Sunday, December 15, 2024

एक तरफा नाकाम मोहब्बत का फलसफा

   मोहब्बत कई तरह की होती है। दो तरफ़ा हो, तो उसे सफल मोहब्बत कहा जाता है। लेकिन, एक तरफा मोहब्बत भी कम नहीं होती। ऐसी मोहब्बत हमेशा एक नई कहानी को जन्म देती है। इस विषय पर कई फ़िल्में बनी, जिनमें एकतरफा मोहब्बत पर पूरी कहानी गढ़ दी गई। ऐसी मोहब्बत को समझने के लिए कुछ साल पहले आई 'ऐ दिल है मुश्किल' का एक डायलॉग मौजूं है। यह था 'एकतरफा प्यार की ताकत ही कुछ और होती है, औरों के रिश्तों की तरह ये दो लोगों के बीच नहीं बंटती, सिर्फ मेरा हक है इस पर!' वास्तव में यह डायलॉग कई लोगों की जिंदगी का फलसफा है। किंतु, ऐसी मोहब्बत पर आई फिल्म 'डर' एकतरफा मोहब्बत का काला पक्ष दर्शाती है। 
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- हेमंत पाल

     जब से फ़िल्में बनना शुरू हुई, प्रेम कथाओं का कथानकों में सबसे ज्यादा उपयोग किया गया। विषय कोई भी हो, प्रेम उसमें स्थाई भाव की तरह समाहित रहा। यहां तक कि युद्ध कथाओं और डाकुओं की फिल्मों में भी प्रेम को किसी न किसी तरह जोड़ा गया। न सिर्फ जोड़ा गया, बल्कि उस कथा को अंत तक निभाया भी। प्रेम कहानी में प्रेमी और प्रेमिका दोनों की भूमिका होती है, इसलिए कथानक को विस्तार देना मुश्किल नहीं होता। लेकिन, कुछ फ़िल्में ऐसी भी बनी, जिनमें प्यार को सिर्फ एकतरफा दिखाया गया। यानी प्रेमी या प्रेमिका में से कोई एक ही आगे कदम बढ़ाता है, दूसरा या तो वहीं खड़ा रहता है या पीछे हट जाता है। देखा गया कि ऐसी फिल्मों का कथानक हमेशा ही उलझा हुआ रहा। क्योंकि, जरूरी नहीं, जिससे आप प्यार करो, वह भी आप से प्यार करे। ऐसी फिल्मों का लंबा हिस्सा प्रेम के बिखरे हिस्से को समेटने में ही निकल जाता है। लेकिन, प्यार अधूरा हो या एक तरफा, दर्द बहुत देता है। चंद फ़िल्में ऐसी भी बनी जिनमें एकतरफ़ा प्रेम हिंसा के अतिरेक तक पहुंचा। आशय यह कि अपनी मोहब्बत को पाने के लिए खून तक बहाया गया। फिर भी क्या उन्हें प्यार मिला हो, ये जरूरी नहीं है।  
       इस तरह की एकतरफा दर्द भरी प्रेम कथा पर बनी फिल्म 'देवदास' एक तरह से मील का पत्थर है। इस फिल्म की कहानी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के बंगाली उपन्यास पर आधारित है। इस एकतरफा प्रेम कथा पर अलग-अलग भाषाओं में कई फ़िल्में बनी। पहली बार 'देवदास' 1928 में रिलीज़ हुई थी। सबसे पहले बंगाली में बनी, फिर हिंदी में ही ये तीन बार बन चुकी है। साउथ में भी 'देवदास' पर फिल्म बनाई जा चुकी है। इस कहानी में एक वैश्या के प्यार में देवदास खुद को बर्बाद कर लेता है। जबकि, देवदास के इश्क में चंद्रमुखी अपने देवबाबू को भगवान मानने लगती है! एकतरफा प्यार में खुद को तबाह कर देने की सबसे चर्चित दास्तां 'देवदास' ही है। इसी कथानक पर संजय लीला भंसाली ने भी 2002 में 'देवदास' बनाई। फिल्म में मुख्य किरदार देव बाबू (शाहरुख खान), पारो यानी ऐश्वर्या राय और चंद्रमुखी यानी माधुरी दीक्षित ने निभाई थी। फिल्म में देव बाबू पारो से बहुत प्यार करता है। लेकिन, उसकी शादी नहीं हो पाती। वह एकतरफा प्यार में जब कुछ नहीं कर पाता, तो खुद को तबाह करता है। फिल्म के अंत में देव पारो के दरवाजे पर जाकर दम तोड़ देता है। ये फिल्म एकतरफा प्यार की सबसे सशक्त फिल्म मानी जाती है। 
     1999 में संजय लीला भंसाली ने ही सलमान खान, ऐश्वर्या राय बच्चन और अजय देवगन लेकर 'हम दिल दे चुके सनम' बनाई। इसमें समीर (सलमान खान) और नंदिनी (ऐश्वर्या राय) एक-दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं। लेकिन, अचानक परिवार वाले नंदिनी की शादी वनराज (अजय देवगन) से कर देते हैं। इसके बाद नंदिनी का प्यार समीर उससे दूर हो जाता है। वनराज नंदिनी से पहली नजर से प्यार करता है, और शादी के बाद उसका प्यार और बढ़ता है। लेकिन, किसी भी एकतरफा प्यार का सबसे बड़ा इम्तिहान तब होता है, जब उसे पता चलता कि उसकी पत्नी किसी दूसरे से प्यार करती है। यह फिल्म एकतरफा प्यार की ताकत को बहुत आगे लेकर जाती है। वनराज दोनों प्रेमियों को मिलाने की कोशिश में करता है। वनराज अपनी पत्नी को उसके प्रेमी से मिलाने लेकर जाता है। उसकी आंखों में आंसू होते हैं, लेकिन फिर भी वो पीछे नहीं हटता। किंतु, नंदिनी यह स्वीकार नहीं करती और पति के साथ लौट आती है। ये अपनी तरह की अनोखी प्रेम कहानी थी। 
    ऐसी चंद कहानियों में एक फिल्म यश चोपड़ा की 'डर' (1993) भी है जिसमें एकतरफा प्यार का हिंसक रूप सामने आता है। 'डर' नाकाम प्रेमियों की उस कहानी को बयां करती है, जिन्हें प्रेमी को खोने का डर सबसे ज्यादा होता है। शाहरुख़ खान (राहुल) फिल्म में जूही चावला (किरण) से एकतरफा प्यार करता है। जब जूही उसके प्यार को स्वीकार नहीं करती तो शाहरुख का प्यार पागलपन की हद तक चला जाता है। लेकिन, किरण तो सुनील (सनी देओल) को चाहती थी। 'डर' में एकतरफा प्यार का जो रूप दिखाया, वो काफी भयानक है। अंत में राहुल को किरण का पति सुनील मार देता है। 
    शाहरुख खान की एक और फिल्म 'कभी हां कभी ना' (1994) शुरुआती फिल्म थी। फिल्म की कहानी में शाहरुख़ एक लड़की सुचित्रा कृष्णमूर्ति को चाहता हैं, पर वो किसी और को। लेकिन, इस फिल्म का अंत खुशनुमा होता है। अमिताभ बच्चन की हिट फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' में भी एकतरफा प्यार के दो किस्से थे। कथानक में एक गरीब बच्चे की मदद एक अमीर लड़की करती है। वो बच्चा उसे प्यार करने लगता है। बड़े होने तक और मरने तक उसे यह प्यार रहता है। लेकिन, वो लड़की किसी और को चाहती है। 'मुकद्दर का सिकंदर' में वो गरीब बच्चा अमिताभ थे और अमीर लड़की जयाप्रदा जिससे वे एकतरफा प्यार करते हैं। वहीं रेखा अमिताभ को चाहती है। फिल्म में अमजद खान भी रेखा से एकतरफा प्यार करते थे।
   आमिर खान की फिल्म 'लगान' (2001) भी ऐसी ही फिल्म थी, जिसमें एकतरफा प्यार का बहुत हल्का सा इशारा था। इस फिल्म में एकतरफा प्यार पनपता है भुवन (आमिर खान) के लिए एलिजाबेथ में। जब एलिजाबेथ गांव वालों को क्रिकेट सिखाने में मदद करती है, उसी दौरान वह अपना दिल भुवन को दे देती है। लेकिन, भुवन को इस बात का पता नहीं होता। क्योंकि, वह तो गौरी से प्यार करता है। फिल्म के अंत में जरूर दर्शकों को इस एकतरफा मोहब्बत का अंदाजा मिलता है। 
      2001 में ही आई 'दिल चाहता है' की कहानी में भी एकतरफा प्यार था। इस फिल्म ने दोस्ती में नया अध्याय जरूर जोड़ा। फिल्म की कहानी में तीनों दोस्तों को प्यार होता है। सिड (अक्षय खन्ना) को तलाकशुदा महिला तारा (डिंपल कपाड़िया) से एकतरफा प्यार हो जाता है। लेकिन, तारा उसे दोस्त ही समझती रहती है। जबकि, सिड को तारा की दोस्ती प्यार लगती है। अंत में उसका दिल टूट जाता है। ऐसी ही एक फिल्म 'कॉकटेल' आई थी, जिसकी कहानी एकतरफा आशिकों के लिए थी। ऐसा नहीं कि लड़का ही एकतरफा आशिक होता है। लड़की को भी एकतरफा इश्क हो सकता है। फिल्म में वही दिखाया गया। गौतम (सैफ अली) वेरॉनिका (दीपिका पादुकोण) एक जोड़े की तरह साथ रहते हैं। लेकिन, दोनों के बीच प्यार पूरा नहीं होता। इनके साथ डायना पेंटी (मीरा) भी रहती है। जब गौतम को मीरा से इश्क हो जाता है, तो वेरोनिका भी उससे प्यार करने लगती है। तब मामला गंभीर हो जाता है। 1997 में आई फिल्म 'दिल तो पागल है' में निशा (करिश्मा कपूर) और राहुल (शाहरुख खान) अच्छे दोस्त होते हैं। लेकिन निशा के दिल में राहुल के लिए दोस्त से बढ़कर जगह होती है। पर, वह यह बात राहुल से नहीं कहती। लेकिन राहुल की जिंदगी में जब पूजा (माधुरी दीक्षित) की एंट्री होती है, तो निशा का प्यार दिल में ही रह जाता है और राहुल-पूजा प्रेमी जोड़ा बन जाते हैं।
     करण जौहर की फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' (2016) में एकतरफा प्यार की ताकत को दिखाया गया। किस तरह लड़के को लड़की से प्यार होता है लेकिन लड़की किसी और को चाहती है। रणबीर कपूर ने फिल्म में अयान का किरदार निभाया था। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तो कोई कमाल नहीं किया। लेकिन, एकतरफा मोहब्बत करने वालों को सीख जरूर दी। दो अजनबी टकराते हैं, फिर रिश्ते की शुरुआत होती है। अयान इसे प्यार समझ लेता है। लेकिन अनुष्का शर्मा (अलिजेह) इस रिश्ते को दोस्ती का नाम देती है। कहानी में अयान को अविजेह से प्यार रहता है। जबकि अलिजेह के लिए अयान सिर्फ एक अच्छा दोस्त होता है। 2005 में आई आदित्य दत्त की फिल्म 'आश‌िक बनाया आपने' में सोनू सूद (करण) तनुश्री दत्ता (स्नेहा) से एकतरफ़ा प्यार करते हैं। लेकिन, वे कभी बताते नहीं। लेकिन, जब स्नेहा इमरान हाशमी (विकी) से प्यार करने लगती हैं, तो करण अपने दोस्त विकी के खिलाफ साजिश रचकर उससे सब छीन लेता है। 
    आज के दौर में ऐसी फिल्मों में यादगार फिल्म 'रांझणा' (2013) है। आनंद एल राय ने सोनम कपूर, अभय देओल और धनुष को लेकर यह फिल्म बनाई। वाराणसी शहर की पृष्ठभूमि और हिंदू-मुस्लिम धर्मों के दो किरदारों की कहानी है। कुंदन (धनुष) बचपन से ही जोया (सोनम कपूर) से एकतरफा प्यार करता है। लेकिन, जोया जसजीत सिंह (अभय देओल) नाम के छात्र व यूनियन में चुनाव में सक्रिय लड़के से प्यार करती है। कहानी कुछ ऐसा मोड़ लेती है कि कुंदन की एक गलती की वजह से जसजीत सिंह की मौत हो जाती है। इसके बाद एक तरफा मुहब्बत एक नए मुकाम पर पहुंच जाती है। कुंदन अपना सब कुछ पहले ही जोया पर हार चुका होता है। अंत में जोया के कहने पर सब जानते हुए अपनी जान तक दे देता है। रणबीर कपूर की फिल्म 'ये जवानी है दीवानी' में भी दीपिका पादुकोण को एकतरफा प्यार करते दिखाया गया। 'बर्फी' फिल्म में रणबीर कपूर को इलियाना डिक्रूज के एकतरफा प्यार में दीवाना दिखाया था। इसके अलावा मेरी प्यारी बिंदु, रॉकस्टार, मोहब्बतें और 'जब तक है जान' भी वे फ़िल्में हैं जिनका कथानक एकतरफा प्यार पर केंद्रित था।  
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