Friday, July 23, 2010

मेरा बाप ये ... तेरा बाप कौन?

आजादी के बाद से अब तक राजनीति की भाषा कितनी बदली है, यह जानना हो तो बीते आठ-दस दिन के अखबार उठा कर पन्नो पलट लीजिए।! पता चल जाएगा राजनीति की भाषा की दिशा क्या है। भारतीय जनता पार्टी के मुखिया नितिन गडकरी ने कहा कि कांग्रेस औरंगजेब की औलाद है तो कांग्रेस की तरफ से दिग्विजयसिंह ने बयान उछालते हुए अपने स्वर्गीय पिता का नाम बताया और गडकरी से उनके बाप का नाम पूछ लिया! यदि यह वाक् संघर्ष बंद कमरे में हुआ होता तो शायद भाषा का दंश इतना गहरा नहीं होता, पर जो कुछ हुआ सब सरेआम और खुल्लम खुल्ला हुआ! इसका माध्यम बना मीडिया जिसे पहले भड़काने और फिर भड़भड़ाने में मजा आता है।
इस पूरे प्रसंग में गौर करने वाली बात यह है कि गडकरी और दिग्वजयसिंह दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी के बड़े नेता हैं और दोनों सुसंस्कृत परिवार से आते हैं। दोनों के पास भाषाई समझ है, उनके शब्दकोष में शब्दों का इतना अकाल भी नहीं है कि उन्हें अपनी बात को साफ तौर पर कहने के लिए गर्त भरे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़े। फिर क्या कारण था कि उन्हें गली-कूचे में बोले जाने वाले अव्यावहारिक शब्दों का सहारा लेना पड़ा? दरअसल, यह एक संकेत है कि आने वाली राजनीति का स्तर क्या होगा! नेता कैसे होंगे, नेतागिरी कैसी होगी, उनका बोल व्यवहार क्या होगा और सबे बड़ी बात तो यह कि विपक्ष के प्रति उनका रवैया दोस्ताना होगा या दुश्मनों जैसा!
देखा गया है कि जब भी किसी बड़े नेता के मुंह से कोई गलत बात निकल जाती है तो उस पार्टी के भोंपू बने प्रवक्ता इसे जुबान का फिसलना बताकर विवाद को किनारे करने की कोशिश करते हैं। याद किया जाए तो हमेशा यही होता आया है और इस कृत्य से कोई भी पार्टी अछूती नहीं है। जब गडकरी ने पिछले तीन चार मौकों पर अपनी जुबान को फिसलने का मौका दिया तो भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं ने अपना रटा-रटाया बयान देकर कुछ ऐसी भाव भंगिमाएं बनाई जैसे कुछ हुआ ही न हो। यदि पार्टी के शीर्ष पर बैठे नेताओं की जुबान इतनी फिसलनभरी होगी तो उम्मीद की जा सकती है कि उनके कर्म कैसे होगे। यहां कांग्रेस की गलती यह कही जा सकती है कि उसने भी अपनी जुबान को फिसलने का पूरा मौका दिया। यदि कांग्रेस अपना जवाबी अंदाज बदल लेती तो बेहतर होता।
राजनीति के बोल व्यवहार का अंदाज यही रहा और इसे अपने तई लगाम नहीं लगाई गई तो इसका अगला चरण निश्चित रूप से हाथापाई ही होगा। क्योंकि, आज मीडिया को इन्हें वाक् संघर्ष करते देख जो मजा आ रहा है, मल्लयुद्ध करते देख शायद उससे भी ज्यादा मजा आएगा। अभी तो इलेक्ट्रानिक मीडिया को सिर्फ बाईट मिलती है, फिर तो वीडियो शॉट भी मिलेंगे। तब बात बाप का नाम बताने और पूछने तक ही सीमित नहीं रहेगी, उससे आगे निकलकर गालियों के जरिए नजदीकी रिश्ता भी जोड़ा जाने लगेगा। विधानसभाओं की दीर्घाओं में होने वाला माईक उखाडों जंग तब सड़कों पर ही लड़ जाने लगेगी और राजनीतिक ताकत का फैसला भी शायद बाजुओं की ताकत से ही होगा।

No comments: