Friday, July 23, 2010

बहुत कुछ कहती है, यह तस्वीर!

जाने माने नाटककार शेक्सपीयर ने किसी संदर्भ में एक बार कहा था कि उन्हें तस्वीरें बहुत पसंद हैं। क्योंकि, ये कभी बदलती नहीं, तस्वीर वाला व्यक्ति बदल जाए पर तस्वीरों का चरित्र कभी नहीं बदलता। बात सच भी है, तस्वीरों का चरित्र खामोश रहकर उन पलों को हमेशा जीवंत करते रहना होता है, जिन पलों में उन्हें क्लिक किया गया हो! काले-सफेद के जमाने से आज रंगीन तस्वीरों के जमाने तक में तस्वीरों का मूल चरित्र नहीं बदला। तस्वीरें भले ही खामोश रहती हों, पर जब बोलने लगती हैं तो बहुत बोलती हैं। यदि बात राजनीति की हो, तो इन तस्वीरों की वाचालता कुछ ज्यादा ही मुखरता से सामने आती है। यह भूमिका बनाई गई है हाल ही में अखबारों मे छपी एक तस्वीर के संदर्भ में! इस तस्वीर में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और भारतीय जनता पार्टी के ताकतवर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय पास-पास बैठे कानाफूसी कर रहे हैं। जहां ये दोनों नेता मिले, वह प्रसंग राजनीतिक नहीं था। हो भी नहीं सकता, क्योंकि हमारे यहां राजनीति की कोई धारा ऐसी नहीं बहती जहां दो धुर विरोधी पार्टियों के नेता साथ-साथ बैठकर विचारों का आचमन कर सकें!
दोनों के बीच क्या बातचीत हुई होगी, यह कोई नहीं बता सकता। ये दोनों नेता भी कभी इस बात का खुलासा नहीं करेंगे कि दोनों की रूचि के ऐसे कौनसे कॉमन विषय हैं, जिन पर यह गुफ्तगू चली होगी! ऐसी स्थिति में दिग्विजय सिंह और कैलाश विजयवर्गीय के चेहरे के भाव ही राज खोलते हैं कि इनके बीच जो बात हुई होगी वह राजनीति से इतर नहीं हो सकती। जहां तक मामले को कुरेदने की बात है तो दिग्विजय सिंह को राजनीति का पारंगत खिलाड़ी माना जाता है, उनके पेट से कोई राज उगलवा लेना भाजपा नेता के लिए शायद संभव नहीं है। तब तय है कि इस कानाफूसी की गर्त में प्रदेश की भाजपा राजनीति ही होगी!
भाजपा की प्रदेश राजनीति में इन दिनों उहा-पोह का माहौल है। राजनीति का सारा माहौल दागी मंत्रियों की तरफ पत्थर उछाल रहा है। आधा दर्जन मंत्रियों के साथ कैलाश विजयवर्गीय इस अभियान में निशाने पर हैं। अपनी राजनीति और बाहुबली ताकत के दम पर भाजपा के इस मंत्री ने बीते 10 सालों में बहुत कुछ पाया है। लेकिन, अब वे घिरते नजर आ रहे हैं और बचाव की कोशिश में तय है कि उनसे कोई बड़ी गलती हो सकती है! राजनीतिें की दुनिया में खबरों को कुरेदने वाले और उनके नए अर्थ निकालने वालों की सुने तों दोनों नेताओं के बीच जो खुसुर-पुसुर हुई है, उसके निहितार्थों को समझा जाना आसान नहीं है। दोनों के बीच आपसी समझ पहले से रही है। राजनीति रूप से विरोधी होने के बावजूद दोनों नुकसान और फायदों की भाषा को समझते और एक-दूसरे के लिए रास्ता आसान करते आए हैं। जहां तक राजनीति की बात है तो इस पेशे में दुश्मन का दुश्मन हमेशा ही दोस्त होता है। तस्वीर से गूंजते खामोश स्वर भी यही बता रहे हैं कि बात दो दोस्तों के बीच किसी ऐसे दुश्मन के बारे में हो रही है जो दोनों के निशाने पर है! अब यह समझने वाली बात है कि दोनों का कॉमन दुश्मन कौन है? ... सही समझा आपने! बात उसी को निपटाने के बारे में ही हो रही है।

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