिए जाते, कभी पुनर्जन्म को आत्माओं का हिस्सा बना दिया जाता रहा। लेकिन, फिल्म के अंत में सारे राज खुल जाते। आत्माएं फिर कभी न लौटने के लिए चली जाती हैं और भूत-प्रेत ख़त्म हो जाते हैं। कभी तंत्र-मंत्र से तो कभी हीरो के टशन से। आज के दौर में भी इन विषयों पर फ़िल्में बन रही और पसंद भी की जा रही। फर्क सिर्फ इतना आया कि अब इसमें मनोरंजन का तड़का लगने लगा। क्योंकि, दर्शक सिर्फ डरने के लिए तो सिनेमा घर तक आएगा नहीं! आज भूतों की कहानियों को कभी कॉमेडी की तरह लिया जाता, कभी बदले की भावना से जोड़ा जाता। लेकिन, इस तरह की कहानियां कभी पुरानी नहीं पड़ती! डरावनी फिल्मों का ऐसा दौर चला कि राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म 'स्त्री' ने अपनी हॉरर कॉमेडी से धमाका मचा दिया था। इसके बाद इस फिल्म के सीक्वल 'स्त्री 2' ने तो पहली फिल्म से कहीं ज्यादा दर्शकों को प्रभावित किया। महिला भूतनी को लेकर पहले भी कई सफल फ़िल्में बनी। उसी का बदला हुआ रूप 'स्त्री' और 'स्त्री-2' में दिखाई दिया। फर्क सिर्फ इतना था कि पहले ऐसी फिल्मों में दर्शक डरते भी थे, अब कॉमेडी देखकर ठहाके लगाते हैं।   
     डर को मनोरंजन बनाकर दर्शकों को लुभाने का चलन बहुत पुराना है। कुछ फिल्में डराने में कामयाब रहीं, तो कुछ ने खूब गुदगुदाया। अभी तक ऐसी फिल्मों में चुड़ैलों, डांस करने वाली भूतनी मंजुलिका, भूतनाथ की आत्मा का बच्चे का दोस्त बनना, ज़ॉम्बी से भागते लोग और बहुत कुछ देखने को मिला। अनुष्का शर्मा जैसी नए जमाने की अभिनेत्री ने 'फिल्लौरी' बनाकर और उसमें काम करके साबित किया था कि दर्शक वास्तव में क्या देखना चाहते हैं। अनुष्का ने खुद इस फिल्म में भूतनी का किरदार निभाया है! फिल्मों में सबसे पहले इस तरह का कथानक 1949 में कमाल अमरोही 'महल' में लाए थे। अशोक कुमार और मधुबाला की इस फिल्म में नायिका भटकती आत्मा थी। लेकिन, क्लाइमेक्स में पता चलता है कि वो कोई आत्मा नहीं, सही में एक महिला ही थी। इसके बाद 1962 में आई फिल्म 'बीस साल बाद' 1964 में आई 'वो कौन थी' और 1965 में 'भूत बंगला' भी ऐसी ही फ़िल्में थी, जिन्होंने डरा-डराकर मनोरंजन किया। 
      अधिकांश फिल्मों में भूत या भटकती आत्मा को असफल प्यार या बदले की भावना से जोड़ा जाता रहा। 1968 में आई फिल्म 'नीलकमल' भी आत्मा की कहानी थी। फिल्म की कहानी के मुताबिक, एक मूर्तिकार चित्रसेन के काम से खुश होकर राजा उससे मनोवांछित वर मांगने के लिए कहता है। चित्रसेन राजकुमारी नील कमल को मांग लेता है। उसके दुस्साहस से क्रोधित होकर राजा उसे दीवार में जिंदा चुनवा देता है। अगले जन्म में जब नीलकमल का जन्म सीता के रूप में होता है, तो चित्रसेन की आत्मा उसे रातों में पुकारती है और वह अपना होश खोकर आवाज की तरफ चल देती है। फिल्म में राजकुमार, मनोज कुमार और वहीदा रहमान जैसे कलाकार थे। 
     बरसों से फिल्मों में भूतों की भूमिका दो तरह से दिखाई जाती रही है। एक बदला लेने वाले, दूसरा मदद करने वाले भूत! 80 और 90 के दशक में 'रामसे ब्रदर्स' ने जो फ़िल्में बनाई वो डरावनी शक्ल और खून में सने चेहरों वाले खूनी भूतों पर केंद्रित रही। बाद में इन भूतों का अंत त्रिशूल या क्रॉस से होना दिखाया गया। इस बीच मल्टीस्टारर फिल्म 'जॉनी दुश्मन' आई, जिसमें संजीव कुमार ऐसे भूत बने थे, जो दुल्हन का लाल जोड़ा देखकर खतरनाक भूत में बदल जाते हैं। फिल्मों के ये भूत सबका नुकसान ही करें, ऐसा नहीं है।
     फ़िल्मी कथानकों में ऐसे भी भूत आए हैं, जो सबकी मदद करते हैं। भूतनाथ, भूतनाथ रिटर्न और 'अरमान' में अमिताभ बच्चन ने ऐसे ही अच्छे भूत का किरदार निभाया, जो मददगार होते हैं। 'हैल्लो ब्रदर' में भूत बने सलमान खान अरबाज़ खान के शरीर में आकर मदद करते थे। 'चमत्कार' में नसीरुद्दीन शाह बदला लेने के लिए शाहरुख़ खान की मदद करते है। 'भूत अंकल' में जैकी श्रॉफ और 'वाह लाइफ हो तो ऐसी' में शाहिद कपूर को यमराज बने संजय दत्त की मदद से भला करता दिखाया गया। 'टार्ज़न द वंडर कार' में भी कुछ ऐसी ही कहानी थी। इंग्लिश फिल्म 'घोस्ट' से प्रेरित होकर 'प्यार का साया' और 'माँ' बनाई गई थी। दोनों फ़िल्में ऐसे भूतों की थी, जो बुरे नहीं थे।
      विक्रम भट्ट जैसे बड़े फिल्मकार भी ऐसी फिल्म बनाने के मोह से बच नहीं सके! उन्होंने 'राज़' की सफलता के बाद तो इसके कई सीक्वल बना डाले। उन्होंने 1920, 1920-ईविल रिटर्न, शापित और 'हॉन्टेड' में आत्माओं के दीदार करवाए! 2003 में अनुराग बासु जैसे निर्देशक ने भी 'साया' जैसी फिल्म बनाई। रामगोपाल वर्मा जैसे प्रयोगधर्मी निर्देशक ने तो 'भूत' टाइटल से ही फिल्म बना दी। इसके बाद फूंक, फूंक-2, डरना मना है, डरना ज़रूरी है, वास्तु शास्त्र, भूत रिटर्न में भी हाथ आजमाए!
     आदित्य सरपोतदार निर्देशित फिल्म 'मुंज्या' हॉरर-कॉमेडी फिल्म है। फिल्म एक शरारती आत्मा पर केंद्रित है, जो एक लड़के से शुरू होती है, जो काला जादू करते समय गलती से एक दुष्ट आत्मा को बंधन से मुक्त कर देता है। इसी निर्देशक की एक और फिल्म 'ककुड़ा' भी हॉरर-कॉमेडी फिल्म थी। यह कहानी एक गांव की है, जो शापित होता है। एक बौने भूत ककुड़ा के कारण हर घर में दो दरवाजे बनाने पड़ते हैं, उनमें एक भूत के लिए खुला होना चाहिए जो शाम सवा सात बजे गांव में आता है।
      प्रियदर्शन की फिल्म 'भूल भुलैया' (2007) में अक्षय कुमार, विद्या बालन और शाइनी आहूजा ने अभिनय किया। इस फिल्म में मंजुलिका नाम की भूतनी डराती है। फिल्म के सीक्वल 'भूल भुलैया-2' (2022) में भी मंजुलिका की ही कहानी है, पर नायक और नायिका बदल गए। सीक्वल का निर्देशन अनीस बज्मी ने किया और कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी इसके नायक और नायिका हैं। राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की फिल्म 'रूही' का निर्देशन हार्दिक मेहता ने किया। इस हॉरर-कॉमेडी फिल्म में राजकुमार ने भंवरा पांडे और वरुण शर्मा ने कट्टनी कुरैशी की भूमिका निभाई। राजकुमार को पता चलता है कि रूही में एक आत्मा का वास है। 
       फिल्म इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो कई हॉरर फिल्में बनी और खूब चली। कुछ सुपरहिट हुईं तो कुछ को दर्शकों ने नकार दिया। कई डरावनी फिल्में ऐसी भी हैं, जिनके बारे में कहा गया कि वे सच्ची कहानियों पर बनाई गई। विकी कौशल की फिल्म 'भूत 1' की कहानी मुंबई के जुहू बीच पर खड़े एक कार्गो शिप की सच्ची घटना पर आधारित थी। अक्षय कुमार की 'भूल भुलैया' भी एक बंगाली लड़की की सच्ची कहानी पर बेस्ड थी। इसी तरह राजकुमार राव की फिल्म 'रागिनी एमएमएस' भी दिल्ली की एक लड़की पर बनी। खास बात यह कि फिल्म बनाने से पहले उस लड़की से अनुमति भी ली गई। राजकुमार राव की एक और फिल्म 'स्त्री' भी कर्नाटक के नाले बा की रियल स्टोरी पर बनी है। कुणाल खेमू की 'ट्रिप टू भानगढ़' में जो घटनाएं दिखाई गई जो वास्तव में घटी थी। उर्मिला मातोंडकर की फिल्म 'भूत' की कहानी भी मुंबई में रहने वाले एक दंपति की रियल स्टोरी पर बनाई गई थी। दर्शकों को ऐसी फ़िल्में इसलिए पसंद आती है, क्योंकि इनमें सस्पेंस के साथ नई तरह का पेंच होता है, जो दूसरे फ़िल्मी कथानकों से अलग होता है। यही वजह है कि हर दौर में ये फ़िल्में बनती रही हैं और बनती रहेंगी।    
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Sunday, September 1, 2024

विवादों में रही इंदिरा गांधी पर बनी फ़िल्में

- हेमंत पाल
    सौ साल से ज्यादा पुरानी फ़िल्मी दुनिया में बरसों से राजनीतिक किरदारों पर फ़िल्में बनती रही है। कभी उन पर बायोपिक बनी तो कभी इन किरदारों को अलग ही कलेवर में परदे पर दिखाया गया। ऐसी ही एक किरदार है इंदिरा गांधी, जिन्हें कई फिल्मों में अलग-अलग तरह से फिल्माया गया। लेकिन, अभी तक इंदिरा गांधी पर कोई ऐसी फिल्म नहीं बनी, जिसमें उनके राजनीतिक चरित्र का सकारात्मक पक्ष दिखाया हो। 'किस्सा कुर्सी का' से लगाकर 'इमरजेंसी' तक बनी हर फिल्म को लेकर विवाद हुए। 'इमरजेंसी' में भी इंदिरा गांधी का नेगेटिव किरदार दिखाने की कोशिश की गई। इसमें कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी का किरदार निभाया, जिनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कभी इंदिरा गांधी की पार्टी से मेल नहीं खाती! शुरू से ही इस बात की आशंका थी कि यह फिल्म विवाद का कारण बनेगी और वही हुआ। फिल्म में 1975 के दौरान इमरजेंसी का कथानक है, जब देश में अलग राजनीतिक हालात बने थे।  
    गुलजार की 'आंधी' से लगाकर अमृत नाहटा की 'किस्सा कुर्सी का' तक में दर्शकों ने इंदिरा गांधी को देखा। कुछ दूसरी फिल्मों में भी इंदिरा गांधी दिखाई दी हैं। दरअसल, इतिहास के कुछ पात्र ऐसे होते हैं जिन्हें अच्छे या बुरे किसी न किसी रूप में हमेशा याद किया जाता रहा और आगे भी याद किया जाएगा। इंदिरा गांधी इतिहास में दर्ज ऐसी ही महिला है, जिन्हें हमेशा याद किया जाता रहा है। कभी दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर का केवल एक ही स्याह पन्ना था देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला। इसके लिए उन्हें साढ़े चार दशक बाद भी कोसा जाता है। देखा जाए तो अब इमरजेंसी को याद करने या उसकी यादों को दोहराने को कोई औचित्य नहीं है। फिर भी देश की राजनीति ऐसी है कि इसे जरूरी समझा जाने लगा। हर साल जून का अंतिम सप्ताह आते ही तत्कालीन सरकार के इस फैसले को कोसा जाता हैं। 
   इस फिल्म को लेकर राजनीति में आई अभिनेत्री कंगना रनौत इन दिनों चर्चा में हैं। वे रोज की अपनी बयानबाजी से तो सुर्ख़ियों में बनी ही रहती हैं, पर फ़िलहाल उनके ख़बरों में छाए रहने का कारण उनकी नई फिल्म 'इमरजेंसी' है। इंदिरा गांधी के इस फैसले की दशकों से अलग-अलग तरह से व्याख्या होती रही है। यही वजह है कि फिल्म रिलीज से पहले विवादों में आ गई। हाल ही में फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ। इसके सामने आने के बाद से ही फिल्म रिलीज से पहले ही मुश्किल में आ रही है। ट्रेलर देखने के बाद सिखों ने फिल्म को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया। सिखों के धार्मिक संगठन ने फिल्म की फिर से समीक्षा करने की अपील की। यह भी कहा गया कि सिख समुदाय को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। ‘इमरजेंसी’ 6 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। लेकिन, रिलीज से पहले पंजाब में विवाद शुरू हो गया।  
    फिल्म पर सिखों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाते हुए इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई। फिल्म सेंसरशिप में अपनाए जाने वाले दोहरे मानकों की आलोचना की जा रही है। एक तरफ मानवाधिकारों की बात करने वाले सिख कार्यकर्ता भाई जसवंत सिंह खालड़ा के जीवन पर बनी फिल्म 'पंजाब 95' की रिलीज को 85 कट के बाद भी मंजूरी नहीं दी गई। जबकि, सिख समुदाय के बारे में गलत तथ्य पेश करने वाली 'इमरजेंसी' फिल्म को तत्काल रिलीज किया जा रहा। कहा गया कि यह दोहरे मापदंड देशहित में नहीं हैं। फिल्म का ट्रेलर सामने आने के बाद विरोध का कारण यह है कि इसमें एक सिख चरित्र विवादास्पद संवाद बोलता है, जिसे लेकर पंजाब में विरोध की आवाजें उठी। फिल्म को सिख विरोधी बताया गया। 
      यह पहली बार नहीं है, जब फिल्मों में सिख किरदारों का गलत चित्रण किया गया है। इस फिल्म में जो दिखाया गया उससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है। फिल्म पर बैन लगाने के साथ यह भी कहा गया कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सिख विरोधी भावनाओं वाली कोई भी फिल्म भविष्य में रिलीज न हो।  सिखों का कहना है कि सेंसर बोर्ड में कोई सिख सदस्य नहीं हैं, इसलिए ऐसी स्थिति बनती है। इसलिए सेंसर बोर्ड में सिख सदस्यों को भी शामिल किया जाए। सिखों के धार्मिक संगठन ने फिल्म को रिलीज न करने की चेतावनी भी दी। फिल्म की वजह से कंगना रनौत भी सिख समुदाय के निशाने पर आ गई।  आरोप लगाया गया कि सिख विरोधी और पंजाब विरोधी अभिव्यक्तियों के कारण विवादों में रहने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत ने जान-बूझकर सिखों को गलत चित्रित करने के इरादे से इस फिल्म को बनाया है। इसे सिख समुदाय कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने कंगना रनौत पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाया। फिल्म के कथानक को लेकर सिख समुदाय को ज्यादा विरोध है। कहा गया कि 1984 के शहीदों के बारे में सिख विरोधी कहानी बनाकर देश का अपमान करने का काम किया। देश 1984 की सिख विरोधी क्रूरता को कभी नहीं भूल सकता और संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को तो राष्ट्रीय शहीद घोषित किया गया है, जबकि कंगना रनौत की फिल्म उनके चरित्र को मारने की कोशिश की। फिल्म में जानबूझकर सिखों के चरित्र को आतंकवादी के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया, जो गहरी साजिश का हिस्सा है। 
     इंदिरा गांधी सरकार की 'इमरजेंसी' पर एक फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' भी बनी थी। फिल्म का डायरेक्शन अमृत नाहटा ने किया था और भगवंत देशपांडे, विजय कश्मीरी और बाबा मजगांवकर प्रोड्यूसर थे। कहा जाता है कि इस फिल्म से संजय गांधी इतना नाराज हुए थे कि फिल्म की ओरिजनल और बाकी सारे प्रिंट्स तक जलवा दिए थे। इस वजह से संजय गांधी पर 11 महीने तक केस चला। 27 फरवरी 1979 को कोर्ट का फैसला आया और उन्हें 25 महीने की जेल की सजा सुनाई गई। बाद में इसे शबाना आजमी और मनोहर सिंह को लेकर दोबारा शूट किया गया और आपातकाल के नाम पर खूब प्रचारित भी किया गया।  इसके बावजूद फिल्म को दर्शक नहीं मिले। जहां भी यह फिल्म प्रदर्शित हुई वितरकों को घाटा ही देकर गई। मधुर भंडारकर की 'इंदू सरकार' की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। फिल्म में 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के हालात दिखाए गए थे। इस फिल्म को भी ट्रेलर लॉन्च होने के बाद ही देशभर में विरोध झेलना पड़ा था। विरोध इतना ज्यादा बढ़ा कि लीगल नोटिस से लेकर पुतला फूंकने तक का निर्देशक मधुर भंडारकर को विरोध का सामना करना पड़ा था। यानी जब भी इस विषय को लेकर फिल्म बनेगी किसी न किसी बहाने उसका विरोध तो होगा! 
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मंत्रियों को प्रभार सौंपने में भी राजनीति

- हेमंत पाल 

     सात महीने बाद मध्य प्रदेश के मंत्रियों को जिलों का प्रभार सौंप दिया गया। प्रभारी मंत्रियों को स्वतंत्रता दिवस पर जिलों में झंडा फहराना था, इसलिए प्रभारी मंत्रियों की लिस्ट आनन-फानन में कर दिए गए, अन्यथा इसमें और देरी होने  संभावना थी। कहा जा रहा है कि प्रदेश की मोहन-सरकार फैसले लेने में कुछ ज्यादा ही ढीली है, पर इसके पीछे असलियत कुछ और है। कहा जाता है कि मोहन-सरकार के हर फैसले दिल्ली से होते हैं। इसलिए जब तक वहां से हरी झंडी नहीं मिलती, सरकार कुछ नहीं कर सकती। मंत्रियों को जिलों के प्रभार वाले मामले में भी देरी का कारण यही है। इस बार प्रभारी मंत्रियों  सबसे बड़ी खासियत यह है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव भी इंदौर के प्रभारी बने हैं।   
       मुख्यमंत्री के इंदौर जिले के प्रभारी मंत्री बनने से कई नेताओं की रातों की नींद उड़ गई। ऐसा पहली बार हुआ कि प्रदेश का मुख्यमंत्री किसी जिले का प्रभारी मंत्री भी बना हो। मोहन यादव की आदत है कि वे लाइन ही ऐसी खींचते हैं कि दूसरों की लाइन अपने आप छोटी हो जाती है। वे यूं ही प्रभारी मंत्री नहीं बने। वे प्रभारी महत्वपूर्ण रणनीति के तहत बने है। क्योंकि, यह सबको पता है कि इंदौर में भाजपा इतने बड़े-बड़े नेता हैं जिनका हर मामले मे हस्तक्षेप रहता है। यह किसी से छिपा भी नहीं है। दरअसल, इन सबको बैलेंस करने के लिए ही मुख्यमंत्री ने इंदौर  पास रखा।  
   इंदौर में हमेशा ही कुछ ऐसे हालात बन जाते हैं कि यहां का प्रभारी मंत्री कुछ फैसले करने के बजाय फैसले न करने की स्थिति में ज्यादा रहता है। अंततः बाद में निर्णय मुख्यमंत्री को ही करना पड़ता था। अब, मुख्यमंत्री खुद ही प्रभारी हैं, तो कम से कम ये हालात तो नहीं बनेंगे। चाहे दिग्गी राजा हों, उमा भारती या शिवराज सिंह चौहान, सभी ने इन हालात को देखा है। यही वजह है कि मोहन यादव ने सोचा कि निर्णय मुख्यमंत्री के रूप में मुझे ही करना है, तो प्रभारी मंत्री बनकर निर्णय और जल्दी कर सकता हूं। इससे जनता के काम और योजना में अनावश्यक देरी होने से मुक्ति मिलेगी और नेताओं को भी जादूगरी करने का अवसर कम मिलेगा। यानी कि फिलहाल तो मुख्यमंत्री के इंदौर प्रभारी मंत्री बनने वाला निर्णय शहर हित के लिए मोहन यादव का मास्टर स्ट्रोक ही माना जा रहा है।
      प्रभारी मंत्रियों वाले प्रसंग में दूसरा मामला है ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट के मंत्रियों को जिलों के प्रभार दिए जाना। इन सभी को उन्हीं जिलों की कमान सौंपी गई, जहां सिंधिया का प्रभाव है। सीधे शब्दों में कहें तो मध्यप्रदेश में सिंधिया अघोषित मुख्यमंत्री हैं, जिनकी इच्छा और इशारों में कोई दखल नहीं देता। इस मामले में भी सिंधिया ने जिसे जहां चाहा वहां का प्रभारी बताया गया। इस नजरिए से ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे ताकतवर बनकर उभरे हैं। यह भी साबित हुआ भाजपा में आने के चार साल बाद भी सिंधिया को भाजपा से ज्यादा अपने गुट वाले मंत्रियों पर ही ज्यादा भरोसा है, भाजपा के नेताओं पर नहीं।  
   वे अभी भी भाजपा में पूरी तरह नहीं मिल पाए। सिंधिया के ताकतवर होने का प्रमाण यह भी है कि जिस ग्वालियर शहर में उनका महल है, वहां के प्रभारी मंत्री उनके समर्थक तुलसी सिलावट बनाए गए। जिस संसदीय क्षेत्र का वे प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां गोविंद सिंह राजपूत को गुना और प्रद्युम्न सिंह तोमर को शिवपुरी का प्रभारी बनाया गया। ये दोनों भी सिंधिया के समर्थक हैं। दतिया और अशोकनगर का प्रभार देने में भी सिंधिया की पसंद का ख्याल रखा गया। इससे स्पष्ट है कि मंत्रियों को प्रभार दिए जाने में जितनी सिंधिया की चली, उतनी भाजपा के किसी दूसरे नेता की नहीं। प्रभार से यह भी साफ हो गया कि सिंधिया अब तक भाजपा पर पूरा भरोसा नहीं कर पाए। 
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कंगना की वाचालता ने भाजपा को उलझा दिया

    अभिनेत्री से नेता बनीं कंगना रनौत हमेशा अपने बयानों के कारण सुर्खियों में बनी रही। लेकिन, भाजपा की सांसद बनने के बाद उनकी वाचालता सीमा लांघने लगी। पर, इस बार का बयान पार्टी के लिए मुसीबत बन गया। कंगना सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी ही नहीं करती, वे फिल्म वालों पर भी लगातार निशाना लगा रही है। उनकी ये आदत नई नहीं है। बड़बोलेपन की वजह से कंगना का 2021 में सोशल मीडिया अकाउंट भी बैन कर दिया गया था। क्योंकि, हमेशा कंगना कुछ न कुछ ऐसा बोल जाती हैं कि वो सुर्खी बन जाता है। लेकिन, वे हमेशा की तरह यही कहती हैं कि उनके दिल में जो आएगा वह बोलेंगी। 
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- हेमंत पाल

     लोकसभा चुनाव जीतने के बाद कंगना रनौत जिस तरह वाचाल हो रही, इस बात का अंदेशा था कि वे किसी दिन अपनी पार्टी (भाजपा) को मुश्किल में डालेंगी, वही हुआ भी। पर, कंगना की वाचालता इतनी जल्दी विवाद खड़ा करेगी, ये नई बात जरूर है। जिस तरह से हर मुद्दे पर कंगना की जुबान चल रही थी, वो इस बात का इशारा तो था कि बहुत जल्द कुछ बड़ा होने वाला है। किसान आंदोलन को लेकर कंगना के बयान ने पार्टी को परेशानी में डाल ही दिया। भाजपा ने भी कंगना के बयान पर असहमति जताई और बयान जारी करके उन्हें (कंगना) भविष्य में ऐसी टिप्पणी नहीं करने का निर्देश दिया।
    यह स्थिति तब आई, जब कंगना ने यह बयान देकर विवाद खड़ा किया था 'अगर हमारी लीडरशिप कमजोर होती तो देश में बांग्लादेश जैसी स्थिति हो सकती थी। सभी ने देखा कि किसान आंदोलन के दौरान क्या हुआ था। प्रदर्शन की आड़ में हिंसा फैलाई गई। वहां बलात्कार हो रहे थे। लोगों को  मारकर लटकाया जा रहा था। इस स्थिति में भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति हो सकती थी। केंद्र सरकार ने जब कृषि कानूनों को वापस लिया तो सभी प्रदर्शनकारी चौंक गए। इस आंदोलन के पीछे एक लंबी प्लानिंग थी।' 
    कंगना के इस बयान के बाद जो हालात बनना शुरू हुए उसे भाजपा ने भांप लिया और तत्काल एक बयान में कहा कि किसानों के आंदोलन के संदर्भ में भाजपा सांसद कंगना रनौत द्वारा दिया गया बयान पार्टी की राय नहीं है। भारतीय जनता पार्टी ने कंगना रनौत द्वारा दिए गए बयान से अपनी असहमति व्यक्त की। बयान में कहा गया कि भाजपा की ओर से कंगना रनौत को पार्टी के नीतिगत मुद्दों पर बयान देने की न तो अनुमति है और न उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। भाजपा की ओर से कंगना रनौत को भविष्य में इस तरह का कोई बयान न देने का निर्देश भी दिया गया। बयान में कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' और सामाजिक सद्भाव के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
    कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी कंगना के किसानों पर दिए बयान और भाजपा की प्रतिक्रिया पर पलटवार करते हुए कहा 'पार्टी का मत नहीं है, तो पार्टी से निकालिए, अपनी सांसद कंगना से कहिए किसानों से हाथ जोड़कर माफी मांगें, बीजेपी खुद किसानों से माफी मांगे, अन्नदाताओं के लिए यह शब्द अपमान नहीं देशद्रोह है।' कंगना ने पंजाब के किसानों पर टिप्पणी करके चिंगारी को हवा देकर भले विवाद खड़ा किया हो, पर वे जब से वे सांसद बनी है लगातार अनर्गल बयानबाजी कर रही हैं। वे सिर्फ राजनीतिक बयान ही नहीं दे रहीं, फिल्म इंडस्ट्री को लेकर भी उनके बयान सामने आए। 
    एक इंटरव्यू के दौरान कंगना ने अभिनेत्रियों पर कमेंट करते हुए कहा कि कोई खान, कुमार या कपूर आपको सफल नहीं बना सकता। कंगना ने तीनों खान के साथ काम करने की इच्छा जताते हुए भी कहा था कि उन्हें लेकर फिल्म प्रोड्यूस और डायरेक्ट करना चाहती हैं, जहां वे एक्टिंग कर सकते हैं। एक  पॉडकास्ट के दौरान सवाल-जवाब में भी उन्होंने कई अनर्गल बातें की थी। पहले जवाब में कहा 'मैं बॉलीवुड टाइप की इंसान नहीं हूं। मैं निश्चित रूप से बॉलीवुड के लोगों से दोस्ती नहीं कर सकती। बॉलीवुड के लोग अपने आप में बहुत मस्त हैं। वो मूर्ख और बुद्धिहीन हैं। वो प्रोटीन शेक पीते हैं, ये वो .... तो इस तरह की जिंदगी है उनकी। ये इसी तरह की जिंदगी जीते हैं। दूसरा बयान 'अगर वे शूटिंग नहीं कर रहे होते, तो उनकी दिनचर्या यह होता है। वे सुबह उठते हैं, कुछ वर्कआउट करते हैं। दोपहर में सोते हैं, फिर उठते हैं, जिम जाते हैं, फिर रात में सोते हैं या टीवी देखते हैं। वे टिड्डे की तरह होते हैं, बिल्कुल खाली।'
     तीसरे बयान में कंगना ने कहा 'आप ऐसे लोगों से कैसे दोस्ती कर सकते हैं? उन्हें पता नहीं होता कि कहां क्या हो रहा है, उनकी कोई बातचीत नहीं होती। वो मिलते हैं, शराब पीते हैं और अपने कपड़ों, एक्सेसरीज पर चर्चा करते हैं। मैंने बहुत कोशिश की है कि बॉलीवुड में मुझे कोई ऐसा तमीज वाला इंसान मिल जाए, जो ब्रांडेड बैग्स या गाड़ियों से भी अलग बात कर पाए।' इसके अलावा कंगना ने बॉलीवुड की पार्टियों को भी घटिया बताया। कहा 'बॉलीवुड की पार्टियां बहुत ही घटिया और शर्मनाक होती हैं। यहां सिर्फ बेकार की बातें होती हैं।' कंगना रनौत सिर्फ अभी ज्यादा नहीं बोल रही, वे कभी चुप नहीं रहती। उनके मुंहफट होने, बड़बोलेपन और कथित सच बोलने का खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ रहा है।
    एक तरफ जहां कंगना और ऋतिक रोशन का विवाद खत्म नहीं हुआ, उन्होंने शाहिद कपूर के खिलाफ भी जंग छेड़ दी थी। कंगना ने शाहिद कपूर को लेकर कई तरह के बयान दिए। लेकिन, शाहिद ने जवाब दिया कि फिल्म के प्रमोशन के लिए इस तरह की बयानबाजी ठीक नहीं। कंगना के बयान ही विवादास्पद नहीं होते, उनकी बातों में दंभ भी झलकता है। कंगना रनौत हमेशा ही अपने आपको बड़ी अभिनेत्री साबित करने पर तुली रही। वे बार-बार दावा करती रही हैं कि अब वे सिर्फ नारी प्रधान व उन फिल्मों में अभिनय करती हैं, जिनकी कहानियां उनके किरदार के इर्द गिर्द घूमती हो! उनका दावा है कि अब उनके लिए खास तौर पर किरदार लिखे जा रहे हैं। 
कंगना के वे बयान जो विवाद बने 
- कंगना रनौत ने राहुल गांधी पर बयान दिया था 'वो जिस तरह की बदहवास बातें करते हैं उनका टेस्ट होना चाहिए कि क्या हो कई ड्रग्स लेते हैं।'
- साल 2021 में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कंगना रनौत ने कहा था 'भारत को साल 1947 में भीख में आजादी मिली थी और देश को असली आज़ादी साल 2014 में मिली।'
- कंगना रनौत ने बिलकीस और महिंदर कौर की तस्वीरें एक साथ ट्वीट करते हुए तंज़ कसा था 'हा हा. ये वही दादी हैं, जिन्हें टाइम मैगजीन की 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था ....और ये 100 रुपये में उपलब्ध हैं।'
- महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों की टूट और एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने लिखा था कि 'राजनीतिज्ञ राजनीति नहीं करेगा तो क्या गोलगप्पे बेचेगा।'
- उन्होंने सोशल मीडिया पर इसी मुद्दे से जुड़े एक पोस्ट में लिखा 'शंकराचार्य जी ने महाराष्ट्र के हमारे मुख्यमंत्री को अपमानजनक शब्दावली से ग़द्दार, विश्वासघाती जैसे आरोप लगाते हुए हम सब की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, शंकराचार्य जी इस तरह की छोटी और ओछी बातें करके हिन्दू धर्म की गरिमा को ठेस पहुँचा रहे हैं।' 
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