बीमारियों की फेहरिस्त में एक नाम मूड का भी शामिल है। लेकिन, मूड का इलाज किसी के पास नहीं होता। हर बीमारी का डॉक्टर मिल जाता है, पर मूड तो लाइलाज है। इसलिए कि हर व्यक्ति का मूड अलग-अलग तरीके से ठीक होता है। कोई लांग ड्राइव पर चला जाता है, कोई संगीत सुनता है तो कोई अपने प्रिय के साथ गुफ्तगू करके दिल बहला लेता है। कुछ लोग फिल्म देखकर अपना दिल खुश कर लेते हैं। लेकिन, हर फिल्म ऐसी नहीं होती जो दिल खुश करके मूड को मस्त कर दे। फिल्म इतिहास में ऐसी चुनिंदा फ़िल्में बनी जो कुछ अलग मानी जाती है।
- हेमंत पाल
आजकल मूड ख़राब होना भी एक बीमारी है। ये वो बीमारी है जिसका कोई एक कारण नहीं होता और न एक होता है। वही जानता है कि मूड कैसे ठीक होगा। इस बीमारी का सबसे बड़ा लक्षण है दिल उदास होना। ऐसे में कुछ भी अच्छा नहीं लगता। लेकिन, फिल्म ऐसी चीज है जो मूड ठीक करके दिल खुश करने में देर नहीं करती। लेकिन, हर फिल्म ख़राब मूड का इलाज नहीं होती। मूड ख़राब हो, तो ठीक करने के लिए भी कैसी फिल्म देखी जाए कि मूड फ्रेश हो। क्योंकि, सभी फ़िल्में इस स्तर की होती भी नहीं है कि उनसे मूड ठीक हो! इसके लिए कुछ अलग तरह की फ़िल्में देखी जाना चाहिए। जब फ़िल्म अलग होगी, तभी उस बीमार का ध्यान बंटेगा और मनोरंजन होगा। मारधाड़, बदले की कहानियां, प्रेम कहानियों वाली फिल्मों से चंद समय मन बहलाव होता है, पर ये फ़िल्में मूड दुरुस्त नहीं करती। वैसे आजकल ऐसी कई फिल्में बन रही हैं, जिनके कथानक काफी अलग होते हैं।
फिल्मकार मनोरंजन के लिए बहुत से प्रयोग करते हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी में आजकल स्ट्रेस किसे नहीं होता। लेकिन, महत्वपूर्ण यह है कि आप उसे किस तरह हैंडल करते हैं। फेहरिस्त में कुछ ऐसी कमाल की फ़िल्में हैं, जो न सिर्फ जीने का तरीका सिखाती हैं, बल्कि जिंदगी की समस्याओं को एक अलग नजरिए से देखने में भी मदद करती है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव किसे नहीं होता। किसी को नौकरी या कारोबार का तनाव है, तो कोई पारिवारिक समस्या से परेशान है। कोई पैसों की तंगी से दुखी है तो किसी को ऑफिस का स्ट्रेस मारता है। ऐसी स्थिति में कुछ फिल्में दिल को सुकून देती हैं। कई बार ऐसी फिल्मों से कोई ऐसा आइडिया मिल जाता है, जो दर्शकों की समस्या का निराकरण करता है। अलग तरह की फ़िल्में वे होती है, जो जिंदगी को नई राह दिखाती है। सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, तो ऐसी फिल्में जरूर देखनी चाहिए, जो न सिर्फ तनाव कम करें, बल्कि जीने और खुश रहने की कला भी सिखाए। ऐसी ही एक फिल्म है 'डियर जिंदगी' जो एक बार जरूर देखनी चाहिए। शाहरुख खान और आलिया भट्ट की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई खास जादू नहीं चला सकी। लेकिन, समीक्षकों ने इसे बेहतरीन फिल्मों में शामिल किया। कई बार अपने ऑफिस स्ट्रेस और निजी जिंदगी में चल रही नेगेटिविटी से लोग इतने परेशान हो जाते हैं कि उनके दिलो-दिमाग में उल्टे-सीधे ख्याल आने लगते हैं। फिल्म में शाहरुख़ का किरदार मनोचिकित्सक का है। इस नजरिए से फिल्म में शाहरुख खान का बोला हर डायलॉग यादगार है।
आमिर खान अभिनीत '3 इडियट्स' भी ऐसी ही फिल्म है, जो जीवन को नई दिशा दिखाती है। क्योंकि, जिंदगी में किसी ऊंचाई पर पहुंचने और धन कमाने का दबाव दुनिया का सबसे बड़ा तनाव में से एक है। फिल्म के कथानक के मुताबिक, रचनात्मकता और जिज्ञासा से भरे सवाल जिंदगी की पढ़ाई बर्बाद कर देती है। उन्हें असली शिक्षा जिंदगी और करियर के नजरिए से मिलना चाहिए। यह बात आमिर खान की फिल्म '3 इडियट्स' यही बात बताती है। ऐसी ही एक फिल्म है 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' जिसके मुख्य कलाकार रितिक रोशन, फरहान अख्तर और अभय देयोल हैं। यह फिल्म असल में उन लोगों के लिए है, जो पढ़ लिखकर कामयाब तो हो गए, पर हमेशा चूहा दौड़ में लगे रहते हैं। यह फिल्म कुछ ऐसे दोस्तों की कहानी है जिनमें से एक अपने बाकी दोस्तों की जिंदगी और एक मजेदार सफर के दौरान लाइफ का असली मतलब सीखता है। एक दिल खुश पर अंत में शिक्षा देने वाली फिल्मों में एक 1971 में आई 'आनंद' भी है। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की यह फिल्म ऐसे व्यक्ति पर केंद्रित है, जिसकी जिंदगी में अब बस चंद दिन शेष हैं। वे एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन फिर भी वो अपने आखिरी वक्त को खुलकर जीता है और निराशा में आशा के रंग भरते हुए दुनिया को जीने की कला सिखाता है। कंगना रनौत की फिल्म 'क्वीन' 2013 में आई थी। यह फिल्म ऐसी लड़की की कहानी है, जिसे उसका मंगेतर शादी के चंद दिन पहले धोखा दे देता है। लेकिन, हनीमून की टिकट बुक हो चुकी होती है, तो कंगना (रानी) इन पैसों को बर्बाद करने के बजाए अकेले ही हनीमून पर जाने का फैसला करती है। अकेले हनीमून का उसका तजुर्बा उसे एक नया नजरिया देता हैं। ऐसी ही खुशनुमा फिल्म 'उड़ान' भी है, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखी जा सकती है। ये फिल्म बताती है कि कई बार जिंदगी में ऐसी चुनौतियां सामने आती है, जिनमें सख्त फैसले लेना मजबूरी हो जाता है। ये फिल्म एक फैमिली ड्रामा है।
'लापता लेडीज' भी दो लड़कियों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो शादी के बाद दुल्हन बनकर ससुराल जाती हैं, पर घूंघट में उनकी अदला-बदली हो जाती है। एक का नाम फूल होता है, दूसरी पुष्पा होती है। फूल अपने ससुराल का नाम तक नहीं जानती। जबकि, पुष्पा अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए भाग जाना चाहती है। अंत में दोनों ही अपने-अपने मकसद में कामयाब हो जाती हैं।
सलमान खान, आमिर खान, रवीना टंडन और करिश्मा कपूर की फिल्म 'अंदाज अपना अपना' इतिहास में दर्ज फिल्म है। इस फिल्म की कॉमेडी ने अपने समय पर दर्शकों को लोटपोट कर दिया था। न सिर्फ कॉमेडी बल्कि फिल्म में क्यूट लव स्टोरी भी देखने को मिलती है। शक्ति कपूर और परेश रावल भी अहम किरदार में थे। इसके अलावा संजय दत्त की फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' भी एक बेहतरीन कॉमेडी फिल्म है। इसमें संजय दत्त का एक अलग ही अंदाज देखने को मिला था। मुन्ना भाई यानी संजय दत्त के साथ अरशद वारसी सर्किट की जोड़ी दर्शकों को खूब पसंद आई। फिल्म जहां हंसाती है, वहीं कई जगहों पर भावुक भी कर देती हैं। 2005 में आई 'गरम मसाला' में अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम की जोड़ी थी। परेश रावल और राजपाल यादव का भी अहम किरदार था। फिल्म में अक्षय और जॉन अब्राहम तीन एयर होस्टेस के चक्कर में पड़ जाते हैं और फिर जोरदार कॉमेडी होती है। सलमान खान, अनिल कपूर, फरदीन खान, बिपाशा बसु और लारा दत्ता की फिल्म 'नो एंट्री' को देखकर दर्शकों का हंसी रोकना मुश्किल हो जाता है। फिल्म का एक डायलॉग 'रिलायंस की कसम' तो आज भी कई बार लोग बातों बातों में कह देते हैं।
डरावनी फिल्मों को मनोरंजन की गिनती में कम ही लोग लेते हैं। लेकिन, अब ऐसी फ़िल्में बनाने का अंदाज बदल गया। जब से हॉरर के साथ कॉमेडी को जोड़ा गया, इन फिल्मों के कथानक बदल गए। पहले इन फिल्मों में बड़े नामचीन कलाकार काम नहीं करते थे, पर अब राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर और कार्तिक आर्यन से लगाकर अक्षय कुमार भी दिखाई देने लगे। सिनेमा की दुनिया में हॉरर फिल्मों को दोयम दर्जे का माना जाता रहा है। मगर, कुछ सालों में सस्ते सिनेमा के रूप में जाना जाना वाला ये जॉनर लोकप्रिय होने लगा। मूड फ्रेश करने के लिए ऐसे कथानकों की फ़िल्में देखे जाने जरूरत इसलिए महसूस की जाने लगी, कि ये दर्शकों को ये अलग दुनिया में ले जाती है। स्त्री, मुंज्या और 'स्त्री 2' के बाद 'भूल भुलैया' सीरीज के बॉक्स ऑफिस आंकड़ों के बाद अब हॉरर कॉमेडी को भी मूड बदलने वाली फिल्मों के रूप में जगह मिलने लगी।
कुछ दशक पहले तक हॉरर फिल्मों का एक लंबा दौर रहा। दो गज जमीन के नीचे, वीराना, पुराना मंदिर, बंद दरवाजा जैसी डरावनी फिल्मों का अलग ही दर्शक वर्ग था। इस तरह की हॉरर फिल्मों में कुछ ऐसे दृश्य पिरोए जाते थे जो दर्शकों को बांधकर रखते थे। मगर कोई भी इन इन फिल्मों को परिवार के साथ देखना पसंद नहीं करता। मगर कुछ सालों में हॉरर कॉमेडी में आए नए कथानक ने इन्हें मनोरंजक फिल्मों का दर्जा दे दिया। हॉरर और कॉमिक फिल्मों को हमेशा ही पसंद किया जाता रहा है। जब दर्शकों को हॉरर और कॉमेडी का कॉम्बिनेशन मिला, तो उसे दर्शकों ने हाथों-हाथ हाथ लिया। फिल्मकार अमर कौशिक की 'स्त्री' से इसकी शुरुआत हुई। फिल्म ने आज से पांच साल पहले 180 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया था और उसके बाद तो हॉरर कॉमेडी का सिलसिला चल निकला। अब दिल खुश करने वाली फिल्मों की श्रेणी में ऐसी फ़िल्में भी शामिल की जाने लगी। यदि दिल उदास है और मूड बदलना चाहते हैं, तो देखिए कुछ ऐसी फ़िल्में तो रूटीन से अलग हों!
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कुछ दशक पहले तक हॉरर फिल्मों का एक लंबा दौर रहा। दो गज जमीन के नीचे, वीराना, पुराना मंदिर, बंद दरवाजा जैसी डरावनी फिल्मों का अलग ही दर्शक वर्ग था। इस तरह की हॉरर फिल्मों में कुछ ऐसे दृश्य पिरोए जाते थे जो दर्शकों को बांधकर रखते थे। मगर कोई भी इन इन फिल्मों को परिवार के साथ देखना पसंद नहीं करता। मगर कुछ सालों में हॉरर कॉमेडी में आए नए कथानक ने इन्हें मनोरंजक फिल्मों का दर्जा दे दिया। हॉरर और कॉमिक फिल्मों को हमेशा ही पसंद किया जाता रहा है। जब दर्शकों को हॉरर और कॉमेडी का कॉम्बिनेशन मिला, तो उसे दर्शकों ने हाथों-हाथ हाथ लिया। फिल्मकार अमर कौशिक की 'स्त्री' से इसकी शुरुआत हुई। फिल्म ने आज से पांच साल पहले 180 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया था और उसके बाद तो हॉरर कॉमेडी का सिलसिला चल निकला। अब दिल खुश करने वाली फिल्मों की श्रेणी में ऐसी फ़िल्में भी शामिल की जाने लगी। यदि दिल उदास है और मूड बदलना चाहते हैं, तो देखिए कुछ ऐसी फ़िल्में तो रूटीन से अलग हों!
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