- हेमंत पाल
सौ साल से ज्यादा पुरानी फ़िल्मी दुनिया में बरसों से राजनीतिक किरदारों पर फ़िल्में बनती रही है। कभी उन पर बायोपिक बनी तो कभी इन किरदारों को अलग ही कलेवर में परदे पर दिखाया गया। ऐसी ही एक किरदार है इंदिरा गांधी, जिन्हें कई फिल्मों में अलग-अलग तरह से फिल्माया गया। लेकिन, अभी तक इंदिरा गांधी पर कोई ऐसी फिल्म नहीं बनी, जिसमें उनके राजनीतिक चरित्र का सकारात्मक पक्ष दिखाया हो। 'किस्सा कुर्सी का' से लगाकर 'इमरजेंसी' तक बनी हर फिल्म को लेकर विवाद हुए। 'इमरजेंसी' में भी इंदिरा गांधी का नेगेटिव किरदार दिखाने की कोशिश की गई। इसमें कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी का किरदार निभाया, जिनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कभी इंदिरा गांधी की पार्टी से मेल नहीं खाती! शुरू से ही इस बात की आशंका थी कि यह फिल्म विवाद का कारण बनेगी और वही हुआ। फिल्म में 1975 के दौरान इमरजेंसी का कथानक है, जब देश में अलग राजनीतिक हालात बने थे।
गुलजार की 'आंधी' से लगाकर अमृत नाहटा की 'किस्सा कुर्सी का' तक में दर्शकों ने इंदिरा गांधी को देखा। कुछ दूसरी फिल्मों में भी इंदिरा गांधी दिखाई दी हैं। दरअसल, इतिहास के कुछ पात्र ऐसे होते हैं जिन्हें अच्छे या बुरे किसी न किसी रूप में हमेशा याद किया जाता रहा और आगे भी याद किया जाएगा। इंदिरा गांधी इतिहास में दर्ज ऐसी ही महिला है, जिन्हें हमेशा याद किया जाता रहा है। कभी दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर का केवल एक ही स्याह पन्ना था देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला। इसके लिए उन्हें साढ़े चार दशक बाद भी कोसा जाता है। देखा जाए तो अब इमरजेंसी को याद करने या उसकी यादों को दोहराने को कोई औचित्य नहीं है। फिर भी देश की राजनीति ऐसी है कि इसे जरूरी समझा जाने लगा। हर साल जून का अंतिम सप्ताह आते ही तत्कालीन सरकार के इस फैसले को कोसा जाता हैं।
सौ साल से ज्यादा पुरानी फ़िल्मी दुनिया में बरसों से राजनीतिक किरदारों पर फ़िल्में बनती रही है। कभी उन पर बायोपिक बनी तो कभी इन किरदारों को अलग ही कलेवर में परदे पर दिखाया गया। ऐसी ही एक किरदार है इंदिरा गांधी, जिन्हें कई फिल्मों में अलग-अलग तरह से फिल्माया गया। लेकिन, अभी तक इंदिरा गांधी पर कोई ऐसी फिल्म नहीं बनी, जिसमें उनके राजनीतिक चरित्र का सकारात्मक पक्ष दिखाया हो। 'किस्सा कुर्सी का' से लगाकर 'इमरजेंसी' तक बनी हर फिल्म को लेकर विवाद हुए। 'इमरजेंसी' में भी इंदिरा गांधी का नेगेटिव किरदार दिखाने की कोशिश की गई। इसमें कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी का किरदार निभाया, जिनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता कभी इंदिरा गांधी की पार्टी से मेल नहीं खाती! शुरू से ही इस बात की आशंका थी कि यह फिल्म विवाद का कारण बनेगी और वही हुआ। फिल्म में 1975 के दौरान इमरजेंसी का कथानक है, जब देश में अलग राजनीतिक हालात बने थे।
गुलजार की 'आंधी' से लगाकर अमृत नाहटा की 'किस्सा कुर्सी का' तक में दर्शकों ने इंदिरा गांधी को देखा। कुछ दूसरी फिल्मों में भी इंदिरा गांधी दिखाई दी हैं। दरअसल, इतिहास के कुछ पात्र ऐसे होते हैं जिन्हें अच्छे या बुरे किसी न किसी रूप में हमेशा याद किया जाता रहा और आगे भी याद किया जाएगा। इंदिरा गांधी इतिहास में दर्ज ऐसी ही महिला है, जिन्हें हमेशा याद किया जाता रहा है। कभी दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर का केवल एक ही स्याह पन्ना था देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला। इसके लिए उन्हें साढ़े चार दशक बाद भी कोसा जाता है। देखा जाए तो अब इमरजेंसी को याद करने या उसकी यादों को दोहराने को कोई औचित्य नहीं है। फिर भी देश की राजनीति ऐसी है कि इसे जरूरी समझा जाने लगा। हर साल जून का अंतिम सप्ताह आते ही तत्कालीन सरकार के इस फैसले को कोसा जाता हैं।
इस फिल्म को लेकर राजनीति में आई अभिनेत्री कंगना रनौत इन दिनों चर्चा में हैं। वे रोज की अपनी बयानबाजी से तो सुर्ख़ियों में बनी ही रहती हैं, पर फ़िलहाल उनके ख़बरों में छाए रहने का कारण उनकी नई फिल्म 'इमरजेंसी' है। इंदिरा गांधी के इस फैसले की दशकों से अलग-अलग तरह से व्याख्या होती रही है। यही वजह है कि फिल्म रिलीज से पहले विवादों में आ गई। हाल ही में फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ। इसके सामने आने के बाद से ही फिल्म रिलीज से पहले ही मुश्किल में आ रही है। ट्रेलर देखने के बाद सिखों ने फिल्म को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया। सिखों के धार्मिक संगठन ने फिल्म की फिर से समीक्षा करने की अपील की। यह भी कहा गया कि सिख समुदाय को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। ‘इमरजेंसी’ 6 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। लेकिन, रिलीज से पहले पंजाब में विवाद शुरू हो गया।
फिल्म पर सिखों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाते हुए इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई। फिल्म सेंसरशिप में अपनाए जाने वाले दोहरे मानकों की आलोचना की जा रही है। एक तरफ मानवाधिकारों की बात करने वाले सिख कार्यकर्ता भाई जसवंत सिंह खालड़ा के जीवन पर बनी फिल्म 'पंजाब 95' की रिलीज को 85 कट के बाद भी मंजूरी नहीं दी गई। जबकि, सिख समुदाय के बारे में गलत तथ्य पेश करने वाली 'इमरजेंसी' फिल्म को तत्काल रिलीज किया जा रहा। कहा गया कि यह दोहरे मापदंड देशहित में नहीं हैं। फिल्म का ट्रेलर सामने आने के बाद विरोध का कारण यह है कि इसमें एक सिख चरित्र विवादास्पद संवाद बोलता है, जिसे लेकर पंजाब में विरोध की आवाजें उठी। फिल्म को सिख विरोधी बताया गया।
फिल्म पर सिखों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाते हुए इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई। फिल्म सेंसरशिप में अपनाए जाने वाले दोहरे मानकों की आलोचना की जा रही है। एक तरफ मानवाधिकारों की बात करने वाले सिख कार्यकर्ता भाई जसवंत सिंह खालड़ा के जीवन पर बनी फिल्म 'पंजाब 95' की रिलीज को 85 कट के बाद भी मंजूरी नहीं दी गई। जबकि, सिख समुदाय के बारे में गलत तथ्य पेश करने वाली 'इमरजेंसी' फिल्म को तत्काल रिलीज किया जा रहा। कहा गया कि यह दोहरे मापदंड देशहित में नहीं हैं। फिल्म का ट्रेलर सामने आने के बाद विरोध का कारण यह है कि इसमें एक सिख चरित्र विवादास्पद संवाद बोलता है, जिसे लेकर पंजाब में विरोध की आवाजें उठी। फिल्म को सिख विरोधी बताया गया।
यह पहली बार नहीं है, जब फिल्मों में सिख किरदारों का गलत चित्रण किया गया है। इस फिल्म में जो दिखाया गया उससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है। फिल्म पर बैन लगाने के साथ यह भी कहा गया कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सिख विरोधी भावनाओं वाली कोई भी फिल्म भविष्य में रिलीज न हो। सिखों का कहना है कि सेंसर बोर्ड में कोई सिख सदस्य नहीं हैं, इसलिए ऐसी स्थिति बनती है। इसलिए सेंसर बोर्ड में सिख सदस्यों को भी शामिल किया जाए। सिखों के धार्मिक संगठन ने फिल्म को रिलीज न करने की चेतावनी भी दी। फिल्म की वजह से कंगना रनौत भी सिख समुदाय के निशाने पर आ गई। आरोप लगाया गया कि सिख विरोधी और पंजाब विरोधी अभिव्यक्तियों के कारण विवादों में रहने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत ने जान-बूझकर सिखों को गलत चित्रित करने के इरादे से इस फिल्म को बनाया है। इसे सिख समुदाय कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने कंगना रनौत पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाया। फिल्म के कथानक को लेकर सिख समुदाय को ज्यादा विरोध है। कहा गया कि 1984 के शहीदों के बारे में सिख विरोधी कहानी बनाकर देश का अपमान करने का काम किया। देश 1984 की सिख विरोधी क्रूरता को कभी नहीं भूल सकता और संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को तो राष्ट्रीय शहीद घोषित किया गया है, जबकि कंगना रनौत की फिल्म उनके चरित्र को मारने की कोशिश की। फिल्म में जानबूझकर सिखों के चरित्र को आतंकवादी के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया, जो गहरी साजिश का हिस्सा है।
इंदिरा गांधी सरकार की 'इमरजेंसी' पर एक फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' भी बनी थी। फिल्म का डायरेक्शन अमृत नाहटा ने किया था और भगवंत देशपांडे, विजय कश्मीरी और बाबा मजगांवकर प्रोड्यूसर थे। कहा जाता है कि इस फिल्म से संजय गांधी इतना नाराज हुए थे कि फिल्म की ओरिजनल और बाकी सारे प्रिंट्स तक जलवा दिए थे। इस वजह से संजय गांधी पर 11 महीने तक केस चला। 27 फरवरी 1979 को कोर्ट का फैसला आया और उन्हें 25 महीने की जेल की सजा सुनाई गई। बाद में इसे शबाना आजमी और मनोहर सिंह को लेकर दोबारा शूट किया गया और आपातकाल के नाम पर खूब प्रचारित भी किया गया। इसके बावजूद फिल्म को दर्शक नहीं मिले। जहां भी यह फिल्म प्रदर्शित हुई वितरकों को घाटा ही देकर गई। मधुर भंडारकर की 'इंदू सरकार' की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। फिल्म में 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के हालात दिखाए गए थे। इस फिल्म को भी ट्रेलर लॉन्च होने के बाद ही देशभर में विरोध झेलना पड़ा था। विरोध इतना ज्यादा बढ़ा कि लीगल नोटिस से लेकर पुतला फूंकने तक का निर्देशक मधुर भंडारकर को विरोध का सामना करना पड़ा था। यानी जब भी इस विषय को लेकर फिल्म बनेगी किसी न किसी बहाने उसका विरोध तो होगा!
-------------------------------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment